जब तक खाप पंचायतों में भागीदारी व् फैसलों से राजनीति व् राजनैतिक लोग
साइड नहीं रखे जायेंगे, इनके फैसलों पर ऐसे ही मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आती
रहेंगी जैसे जिंद (जींद) वाली सर्वजाट सर्वखाप महापंचायत के फैसले बारे आई
हैं| फैसला सुखद था, 72 परिवारों को रिलैक्स दे गया व् कप्तान साहब की
राजनीति के जिन्दा रहने का स्कोप दे गया; तो उस हिसाब से तो पंचायत का
फैसला सरमाथे| बाकी नारनौंद की जनता बेहतर न्याय करेगी, इस फैसले को देरी
से आया, लठ आई में यानि इलेक्शन की हार से पोलिटिकल करियर खत्म होने की
नौबत से बचने के चलते करवाया मानेगी या कैसे| क्योंकि वक्त पर आया व् अपने
विवेक से आया फैसला ही सही फैसला होता है, देरी से आये व् कई इलेक्शन की
हार जैसी कई वजहें डेवेलोप होने के बाद आये फैसले पर लोग सवाल करेंगे ही,
आप-हम उनके मुंह बंद नहीं कर सकते|
और ऐसा होना भी नहीं चाहिए|
क्योंकि खाप कोई अधिनायकवाद की थ्योरी पर चलने वाली संस्था नहीं है कि आका
ने जो बोल दिया उसके बाद उस पर विचारों के आदान-प्रदान होने की गुंजाईस ही
ना हो| ठेठ गणतांत्रिक डेमोक्रेटिक प्रणाली की संस्था हैं खाप तो इन पर
ओपिनियन एक्सचेंज चलने आम है| व्यक्तिगत तौर पर बाकी सब बातों का स्वागत
योग्य पंचायत थी कल की सिर्फ एक पूरे समाज को दोषी मानने व् दंड लगाने वाले
पॉइंट को छोड़कर| यह पॉइंट जानकर ऐसा लगा कि जैसे खाप की नहीं अपितु
राजकुमार सैनी - अश्वनी चोपड़ा - रोशलाल आर्य - मनोहरलाल खट्टर - मनीष
ग्रोवर जैसों की पंचायत थी जो शुरू से ही पूरे जाट समाज को दोषी मानते आये
हैं| इसीलिए यह कहकर बात शुरू की कि एमएलए-विभिन्न पोलिटिकल पार्टी बियरर्स
का 21 सदस्यों की फैसला लेने वाली कमेटी में या उनके अड़गड़े क्या काम?
और काम था तो फिर कम-से-कम सभी पोलिटिकल पार्टीज वालों को ही लेते; असल तो
खाप के मूल स्वरूप के अनुसार पोलिटिकल व् धार्मिक प्रतिनिधियों का खाप से
कोई लेना देना ही नहीं होता आया| पॉलिटिक्स व् धर्म को खापों की बीमारी ताऊ
देवीलाल के ज़माने में शुरू हुई थी, इसका अंत होना चाहिए व् खाप के फैसले
शुद्ध रूप से सामाजिक लोगों की कमेटियों द्वारा ही होनी चाहियें; ऐसे लोग
जो ना राजनीति में हों और ना धर्मनीति में; वह सिर्फ समाजनीति में हों|
क्या आरएसएस दखल देने देती है उसकी ही पोलिटिकल विंग बीजेपी को उसके
फैसलों में, खापों से यह कांसेप्ट आरएसएस सीख गई परन्तु खुद खाप वाले पता
नहीं कब वापिस आएंगे अपने पुरखों के इस नियम पर| इस पर बहस कीजिये जितनी हो
सके अन्यथा यूँ तो खाप का मूल रूप ही बिगाड़ कर रख देंगे पोलिटिकल व्
धर्मनीति वाले लोग; शुद्ध सामाजिक लोग फिर कहाँ अपनी सामाजिक समता व्
न्यायप्रियता का मान धरवाएँगे? कहाँ उनकी चौधर बचेगी जो अगर
असेंबली-पार्लियामेंट में बैठने वाले राजनेता व् मंदिर-मठ-डेरों में बैठने
वाले बाबे "खाप-पंचायत" रूप सामाजिक मंचों पर भी कब्जा कर लेंगे तो आन
जमेंगे तो? तीनों को अपनी-अपनी मर्यादा में रहकर चलना चाहिए|
और बहस
करते वक्त "ये यौद्धेय", "वो यौद्धेय", "गंदे यौद्धेय", "बतड़ंगे यौद्धेय",
"फद्दू यौद्धेय" आदि-आदि लिखने वालों की तरफ ध्यान ना देवें| यह शब्दों व्
हावभावों के खेल से लोगों की "अटेंशन सीकर" लोग होते हैं| इनकी परवाह नहीं
करनी है| इनको क्या पता कि कल जो पंचायत हुई इसकी नींव कहाँ-कितनी गहरी व्
किस प्रेरणा से निकली हैं; किसकी फैलाई जागरूकता से निकली हैं| यौद्धेय वह
मशाल हैं जो जिसको स्पष्ट दिख जाएँ फिर उनके साथ ही होता चला जाए| हमें
अपना लोहा पता है और बहुत ही अच्छे से पता है| इनको भी पता है तभी इनकी
जुबानों पर "यौद्धेय" ही रहते हैं|
ऐसे लोगों से राय नहीं चाहिए जो
सामाजिक फंक्शन्स में चेहरा चमकाने को ये बड़ी-बड़ी अमाउंटस के चंदे बोल के
आते हैं और बाद में देने के नाम पर टाँय-टाँय फुस्स| गाम वाले जब कहते हैं
कि बोला हुआ चंदा इनसे आप लेते हो या हम भंडा फोड़ें ऐसों का सोशल मीडिया पर
तो मेरे जैसे ही आगे अड़ के इनकी इज्जत बचाते हैं, वह हैं यौद्धेय| और
ज्यादा कहूँगा तो खामखा रुसवाई हो जाएगी, बस इतना समझ ले ऐ नादाँ हम तो दूर
रहकर भी तेरी इज्जत दबाये-बचाये चले जाते हैं और तुम हमारे ही कैडर को जब
देखो ऑडियो-वीडियो में निशाना बनाये जाते हो? कुछ तो अपनी एथिक्स को भी जगा
लो? इतने भी अनएथिकल ना लगे थे तुम जितने दिखाने को आमादा हुए रहते हो?
और हाँ, क्योंकि यौद्धेय अधिनायकवाद नहीं है कि यहाँ एक ने जो कह दिया वही
फाइनल है| यौद्धेय दुनियाँ के सबसे पुराने डेमोक्रेट्स हैं यहाँ छोटे से
छोटा वर्कर, बड़े से बड़े कार्यकर्त्ता को उसकी गलती बताने का माद्दा व्
अधिकार दोनों रखता है| इसलिए हमारी बहसें भी ओपन सोशल मीडिया पर होती हैं|
इन बहसों को देखकर ऐसे लोग यह ना समझें कि यौद्धेय तो फुस्स हुए| वहाँ से
तो यौद्धेयों की सोच शुरू होती है जहाँ इन जैसों की इन व् इनके आकाओं के
निर्देश समेत वाली सोच खत्म होती है| अरे किसी व्यक्तिविशेष से समस्या है
तो व्यक्तिविशेष से मुखातिब होवें, पूरे यौद्धेय-गण को बदनाम मत करें|
इनको तो इतना भी भान नहीं रहता अपनी "अटेंशन सीकिंग" की आदत के चलते कि कल
जिस खाप की पंचायत में बैठने में इतना गर्व महसूस करके बातें
लिखी-बोली-बताई जा रही थी उन खापों का मूल हैं यौद्धेय| रै रलदू, उनको
आर्यसमाजी स्वामी भगवान देव आर्य की "हरयाणे के वीर यौद्धेय" नामक पुस्तक
पकड़ा दे, थोड़ा ज्ञान ले लेंगे यौद्धेय पर बोलने से पहले| वरना "अर्धज्ञान
कचरे की पेटी" की भाँति यूँ ही फद्दू यौद्धेय, झगड़ालू यौद्धेय, बद्तमीज
यौद्धेय बड़बड़ाते रहेंगे| इनको बोलो कि पढ़ो इस किताब को जो अगर इसमें सिवाए
"खापों के यौद्धेयों" के दूसरा कोई विषय भी मिल जाए तो|
यौद्धेय वो
हस्ती हैं जो कभी मरते नहीं, मारने के बाद भी नहीं मरते| वह तब भी खड़े होते
हैं जब सर्वब्रह्मज्ञानियों के ज्ञान व् अस्त्र-शस्त्र तक भी खत्म हो जाते
हैं| खेलनी-मेलणी माता नहीं हैं, हाड़फोड़ खसरा सैं यौद्धेय|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक