यह कांसेप्ट जगजीत सिंह चौहान का है व् उसी का यह मूवमेंट रहता है; फंडियों के इशारे पे|
फंडी की फिलॉसोफी है कि इसको लोकतंत्र व् गणतंत्र से खासी चिढ है यह इसके जेनेटिक रूप से अपोजिट है| संत भिंडरावाला की मांग हमेशा स्टेटस को ज्यादा राइट्स देने की रही (अमेरिका की तर्ज पर), जिससे कि लोकतंत्र व् गणतंत्र जिन्दा होता है| इससे बचने के लिए फंडी इस मुद्दे को एक काल्पनिक सोच तक ले जाता है जो इसकी एक्सट्रीम फंडी लोग मानते हैं| कि आज स्टेटस को राइट्स दे दिए तो कल को हमारे को कौन पूछेगा| यह पेंशन स्कीम बंद करने जैसा मामला है कि लोगों को आर्थिक तौर पर इतने संबल होने ही मत दो कि वह अपनी रोजी-रोटी को छोड़ लोकतंत्र बारे सोचने का वक्त भी पा सकें, बुद्धि चलाने तक तो पहुंचना ही नहीं चाहिए|
इनको चिढ़ है जब कोई सामाजिक तौर पर समाज में इनसे ज्यादा रेपुटेशन रखता हो या रखने लग जाए| किसान आंदोलन 2020-21 ने इसमें जो भी अग्रणी जातियां या संस्थाएं रही जैसे कि जाट-जट्ट व् खाप और गुरूद्वारे; इन चारों का विश्व स्तर पर रुतबा बढ़ा है| और इसको बढ़ाने में सहायक किसान आंदोलन के क्योंकि सूत्रधार सिख थे तो अब यह खालिस्तान का फिर से मुद्दा इनका हवा दिलवाया हुआ है देश व् विदेश दोनों जगह| ताकि जट्टों की रेपुटेशन डाउन की जाए व् इनसे जाट हतोत्साहित हो जट्टों से अलग हो जाए| इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है यह मामला|
संत भिंडरावाला हो या कोई और जट्ट उसने हमेशा खालसराज की बात करी; इसको एक स्टेप आगे के पंख फंडी लगवाते हैं लोगों को पैसे फेंक कर| फिर भी किसी खालसा वाले को कहना ही है तो वह यह लाईन ले कि हम पूरे देश को ही खालिस्तान बनाएंगे जैसे यह हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं| और जो वाकई में फंडियों से लड़ने की सोच रखता होगा वह इस लाइन पे चल के ही काम करेगा और ऐसे संत भिंडरावाला जी ने किया था|
दूसरा पार्ट यह भी देखो कि यह किसी जाट या जट्ट का कांसेप्ट क्यों नहीं है? क्योंकि खालिस्तान में पाकिस्तानी पंजाब का भी आधा पार्ट आता है, क्या उधर कोई हलचल दिखती है? नहीं, hence proved, it has been a purely fandi agenda!
जय यौधेय! - फूल मलिक