Tuesday 30 July 2024

हरयाणवी त्यौहार-कल्चर-कस्टम का हिन्दीकरण करते हरयाणवीयों के लिए संदेश!

हरयाणवियों को अपने कल्चर-कस्टम्स को mold करके दूसरों को भी एडजस्ट होने की उदारता छोड़नी होगी; क्योंकि इससे हमारी शुद्धता कत्ल हो रही है व् हमारे कल्चर-कस्टम्स का हरयाणवीकरण बरकरार रखने की बजाए उनका हिन्दीकरण और हो जा रहा है:


1000 किलोमीटर दूर से आ के बिहारी दिल्ली-एनसीआर में छट मनाते हैं, क्या वो कभी इस चक्कर में कि तुम दिल्ली में हो बिहार में नहीं; उनके त्यौहार का हिन्दीकरण करते हैं? बिल्कुल नहीं वही 100 फीसदी भोजपुरी भाषा व् रिवाज के साथ मनाते हैं|

1500 किलोमीटर दूर से आ के बंगाली दिल्ली-एनसीआर में दुर्गा-पूजा मनाते हैं, क्या वो कभी इस चक्कर में कि तुम दिल्ली में हो बंगाल में नहीं; उनके त्यौहार का हिन्दीकरण करते हैं? बिल्कुल नहीं वही 100 फीसदी बंगाली भाषा व् रिवाज के साथ मनाते हैं| 

2000 किलोमीटर दूर से आ के मराठी-गुजराती दिल्ली-एनसीआर में क्रमश: गणेश-चतुर्थी व् डांडिया मनाते हैं, क्या वो कभी इस चक्कर में कि तुम दिल्ली में हो महाराष्ट्र-गुजरात में नहीं; उनके त्यौहारों का हिन्दीकरण करते हैं? बिल्कुल नहीं वही 100 फीसदी मराठी-गुजराती भाषा व् रिवाज के साथ मनाते हैं|

3000 किलोमीटर दूर से आ के तमिल-तेलुगु-मलयाली आदि दिल्ली-एनसीआर में क्रमश: उनके त्यौहार मनाते हैं, क्या वो कभी इस चक्कर में कि तुम दिल्ली में हो दक्षिण भारत में नहीं; उनके त्यौहारों का हिन्दीकरण करते हैं? बिल्कुल नहीं वही 100 फीसदी उनकी भाषा व् रिवाज के साथ मनाते हैं|

1947 में पाकिस्तान से आ के खापलैंड व् मिसललैंड पर बसने वाले अरोड़ा-खत्री दिल्ली-एनसीआर में उनके नवरात्रे व् करवाचौथ मनाते हैं, क्या वो कभी इस चक्कर में कि तुम दिल्ली में हो पाकिस्तान में नहीं; उनके त्यौहारों का हिन्दीकरण करते हैं? बिल्कुल नहीं वही 100 फीसदी उनकी भाषा व् रिवाज के साथ मनाते हैं|


तो फिर यह दिल्ली-एनसीआर के इन सबसे पुराने बाशिंदे यानि यहाँ के मूलनिवासी हरयाणवी; किस दिन यह बात समझेंगे कि तुम तो प्रवासी धरती पे भी नहीं हो; फिर तुम क्यों अपने त्योहारों का हिन्दीकरण करके उनके मूलस्वरूप का कत्ल करने पे तुले हो? त्यौहार-कल्चर-कस्टम वह होता है जिसके अनुसार आगंतुकों को ढलना होता है, आपको अपने त्यौहार-कल्चर-कस्टम का स्वरूप नहीं बिगाड़ना होता| यह गलती कर रहे हो, इसीलिए खटटर जैसे नौसिखिए भी 2015 में गोहाना के एक प्रोग्राम में "हरयाणवीयों को कंधे से नीचे मजबूत व् ऊपर कमजोर" के तंज मारते हैं; बावजूद इसके कि आप उनको अपने में समाहित करने को उदारता की ही अति कर देते हो; अपने त्यौहार-कल्चर-कस्टम का हिन्दीकरण तक कर डालते हो; फर्क पड़ता है उनको इससे; क्या आप छाप छोड़ पाते हो, उन पर अपनी; नहीं बल्कि उल्टा कंधों से ऊपर कमजोर होने का तमगा और ले बैठते हो| 


इसीलिए तो कहा गया है कि अति हर चीज की स्वघाती होती है; और यह ऊपर बताया किस्सा इसका सटीक उदाहरण है| Guts दिखाओ, इनकी भांति, अपने त्यौहार-कल्चर-कस्टम की शुद्धता पे टिके रहने की; वरना आज "कंधे से ऊपर कमजोर" के तंज झेल रहे हो, 35 बनाम 1 झेल रहे हो; कल को आपकी पीढ़ियों के लिए इससे भी भयावह स्तिथि दे के जाने वाले हो| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

Thursday 25 July 2024

निडाणा गाम जिला जिंद/जींद को बसते हुए, आज 18 पीढ़ियां हो गई!

उदाहरण के तौर पर मेरे बड़े भतीजे से शुरू करके, म्हारे गाम को बसाने वाली पहली पीढ़ी तक पहुँचने पर ऐसे 18 पीढ़ियां बनती हैं:


अभिमन्यु सिंह मलिक > मनोज सिंह मलिक > रामेहर सिंह मलिक > दादा फ़तेह सिंह मलिक > दादा लछ्मण सिंह मलिक > दादा शादी सिंह मलिक > दादा गरधाला सिंह मलिक > दादा बख्शा सिंह मलिक > दादा दशोंदा सिंह मलिक > दादा थाम्बू सिंह मलिक > दादा समाकौर सिंह मलिक > दादा डोडा सिंह मलिक > दादा इंद्राज सिंह मलिक > दादा रातास सिंह मलिक > दादा सांजरण सिंह मलिक > दादा करारा सिंह मलिक > दादा रैचंद सिंह मलिक > दादा मंगोल सिंह मलिक

दादा मंगोल सिंह मलिक व् उनके साथ आए उनके सीरी भाई दादा मीला सिंह खटीक, मोखरा, महम चौबीसी से चल सन 1600 में न्यडाणा पर अपना खेड़ा बसाते हैं| उस वक्त जिंद/जींद में 4 रियासतें होती थी, जिनमें एक न्यडाणा/निडाणा थी; जो उस वक्त उज्जड़-खेड़ा था; जिसको फिर से इन दो दादाओं व् इनके साथ आए इनके परवारों ने बसाया था| मोखरा में दादा मंगोल से 4 माणस बिगड़ गए थे; आज भी मोखरा में इनके खंडहर हैं, जिसको निडाणा ढूंग बोला जाता है| दादा मंगोल को हुए दादा रैचंद, दादा रूपचंद व् दादा लाधू| दादा रैचंद ने निडाणा में ही बस के आगे यह गाम बसाया, दादा रूपचंद ने सीम लागता खेलगाम निडाणी में मलिक गौत जा बसाया व् दादा लाधू ने जिंद-रोहतक रोड पे स्थित गतौली में मलिक गौत जा बसाया|

दादा मंगोल के नाम से ही गाम में मंगोल-आळा जोहड़ है| दादा करारा को हुए दादा लखमीर के बेटे दादा बग्गा के नाम से गाम में बग्गा (बागा) आळा जोहड़ है| दादा लाधू के नाम से गाम में लाधू-आळा जोहड़ है|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday 22 July 2024

हरियाणा की सभी विधानसभा क्षेत्रों की 5 सबसे बड़ी जातियों के क्रमवार नाम!

 लोकसभा चुनाव को एक साल से भी कम समय रह गया है | इसलिए चारों ओर राजनीतिक पारा बढ़ता जा रहा है |हरियाणा भी इससे अछूता नहीं है क्योंकि लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद विधानसभा चुनाव होने हैं | इसलिए हरियाणा के सभी राजनीतिक दलों के नेता भी चुनावी गुणा-भाग में लग गए हैं | लेकिन किसी भी व्यक्ति को नेताओं का चुनावी गुणा भाग तब तक समझ नहीं आता जब तक वह सामाजिक समीकरणों की समझ नहीं रखता हो | कई बार व्यक्ति सामाजिक समीकरणों के गलत आंकड़ों के कारण राजनीतिक दलों की तिकड़म बाजी को नहीं समझ पाता या उसका सही अनुमान नहीं लगा पाता क्योंकि हमारे चारों तरफ गलत सूचनाओं और आंकड़ों का ढेर है | इसके अलावा सही सूचनाओं का अभाव भी है | इसलिए मैंने मन बनाया कि हरियाणा विधानसभा सीटों के जातीय आंकड़ों से संबंधित एक लेख लिखूं ताकि राजनीति में रुचि रखने वाले एक सही समझ बना सके |  इस लेख में तीन तरह के आंकड़े लिख रहा हूं |

       पहला हरियाणा की सभी विधानसभा क्षेत्रों की 5 सबसे बड़ी जातियों के क्रमवार नाम | 

       दूसरा कौन सी जाति कितने विधानसभा क्षेत्रों में संख्यात्मक रूप से पहले तथा दूसरे नंबर पर है |

       तीसरा हर विधानसभा क्षेत्र में संख्यात्मक रूप से पहले तथा दूसरे स्थान पर आने वाली जातियों का अधिकतम प्रतिशत कितना और किस विधानसभा क्षेत्र में है |


        पहला हरियाणा सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों के नाम व पांच सबसे बड़ी जातियों के क्रमानुसार नाम:-

1.कालका विधानसभा:- गुर्जर,ब्राह्मण,राजपूत,बनिया, चमार 

2.पंचकूला विधानसभा :- बनिया ,अरोड़ा खत्री ,ब्राह्मण ,जट सिख व जाट 

3.नारायणगढ़  विधानसभा:- चमार, गुर्जर, सैनी , जाट‌  जटसिख ,राजपूत, ब्राह्मण 

4.अंबाला कैंट विधानसभा:- अरोड़ा खत्री ,जट सिख व जाट, ब्राह्मण , चमार ,बनिया 

5.अंबाला सिटी विधानसभा:- अरोड़ा खत्री , जटसिख व जाट, ब्राह्मण, बनिया, चमार

6.मुलाना विधानसभा:- चमार ,सैनी ,जाट व जटसिख, राजपूत, ब्राह्मण

7.साढौरा विधानसभा :- चमार ,जट सिख व जाट ,सैनी, मुस्लिम गुर्जर ,हिंदू गुर्जर ,काम्बोज,राजपूत

8.जगाधरी विधानसभा:- मुस्लिम गुर्जर ,हिंदू गुर्जर ,अरोड़ा खत्री, झींमर( कश्यप ), बनिया 

9.यमुनानगर विधानसभा :- अरोड़ा खत्री, मुस्लिम गुर्जर, जट सिख व जाट , काम्बोज, चमार, ब्राह्मण

10.रादौर विधानसभा :- चमार, कंबोज, सैनी, जाट व जटसिख, राजपूत ,ब्राह्मण

11.लाडवा विधानसभा :--जाट, सैनी, चमार, जट सिख ब्राह्मण, झींमर(कश्यप),काम्बोज

12.थानेसर विधानसभा :- रोड़, अरोड़ा खत्री ब्राह्मण ,जाट, चमार, सैनी 

13.शाहबाद विधानसभा  :-जटसिख, जाट ,ब्राह्मण, चमार,काम्बोज, राजपूत 

14.पिहोवा विधानसभा :-जटसिख,जाट, ब्राह्मण, चमार , गुर्जर, अरोड़ा खत्री , सैनी

15. गुहला चीका :-जट सिख ,जाट ,चमार, ब्राह्मण, काम्बोज,अरोड़ा खत्री ,बनिया 

16.कलायत विधानसभा :-जाट, ब्राह्मण , चमार ,राजपूत, बाल्मीकि 

17.कैथल विधानसभा :-जाट ,गुर्जर, अरोड़ा खत्री,बनिया, चमार 

18.पुंडरी विधानसभा :-रोड़ ,जाट, ब्राह्मण , चमार , जटसिख, गुर्जर

19.नीलोखेड़ी विधानसभा :- रोड़, राजपूत, जट सिख,चमार, अरोड़ा खत्री 

20.इंद्री विधानसभा:- कंबोज,झींमर(कश्यप), जट सिख ,जाट, चमार, राजपूत

21.करनाल विधानसभा:- अरोड़ा खत्री, बनिया, जाट व जटसिख, ब्राह्मण, रोड 

22.असंध विधानसभा :-रोड़ ,जट सिख , जाट,चमार, राजपूत, ब्राह्मण

23.घरौंडा विधानसभा :-रोड़, जटसिख, राजपूत, चमार, ब्राह्मण,झींमर(कश्यप)

24.पानीपत ग्रामीण विधानसभा :-जाट , चमार, अरोड़ा खत्री, ब्राह्मण, झींमर(कश्यप)

25.पानीपत शहर विधानसभा:- अरोड़ा खत्री, बनिया, ब्राह्मण, जाट, मुस्लिम 

26.इसराना विधानसभा:- जाट, रोड़, चमार,ब्राह्मण, बीसीए, सिख

 27.समालखा विधानसभा:- गुर्जर, जाट ,ब्राह्मण, मुस्लिम, चमार

28.गन्नौर विधानसभा:- जाट, त्यागी, ब्राह्मण , चमार, गुर्जर

29.राई विधानसभा :-जाट ,राजपूत ,ब्राह्मण, चमार ,त्यागी, प्रवासी 

30.खरखोदा विधानसभा:- जाट, चमार, ब्राह्मण ,बाल्मीकि, धानक ,सैनी 

31.सोनीपत विधानसभा :-अरोड़ा खत्री ,बनिया, जाट, ब्राह्मण, चमार 

32.गोहाना विधानसभा:- जाट , चमार ,ब्राह्मण, सैनी ,अरोड़ा खत्री ,बनिया

33.बरोदा विधानसभा:- जाट ,ब्राह्मण, चमार ,बाल्मीकि, धानक , सैनी

34.जुलाना विधानसभा:- जाट ,ब्राह्मण, चमार, बाल्मीकि, सैनी

 35.सफीदों विधानसभा:- जाट ,ब्राह्मण , चमार, रोड़,जट सिख, सैनी,गुर्जर,

36.जींद विधानसभा:- जाट ,अरोड़ा खत्री ,बनिया ,सैनी, चमार ,ब्राह्मण 

37.उचाना विधानसभा:- जाट, चमार, ब्राह्मण, बाल्मीकि, धानक

38.नरवाना विधानसभा:- जाट , चमार ,ब्राह्मण, बाल्मीकि धानक , जटसिख

39.टोहाना विधानसभा:- जाट, जट सिख, चमार, कंबोज, ब्राह्मण, अरोड़ा खत्री 

40.फतेहाबाद विधानसभा:- जाट ,बिश्नोई, अरोड़ा खत्री, चमार ,ब्राह्मण 

41.रतिया विधानसभा:- जट सिख ,जाट ,अरोड़ा खत्री , चमार ,कंबोज, ओढ

42.कालावाली विधानसभा:- जट सिख, चमार, जाट, काम्बोज,मजहबी सिख ,अरोड़ा खत्री 

43.डबवाली विधानसभा:- जाट ,जट सिख, चमार, मजहबी सिख, काम्बोज,विश्नोई 

44.रानिया विधान सभा:- जाट, जट सिख ,कंबोज, चमार, मजहबी सिख 

45.सिरसा विधानसभा:- अरोड़ा खत्री ,बनिया ,जाट , चमार, कंबोज

 46.ऐलनाबाद विधानसभा:- जाट, चमार ,जट सिख , कुम्हार, धानक 

47.आदमपुर विधानसभा:- जाट ,बिश्नोई , चमार ,कुम्हार, धानक ,खाती 

48.उकलाना विधानसभा:- जाट , चमार,ब्राह्मण ,ओढ़, कुम्हार

49.नारनौंद विधानसभा:- जाट,चमार, ब्राह्मण, बाल्मीकि धानक , अरोड़ा खत्री 

50.हांसी विधानसभा:- जाट, अरोड़ा खत्री, सैनी ,ब्राह्मण, चमार, कुम्हार

51. बरवाला विधानसभा:- जाट , कुम्हार, अरोड़ा खत्री, चमार, सैनी 

52.हिसार विधानसभा:- अरोड़ा खत्री, बनिया, सैनी, चमार, बिश्नोई, जाट 

53.नलवा विधानसभा:- जाट ,बिश्नोई ,कुम्हार, चमार, ब्राह्मण

54.लोहारू विधानसभा:- जाट , चमार ,ब्राह्मण ,कुम्हार, धानक 

55.बाढ़ड़ा विधानसभा:- जाट, चमार, यादव ,ब्राह्मण, खाती 56.दादरी विधानसभा:- जाट ,राजपूत , चमार, ब्राह्मण, यादव 

57.भिवानी विधानसभा:- ब्राह्मण, जाट, राजपूत, अरोड़ा खत्री, चमार 

58.तोशाम विधानसभा:- जाट, राजपूत, ब्राह्मण, चमार, कुम्हार

59.बवानीखेड़ा विधानसभा:- जाट, राजपूत, चमार, ब्राह्मण, धानक , बाल्मीकि

60.महम विधानसभा:- जाट , चमार ,ब्राह्मण, अरोड़ा खत्री, धानक 

61.गढ़ी-सांपला किलोई विधानसभा:- जाट, ब्राह्मण , चमार, धानक,कुम्हार,

62.रोहतक विधानसभा:- अरोड़ा खत्री ,जाट ,बनिया, चमार, ब्राह्मण, सैनी

63.कलानौर विधानसभा:- जाट, चमार, अरोड़ा खत्री, ब्राह्मण, धानक, बाल्मीकि

64.बहादुरगढ़ विधान सभा:- जाट, ब्राह्मण, चमार, प्रवासी, बनिया, अरोड़ा खत्री 

65.बादली विधानसभा:- जाट , चमार ,ब्राह्मण ,राजपूत, यादव 

66.झज्जर विधानसभा:- जाट ,यादव, चमार, ब्राह्मण, बाल्मीकि

67. बेरी विधान सभा:- जाट ,ब्राह्मण, चमार, धानक, यादव 

68.अटेली विधानसभा:- यादव ,राजपूत, चमार, ब्राह्मण, जाट 

69.महेंद्रगढ़ विधानसभा:- यादव ,राजपूत ,ब्राह्मण , चमार, जाट 

70.नारनौल विधानसभा:- यादव ,सैनी , चमार ,ब्राह्मण, जाट

71. नांगल चौधरी विधानसभा:- यादव ,गुर्जर, चमार, ब्राह्मण ,सैनी 

72.बावल विधानसभा:- यादव ,जाट , चमार, राजपूत, ब्राह्मण, गुर्जर 

73.कोसली विधानसभा:- यादव , चमार ,राजपूत, जाट, ब्राह्मण 

74.रेवाड़ी विधान सभा:- यादव, अरोड़ा खत्री, चमार,ब्राह्मण, जाट 

75.पटौदी विधानसभा:- यादव, राजपूत, जाट, चमार, ब्राह्मण 

76.बादशाहपुर विधानसभा:- यादव, जाट ,प्रवासी, राजपूत, चमार, ब्राह्मण 

77.गुड़गांव विधानसभा:- अरोड़ा खत्री, बनिया,जाट,यादव, प्रवासी 

78.सोहना विधानसभा:- मेव मुस्लिम,गुर्जर, यादव, चमार, ब्राह्मण 

79.नूंह विधानसभा:- मेव मुस्लिम, राजपूत , चमार ,जाट, बनिया

80.फिरोजपुर झिरका विधानसभा:- मेव मुस्लिम, चमार, बनिया, सैनी, कुम्हार 

81.पुनहाना विधानसभा:- मेव मुस्लिम,बनिया,जाट , चमार, कुम्हार 

82.हथीन विधानसभा:- मेव मुस्लिम, जाट, ब्राह्मण, चमार, गुर्जर 

83.होडल विधानसभा:- जाट, चमार,ब्राह्मण ,गुर्जर, मेव मुस्लिम 

84.पलवल विधान सभा:- जाट, गुर्जर, चमार, बनिया, ब्राह्मण, अरोड़ा खत्री 

85.पृथला विधानसभा:- जाट,राजपूत ,ब्राह्मण, चमार ,मेव व मुस्लिम

86.फरीदाबाद एनआईटी विधानसभा:- गुर्जर, प्रवासी, अरोड़ा खत्री, मुस्लिम, जाट, ब्राह्मण 

87.बड़खल विधानसभा:- अरोड़ा खत्री, गुर्जर, मुस्लिम, ब्राह्मण, प्रवासी 

88.बल्लभगढ़ विधानसभा:- अरोड़ा खत्री ,बनिया, प्रवासी, गुर्जर,जाट 

89.फरीदाबाद विधानसभा:- अरोड़ा खत्री, बनिया, ब्राह्मण, जाट व जट सिख, मुस्लिम

90.तिगांव विधानसभा:- गुर्जर,ब्राह्मण,राजपूत, मुस्लिम, चमार,जाट ।  

                       दूसरा हरियाणा की कौन सी जाति कौन से विधानसभा क्षेत्र में संख्यात्मक रूप में पहले तथा दूसरे नंबर पर है जिसका वर्णन निम्नलिखित है:-

    1.जाट 41 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर और 9 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

2.जट सिख 5 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर और 8 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

3.अरोड़ा खत्री 13 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर और 6 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

4.यादव 9 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर और एक विधानसभा क्षेत्र में दूसरे नंबर पर हैं|

5.मेव मुस्लिम 5 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर हैं|

6.रोड़ 5 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर और एक विधानसभा क्षेत्र में दूसरे नंबर पर हैं|

7.हिंदू गुर्जर 4 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर और 7 विधानसभा क्षेत्र में दूसरे नंबर पर हैं|

8.मुस्लिम गुर्जर 1 विधानसभा क्षेत्र में पहले नंबर पर और एक विधानसभा क्षेत्र में दूसरे नंबर पर हैं|

9.चमार 4 विधानसभा क्षेत्रों में पहले नंबर पर और 17 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

10.ब्राह्मण 1 विधानसभा क्षेत्र में पहले नंबर पर और 10 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

11.कंबोज 1 विधानसभा क्षेत्र में पहले नंबर पर और 1 विधानसभा क्षेत्र में दूसरे नंबर पर हैं|

12.बनिया 1 विधानसभा क्षेत्र में पहले नंबर पर और 9 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

13.राजपूत 10 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

14.बिश्नोई और सैनी 3-3 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

15.त्यागी, झींमर(कश्यप), कुम्हार व प्रवासी 1-1 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे नंबर पर हैं|

                तीसरा हर विधानसभा क्षेत्र में संख्यात्मक रूप से पहले तथा दूसरे नंबर पर आने वाली जातियां का अधिकतम प्रतिशत कितना और कौन से विधानसभा क्षेत्र में है का वर्णन निम्नलिखित है:-

1.मेव मुस्लिमों की अधिकतम संख्या 70% के आसपास फिरोजपुर झिरका और पुन्हाना में है|

2.यादवों की अधिकतम अधिकतम संख्या 60% के आसपास कोसली विधानसभा क्षेत्र में है|

3.जाटों की अधिकतम संख्या 55 से 60% के आसपास बेरी, गढ़ी- सांपला किलोई, बरोदा,उचाना आदि विधानसभा क्षेत्रों में है|

4.जट सिखों की अधिकतम आबादी 30% के आसपास कांलावाली में है|

4.अरोड़ा खत्री की अधिकतम संख्या 30 से 35% के आसपास रोहतक और पानीपत शहरी विधानसभा क्षेत्रों में है| 5.हिंदू गुर्जरों की अधिकतम संख्या 25 से 30% के आसपास समालखा और सोहना विधानसभा में है|

6. मुस्लिम गुर्जरों की अधिकतम आबादी जगाधरी में है जो 17% के आसपास है |

7.रोड बिरादरी की अधिकतम आबादी पुंडरी विधानसभा क्षेत्र में है जो 25 से 30% के आसपास है|

8.ब्राह्मणों की अधिकतम संख्या 17% के आसपास भिवानी विधानसभा क्षेत्र में है |

9.चमारों की अधिकतम संख्या 20% के आसपास साढौरा और मुलाना विधानसभा क्षेत्रों में है |

10.कंबोज जाति की अधिकतम संख्या इंद्री विधानसभा क्षेत्र में 15-16% के आसपास है |

10.बनिया जाति की अधिकतम संख्या 20 से 25% के आसपास पंचकूला और सिरसा विधानसभा क्षेत्रों में है| 11.बिश्नोईयों की अधिकतम संख्या 18 से 20% के आसपास आदमपुर विधानसभा क्षेत्र में है |

12.सैनियों की अधिकतम संख्या 15 से 20% के आसपास लाडवा विधानसभा क्षेत्र में है |

13.त्यागियों का अधिकतम प्रतिशत गन्नौर विधानसभा क्षेत्र में है| 

14.कश्यप (झींमर) की अधिकतम संख्या इंद्री विधानसभा क्षेत्र में 15% के आसपास है |

15.सबसे ज्यादा संख्या में कुम्हार 12 -15% के आसपास बरवाला विधानसभा क्षेत्र में पाए जाते हैं |

16.राजपूत बिरादरी की अधिकतम संख्या 15% के आसपास बवानीखेड़ा विधानसभा क्षेत्र में है |

17.फरीदाबाद एनआईटी क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रवासी 18- 20% की संख्या में है |

                       मैंने अपनी तरफ से सही सूचना देने का पूरा प्रयास किया है| केवल उन जातियों के क्रम में थोड़ा बहुत परिवर्तन हो सकता है जिनकी संख्या में 1 या 2% का ही अंतर है | आप कमेंट करके अपनी राय दे सकते हैं या कोई भी सवाल पूछ सकते हैं |  

                            लेखक :- प्रवीन कुमार

                                   तहसील - बादली 

                                     जिला -झज्जर|

                                         धन्यवाद!

                                        🙏🙏

1881 gaut-wise population in Punjab

 सन् 1881, पंजाब में सांगवान

British Territory (Delhi, Gurgaon, Karnal, Hisar, Rohtak, Sirsa, Ambala) = 7,757
Native States (Patiala , Jind) = 8,222
Total – 15,979

इसमें कुछ और गोतों का भी दिया हुआ है।
गठवाल-12926,
डागर-19848,
जाखड़-12918,
सहरवात-14367,
दहिया-24826,
गुलिया-20324,
राठी-14013,
खत्री-15187,
दलाल-14420,
अहलावत-12386,
देशवाल-9775,
धनखड़-4936,
फोगाट-7283,
सांगवान-15979,
पावनिया-18,128,
बेनीवाल-11878,
नैन-8969,
रावत-5129,
बागड़ी-5770,
चौहान-30059,
मंडहर-7139,
तंवर-12639

By: Rakesh Sangwan
(source- Punjab Castes, page-128,129) 

Arya Samaji population in Punjab in 1911

 सन् 1911 तक पंजाब में 9203 जाट आर्य समाज के सदस्य थे। सबसे पहले नम्बर पर मेघ की संख्या 22115 थी। इसके बाद दूसरे व तीसरे नम्बर पर खत्री और अरोड़ा थे। जाटों की संख्या चौथे नम्बर पर थी। संख्या में ब्राह्मण और राजपूत पाँचवे व सातवें स्थान पर थे। इनके बाद आठवें और नोवें नम्बर पर अग्रवाल और सुनार की संख्या थी।छठे नम्बर पर ओढ़ जाति की संख्या थी, जिन्हें शुद्धि के तहत आर्य समाज से जोड़ा गया था।


इन आकड़ों से ये स्पष्ट है कि आर्य समाज से शहरी वर्ग पहले जुड़ा था, जिसने फिर किसान कामगारों को इससे जोड़ा। आगे चलकर इनके बीच आपसी वर्ग संघर्ष भी हो चला था और ये घास और मास आर्य समाजी नाम के दो धड़ों में बँट गए थे। इनमें हिंदू मत को लेकर भी टकराव रहता था, एक धड़ा ख़ुद को हिंदू मानता था तो दूसरा ख़ुद को हिंदू से अलग।

पंजाब के हरियाणा वाले हिस्से में आर्य समाज से जुड़ने वालों में ज़िला रोहतक के सांघी गाँव के जैलदार चौधरी मातूराम और उनके भाई डॉक्टर रामजीलाल हुड्डा थे। डॉक्टर रामजीलाल हुड्डा सन् 1893 में ज़िला हिसार के मेडिकल ऑफ़िसर थे और उसी दौरान आर्य समाज के सम्पर्क में आए थे। देहातियों में आर्य समाज का प्रचार करने में डॉक्टर रामजीलाल हुड्डा का बहुत बड़ा योगदान था।

(हम आर्य समाज से सहमत हो या ना हों ये एक अलग बहस या चर्चा का विषय है। पर हमें उससे पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि आर्य समाज क्यों आया? किस वर्ग ने किस उद्देश्य से इसे अपनाया? और उसे समझने के लिए उस दौर के सामाजिक और धार्मिक हालात समझने ज़रूरी हैं। क्यों दो धड़ों में बँटा हुआ था? हिंदू मत को लेकर इनमें धड़ाबंदी क्यों थी? क्या इनका शुद्धि आंदोलन सिर्फ़ मुस्लिम को कन्वर्ट करने तक सीमित था?)

Rakesh Sangwan

Source: (census of India 1911, Punjab, Part-1, page no. 137) 


Friday 19 July 2024

Arya Samaj, Jats and Khapland

To understand people's history of Haryana region  and Western Uttar Pradesh around Delhi, in general and  the  new awakening movement in Jat community in particular, with the introduction of Arya Samaj in this area. Incidentally my period of research is from 1857 to 1947. My village  Kadipur is situated near the western bank of Jamuna river in North East District of NCT Delhi. You must be aware that before Delhi was declared capital of India in 1911 Delhi was one of the District of the Punjab comprising of Delhi, Sonepat and Ballabhagarh Tehsils. My family had marital relations in the districts  of Delhi, Rohtak and Meerut, Muzaffarnagar, Bulandshahar. My great grandfather Chaudhary jyasi Ram was the sole proprietor  and Lumbadar of Kadipur. Under the Land Settlement of Delhi District in 1880 he was appointed Zaildar of Alipur Zail comprising of 37 mostly Khadar villages. My grandfather Chaudhary Bhim Singh had Darshan of Sawami Dayanand Saraswati in 1877 at time Delhi Darbar (Assemblage) along with his father and one of the early pioneers of Arya  Samaj  in this region during the first two decades of the twentieth century.  Chaudhary Bhim Singh was the Wazier (President) of the Panchayat Azam (Panchayat the Great) held in village Barauna (Kheda of Dahiya), district Rohtak on 7 March 1911. During this period Mr. E. Joseph was the Deputy Commissioner of Rohtak, who was a fluent speaker of Haryanvi dialect because before becoming DC of Rohtak he was the Settlement Commissioner of that district. When Jat kaum vehemently insisted to hold the historic Panchayat, the then Punjab Government promulgated Prevention of Seditious Meeting Act 1907 in Rohtak district on 13 June 1910 to ban/regulate, this biggest congregation after the revolt of 1857 in Northern India. Chaudhary Bhim Singh and his equally leading friends, later on relatives such as Chaudhary Matu Ram and Dr. Ramji Lal Sanghi, Chaudhary Ramnarain Bhigan and Chaudhary Ganga Ram Gadhi Kundal were the primary Arya Samaj followers of this region in organising  in Shehri Khanda  Panchayat in December's 1906 against Pauraniks. He along with his elder brother Zaildar Tek Chand, his Samdhi Rai Bahadur Chaudhary Raghunath Singh Mitrau, Chaudhary Kali Ram Mangolpur Kalan (all from Delhi district) and Dr. Ramji Lal  Sanghi & Chaudhary Peeru Singh Matindu were founder member of the  All India Jat kshtriya Mahaasabha established in March 1907 in famous Nauchandi Mela at Meerut. These people organised Panchayat in various villages for the propagation of Savdeshi movement in Delhi district.  Arya Samaji Jats were also instrumental in the establishment of Jat Schools at Rohtak, Lakhavti, Badaut, Narela, Kheda Gadhi and Sangaria. Jat Boarding Houses were founded at Agra, Muzaffarnagar, Pilani, Bulandshahar, Gwalior etc. Researched on revolt (Bagawat) by the nativ Officers and Sepoys of 10 Jat Paltan in 1908 in Calcutta and many Jat newspapers since 1890's and Shekhavati movement. Chaudhary Tika Ram Mandaura keenly assisted Chaudhary Bhim Singh Kadipur in the establishment of Vedik Sanskrit Jat High School Kheda Gadhi in Delhi Province. Chaudhary Rijak Ram, Chaudhary khem Lal Rathi and Dr. Sarup Singh and Headmaster Dalel Singh were the alumni of this School. 


Through: Sh. Virender Singh Jatrana NA

Wednesday 17 July 2024

पंजाब बँटवारा चौधर की लड़ाई थी और रुकावट जाट थे?

मुस्लिम लीग और अकाली दल ने पंजाब के बँटवारे के लिए अपनी अपनी योजना बना रखी थी पर इसमें उनके लिए जाट बड़ी बाधा थे? यह बात अकाली कॉन्फ्रेंस और मुस्लिम लीग कॉन्फ्रेंस मे दी गई स्पीचेस से सिद्ध होती है। अगर दोनों के भाषणों के शब्दों को गौर से पढ़ें तो साफ समझ आता है कि यह बंटवारा वर्ग वर्चस्व के लिए था। क्योंकि उस दौर में पंजाब पॉलिटिक्स की मुख्य बुनियाद जमींदार बनाम गैर-जमींदार थी। जब भी पंजाब एसेम्बली में किसानों के हित का कोई भी कानून आया तो सभी धर्मों के गैर जमींदार इकट्ठा खड़े दिखे।


14 मार्च, 1943 को पटियाला के भवानीगढ़ में ऑल इंडिया अकाली कॉन्फ्रेंस में मास्टर तारा सिंह ने आज़ाद पंजाब स्कीम पर बोलते हुए कहा, आज़ाद पंजाब बनने से न केवल आज़ाद पंजाब के सिखों और हिंदुओं को वर्तमान पाकिस्तान से छूटकरा मिल जाएगा बल्कि पंजाब का जो हिस्सा वर्तमान पंजाब से कट जाएगा, वहाँ रहने वाले सिख और हिन्दू भी बेहतर स्थिति में रहेंगे। उन्होने आगे बताया कि समूहिक तौर पर वे हिन्दू जाटों और अछूतों के बिना 40% (15% सिख और 25% हिन्दू) हो जाएंगे। इन 40 प्रतिशत के सांझा आर्थिक और सांस्कृतिक हित उनके बीच सामंजस्य पैदा करेंगे और इसलिए वे वर्तमान पंजाब की तुलना में अपने हितों की रक्षा करने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे। जाटों और आछूतों की मानसिकता, जो वर्तमान पंजाब में हमेशा कुछ लाभ प्राप्त करने के लिए मुसलमानों का समर्थन करते हैं, आज़ाद पंजाब में बदल जाएगी। (The Indian Annual Register, Vol-I, 1943, page 294)

मास्टर तारा सिंह के इस भाषण में “इन 40 प्रतिशत के सांझा आर्थिक और सांस्कृतिक हित उनके बीच सामंजस्य पैदा करेंगे और इसलिए वे वर्तमान पंजाब की तुलना में अपने हितों की रक्षा करने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे” वाक्य साफ दर्शा रहा है की उनकी मंशा क्या थी? कैसे सफाई से उन्होनें हिन्दू अलग और हिन्दू जाट व अछूत अलग कर दिये। दरअसल यही सभी धर्मों के जाटों की एकता और जाटों के साथ दलितों का खड़े रहना ही इन लोगों को अखर रहा था। यूनियनिस्ट सरकार में जो कानून बने वह सभी एक तरह से इनके वर्ग के विरोधी थे।

खैर, 19 जून 1943 को अखंड हिंदुस्तान कॉन्फ्रेंस में बाबा खड़क सिंह ने मास्टर तारा सिंह की इस आज़ाद स्कीम का विरोध कर दिया। बाबा खड़क सिंह ने कहा, मास्टर तारा सिंह और जिन्नाह की आज़ाद पंजाब और पाकिस्तान योजनाएँ देश को तोड़ने की योजनाएँ हैं। 1943 में ही लाहौर में एंटी-पाकिस्तान कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए बाबा खड़क सिंह ने कहा, हम सिख शपथ लेते हैं कि यदि जिन्नाह और मास्टर तारा सिंह ने देश को तोड़ने की बात की तो हम उनके साथ संघर्ष करेंगे, क्योंकि आज़ाद पंजाब और पाकिस्तान की बात करना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ।(The Indian Annual Register, Vol-I, 1943, page 295)

इसके बाद अकाल दल में भी इस मुद्दे पर फूट पड़ गई। क्योंकि सभी को मास्टर तारा सिंह का जातिवादी मंसूबा समझ आने लगा था। नवंबर 1943, ननकाना साहिब में ऑल इंडिया अकाली कॉन्फ्रेंस के अधिवेशन में हरचरन सिंह बाजवा ने आज़ाद पंजाब स्कीम का विरोध कर दिया। बाजवा ने एंटी-आज़ाद पंजाब कॉन्फ्रेंस का गठन कर सिखों को आकलियों की इस राजनीति के वीरुध जागृत करना शुरू कर दिया।

मास्टर तारा सिंह के साथ जमींदार वर्ग से प्रताप सिंह कैरो जैसे युवा एमएलए, सरदार बलदेव सिंह आदि जो जुड़े हुए थे वे भी दूर हटते चले गए। सरदार बलदेव सिंह ने तो 12 मई, 1946 को रावी से लेकर दिल्ली, मेरठ डिविजन और आगरा डिविजन को मिलाकर Jatistan बनाने की मांग कर दी। इसको लेकर उन्होनें भरतपुर, अजमेर और पंजाब में सभाएं भी की थी। बाबा खड़क सिंह ने इसका भी विरोध किया था कि ये पंथ के खिलाफ काम है। दोनों ही मांगों का विरोध ये तो बताता है कि बाबा खड़क देशभक्त इंसान थे परंतु जब पंजाब एसेम्बली में मंडी एक्ट लाया गया था तो बाबा खड़क सिंह उसके विरोध में डॉक्टर गोकुल चंद नारंग एंड टीम के साथ खड़े थे, साथ ही नहीं बल्कि उस कानून के विरोध के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था, वो उसका हिस्सा भी थे। (Civil and Military Gazatte newspaper 1946, The Times Of India newspaper 1938)

पंजाब के विभाजन कि बात करने वाले मुस्लिम लीग से जुड़े मुस्लिमों को भी जाट अखर रहे थे। उन्हें भी अपने मंसूबे में जाट बड़ी रुकावट दिख रहे थे। 29 अगस्त 1943 को चक न० 258/जी॰बी, जिला लयालपुर में लीग की बैठक हुई। बैठक की अध्यक्षता मौलवी जमाल मियां (फिरंगी महल लखनऊ से) ने की। बैठक में पंजाब में चौधरी छोटूराम की गतिविधियों की निंदा की और मुस्लिम जाटों को जाट महासभा से दूर रहने का अनुरोध किया गया। (Azad Punjab Scheme, Akhtar Sandhu, Page 51)

चौधरी छोटूराम और जाट महासभा पंजाब के बँटवारे में सबसे बड़ी बाधा थे। चौधरी छोटूराम ने लयालपुर की एक सभा में कहा था की पाकिस्तान की मांग पूंजीवादियों की मांग है। और उनकी बात सही भी थी। पंजाब की उस दौरान की राजनीतिक गतिविधियां देख लीजिये या अब की, एक बात स्पष्ट है कि ऊपरी तस्वीर कुछ और होती है अंदर में असल मे सारा संघर्ष अपने वर्ग के वर्चस्व लिए ही होता है। मास्टर तारा सिंह का भाषण पढ़ लीजिये या बाबा खड़क सिंह का मंडी एक्ट के विरोध मे खड़े होना, सब एक बात स्पष्ट करते है कि जब बात खुद के वर्ग पर आती है तो सारे आदर्श धरे रह जाते हैं। यही बात आज भी लागू है। हाल का किसान आंदोलन इसका ताजा उदाहरण है। सिख धर्म वाले किसान आंदोलन में बड़ी संख्या में साथ खड़े इसलिए दिखे क्योंकि इसमें किसान-कामगार बहुसंख्यक हैं।

-राकेश सिंह सांगवान



Sunday 14 July 2024

गोहाना की मशहूर लाला मतुराम की जलेबी

 गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल l गोहाना की मशहूर लाला मतुराम की जलेबी - मोदी -रोहतक के हलवाई  और गोहाना के जाट l इन सबका आपस में गहरा संबंध है l मोदी ने लाला जी की जलेबियों की तारीफ की l  अब चर्चा गोहाना के जाट समुदाय की l लाला मातुराम ने गोहाना से पहले अपनी रेहड़ी रोहतक रेलवे स्टेशन के पास लगाई थी l लोगो को चस्का लगा लेकिन रोहतक के पुराने हलवाई खफा हो गए l लाला जी को धमकी दे दी l लाला जी परेशान लेकिन इस बात का पता गोहाना के जाट समुदाय के लोगों को पता चला l उन्होंने लाला जी को गोहाना में आने को कहा और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली l अब भी यदि जाट लाला जी के बचाव में आ जाए तो किसी बदमाश की हिम्मत नहीं कि लाला जी को बुरी नजर से देख ले l वैसे पुलिस तो अपना काम कर ही रही है l लाला जी की जलेबी बारे तो सब जानते है लेकिन रिटायर्ड सेशंस जज जागलान साहिब के मुताबिक लाला जी के मोटी बूंदी के लडू भी काफी स्वादिष्ट है l लाला जी के बच्चे ज्यादा पढ़े लिखे नहीं वरना बीकानेर स्वीट्स की तरह पेटेंट करवा लेते तो आज राजा होते l वैसे अब तो मातूराम के नाम से रोहतक गुरुग्राम और कई जगह दुकान खुल गई है l रोहतक में दिल्ली बाई पास पर अपन ने भी जलेबी का स्वाद चखा तो मजा आ गया l  दुकान मालिक ने बताया कि वो कई साल लाला जी की दुकान पर कारीगर रहा और काम सीख गया l

Thursday 11 July 2024

बैल बुद्धि - आजकल मोदी के ऊपर यह तंज खूब चला हुआ है!

ताज्जुब की बात है गाय का दूध पी के बड़ा होने वाले बैल पे यह कहावत; कि उसकी बुद्धि मंदबुद्धि का परिचायक मानी गई? जबकि तमाम धर्म के ठेकेदार गाय के दूध से तो तीव्र-विलक्षण बुद्धि का बनना बताते हैं? क्या यह सिर्फ मिथ्या व् कृत्रिम प्रचार मात्र है इनका?


वैसे हमारे पुरखों ने जब-जब भी गाय व् भैंस के दूध व् गुण-अवगुण में तुलना करी तो यह चीजें व्यवहारिक तथ्यों के आधार पर कही:


1 - गोरखनाथ का पिछोका, गौका देखे ना मसोहका: यहाँ इस कहावत में गोरखनाथ के पिछोके से मतलब सांड से है व् गौका यानि गाय व् मसोहका यानि भैंस| और इस कहावत का अर्थ है कि सांड को जब कामेच्छा चढ़ती है तो वह उसके नियंत्रण से इतनी बाहर होती है कि वह गाय व् भैंस में फर्क नहीं कर पाता| व् यह बात हमारे पुरखों की सदियों की इन दोनों पशुओं बारे ऑब्जरवेशन के आधार पर है| पुराने जमाने में व् अब भी जहाँ-कहीं भी पाळी जोहड़ के गोरे पे अपनी गाय-भैसों के इकट्ठे झुण्ड बैठाते हैं तो यह तथ्य प्रैक्टिकल में देखा जाता है| जबकि भैंसा या झोटा, इतना सभ्य व् स्वनियंत्रित तब भी रहता है जब उसको कामेच्छा चढ़ती है; उसको गाय-भैंस का फर्क तब भी रहता है व् वह, वहां भैंस ना भी होगी तो भी गाय पर कभी नहीं जाता| तो इस हिसाब से देखो तो ज्यादा सूझबूझ व् स्वनियंत्रण देने वाला दूध भैंस का कि नहीं? वैसे बता दूँ, आजकल अब वाली हरयाणा सरकार ने गोरख-धंधा शब्द पर कानूनी बैन लगाया हुआ है; जैसे इसके कारिंदों का गोरखधंधा शब्द से सीधा संबंध हो व् यह सुनना इनको अपना अपमान अथवा मजाक लगता हो| 


2 - लड़ाई के मामले में भी गाय का दूध, भैंस के दूध की अपेक्षा गर्म बताया गया है: दो सांडों को लड़ते हुए छुड़वाना, दो झोटों को छुड़वाने से ज्यादा दुष्कर है; परन्तु यह भी सच है कि सांड, झोटों की अपेक्षा ज्यादा देर नहीं लड़ सकते; जबकि झोटे पूरी-पूरी रात सर मेळते नहीं थकते| वैसे तो एक झुण्ड में कई सांड शांति से खटा जाते हैं परन्तु एक झुण्ड में दो झोटे निचले नहीं बैठेंगे; वह एक दूसरे से हल्की फुल्की हठखेली से ले तेज-तरार फाइट भी करने लगते हैं| परन्तु सांड जब लड़ाई पर उतरता है तो वह अपना आपा खो के लड़ता है व् जल्दी थकता है| यह तथ्य भी पुरखों की ऑब्जरवेशन से आता है| झोटे कई-कई घंटे भी भिड़ते रहेंगे पर थकेंगे नहीं; जबकि सांड धुआंधार लड़ेंगे और जल्दी थक जाएंगे; जैसे इनको किसी बात की जल्दी हो| झोटों की भिड़ंत की टक्कर की दहल इतनी दूर तक जाती है कि रात को कहीं खेतों में दो गामी झोटे भिड़ रहे होंगे तो कई बार तो सारी-सारी रात उनकी खैड़ों की दहल आसपास के गुहांडों तक में सुनाई दिया करती होती है| मुझे इस परिवेश का होने के चलते, बचपन में यह दहल सुनने का अनुभव् है| 


3 - बैल बुद्धि - बैल यानि वह बछड़ा जिसको प्रजनन से ऊना बना दिया जाता था व् सारी उम्र हल-जुताई में निकालता था| इसलिए बैल जितना तपस्वी किसी को नहीं माना गया| इसका सफेद रंग इसको सूर्य की किरणों से प्रत्यर्पण के जरिए बचाता है व् यह जल्दी हांफता नहीं है; जबकि झोटे का काला रंग सूर्य की किरणों को समाहित करता है तो वह जल्दी गर्म हो के हांफने लगता है| लेकिन रात में झोटा भी बैल से भी ज्यादा हल खींचने में सक्षम माना जाता है| हल-बुग्गी में दोनों जोड़े जाते हैं; परन्तु बैल को ऊना करना जरूरी होता है; कारण कि जब उसको कामेच्छा चढ़ती है तो वह कूद-फांद करता है व् बहुतों पार हल की फाल पे पैर दे मारता है, इसलिए हल-बुग्गी जुताई वाले बैल पहले उन्ने किये जाने जरूरी होते हैं; क्योंकि यह अपनी कामेच्छा काबू में रखना नहीं जानते होते| जबकि झोटा इस मामले में ज्यादा समझदार व् परिपक्क्व होता है| 


इतने तपस्वी होने के बाद, "बैल की बुद्धि" मंदबुद्धि का परिचायक क्यों बनी; इसपे शायद मोदी के भक्तलोग ही प्रकाश डालें तो बेहतर होगा| और इसको मोदी के साथ जोड़ के तो मोदी के चक्कर में बेचारे बैल की और सामत ला दी| 


दो शब्दों में सही निचोड़ दूँ तो बैल/सांड तुनकमिजाज होते हैं जबकि झोटा मूडी होता है| तुनकमिजाजी कुछ पल की होती है जबकि मूड लम्बा व् स्थाई होता है| यह इस बात से भी समझा जाता है कि बुग्गी में जुड़ा बैल, जल्दी बिदकता है; जबकि झोटे में बिदकन आसानी से नहीं आती; परन्तु आती है तो दीवार-बाड़ सबको तोड़ता हुआ जाता है| 


सिद्धू मूसेआळा जो झोटे को इतना महान बता गया कि उसके गानों व् ट्रेक्टर तक पे झोटा लिखता-छपता था; तो उसकी यही ऊपर जैसी कुछ वजहें थी; इसलिए इन जानवरों बारे अपनी परसेप्शन, आपके पुरखों से मिले तथ्यात्मक ज्ञान के आधार पर बनाओ ना कि किसी फंडी-पाखंडी के उछाले कृत्रिम प्रचार के आधार पर| गुण-अवगुण दोनों में हो सकते हैं परन्तु उनका सही-सही ज्ञान होना अति लाजिमी है| 


जय यौधेय! - फूल मलिक