Friday, 26 April 2024

के के खत्म होग्या।

चुड़ी पहरावण खातर घर घर, आया करती मणियारी।

चिमटा पलटा बेचया करती, ना रही गाडिया लुहारी।।


बीण बजाकर सांपों को जो, गाळ मं नचाया करते।

वो सपेले लुप्त हुए, संग खत्म हुई सांप की पिटारी।।


कांगी सुई डोरा तागड़ी आली, गुवारणी इब ना आती।

पोडर सुर्खी लाली के संग, बेचया करती चोटी कारी।।


भजनी आया करदे गाम मं, दमड़ दमड़ बजै था ढोल।

रागिनी की जब टेक चढै थी, लाग्या करती किलकारी।।


बजा डूगडूगी बांसूरी पै, नई नई धून सुणाया करता।

खेल दिखावणिया जादू का, इब ना आता कोये मदारी।।


रस्सी पै चालणिये नट बी, इब कोय दिखाई ना देता।

हल की फाली ऊपर बच्चा, पड़ जाता था जान पै भारी।।


लोक संपर्क विभाग से भी, नाटककार आया करते।

खूब हंसाया करदे सबनै, लगा चुटकुलों की तरकारी।।


कबिसर बी जब आया करते, गा गाकर करते बड़ाई।

पिछले घर से जो बी मिला, दोनों गाते थे बारी बारी।।


कुलड़ी, झाकरा और मटका, जब आहवे से उतर जाते।

भरके टोकरे में सबको, घर घर बांटया करती कुम्हारी।।


सुनील जाखड़ इब टेम बदल गया, आधुनिक सब हो गये।

के के चीज खत्म हुई गाम तैं, मनै खोल बता दी सारी।


सुनील जाखड़ पूर्व सरपंच लडायन की लेखनी से


Thursday, 25 April 2024

'तुम में जहर नहीं है, इसलिए तुम कमजोर हो!' सांप ने चूहे से कहा।

'जिसके अंदर जहर होता है दुनिया उसकी इज्जत करती है...उनका सिक्का चलता है।'


'आज तुम्हारा जहर ही तुम्हारे लिए अमृत है!'


चूहा ध्यान से सब सुनता रहा।


'जब तुम्हारे पास जहर होगा, तभी लोग तुमसे डरेंगे!' सांप शांत स्वर में बोला।


चूहे को बात समझ में आयी।


'फिर मुझे क्या करना चाहिए!' चूहे ने पूछा।


'सीधी-सी बात है...तुम्हें अपने अंदर जहर पैदा करना चाहिए!'


'वह सब तो ठीक है, मगर अपने अंदर जहर कैसे पैदा करूँ!'


स्पष्ट था कि चूहा हर हाल में समाधान चाहता था।


'तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ!' सांप ने मदद की पेशकश की।


'कैसे!'


'चाहो तो मुझसे जहर ले लो!'


ताकत की चाह में चूहे ने फौरन हामी भर दी। सांप मुस्कुराया।


फिर क्या था,मौका मिलते ही सांप ने अपना जहर चूहे में उतार दिया। रगों में लहू के साथ जहर मिलते ही चूहे का बदन नीला पड़ गया। चूहा हमेशा के लिए शांत हो गया। 


चूहे की डेड बॉडी लेकर सांप अपनों की सभा में पहुँचा। जहाँ उसका अभूतपूर्व स्वागत हुआ।


चूहे की डेड बॉडी देखकर सभी सांप उत्साह से भर उठे। वे जोर-जोर से फुफकारते हुए नारे लगाने लगे।


सभा शुरू हुई।


'दोस्तो! मेरे प्यारे दोस्तो!' सांप बोला।


साथी सांप गौर से उसे सुनने लगे। वहाँ शांति छा गई।


'दोस्तो! जैसा कि मैंने आप से कहा था, वह मैंने कर दिखाया है। रिजल्ट आप सबके सामने है।' चूहे की डेड बॉडी को दिखाते हुए वह बोला।


सभी सांपों ने हिश! हिश! करके उसका समर्थन किया।


वह आगे बोला,'हम पहले से ही बहुत बदनाम हैं अब हमें और बदनाम नहीं होना है! अब देखिए साथियो! मैंने यह काम लोकतांत्रिक ढंग से किया। अब हम पर कोई हिंसा का इल्जाम नहीं लगा सकता। इस चूहे ने मुझसे खुद जहर मांगा...' यह कहते हुए सांप का फन तन गया।


सभी सांपों ने हिश! हिश! कर काफी देर तक अपनी खुशी जाहिर की ।


'साथियो! आप पहले दिलों में जहर भरिए! वह जेहन में  खुद ब खुद आ जायेगा और सब्जेक्ट अपने रगों में उतारने के लिए बेचैन हो जाएगा!' 'सब्जेक्ट' शब्द सुनकर सांपों के बदन में सुरसुरी-सी दौड़ गई।


वह धारा प्रवाह बोलता रहा,'बस हमें सपने और भय दोनों साथ-साथ दिखाने होंगे! अच्छे-अच्छे शब्दों के चयन पर ध्यान केंद्रित करना होगा!' उसने चूहे की डेड बॉडी पर एक नजर मारी। फिर बोला,'देखिए! कैसे हमारे रंग में यह रंगने के लिए तैयार हो गया!'

सभी सांप चूहे के नीले बदन को देखने लगे। वे अजब रोमांच से भरे उठे।


वह आगे बोला,'जहर भरिए,खूब भरिए,मगर उपदेश की शक्ल में ...आप देखेंगे कि उपदेश स्वतः उन्माद में बदलता जाएगा... बस फैलकर हर जगह हमें अपना काम लगातार करते रहना है। क्या समझे!'


एक बूढ़ा सांप जोश में बोला,' समझ गए!हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है...'


'बिल्कुल सही!' सांप गर्व से बोला।


'ये चूहा तो फंस गया,मगर क्या गारंटी है कि सभी फंसेंगे!'  दुविधा से भरे एक युवा सांप ने सवाल किया।


'वेरी गुड क्वेश्चन!' सांप यह बोलकर थोड़ी देर के लिये चुप हो गया। फिर फुफकारता हुआ बोला,'जब तक लोगों में वर्चस्व की भावना प्रबल रहेगी,तब तक मुझे कोई दिक्कत नहीं दीखती...' यह सुनते ही सभी सांपों में हर्ष की लहर दौड़ गई।


'बस वर्चस्व को उत्कर्ष की शक्ल में बेचो!'

उसने बुलन्द आवाज में यह बात कही।


पल भर में सभा जोशीले नारों से गूंज उठी और सांपों की सभा ने एकमत से उसे अपना नेता चुन लिया।


नये नवेले नेता ने बहुत प्यार से कहा,'आइए!अब हम प्रार्थना शुरू करते हैं!' 


सभी सांप समवेत स्वर में प्रार्थना करने लगे।


'लोकतंत्र खुद को डसवाकर हमको दूध पिलाता है

जो जितना जहरीला है, वह उतना पूजा जाता है


चूहे की डेड बॉडी पड़ी हुई थी। अभी न जाने और कितनी बॉडी वहाँ आने वाली थीं...

Saturday, 20 April 2024

प्रण लो कि किसी भी ऐसी बात में शामिल नही होगे जो अंधविश्वास फैलाती हो!

 चरखी दादरी के पास एक गांव है नौसवा! जिले की सीमा पर है! खेती किसानी करने वाले सम्पन्न और अच्छे लोगों का गांव है! लगभग सौ साल पहले इस गांव में एक परिवार में एक जवान मौत हो गई! मरने वाले का भाई और मां बच गए! मां के सामने जब एक जवान बेटा जाता है तो आप समझ सकते हो! मां भयभीत हो गई कि कहीं दूसरे बेटे को कुछ हो गया तो और दिल कांप गया! मरने वाले बेटे को शांति कैसे मिले! एक मां ये चाहती है कि उसके बेटे को मरने के बाद भी तकलीफ ना हो तो किसी ने बताया कि उसकी आत्मा को शांति तब मिलेगी जब देशी घी से बना चूरमा फलां व्यक्ति को झूलते हुए खिलाया जाए तो शांति मिलेगी और ये चूरमा उसके बेटे तक पंहुच जाएगा! मां का दिल अपना खून भी बेटे को पिलाना चाहती है बस बेटे का भला हो जाए ये तो चूरमा था! ये शर्त थी कि चूरमा दूसरा भाई खिलाएगा! वो दुखी भाई के मरने से और मां की बातों से और दुखी! अंत में वो तैयार हो गया मां की सन्तुष्टि के लिए और नीयत समय पर ऐसा किया गया! एक खाट को पेड से लटकाया गया और उस पर उस व्यक्ति को बिठाया गया जिसने चूरमा खाना था और झुलाया गया! जब वो उसकी तरफ आया तो उसने उसको चूरमा खिलाने की कोशिश की लेकिन उसने मुंह फेर लिया! दोबारा फिर कोशिश की तो फिर मुंह फेर लिया! एक तो भाई की मौत मां की मानसिक स्थिति और उसके मुंह फेरने से वो बेहद दुखी था! उसने सोचा नाश तो हो ही लिया उसने उस व्यक्ति को नीचे गिराया और लात घूंसों से उसका स्वागत किया! पहले से ही दुखी था बोला मेरी तो देखी जाएगी पर तुझे नही छोडूंगा!

 ये करने के बाद उसने अपने चाचा ताऊ के भाईयों को इकट्ठा किया और कहा कि अगर मेरा साथ देना चाहते हो तो प्रण लो कि किसी भी ऐसी बात में शामिल नही होगे जो अंधविश्वास फैलाती हो! अपना काम ईमानदारी से करो वफादारी से करो लेकिन किसी भी इस प्रकार के काम में शामिल नही होओगे! उन्होंने उसको वचन दिया और सीधा सीधा काम करने लगे! आज उसकी तीसरी चौथी पीढी चल रही है और उनकी प्रोग्रेस गांव में सबसे अलग अलग है! हर पीढी में जमीन खरीदते हैं और अपना काम करते हैं! किसी भी अतार्किक और अंधविश्वास में भाग नही लेते हैं! जो अंधविश्वास में पडे रहे उनकी जमीने बिक रही और वे खरीद रहे हैं!

(नौसवा के एक भाई द्वारा बताई गई के आधार पर)

1 मण लगै बीज का, 5 मण का फूकैगा डीजल और औजार!

 1मण लगै बीज का, 5 मण का फूकैगा डीजल और औजार !

5 मण लगै DAP यूरिया, 2 मण दवाई कीड़ेमार !!
माह पौ का जाड़ा तू लावे पानी, यो सोवै सै संसार !
5 मण यो डाक्टर लेज्यागा जै पड़ज्या तू बीमार!!
5 मण कि आवै किस्त KCC की, 5 मण छोड़ै कोनी साहूकार !
1मण पै गिद्ध नजर बीमा कम्पनी की, 1मण पै पटवारी और तसीलदार !!
ईब 2 मण लेज्या यो ताऊ खट्टर, 5 मण तेरे लगै कटाई !
1 मण डूम मिरासी भाई नै चाहिए, 5 मण लागैगी कढ़ाई !!
1मण लेज्यां साधु फ़क़ीर, 2 मण खाज्यां ये आढ़ती !
1मण गऊशाला मैं खावे गऊ माता, 1 मण खावेंगे जिन्दोर !!
तैनै समझाऊ सूं, भड़क कै नै मत करिये किसे तै तकरार !
नहीं तो 2 मण बचे सै उसनै लेज्यागा थानेदार !!
ना ज्यादा राजी हो मेरे पिया , तेरे पल्ले के घंटा पड़न देंगे !
खामखां मारै सै मँड़ासा, तन्ने के ये सहजे जी लेण देंगे!!

By: Karm Dhull

Thursday, 18 April 2024

एक रयात के ब्यछड़ण तैं, दो पक्षी क्यैल हो लिए - अंजणा का मुँह देखें मंत्री, बारहा साल हो लिए!

वही 12 साल हो लिए आज निडाना हाइट्स की वेबसाइट को बने हुए, इस लिंक से विजिट करें साइट पर - www.nidanaheights.com

 

सूर्यकवि दादा फौजी जाट मैहर सिंह जी की यह रागणी याद आई, जब पीछे मुड़ के देखा कि निडाना हाइट्स की वेबसाइट को बने तो आज 19 अप्रैल 2024 को पूरे बारहा साल हो लिए| वेबसाइट का लिंक व् उस साल मुख्य मीडिया अखबारों व् पत्रिकाओं द्वारा कवर की गई इस वेबसाइट की न्यूज़-स्टोरीज सलंगित कर रहा हूँ| मई-जुलाई 2012 में इसको सबसे पहले मीडिया कवरेज देने वाले, भाई रवि हसीजा (दैनिक जागरण के प्रथम पृष्ठ पर), भाई नरेंद्र कुंडू आज समाज के हरयाणा पेज पर व् मैडम मोनिका गोयल, Samvad Magazine, Department of Public Relations, Govt. of Haryana में स्टोरी पब्लिश करने पर, इनके प्रति gratitude आज भी कायम है; तीनों की कॉपी सलंगित हैं| 


19 अप्रैल 2012 से ले 2020 तक वेबसाइट को निरंतर अपडेट करते रहे, परन्तु फिर यूनियनिस्ट मिशन (2015) को खड़ा करने से होते हुए, निडाना में हमारी लाइब्रेरी टीम बनने से लाइब्रेरी (2018) स्थापित करते हुए, उज़मा बैठक (2020) आ गई और सिलसिला शुरू हुआ, पहले से रिसर्च व् पुरख-दर्शन से अर्जित ज्ञान के आधार पर 1600 पन्नों जितनी लिखित सामग्री (PDF टाइप के डाक्यूमेंट्स अलग) लिए निडाना हाइट्स वेबसाइट के तथ्यों को साथ-साथ review व् rectify करने का| हालाँकि review व् rectify का काम एक पुस्तक के रूप में लगभग पूरा भी हुआ पड़ा है, इसके PDF के हिंदी-इंग्लिश वर्जन जारी भी हो चुके हैं परन्तु व्यक्तिगत व् प्रोफेशनल व्यस्तताओं के चलते, इस पुस्तक को पब्लिश करने व् निडाना हाइट्स को इसके हिसाब से अपडेट करने का 2020 के बाद से अवसर ही नहीं लग सका| 


पिछले 4 साल से बिना किसी अपडेट के चलते हुए भी वेबसाइट अब एक ऐसी ब्रांड बन चुकी है कि विगत सवा दो सालों में 4 लाख 52 हजार बार गूगल सर्च में लोगों के सामने आई है व् औसतन पहले 10 पेजों में रैंक करती रही है (आंकड़ों का स्क्रीनशॉट सलंगित है)| इन विगत सवा दो सालों में "दादा नगर खेड़ा" "हरयाणवी कल्चर", "haryanvi language words", "100 sentences in haryanvi", "haryanvi words", "dhanana", "malik caste in haryana", "haryanvi language sentences", "dada kheda ka itihas", "haryanvi slangs", "dujana caste", "haryanvi sentences", "खाप" आदि ऐसे कीवर्ड्स हैं जिनपे टॉप सर्च में रहती है, इन कीवर्ड्स का चार्ट भी सलंगित है| 


यह वेबसाइट, 12 सालों से आज तक मात्र एक ऐसी वेबसाइट का गौरव लिए चल रही है जो हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ हरयाणवी वर्जन की बनी वेबसाइट है| आशा है कि जल्द वक्त आएगा जब इसको नए शोध से निकल के आये ज्यादा दुरुस्त तथ्यों के साथ अपडेट किया जाएगा| 


जय यौधेय! - फूल मलिक








मुस्लिम युनिवर्सिटी से फ्री की कोचिंग ले के 8 हिन्दू IAS बन गए!

मुस्लिम युनिवर्सिटी से फ्री की कोचिंग ले के 8 हिन्दू IAS बन गए, कोई ऐसी ही खबर किसी हिन्दू शिक्षा संस्थान की दिखाओ भाई; स्टेटस पे लगानी थी:


इस लिस्ट को देखिए, यह Jamia Millia Islamia University की Free IAE/IPS Residential Coaching Academy Center for Coaching and Career Planning के UPSC-2024 के नतीजों की है| कोई फीस नहीं लेते, बिल्कुल फ्री कोचिंग करवाते हैं व् 31 IAS सेलेक्ट हुए हैं इस बार इनके यहाँ से| ख़ास बात यह है कि इन 31 में 8 हिन्दू हैं| 


जरा तुलना कीजिए, ऐसे ही आपके धर्म के नाम पे चलने वाली तमाम यूनिवर्सिटियों की, शायद कहीं कोई मिल जाए इस तरीके से देश का भविष्य तैयार करती हुई| और नहीं तो धर्म के नाम पे सबसे बड़ी जानी जाने वाली बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में ही देख लीजिए क्या हो रहा है? 


यह फर्क होता है, शिक्षा स्थलों को शिक्षा स्थल रहने देने व् उनको नश्लीय-धार्मिक नफरत-हेय-घृणा के अड्डे बनने देने में| और जैसा माहौल इन्होनें धर्म के नाम पे आज बना दिया है, कोई कल्पना भी कर सकता है किसी हिन्दू यूनिवर्सिटी में इस तरह की कोचिंग से 8 मुस्लिम IAS यूँ-फ्री-फंड में बनने दिए जाने की? खैर, इस तरह सफल बनाने के लिए मुस्लिम तक बात तो छोड़ो, यह हिन्दू लड़के-लड़कियों को क्या बना रहे हैं, इतना ही झाँक के देख लिया जाए; तो 80% माँ-बाप इस तरह की तमाम युनिवेर्सिटी-कॉलेज-स्कूलों में अपने बच्चे पढ़ाना भी पसंद नहीं करेंगे| 


कभी ऐसा दौर हरयाणा-यूपी-दिल्ली-पंजाब-उत्तरी राजस्थान में हिन्दू-मुस्लिम-सिख फौजियों-उदारवादी जमींदारों के चंदों से चलने वाले तमाम "जाट शिक्षण संस्थानों" का भी होता था; आज कहाँ खड़े हैं सिंहावलोकन का विषय है| व् क्यों इस दुर्गत में आन फंसे हैं वह भी देखने की बात है| यह अपने माँ-बाप के पैसों व् मेहनत से यानि व्यक्तिगत प्रयासों की सफलता हासिल करने वाले बच्चों की लिस्ट को समाज की सफलता के नाम पे दिखा के खुश होने वाले, जरा समझें इस मर्म को; क्या थे पुरखों के सामूहिक जतन के सिस्टम-तंत्र थारे व् थमने उनको कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया?


जय यौधेय! - फूल मलिक




Wednesday, 17 April 2024

ऐन चुनावों के वक्त "अमर सिंह चमकीला" फिल्म की आड़ ले कर जातिवाद की खाई को चौड़ी कर वोटों में भुनाने का षड़यंत्र हर पंजाबी-हरयाणवी को समझना चाहिए!

पंजाबी-हरयाणवी इसलिए क्योंकि सबसे ज्यादा असर इस फिल्म का इसी एरिया में होना है| तो आखिर क्या ऐसा नैरेटिव खड़ा करना कि "चमकीला की हत्या इसलिए हुई कि वह दलित थे" मात्र संयोग है? नहीं एक भरापूरा प्रयोग है, इन इलाकों में नासमझ व् कोरी भावनाओं पर चलने वाले लोगों को बाँट के उनके वोट खाने का; अन्यथा जिसमें अक्ल होगी वह इन नीचे दिए तथ्यों पर जरूर विचरेगा:  


चमकीला की हत्या 8 मार्च 1988 को हुई - वह दलित थे।

लेकिन उसी साल ..... 

23 मार्च 1988 को पंजाबी के प्रमुख क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह पाश की हत्या हुई - वे जट्ट थे। 

6 दिसंबर 1988 को पंजाबी फिल्मों के मशहूर एक्टर-निर्माता-निर्देशक वरिंदर (धर्मेंद्र के भाई) की हत्या हुई थी - वे भी जाति से जट्ट थे।

 

तो अगर चमकीला की हत्या दलित होने के कारण की गई थी तो अवतार सिंह पाश और वरिंदर क्यों गोलियों के शिकार बनाए गए थे?


चमकीला बेशक दलित थे पर मकबूल सबसे ज्यादा जट्टों-जाटों में थे। उनके तकरीबन तकरीबन सारे अखाड़ों के आयोजक जट्ट-जाट बिरादरी के लोग होते थे।

एक और बात.. पंजाबियों में बहुत ज्यादा आदर और सम्मान पाने वाले पुराने दौर के सबसे बड़े गायक माननीय लाल चंद यमला जट्ट जी भी दलित जाति के थे - चमार वर्ग से थे। राज गायक की उपाधि से नवाजे गए पंजाब के महान गायक हंसराज हंस  भी दलित हैँ। हनी सिंह, दलेर मेहँदी व् मीका भी दलित हैं। कौन सुनता है इनको सबसे ज्यादा जाट व् जट्ट ही ना? 


तो कब जाएगी तुम्हारी यह कुढ़ाळी ब्याण, कुत्ते दुम तुम कभी सीधे मत होना! 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 14 April 2024

आंधी चढ़ी, अंधोड़े आए

 रापट रोड़ भंभूळे आए।

गोळ मोळ घूम्मै जणू फिरकी
झाड़ सुधां ले सूळे आए।
गोस्से उडे, उडी थेपड़ी
रेतम-रेत सबेरे आए।
टिब्बा ठाकैं कड़ कै उपर
बादळ काळे भूरे आए।
किते चुप, किते मारैं दे कैं
दिन बैसाख के पूरे आए।
ओळे बरसैं, बरसै पाणी
ले अंबर कुए झेरे आए।
किसकै रोकैं रुक्या राम यो
बादळ जणू गभेरे आए।
चलै थ्रेशर आँख मींच कैं
लामणियाँ के रेळे आए।
बाळ तै उल्टा हाळी चाल्लै
सोळे हो दिन ओळे आए।
हाल्लै शीशम, टूटैं डाळे
खड़े नाज पै ढोरे आए।
बिन ठाए चलैं भरोटी
फोल्ले- फोल्ले पूळे आए।
खड़ी फसल म्हं दिया पसारा
गिंहुआ नै डडमेड़े आए।
एक झोकैं म्हं दिया बगा कैं
बख्त ये धूळम धूळे आए।
रणी गिंहू की सिर धर कैं
गाळ गळी म्हं तूड़े आए।
आंगे- बांगे उड़े कागले
दिन धोळै अंधेरे आए।
रुळदी फिरदी हांडैं टटीहरी
टेम ये तातै सीळे आए।
माणष डरजै, छुलै काळजा
बर्बादी के मेळे आए।

Author: Sunita Karonthwal

Saturday, 13 April 2024

आज सविंधान दिवस पर बाबा साहेब आंबेडकर जी को नमन करते हुए, 2024 लोकसभा चुनावों बारे कुछ चेतावनियां!

पहले इलाज: नीचे 3 बिंदुओं में फंडियों द्वारा की गई "कान-फुंकाई" के "कान-झड़ाई" इलाज बता रहा हूँ; जिसको भी संविधान की फिक्र है, वह यह अपने-अपने घरों-गली-मोहल्लों में जरूर करे| 


क्योंकि यह जो आज का सविंधान दिवस मना रहे हो, खुशियां आदान-प्रदान कर रहे हो, कहीं यह आखिरी बार तो नहीं; क्योंकि तीसरी बार इनको और बना दिया और पता लगा अगली साल सविंधान ही नहीं छोड़ा (वैसे छुपे रूप से अभी भी कुछ छोड़ नहीं रखा, सविंधान में), आज जैसी खुशियां मनाने को? इसलिए एक जो सबसे जरूरी चीज है, ध्यान में लानी व् analyse करनी है, वह समझें नीचे के तीन बिंदुओं से:


1 - यह जो उत्तर-पश्चिमी भारत में किसान, सत्तारूढ़ वालों की रैलियों का विरोध कर रहे हैं; सत्तारूढ़ वाले आपको इनको एक जाति विशेष वाले बता के आपके "कान में फूंक मार रहे होंगे" कि इनका तो काम ही है हमारा विरोध करना| मात्र इतना मान के इनसे छिंटक के मत बैठना; क्योंकि यह तो अपना फर्ज पूरा कर रहे हैं आपको चेताने का, क्योंकि मसला सिर्फ खेती-किसानी जितना नहीं है; कल को जब सविंधान से ले आरक्षण, नौकरियों से ले लेबर अधिकार सब पर रन्दा फेरेंगे ये (जो कि छुपे रूप से तो काफी हद तक फिर भी चुका है, बस औपचारिक घोषणा के रूप में पर्दे से बाहर आना बाकी बचा हुआ है) तो फिर याद करते हुए हाथ मलने के अलावां कुछ नहीं बचेगा कि किसान तो सही कर रहे थे, हम ही नहीं उठे| किसान तो सही प्रेरणा दे रहे थे कि अभी वक्त है विरोध करो, परन्तु हमने ही सत्ता वालों की कान-फुंकाई मानी| 


2 - अगर अभी भी तथाकथित "इस बनाम उस" यानि "35 बनाम 1" टाइप वाली "कान-फुंकाई" में ही बहना है तो जरा सम्भल के| जरा सोच के देखें कि इस 1 में ऐसा क्या है जो इनकी बुराई करने वालों को हमें प्राइवेट में आ के इनसे डराने की जरूरत पड़ती है? व् जिस बात को ले के यह हमें 1 से डराते हैं उसको यह पब्लिकली क्यों नहीं बोल सकते; तो क्या यह खुद 1 से डरते हैं परन्तु उस खुद के डर को निकालने का जरिया हमें बनाते हैं? या जो हमें ऐसे प्राइवेट में एक से छुपा के चुगली के जरिए बताया जा रहा है वह सच है ही नहीं, व् उसको एक ने सुन जान लिया तो इनके इस तथाकथित अपनेपन की पोल-पट्टी खुल जाएगी; क्योंकि धरातलीय सच्चाई इससे बिलकुल भिन्न है? ऐसे बुराई कहें या चुगली कहें या कान-फुंकाई कहें, यह तो उसी की जाती है ना जिससे करने वाले को ही "inferiority complex" हो? इनको यह complex है तो रहने दो, आपको 1 से कोई शिकायत है तो सामने आ के कह सकते हो| बुजुर्गों से सुनते थे कि जिसकी पीठ पीछे आलोचना होती हो, कान-फुंकाई होती हो; उसमें कोई ना कोई गुण होता है, जो चुगली करने वाला चाह कर भी हासिल नहीं कर सकता, तो कान-फुंकाई करने लगता है| तो बचें इससे व् अपने समाज को बचावें; क्योंकि ऐसा ना हो कि बाद में पता लगे कि जिस एक बारे कान-फुंकाई की जा रही थी, उसका तो आपकी लाइफ में उस बंजारे वाले कुत्ते वाला महत्व था (तो था ही अगर ज्यादा नहीं), जिसको मार के बंजारा बाद में रोया था| तो इनकी इस चुगली में आ के अपने इस एक को खुद ही मत देना; वरना बाद में पछताने के अलावा कुछ ना मिलेगा| 


3 - यह आपको एक वालों के सीएम के दौर गिनवाते हैं, उनमें जो कमियां रही होंगी, वह गिनवाते हैं| तो भाई सिर्फ इसी एक तरफा एनालिसिस पे चल के निर्णय कर लोगे? तुलना नहीं करोगे, बाकियों से? उनसे जो 75 साल की आज़ादी काल में न्यूनतम 50 साल तो पीएम रहे? अलग-अलग राज्यों में सीएम रहे? कभी करके देखना, इस एक वालों ने ही सबसे ज्यादा एससी-एसटी-ओबीसी के भले के काम किए मिलेंगे व् ऐसे ऐतिहासिक काम किए मिलेंगे कि सपरे आएँगे आपको| सबसे बड़ा एक काम तो हरयाणा-पंजाब के परिवेश में बता भी देता हूँ, सर छोटूराम की राजनीति के जमाने से तुलना करना कि चाहे खाली जमीनें आवंटित करने का काम रहा हो, या खाली प्लाट बांटने का, या परस-चौपाल बनाने का; अगर दलित-ओबीसी समाजों के लिए इस एक वाली बिरादरी से आने सीएमओं ने सबसे ज्यादा ना किए हों व् बाकियों ने इनकी तुलना में नगण्य किए हों तो समझ जाना कि किस स्तर की "कान-फुंकाई" की जा रही है आपकी| रोटी-कपड़ा-मकान, में रोटी कमाने के लिए जमीन व् रहने के मकान चाहिए; यह जो आपको 5 किलो राशन वाले हैं, इनसे पूछना जरा, आपके मकान-खेती के लिए कितनी जमीनें आपको आवंटित करी इन्होनें पिछले दस सालों में? तब आप सही तुलना कर पाओगे कि सिर्फ 5 किलो राशन में टरकाने वाले सही या वह सही जो 5 किलो राशन तो देते ही थे, अपितु साथ में साथ 100-100 गज के प्लाट, सर छोटूराम व् सरदार प्रताप सिंह कैरों जैसे तो खाली पड़ी जमीनें भी आवंटित कर देते थे| होंगी बुराईयाँ एक वालों में भी परन्तु क्या उनके जितनी, जो इस एक के लिए आपके कान में फूंक के जाते हैं; ना एक के आगे यह बातें कहने जितनी सच्चाई इनकी इन कान-फुंकाई की बातों में व् ना यह एक जितने पाक-साफ़| पाक-साफ़ हैं तो क्यों नहीं पब्लिक डिबेट में चैलेंज दे लेते एक को एक की इन्हीं तथाकथित बुराइयों पे, जो इनको एक से छुपा के आपके कान में फूंकनी पड़ती हैं? 


इसलिए, निकलो बाहर इस फंडियों की कान-फुंकाई से; सवाल करो इनसे, और पूछो कि इन बातों में सच्चाई है तो क्यों नहीं पब्लिक में बोल के एक को चैलेंज करते व् जवाब मांगते? हमें क्यों कान में कहने चले आते हो यह बातें? अन्यथा यह तीसरी बार आए और  समझो, आपके हाथ से सविंधान-आरक्षण सब गया| उन बाबा आंबेडकर का दिया सविंधान जिसके लिए आज का दिन मना रहे हो, खुशियां आदान-प्रदान कर रहे हो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Friday, 12 April 2024

पंजाबी सिनेमा भूत-भूतनियों के कांसेप्ट की चपेट में इतना पहले कभी ना था, जितना आजकल चल रहा है!

पंजाबी फिल्मों में आजकल भूत-भूतनियों के कांसेप्ट की जैसे बाढ़ सी आई हुई है; हर दूसरी फिल्म में यह सब्जेक्ट जरूर है| फंडी फाइनेंसिंग है इसके पीछे, 'पिछले दरवाजे से लोगों के दिमागों में शक-शुबाह डलवा के लोगों को भरम की लाइन पे ले आने की'| ताकि जो नहीं भी मानते हों, वह भी imagery-memory में इन्हीं चीजों के relfection देखते रहें| उससे फिर जो-जो भरम में आएगा, यह उसको अपनी अंटी में लेते जाएंगे; यही तरीके हैं इनके आपसे लड़ाई लड़ने के| ड्रग्स बेइंतहा उतरवा दो, शिवजी जैसे गॉड को नशेड़ी-सुल्फेडी बना-बढ़ा दो, भूत-भूतनियों के किस्से फिल्मों में बढ़वा दो; आदि-आदि| जबकि हमारे यहाँ कल्चर यह रहा है कि किसी को ऐसे सपने या भरम भी होते हैं तो उसको वह भुलवाने की कोशिशें की जाती हैं| 


इस मामले में ईसाईयों का 31 अक्टूबर वाला Halloween का दिन, यानि भूत-भूतनियों का दिन सही तरीका है; लोगों के भीतर से ऐसी भ्रांतियों से संबंधित imagery-memory को खेल-खेल में साफ़ करने-करवाने का| हालाँकि फ़िल्में इस विषय पर हॉलीवुड भी बनाता है; परन्तु 100 में कोई 1| पंजाबी सिनेमा में ऐसी फ़िल्में पहले विरली ही दिखती थी, परन्तु आज के दिन जो बाढ़ आई हुई है, यह चिंता का विषय होनी चाहिए; पंजाबी समुदाय समेत, हर उस के लिए जो पंजाबी सिनेमा देखता है| बॉलीवुड की हालत इस मामले में सबसे ज्यादा खस्ता रही है, यह सिर्फ फिल्म ही नहीं वरन टीवी सेरिअल्स तक में यह कांसेप्ट बढ़ा-चढ़ा के दिखाते हैं| हरयाणवी यूट्यूबर्स भी आजकल इस विषय पर काफी कंटेंट निकाल रहे हैं; हर किसी की वीडियो सीरीज में यह सम्मिलित है, कोई हरयाणवी फिल्म मेकर, युट्यूबर इससे अछूता नहीं; मैं इसको इन पर बॉलीवुड व् फंडियों का डायरेक्ट कनेक्शन होंगे, कारण मानता रहा हूँ| परन्तु पंजाबी सिनेमा को क्या हुआ है, वहां तो दस गुरुओं का सिस्टम है; जो भूत-भूतनियों से लगभग दूर ही समझा जाता है| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 8 April 2024

Charisma of 1938's Mortgaged Land Recovery Act in 2024, solved a matter of 125 years old!

86 साल पहले, सन् 1938 में सर छोटूराम ने पंजाब में किसानों के हित के लिए जो कानून बनाए थे, उन कानूनों को संयुक्त पंजाब के इतिहास के सुनहरे कानूनों के रूप में याद किया जाता है। उन चार कानूनों में से एक ”कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम - 1938" को बचाने के लिए किसानों ने अभी एक साल तक आंदोलन चलाया ही था। उसी दौरान एक और कानून बनाया थे ”पंजाब बंधक भूमि बहाली अधिनियम - 1938”, जिसकी बुनियाद पर कुरुक्षेत्र जिले के माजरी कला और ठोल के एक किसान परिवार को 125 साल पहले गिरवी रखी गई जमीन वापिस मिली। 


वरिष्ठ आईएएस अधिकारी खेमका ने 1938 में सर छोटूराम द्वारा पेश किए गए एक कानून (पंजाब बंधक भूमि बहाली अधिनियम, 1938) का भी हवाला दिया। खेमका ने कहा, "यह ध्यान में रखना चाहिए कि 1938 का अधिनियम भूमि मालिकों को बंधक भूमि पर कब्ज़ा वापस दिलाने और किसानों को सूदखोरी से राहत प्रदान करने के लिए एक लाभकारी कृषि कानून है।" 


सर छोटू राम द्वारा पेश किए गए कानून के बाद, किसानों को अपनी गिरवी रखी गई भूमि की बहाली के लिए केवल जिला कलेक्टर को एक आवेदन प्रस्तुत करना था। वर्तमान मामले में भी, मूल भूमि मालिक (बीरू) के उत्तराधिकारियों ने अक्टूबर 2018 में कलेक्टर (पेहोवा एसडीएम) के समक्ष भूमि की बहाली के लिए एक याचिका दायर की थी।


News brief by: Rakesh Sangwan




Saturday, 6 April 2024

गुडगांव गजेटियर –1910

हिंदू–मुला –सिख जाटों में शादियां होती थी। यानी कि जाटों में आपसी धार्मिक छुआछूत इतनी नहीं थी!

1870 के बाद ये प्रोपगैंडा जोरों से चलाया गया कि तलवार के बल पर मुस्लिम बनाए गए!
भाटों अनुसार जाटों के नो लाख गोत? यानी कि भाटो को जाटों की कोई ज्यादा जानकारी नहीं थी, नॉर्थ वेस्ट में जट बहुत बड़ा समाज था तो इन्होंने अंदाजे से गप्प पेल दी? और दूसरा ये कि इससे ये भी अंदाजा लगता है कि भाट जाटों के संपर्क में ज्यादा पुराने नहीं हैं।

By: Rakesh Sangwan