#बंदा सिंह #बैरागी #ढ़िल्लों जाट्ट - 1
यह सच है कि बंदा सिंह बहादुर (1710 ई.) ने सरकार-ए-नौ (Mughal jagirdari system) को तोड़कर जमींदारों और किसानों को हक़ दिलवाया।
पर इसका मतलब यह नहीं है कि उससे पहले जाटों के पास ज़मीन नहीं थी।
जाट तो मुग़लों से भी पहले से खेती-बाड़ी और ज़मींदारी वर्ग के मालिक थे।
अबुल फज़ल की "आइने अकबरी" (1595 ई.) में जाट किसानों और उनके गाँवों की ताकत साफ़ लिखी है।
फरिश्ता और निज़ामुद्दीन अहमद जैसे मुस्लिम इतिहासकार लिखते हैं कि जाट “मुल्क के असल मालिक और ज़मींदार” हैं।
बंदा बहादुर का काम सिर्फ़ यह था कि उसने मुग़ल अमीरों, राजपूतों और ब्राह्मणों की ज़मींदारी छीनकर गाँवों के असली किसानों को लौटा दी। और पंजाब में उस समय किसानों की बहुलता जाटों की थी, इसलिए फ़ायदा जाटों को ज्यादा दिखा।
2. अगर ज़मीन बंदा बहादुर ने दी, तो हिंदू और मुस्लिम जाटों के पास कैसे आई?
बहुत सही सवाल। अगर यह लॉजिक मानें कि बंदा बहादुर ने ज़मीन दी थी, तो फिर—
इसका सीधा मतलब है कि जाट पहले से ज़मींदार और भू-स्वामी थे, यह बंदा बहादुर या किसी धर्मगुरु की "दान" नहीं थी।
3. हजारों साल पुराना जाट राज और ज़मींदारी
क्या बिना ज़मीन के जाट राजा हो सकते थे?
राजा पोरस (पुरु जाट) सिकंदर से लड़ा — क्या बिना #ज़मींदारी के संभव था?
4. हरियाणा-यूपी-राजस्थान का झूठ
कुछ लोग कहते हैं कि छोटूराम, चरण सिंह, कुंभाराम आर्य ने जाटों को ज़मीन दी।
असलियत:
इन नेताओं ने क़ानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ी ताकि ब्रिटिश राज और बनियों-महाजनों के क़ब्ज़े से जाटों की ज़मीन बच सके।
लेकिन ज़मीन पहले से जाटों की थी।
अगर ये सच होता कि इन्हीं लोगों ने ज़मीन दी थी, तो सवाल उठता—
तो 16वीं-17वीं सदी के भरतपुर, बल्लभगढ़, ग्वालियर और पंजाब के जाट राजा किस ज़मीन पर राज कर रहे थे?
5. नैरेटिव क्यों फैलाया गया?
यह झूठ इसलिए फैलाया गया ताकि—
जाटों को लगे कि उनकी सारी ताक़त दूसरों की देन है।
असली हक़ और इतिहास से ध्यान हटे और वे मालिक से "भिखारी" बना दिए जाएँ।
जबकि हकीकत यह है कि जाट हमेशा से इस धरती के असली किसान, ज़मींदार और शासक रहे हैं।