Tuesday, 31 December 2024

मुजफ्फरनगर जाट हाई स्कूल में चौ० छोटूराम का भाषण!

(जाट गजट, 29 जनवरी 1941, पृष्ठ 6) 


.... मैं आर्य समाजी हूं। समाज में मैंने भी एक बात देखी कि उसके कार्यकर्ताओं ने जाटों की लीडरी उनके हाथ में नहीं दी। उनकी चोटी अपने हाथ में रखी। हम अपने हाथ में अपनी लीडरी चाहते हैं। चाहे अपना खद्दर खुरदाद है तो भी हमें जापान के रेशम से अच्छा है। हमने कह दिया कि चाहे अपना लीडर विद्वान भी कम हो लेकिन जाटों की अगुवाई की डोर हम अपने हाथों में चाहते हैं। अगर हम पंजाब में इस पर अमल न करते तो 90 लाख 92 हजार जाटों की आबादी में उनकी शान को किस तरह से बढ़ाते। यही उनकी शान बढ़ाने का सबसे बड़ा कारण है कि हमने अपनी लीडरी की बागडोर दूसरों के हाथ में नहीं दी। जब हमारे पुराोहित और पढ़ाने वाले हमारे अपने होंगे उस समय हमारी उन्नति होगी, यही हमारी उन्नति का असली रहस्य है।


मुजफ्फरनगर जाट हाई स्कूल में चौ० छोटूराम का भाषण 

(जाट गजट, 29 जनवरी 1941, पृष्ठ 6) 


.... कांग्रेस का दावा केवल कागज पर है और हमारी पार्टी ने उस पर पंजाब में अमल करके दिखाया है। आप रावलपिंडी से मुजफ्फरगढ़ और गुड़गांव तक, जाकर देहात में पता करें तो आपको इसकी वास्तविकता मालूम हो जाएगी कि हम इस प्रोग्राम को सफल बनाने के लिए कहां तक क्या कर रहें हैं? हमारे यहां जमींदार और किसान के बीच अंतर नहीं है। आपके यहां अंतर है, हमारे यहां एक बिसवां का भी जमींदार है और बीघे का मालिक भी जमींदार है। आप हमारे यहां किसी भी जमींदार कौम के व्यक्ति से मालूम करेंगे तो वह अपने आपको जमींदार कहेगा, और अगर किसी के यहां ब्याज में भी जमीन आ गई है और वह जमींदार कौम से नहीं है तो वह अपने आपको गैर जमींदार कहेगा चाहे उसके पास जमीन लिखत में भी हो। पंजाब में दो करोड़ 35 लाख की आबादी में चालीस लाख लोग जमीन के मालिक हैं, जबकि यू.पी में साढ़े चार करोड़ की आबादी में बारह लाख लोग जमीन के मालिक हैं। पंजाब में जमींदार कौम वाले को जमींदार कहेंगे। हमारे जमींदार शब्द कौमों के लिहाज से प्रयोग होता है, इसलिए मैं यहां जमींदार शब्द का प्रयोग करूं तो आप वही अर्थ निकालें जो मैने बताए हैं।


”राजपूत गजट और इत्तेहाद पार्टी”, लेख से ... 
(चौ० छोटूराम, जाट गजट, 22 जुलाई 1936, पृ. 6) 

.... अब नया कानून लागू होने वाला है और प्रश्न उठता है कि जमींदार आजाद होना चाहते हैं या गुलाम ही रहना चाहते हैं। सत्ताधारी बनना चाहते हैं या यह चाहते हैं कि उन पर शासन किया जाए।
अगर जमींदार राज चाहते हैं तो उन्हें इत्तेहाद पार्टी के झंडे के नीचे जमा होना चाहिए। अगर वह राजनीतिक और आर्थिक गुलामी चाहते हैं तो उसका सबसे आसान तरीका हिंदू महासभा पार्टी में सम्मिलित होना है। अगर जमींदार हुकूमत चाहते हैं तो उनको इत्तेहाद पार्टी की फौज में सम्मिलित हो जाना चाहिए और अगर वह यह चाहते हैं कि उन पर हुकूमत की जाए तो उन्हें राजा नरेंद्रनाथ और मास्टर तारा सिंह की कमान में चला जाना चाहिए। 
जमींदारों की आजादी की लड़ाई जल्द ही आरंभ होने वाली है। राजपूत गजट इस लड़ाई में काफी सहायता दे सकता है।


Thursday, 26 December 2024

डॉक्टर मनमोहन सिंह की नीतियां व् भारतीय किसान व् कारीगर की बदहाली!

 कल तक जो किसानों के लिए लङ रहे थे वो भी मनमोहन सिंह की मृत्यु पर उनको नमन कर रहे हैं। यही होता है अधकचरी रिसर्च व् स्ट्रैटेजियों पर चलने वालों के साथ; कि अपने ही कातिल को कब सलाम कर जाएं, इनको आजीवन इसकी अक्ल नहीं आती। किसी आदमी का तुम्हारे समाज, कम्युनिटी पर क्या इमपेक्ट पङा उससे कोई मतलब नहीं ना उसको समझने-जानने की ललक या कूबत रखनी बनानी बरतनी होती? ऐसे मूर्ख आदमी मरते ही उसे शहीद का दर्जा दे कंधों पर उठा लेते हैं। जबकि मनमोहन सिंह का आर्थिक विकास गांवों खेतों के लिए तो सबसे काला अध्याय है, पढ़ें व् समझें नीचे कि क्यों व् कैसे:


पहला फैसला: IMF व World Bank के दबाव में इकोनॉमी का उदारीकरण: नतीजा यह रहा कि छोटे और मध्यम स्तर के किसान और उद्योग सस्ते आयात के कारण बाजार में टिक नहीं पाए। सरसों तेल की जगह सोयाबीन तेल का रिप्लेसमेंट हो या चाइना से आता सस्ता लहसुन या और कोई फसल सब इसी का परिणाम थे।


दूसरा फैसला: सो-काल्ड अर्थशास्त्री जी के आर्थिक सुधारों का मुख्य फोकस सेवा और उद्योग क्षेत्र पर रहा, लेकिन कृषि क्षेत्र (गांवों व देश की 70% जनसंख्या की इकोनॉमी) को तो एकदम साईड लाइन कर दिया ना ध्यान दिया। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के बजाय बाजार आधारित मॉडल पर जोर दिया गया। स्थानीय बीज कंपनियों और पारंपरिक कृषि तरीकों को नजरअंदाज किया गया, जिससे Monsanto और अन्य GM कंपनियों को बढ़ावा मिला। यूरिया और अन्य रासायनिक खादों को प्रोत्साहन दिया गया, जबकि गोबर खाद और जैविक कृषि को उतनी तवज्जो नहीं मिली। इससे मिट्टी की गुणवत्ता खराब हुई और लंबे समय में किसानों की लागत बढ़ गई।


तीसरा फैसला: मनमोहन सिंह के कार्यकाल में GM (Genetically Modified) बीज कंपनियों (Monsanto जैसी) को भारत में लाने का रास्ता साफ हुआ। किसानों पर GM बीजों और महंगे कीटनाशकों की निर्भरता बढ़ी, जिससे खेती की लागत बढ़ी और प्राकृतिक बीजों का इस्तेमाल घटा। नतीजा किसानों की आत्महत्या दर में इजाफा हुआ, खासकर कपास के किसानों में।


चौथा फैसला: FTA (Free Trade Agreements) और सस्ते आयात - मनमोहन सरकार ने कई देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर हस्ताक्षर किए, जिससे विदेशी सस्ता गेहूं, दाल, और अन्य कृषि उत्पाद भारतीय बाजार में आए। भारतीय किसानों को अपनी फसल के उचित दाम नहीं मिल पाए, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर हुए। स्थानीय उत्पादन घटा, और भारत कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता खोने लगा। और इन्हीं नीतियों को मोदी ने तो अडानी के लिए ऐसा इस्तेमाल किया कि किसान आंदोलन पे आंदोलन कर रहा है 2020 से परन्तु राहत अभी तक नसीब नहीं।


पांचवां फैसला: WTO (World Trade Organization) के दबाव में फैसला लिया, WTO के नियमों के तहत भारतीय किसानों पर सब्सिडी घटाई गई, जबकि अमेरिका और यूरोप अपने किसानों को सब्सिडी देते रहे। आज भी इंडिया के मुकाबले यूरोप में 634 गुणा व् USA में करीब 850 गुणा सब्सिडी मिलती है।भारतीय किसान बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाए और कई फसलों का उत्पादन घाटे में चला गया।


छठा फैसला: MSP (Minimum Support Price) का असंतुलन - आज किसान सङकों पर MSP के लिए मारे फिर रहे हैं, तो इसका असल जिम्मेदार तो मोदी है परन्तु जड़ जा के जुड़ती है तो महमोहन सिंह के लिए तथाकथित उदारवादी फैसलों से। अपने दस साल के कार्यकाल में मामूली बढ़ोतरी कर जो असंतुलन किया था वो आज किसान के लिए सबसे बुरा साबित हो रहा है।


सातवां फैसला: मजदूरों और स्थानीय कारीगरों को खत्म किया, जिसको मोदी ने तो प्रलय-पार ही पहुंचा छोड़ा है, परन्तु जड़ें गड़ी मनमोहन सिंह के वक्त जब बड़े पैमाने पर आयातित सामान ने स्थानीय कारीगरों, बुनकरों और हस्तशिल्प को प्रभावित किया। 


आठवां फैसला: कृषि उत्पादों का निर्यात घटाना - WTO के दबाव में मनमोहन सरकार ने कई कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाई। इससे भारतीय किसानों को वैश्विक बाजार में अपने उत्पादों को बेचने का मौका नहीं मिला।


हाँ, मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों ने शहरी और उद्योग क्षेत्र को लाभ पहुंचाया क्योंकि यह बनी ही इनके उद्दार के लिए थी; लेकिन ग्रामीण भारत, किसान और स्थानीय कारीगरों के लिए ये सबसे नुकसानदेह साबित हुईं। कृषि क्षेत्र को नजरअंदाज करना और अडानी-अम्बानी कंपनियों का बढ़ता प्रभाव, ये ऐसे मुद्दे हैं, जिनकी वजह से आज भी किसान संघर्ष कर रहे हैं। मोदी ने मनमोहन ने 'आर्थिक उदारीकरण' के नाम पर जो खड़ा किया; उसको आधार बना; अब इसको ऐसा नासूर बना दिया है कि एक हरयाणा-पंजाब व् ऊपरी वेस्ट-यूपी के किसान ही लड़ने लायक बचे हैं बाकी भारत तो कब का हथियार डाल चुका खेती-किसानी के नाम के।

सिक्ख इतिहास प्रश्नोत्तरी!

1. दस गुरु साहिबानों के नाम तरतीब वार लिखें

गुरु नानक देव जी (1469-1539)

गुरु अंगद देव जी (1504-1552)

गुरु अमर दास जी (1479-1574)

गुरु राम दास जी (1534-1581)

गुरु अरजन देव जी (1563-1606)

गुरु हरगोबिंद जी (1595-1644)

गुरु हरिराय जी (1630-1661)

गुरु हरिकृष्ण जी (1656-1664)

गुरु तेगबहादुर जी (1621-1675)

गुरु गोबिंद सिंह जी (1666-1708)

2. उन दो साहिबजादों के नाम बताईये जिन्हें जिन्दा नीवों में चिनवा दिया गया था

बाबा फ़तेह सिंह जी

बाबा जोरावर सिंह जी

3. उन दो साहिबजादों के नाम बताईये जो चमकोर की लड़ाई में शहीद हुए थे

बाबा अजीत सिंह जी

बाबा जुझार सिंह जी

4. सिक्ख पंथ के पहले पांच प्यारों के नाम बताईये

भाई दया सिंह जी

भाई धरम सिंह जी

भाई हिम्मत सिंह जी

भाई मोहकम सिंह जी

भाई साहिब सिंह जी

5. सिक्ख धर्म के पांच ककारों के नाम बताईये

केस

कंघा

किरपान

कड़ा

कछिहरा

6. खालसे के धरम पिता कौन हैं

गुरु गोबिंद सिंह जी

7. खालसे की धरम माता कौन हैं

माता साहिब कौर जी

8. खालसा पंथ की नींव कहाँ रखी गयी थी

आनंदपुर साहिब

9. जब सिक्ख आपस में मिलते हैं तो क्या कह कर एक दुसरे को संबोधित करते हैं

वाहेगुरु जी का खालसा

वाहेगुरु जी की फ़तेह

10. जैकारा क्या है

बोले सो  निहाल

सति श्री अकाल

11. ‘सिक्ख’ शब्द से आप क्या समझते हैं

शिष्य (सीखने वाला)

12. पांच तख्तों के नाम बताईये

श्री अकाल तख़्त साहिब, अंमृतसर, पंजाब

श्री हरिमंदिर साहिब, पटना, बिहार (पटना साहिब)

श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर, पंजाब (आनंदपुर साहिब)

श्री हजूर साहिब, नांदेड़, महाराष्ट्र

श्री दमदमा साहिब, तलवंडी साबो, बठिंडा, पंजाब  

13. गुरमुखी लिपि पड़ाना सबसे पहले किसने शुरू किया था

गुरु अंगद देव जी

14. ‘गुरु का लंगर’ की प्रथा सबसे पहले किस ने शुरू की थी

गुरु अमरदास जी

15. आदि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब (पोथी साहिब) सबसे पहले किसने लिखी थी

गुरु अरजन देव जी

16. श्री हरिमंदिर साहिब अंमृतसर में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का प्रकाश सबसे पहले कब हुआ था

सन 1604 में

17. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के पहले ग्रंथी कौन थे

बाबा बुड्डा जी

18. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के कितने अंग (पन्ने) हैं

1430

19. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में कितने गुरुओं की बाणी दर्ज है

कुल 6 गुरुओं की : पहले पांच एवं नोवें गुरु जी की

20. किस गुरु को ‘शहीदों के सरताज’ भी कहा जाता है

गुरु अरजन देव जी

21. किस गुरु को ‘मीरी-पीरी के मालिक’ भी कहा जाता है

गुरु हरिगोबिंद जी

22. किस गुरु का सिर धड से अलग किया गया था

गुरु तेगबहादुर जी

23. किस गुरु को ‘हिन्द-दी-चादर’ भी कहा जाता है

गुरु तेगबहादुर जी

24. सिमरन कैसे होता है

सर्वशक्तिमान सर्वव्यापक अकालपुरख नूं याद करना

25. सिक्ख धरम में शादी को क्या कहते हैं

आनन्द कारज

26. गुरु नानक देव जी की यात्राओं को क्या कहा जाता है

उदासी

27. गुरु नानक देव जी के साथ रबाब कौन बजाता था

भाई मरदाना जी

28. उस गुरुद्वारे का नाम बताईये जहाँ वली कंधारी का अहंकार टुटा था

पंजा साहिब

29. गुरु नानक देव जी कहाँ एवं कब ज्योति ज्योत समाये थे

1539, करतार पुर

30. गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था

भाई लहणा जी

31. गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी की सेवा कितने समय तक की

12 वर्ष

32. उस नदी का नाम बताईये जहाँ से गुरु अमरदास जी रोज पैदल जा कर गुरु अंगद देव जी के लिए पानी भर के लाया करते थे

ब्यास नदी

33. ‘मसंद’ प्रचारक किसने शुरू किये थे

गुरु अमरदास जी

34. गुरु अरजन देव जी के पुत्र का नाम बताईये

हरगोबिंद जी

35. गुरु रामदास जी का पहला नाम क्या था

भाई जेठा जी

36. वहां कौन सा गुरुदवारा है जहाँ गुरु अरजन देव जी को शहीद किया गया था

डेरा साहिब

37. गुरु हरिगोबिंद जी को कैदी की तरह क्या रखा गया था

ग्वालियर का किला

38. गुरु हरिगोबिंद जी को जब रिहा किया गया तब उनके साथ उनका चोला पकड़ के और कितने राजाओं को रिहा किया गया था

52 राजा

39. गुरु हरगोबिंद जी ने दो तलवारें धारण की थी, उनके नाम बताओ

मीरी पीरी

40. अकाल तख़्त की स्थापना किसने की थी

गुरु हरिगोबिंद जी

41. गुरु हरिगोबिंद जी को जपुजी साहिब के पाठ का शुद्ध उच्चारण किसने सुनाया था

भाई गोपाला जी

42. बाबा बुड्डा जी ने कितने गुरुओं की सेवा की

6

43. ओरंगजेब को गुरबाणी गलत पढ़ कर सुनाने के लिये किसे सजा मिली थी

राम राय, गुरु हरि राय जी के पुत्र  

44. गुरु हरि कृष्ण जी की कितनी उम्र थी जब उनको गुरुगद्दी मिली थी

5 साल

45. मिर्जा राजा जय सिंह के बंगले पर अब कौन सा गुरुद्वारा है जहाँ गुरु हरि कृष्ण जी ठहरे थे जब वह दिल्ली आये थे

गुरुद्वारा बंगला साहिब

46. गुरु हरि कृष्ण जी की कितनी उम्र थी जब वह ज्योति ज्योत समाये थे

8 साल

47. जहाँ गुरु हरि कृष्ण जी का अंतिम संस्कार हुआ वहां अब कौन सा गुरुद्वारा है

गुरुद्वारा बाला साहिब

48. गुरु हरि कृष्ण जी के अंतिम शब्द क्या थे जब वह अगले गुरु जी के बारे में बता रहे थे

‘बाबा बकाले’ इसका मतलब है की अगले गुरु बकाला नाम के गावं में मिलेंगे

49. सोढ़ी परिवार के कितने लोग अपने आप को गुरु कहते हुए बकाला में मिले

22

50. बकाला में गुरु तेगबहादुर जी को ढूंड कर दुनिया के सामने लाने वाले व्यक्ति कौन थे

भाई मक्खन शाह लुबाना

51. गुरु तेगबहादुर जी की पत्नी का क्या नाम था

माता गुजरी जी

52. गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद होने वाले तीन सिक्ख कौन थे

भाई मती दास जी

भाई सती दास जी

भाई दयाला जी

 

53. गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद होने वाले तीन सिक्खों को कैसे शहीद किया गया था

भाई मती दास जी (आरी से काट के शहीद किया गया)

भाई सती दास जी (रुई में लपेट कर आग लगा दी गई)

भाई दयाला जी (गर्म पानी में उबाला गया)

54. किसके नेतृत्व में 500 कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर जी के पास मदद मांगने के लिये आये थे

पंडित कृपा राम (जो की बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के संस्कृत के गुरु भी बने एवं फिर खालसा सजे  एवं अंत में चमकोर की लड़ाई में शहीद हो गए)

55. गोबिंद राय (गुरु गोबिंद सिंह जी की उस वक्त कितनी उम्र थी)

9 साल

56. जहाँ गुरु तेगबहादुर जी को शहीद किया गया वहां कौन सा गुरुद्वारा है

गुरुद्वारा सीस गंज, चांदनी चौंक दिल्ली

57. गुरु तेगबहादुर जी के शरीर का संस्कार किसने किया

भाई लक्खी शाह वणजारा

58. जहाँ गुरु तेगबहादुर जी के शरीर का संस्कार हुआ वहां कौन सा गुरुद्वारा है

गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब, दिल्ली

59. गुरु तेगबहादुर जी के सीस को आनंदपुर साहिब कौन ले के गया था

भाई जैता जी (भाई जीवन सिंह जी)

60. वहां कौन सा गुरुद्वारा है जहाँ श्री गुरु तेगबहादुर जी के सीस का संस्कार हुआ था

गुरुद्वारा सीस गंज साहिब, आनंदपुर

61. पीर बुद्धू शाह जी के कितने पुत्र थे और भंगानी के युद्ध में कितने शहीद हुए थे

4 पुत्र, भंगानी के युद्ध में 2 शहीद हुए

62. भंगानी के युद्ध में पीर बुद्धू शाह जी की सेवाओं के बदले में गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें क्या उपहार दिये थे

कंघा (कुछ टूटे हुए बालों सहित), किरपान एवं दस्तार

63. आनंदपुर की लड़ाई में शराब पिला कर मस्त किये हुए हाथी के साथ कौन से सिक्ख ने युद्ध किया था

भाई बच्चितर सिंह

64. आनंदपुर की लड़ाई के दौरान गंभीर रूप से घायल सिपाहियों को कौन पानी पिलाता था (इस बात की परवाह किये बिना की वो सिक्ख हैं या मुस्लिम)

भाई कन्हैया जी

65. माता गुजरी जी और दो छोटे साहिबजादों की खबर सिरहंद के नवाब को किसने दी थी

गंगू ब्राह्मण

66. चमकोर की लड़ाई के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी नंगे पैर कौन से जंगलों में रहे

माछीवाड़ा

67. उन दो पठानों के नाम बताईये जिन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को मुगलों से बचाया था

नबी खान और गनी खान

68. मुक्तसर की लड़ाई में शहीद होने वाले चालीस मुक्तों का नेतृत्व किसने किया था

भाई महा सिंह

69. अंमृतसर शहर के पांच सरोवरों के नाम बताईये

अंमृतसर

कौलसर

संतोखसर

बिबेकसर

रामसर

70. गुरु गोबिंद सिंह जी ने माधो दास को अमृत पान के बाद क्या नाम दिया

बंदा सिंह

71. बंदा सिंह ने पंजाब छोड़ने से पहले सिक्खों को क्या दिया

निशान साहिब एवं नगाड़ा

72. गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का पहला जत्थेदार किसे बनाया था

बंदा सिंह

73. मिसल के समूह को क्या कहते थे

दल खालसा

74. पहले दल खालसा की स्थापना किसने की थी

नवाब कपूर सिंह

75. उस सिक्ख सिपाही का नाम बताईये जिसे सुल्तान उल कौम का ख़िताब मिला

जस्सा सिंह आहलूवालिया

76. दिल्ली की उस जगह का क्या नाम है जहाँ सरदार बघेल सिंह अपने 30,000 साथियों के साथ ठहरे थे

तीस हजारी

77. शेरे-ए-पंजाब का ख़िताब किसे प्राप्त है

महाराजा रणजीत सिंह

78. सरदार हरी सिंह नलवा ने कौन से प्रसिद्ध गुरुद्वारा की स्थापना की

गुरुद्वारा पंजा साहिब

79. मोदीखाना साखी कौन से गुरु जी से सम्बंधित है

गुरु नानक देव जी

80. सुखमनी साहिब के रचेता कौन है

गुरु अरजन देव जी

81. होला मोहल्ला का त्यौहार कौन से गुरु जी ने शुरू किया था

गुरु गोबिंद सिंह जी

82. गुरु गोबिंद सिंह जी के कौन से सिक्ख ने भंगानी की लड़ाई में अपना साथ दिया और अपने दो पुत्र भी शहीद करवाए

पीर बुद्धू शाह

83. सिक्खों के कैलेन्डर का क्या नाम है

नानकशाही कैलेन्डर

84. नानकशाही कैलेन्डर सूर्य या चन्द्र किसकी गति के हिसाब से चलता है

सूर्य

85. नानकशाही कैलेन्डर का पहला वर्ष कौन सा है

1469 (जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था)

86. भाई लालो जी के घर गुरु नानक देव जी ने किस का भिजवाया हुआ लंगर वापिस कर दिया था

मालिक भागो

87. गुरु नानक देव  जी और सिद्धों के बीच मुलाकात (सिद्ध गोस्ट) कहाँ पर हुआ था

कैलाश पर्वत (सुमेर पर्वत)

88. माता खीवी जी कौन थी

माता खीवी जी गुरु अंगद देव जी की पत्नी थी और वह सिक्ख इतिहास में केवल एक स्त्री हैं जिनका नाम गुरु ग्रन्थ साहिब जी में दर्ज है

89. अकाल तख़्त का क्या मतलब होता है

सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, अकाल पुरख का सिंहासन

90. गुरु तेग बहादुर जी को गुरु नानक देव जी की याद में एक बड़ा टीला क्या स्थापित मिला

डुबरी, आसाम

91. किस मुग़ल बादशाह ने गुरु तेगबहादुर जी का सिर धड से अलग करने का हुक्म दिया था

औरंगजेब

92. गुरु गोबिंद सिंह जी को अपनी रक्षा के लिये पंज प्यारों ने किस किले को छोड़ने का आदेश दिया था

चमकोर का किला

93. सुखमनी साहिब में कितनी अष्टपदीयां हैं

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94. ‘सिंह’ शब्द से आप क्या समझते हैं

शेर

95. कौर शब्द से आप क्या समझते हैं

राजकुमारी

96. गुरु नानक देव जी संगल दीप विच किसनू मिले सी

राजा शिव नाथ

97. गुरु अमरदास जी ने कौन सा शहर बसाया था, जहाँ वह गुरु बनने के बाद रुक गये थे

गोइंदवाल

98. गुरु अरजन देव जी की पत्नी का क्या नाम था

माता गंगा जी

99. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में गुरबाणी कितने रागों में लिखी गयी है

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100. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में मूल मंत्र कितनी बार आया है

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🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Friday, 20 December 2024

चौधरी ओमप्रकाश चौटाला, वह शेर जिसने नरेंद्र मोदी को चलती गाडी से उतार दिया था!

फंडियों की अक्ल ठिकाने लगाने का वही टशन व् अणख थी चौधरी ओमप्रकाश चौटाला में जो सर छोटूराम में थी!


2013 में रोहिणी कोर्ट में पेशी पे नहीं जाने का ऑप्शन था चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी के पास| पर पता नहीं किसने सलाह दी कि आगे इलेक्शन हैं जेल चले जाओगे तो वोटों की सिम्पथी मिलेगी| कहाँ 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाला दबंग, अपनी इसी दबंगई पर कायम रहते हुए उस दिन कोर्ट न जाते तो सजा नहीं होनी थी व् 2014 में इलेक्शन जीत के या तो एकल दम पे सीएम बनते या अलायन्स में भी बनते तो सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खुद ही सीएम बनते|


खैर, बात करते हैं उनकी सर छोटूराम जैसी अणख व् टशन की| जहाँ ताऊ देवीलाल को हरयाणा में बीजेपी की एंट्री करवाने बारे दोषी माना जाता है, जो कि सच भी है; वहीँ चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को उसी बीजेपी को ठिकाने लगाने के लिए जाना जाएगा| ऐसा करके उन्होंने बीजेपी से 1990 में उनके पिता ताऊ देवीलाल जी के साथ बीजेपी द्वारा किए गए धोखे का बदला लिया था साल 1999 से ले 2005 तक जब उनकी सरकार रही तब| 


ठिकाने भी लगाया दो तरीके से: एक तो 2000 में जब इनेलो ने बीजेपी के साथ अलायन्स में चुनाव लड़े तो 60-30 के फार्मूला पर चुनाव हुआ| चौटाला साहब ने जिन 30 सीट पर बीजेपी के कैंडिडेट थे, हर एक पर अपने डमी उतारे व् बीजेपी के 24 उम्मीदवारों को तो वहीँ इलेक्शन में ही धूल चटवाई| अभी बीजेपी जो सूत्र सबसे ज्यादा प्रयोग में ला के हरयाणा में तीसरी बार आई है, वह यही चौधरी ओमप्रकाश चौटाला से सीखा हुआ सूत्र था, डमी कहें या बागी उम्मीदवार खड़े करवाने का; जिसको कांग्रेस जानते-बूझते हुए भी अपनी आपसी कलह में फंसे होने के चलते टैकल ही नहीं कर पाई| और उसके बाद फिर जो रगड़ा एक-एक को पकड़ के वह अपने आप में इतिहास है; इसमें क्या रामबिलास शर्मा थे, क्या मनोहरलाल खट्टर व् क्या नरेंद्र मोदी; सबको ठिकाने लगाया हरयाणा में| नरेंद्र मोदी को तो दबड़का के चलती गाडी से ही नीचे उतार दिया था| 


और इनकी भाषण देने की अविरल कला, भाषण की शैली व् भाषण में विषय की तीव्रता के तो विपक्षी भी इतने कायल थे कि आज भी इनकी भाषण शैली को देश के टॉप 1 प्रतिशत नेताओं की श्रेणी में रखा जाता है| 2014 के इलेक्शन में आप से तीन बार मुलाकात हुई, तीनो मुलकातें आजीवन जेहन में रहेंगी!


मेरा मानना है कि राजनीति में एक बार आपको जो छवि बन जाए, आप उससे हट कर दूसरा कोई एक्सपेरिमेंट करने चलते हैं तो फिर गाडी पटरी पर इतनी आसानी से नहीं आती: भले 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' वाली छवि झूठी थी या सच्ची थी; उसको त्याग सहानुभूति वाली राजनीति की परिपाटी चढ़ने के चक्र में उस दिन रोहिणी कोर्ट ना गए होते तो; आज उनकी राजनीति कुछ और ही बुलंदी छू रही होती व् हरयाणा की यह दशा ना होती; जिससे हरयाणा आज गुजार रखा है बीजेपी ने| 'ग्रीन-ब्रिगेड' वाली, 'दबंगई' इन दोनों छवियों से खुद की छेड़छाड़ या इसमें बदलाव करना अपने मूल रूप को बदलने जैसा था; बदलाव जरूरी होते हैं, परन्तु आप बीज की सरंचना ही छेड़ बैठोगे तो भटकन बनेगी ही बनेगी| 


आज उनके निधन की दुखद बेला पर प्रार्थना है कि दादे नगर खेड़े चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जी को उनकी शरण में लेवें व् उनका यह टशन व् अणख रहती दुनिया तक याद की जाए!


जय यौधेय! - फूल मलिक



Friday, 13 December 2024

दानवीर सेठ चौधरी सर छाजूराम जी and Hissar Gurudwara

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।। श्री वाहेगुरु जी की फतह।।


दानवीर सेठ चौधरी सर छाजूराम जी अलखपुरिया!!!


3 अक्तूबर 1925 को हिसार में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा  की नींव रखी गई थी। इसके निर्माण में हिसार शहर के कई सेठों व कई गांवों ने सेवा दी थीं। इनमें गांव मंगाली, जोकि हिसार जिले का एक बड़ा गांव है, की तरफ से भी सेवा दी गई। उस समय जितने भी भेंटकर्ता थे सबके नाम पत्थर पर लिखे हुए हैं। भेतकताओं में सबसे पहले जो नाम लिखा है वह देख कर मुझे बड़ी हैरानी हुई। वह नाम है चौधरी सर छाजूराम जी शेखपुरा हिसार। 


चौधरी छाजूराम जी लांबा, जिनकी पहचान अब अलखपुरा गांव से है, बहुत बड़े दानदाता थे। उस समय में ब्रिटिश इंडिया में उनके बराबर का कोई दानदाता नहीं हुआ। आजतक कोई भी शोधकर्ता उनके द्वारा दिए गए दान की सूची नहीं बना पाया है। मैने अबतक यह तो पढ़ा था कि चौधरी छाजूराम जी ने जाट शिक्षण संस्थाओं, आर्य समाज गुरुकुलों, डीएवी शिक्षण संस्थाओं, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आदि संस्थाओं में आर्थिक सहायत दी थी। इनके इलावा उस जमाने के क्रांतिकारियों व नेताओं, जैसे कि गांधी जी, मदन मोहन मालवीय, पंडित नेकीराम शर्मा, पंडित श्रीराम शर्मा, चौधरी छोटूराम आदि, सबकी आर्थिक सहायता की तथा सरदार भगत सिंह तो फरारी के वक्त कलकत्ता में उनकी कोठी पर ही ठहरे थे। उसके दर पर जो भी गया कभी खाली हाथ नहीं लौटा, बल्कि जो वह सोचकर गया उससे दुगना ही लेकर लौटा।


मेरे लिए ये एक नई जानकारी है कि चौधरी छाजूराम जी ने सन् 1925 में हिसार गुरुद्वारा के निर्माण में 2250/· रु की भेंट दो थी, जोकि तब सर्वाधिक भेंट थी। आप अनुमान लगा सकते हैं कि तब इस राशि की कितनी वैल्यू रही होगी! 


–राकेश सिंह सांगवान




Tuesday, 3 December 2024

आज 2024-25 में कैसे किसान आंदोलन का साथ दिया जाए व् कैसे आंदोलन किया जाए?

अब जब केंद्र में बीजेपी एनडीए के रूप में तीसरी बार सत्ता में है, गुजरात-महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश लैंडस्लाइडिंग मेजोरिटी से जीत चुकी है; हरयाणा बॉर्डर मेजोरिटी से आ गई है, राजस्थान में भी ठीक-ठाक बहुमत से है; यूपी उपचुनाव में 9 में से 7 सीट निकाल ली है तो किसान यूनियनों व् नेताओं को सबसे पहले यह समझना होगा कि जब 2020-21 वाले आंदोलन में पूरा SKM एक था तब ही जा के 13 महीने में यह माने थे; तो अब सुन लेंगे ये आपकी? और वह भी यूँ गुटों में बंट के आंदोलन करने से?


या तो पहले आपस में बैठ के अपनी आपसी ईगो-क्लेश-द्वेष, प्रत्यक्ष-hidden तमाम तरह के एजेंडा बतला के अपनी भड़ास निकाल के एक हो जाईए; अन्यथा घर बैठ जाइए| कम से कम पहले से ही गरीबी की मार खा रहे किसान के ट्रेक्टर-ट्रॉली तुड़वाने, तेल-पानी-राशन फुंकवाने, सड़कों पे सोना व् टेंशन में रहने से तो पिंड छूट जाएगा बेचारों का| हासिल कुछ है नहीं, ऐसे सालों-साल बिना आपसी एकता के 'अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग' की तर्ज पर टुकड़ों में सड़कों पे बैठ के क्या गिनीज-बुक-ऑफ़-वर्ल्ड-रिकॉर्ड में विश्व के सबसे लम्बे धरने के तौर पर नाम दर्ज कराना चाहते हो? रहम करो किसानों पर व् हाथ मारो अपनी अक्ल को| 


और फिर भी अक्ल को हाथ नहीं मार रहे तो पक्का मानों, आप खुद या आपको जो बहका के वहां बैठाया है; वह बीजेपी-संघ के इशारे पर ही यह सब कर-करवा रहा है| और उसका उद्देश्य है आपके जरिए बड़े SKM समेत सभी किसानों को यह संदेश देना है कि कितने ही धरने कर लो, हम नहीं सुनने वाले; बल्कि तुम्हे धुल-धर्षित कर तुम्हारी औकात में ला देंगे; वही औकात जिससे किन्हीं जमानों सर छोटूराम जैसे निकाल गए थे| यानि इन टुकड़ों में इधर-उधर बैठ के, बिना सरजोड़ किए जो हो रहा है; यह आंदोलन नहीं कहा जा सकता; यह तो संघ व् बीजेपी के इशारे पे किसानों में अव्वल दर्जे की हताशा-निराशा भरना चल रहा है| 


सीधा सा सवाल है, अगर किसानों के लिए इतना दर्द है तो सभी यूनियनों के साथ बैठ के सरजोड़ क्यों नहीं करते? एक कदम पीछे रह के क्यों नहीं चलते; लीडरी चाहिए ही किसलिए? और नहीं तो सर छोटूराम से ही सीख ले लो; उस आदमी के बनाए कानूनों को बचाने, उस जैसे हक़-अधिकार के लिए सड़कों पे आए हो तो; उससे यह भी सीख लो कि वह कभी लीडरी में नहीं चला; एक कदम पीछे चला; कभी प्रीमियर नहीं बना; बल्कि रेवेन्यू मिनिस्टर रहा; कभी यूनियनिस्ट पार्टी का एक छत्र लीडर नहीं कहलवाया; बल्कि समूह बना के चला| बताओ कब वह यूनाइटेड पंजाब का प्रीमियर था, कब फ्रंट पे था वह; सेकंड-इन-लीड रहा व् तब भी वो सारे कानून बना गया, जो उसको बनाने थे| यह लीडरी का कीड़ा वक्त रहते छोड़ दो; क्योंकि काम करने की नियत रखते हो किसान के लिए तो वह तो सर छोटूराम की तरह एक कदम पीछे रहते हुए भी कर जाओगे; अन्यथा यूँ ही संदेह की दृष्टि से देखे जाओगे; यूँ ही किसान-कौम की ऊर्जा-संसाधन-इंसान खपवाओगे| 


EGO-ETHO-PATHO तीन चीजें होती हैं, जो एक सम्पूर्ण लीडर बनाती हैं| सिर्फ अकेले EGO पे सवार हो लीडरी चाहने वाले; इतिहास की कौनसी गर्द की सबसे निचली तह में जा के दफन होते हैं; योगदान के नाम पर उनको खुद इतिहास तक याद नहीं रखा करता| अकेले EGO पे चलने वाले को ही बीजेपी-संघ जैसे तुम्हारे विरोधी सबसे पहले आ के दोबच्ते हैं व् या तो दबा देते हैं या अपना प्यादा बना लेते हैं| ऐसे में याद रखे जाओगे तो सिर्फ EGO के सर चढ़ भटकन में टूरने वालों की तरह| EGO से हट के जैसे ही ETHO व् PATHO पर भी विचार के आओगे तो समझ आएगा कि सभी से सरजोड़ बिन राह कितनी दुष्कर है|  


जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 2 December 2024

जिस कलानौर रियासत में कौला-पूजन होता था, उसमें ना तब ना आज एक भी जाट-बाहुल्य का गाम नहीं आता!

आज तक यही प्रचार होता रहा है कि कलानौर का नवाब जो भी नई नवेली हिंदू दुल्हन आती थी उसको अपने पति से पहले नवाब के पास जाना पड़ता था, जिसको कौला पूजना कहते थे| वहीं सो-कॉल्ड फंडियों के महिमामंडन में रजवाड़ों बारे यहां पर भी सभी बिरादरियों को अपने साथ बदनाम करने की कोशिश, जबकि सच्चाई यह है कि कलानौर के नवाब के नीचे एक भी जाट-बाहुल्य कहिए या जाट-खेड़े का गाम नहीं आता था, जो जो गांव आते थे नवाब के नीचे वो सभी राजपूत बाहुल्य गाम थे, जो कि आज भी हैं| 


आजादी से पहले, यहां कलानौर का नवाब मुस्लिम पंवार गौत्री रान्घड होता था और इसके नीचे लगभग 70 से 80 गांव थे जो सभी हिंदू-मुस्लिम राजपूतों-रांघड़ों के थे| आजादी के बाद बहुत सारे (40 के करीब) मुस्लिम राजपूतों के गांव पाकिस्तान चले गए थे, जो बचे वो फ़ैल के आज यहां पर तीस छोटे-बड़े गांव राजपूतों के पवार गोत्र के अभी भी हैं जिनके प्रधान ठाकुर रामेश्वर सिंह पवार हैं| कलानौर गोंद सावन तपा का और खरक कैलेगा के 28 से ज्यादा गांव के प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार हैं| इनके गाँवों की लिस्ट नीचे देखें:


कलानोर तपा बोन्द सावड तपा पर्धान ठाकुर रामेश्वर सिंह पन्वार के नीचे आने वाले कलानोर के गाँव निम्लिखित हैं - बोन्द, छोटी बोन्द, रन्कोली, साजुर्वास, सावड, साक्रोड, रानिला, हिन्दोल, मान्हेरु, माल्पोश, निमडी, अचिना, मिर्च, कमोद, बडाला, कायला, लाम्बा, सोप, अजित्पुरा, छोटी चान्ग, मिश्रि, उण, कोल्हावास, नागल आदि| 


खरक केलन्गा तपा प्रधान ठाकुर महेंद्र सिंह पवार के नीचे आने वाले गांव निम्नलिखित है - खड़क, बड़ी, कैलेंडर, फुल पूरा, रेवाड़ी, बड़ी रेवाड़ी, छोटी सीसर ढाणी, हरसुख, खरक, छोटी नौरंगाबाद, कलानौर, काहनूर, लिंगाणा, लहाली, बनियानी, अव्वल अल्लाह, मसूदपुर, पटवा पूर्व, तैमूर पुर, सैंपल वगैरा|


जाटों का इन गाँवों से हो कर गुजरना जरूर होता था और उसी से किस्सा जुड़ा है कलानौर रियासत तोड़ने का| जब दादीराणी समाकौर का ढोला इस रियासत के रास्तों से होते हुए गुजरा था तो नवाब के सैनिक गलती से ढोला रोक बैठे व् फिर जो जाट खापों के किया वह आज "कलानौर रियासत ही तोड़ देने" के इतिहास के नाम से दर्ज है| 


जब ढोला रोका गया तो दादीराणी समाकौर ने विरोध किया व् वहां से निकल सीधी बाप से जा बोली कि, "थमनें जाटों के ब्याही सूं या किसी और के?" तो बाप ने बेशक निसंदेह यही कहा कि, "जाट के"| तो बोली, "कलनौरियाँ कौन हुआ फिर मेरा ढोला रुकवानिया?" और फिर मलिक खाप बैठी, फैसला हुआ सर्वखाप बुलाई जाए व् कलानौर को तोडा जाए| सर्वखाप हुई, मलिक-हुड्डा-बुधवार-सांगवान व् और भी बहुत खापों के चौधरी पहुंचे| इसमें मलिकों के भाणजे गाम बुटाना से दादावीर ढोला सांगवान भी पहुंचे| 


हर खाप ने अपने-अपने गाम के अखाडों से रातों-रात पहलवानी दस्ते बुलाए व् हो गई खाप-आर्मी खड़ी| जा टेकी कलानौर तले खाप की गढ़ी; जिसको आज के दिन "गढ़ी मुरादपुर टेकना" गाम के नाम से जाना जाता है; इसमें गढ़ी यानि खाप की बैरक लगी थी यहाँ, मुरादपुर यानि कलानौर को तोड़ने की मुराद पूरी हुई यहाँ व् टेकना यानी खाप आर्मी की टिकी थी यहाँ आ के| 


सभी बखूबी लड़े, परन्तु मलिकों के भानजे दादा ढोला का पराक्रम से अविरल हो के निखरा व् सबसे ज्यादा रांघड़ काटे| बताते हैं कि इसी बात पे जिद्द लगी कि किसने ज्यादा काटे व् इसी जिदा-जिद्दी में वो आपस में ठन गए व् आमने-सामने की या घात लगा के जैसे हुई; इसमें दादा ढोला वीरगति को प्राप्त हुए| अनजाने में हुई इस घटना इल्जाम आया मलिकों पे कि भानजा मरवा दिया, अपने ही बुलावे पे करे सफल युद्ध में| गठवाला खाप बैठी व् निर्धारित हुआ कि क्योंकि भानजे का शौर्य व् बलिदान सबसे बड़ा था तो इस जगह जहाँ विजय प्राप्त हुई, यहाँ सांगवान गौत का खेड़ा बसाया जाए व् गठवाले का इस खेड़े साथ भाईचारे का रिश्ता रहेगा; यानि ब्याह-वाणे नहीं होंगे| तब से "कलानौर रियासत विजय" की पताका के रूप में आज भी बसता है "गढ़ी मुरादपुर टेकना"| 


कलानौर विजय में कुछ और भी बातें हुई जैसे कलानौर का सिरमौर निशाँ व् तख्त आज भी हुड्डा सर्वखाप हेडक्वार्टर सांघी की परस में लगा हुआ है; जो कि निशानी स्वरूप हुड्डा ले गए थे| 


और दादीराणी समाकौर मलिक को धर्म बहन मानते हुए, आज भी गाम सुनारिया के बुधवार जाटों और मोखरा के मलिक जाटो के बीच शादियां नही होती। व् ऐसी ही और भी ऐतिहासिक रीतें, व् बुलंदियां "down fall of Kalanaur" से जुडी हुई हैं| 


अत: कौला पूजन ना जाटों में कभी हुआ और ना होने दिया| किसी ने चाहा तो इल्जाम-ए-कलानौर तसदीक हुआ|


ऐसा ही एक किस्सा पंजाब के फ़िरोज़पुर जिले की खाप का है; जब अकबर ने एक जाट की छोरी से ब्याह करना चाहा; प्रस्ताव भी भेजा परन्तु खाप ने इंकार कर दिया तो अकबर हमला करने को उतारू हुआ| परन्तु अकबर के सलाहकारों ने समझा दिया कि कहीं भी पंगा लेना परन्तु खाप से नहीं व् अकबर के काफिले को खाली हाथ खामोश लौट जाना पड़ा| 


मुस्लिमों में भी यह हिन्दू से मुस्लिम बने रांघड़ों में बताया जाता है, अन्यत्र मुस्लिम में नहीं| यह रांघड़ भी इसको हिन्दू में मिलने वाले "देवदासी" से ही ले गए बताये गए; यहीं इस बुराई की जड़ में भी फंडी सिस्टम ही है| क्योंकि "चोर चोरी से जा, हेराफेरी से नहीं" यानि आदतें वही, बस धर्म बदल लिया तो रूप बदल लिया|


जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 1 December 2024

जाट कौम का दिसंबर महीने का कैंलेंडर!

1 Dec राजा महेंद्र प्रताप सिंह ठेंनुआ जयंती

1 Dec महाराजा श्री सवाई बृजेंद्र सिनसिनवार जयंती

2 Dec कैप्टन ईशर सिंह संधू पुण्यतिथि 

4 Dec शहीद मेजर अनूप सिंह गहलोत बलिदान दिवस

5 Dec राजा मानसिंह सिंह सिनसिनवार जयंती

5 Dec कर्नल पृथ्वी सिंह गिल पुण्यतिथि 

6 Dec परमवीर चक्र विजेता कर्नल होशियार सिंह दहिया पुण्यतिथि

11 Dec कर्नल पृथ्वी सिंह गिल जयंती 

12 Dec शहीद लेफ्टिनेंट जसमेल सिंह खोखर बलिदान दिवस

14 Dec शहीद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों बलिदान दिवस 

14 Dec शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट दिपिका श्योराण जयंती 

15 Dec चौधरी शीशराम ओला पुण्यतिथि 

16 Dec शहीद ब्रिगेडियर होशियार सिंह राठी जयंती

16 Dec कैप्टन बॉक्सर हवा सिंह श्योराण जयंती

23 Dec चौधरी चरण सिंह तेवतिया जयंती 

24 Dec मोहम्मद रफी (भट्टी गोत्र) जयंती 

25 Dec महाराजा सूरजमल सिनसिनवार बलिदान दिवस 

25 Dec एयर मार्शल अमरजीत सिंह चहल जयंती

26 Dec चौधरी सिकंदर हयात खान (चीमा गोत्र) पुण्यतिथि

30 Dec कैप्टन ईशर सिंह संधू जयंती 

Post credit- @sagar_khokhar_2000

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Wednesday, 27 November 2024

समस्या क्या है कि लोग या तो idealism की तरफ भागते हैं या हर एक धर्म-सम्प्रदाय में मीन-मेख निकाल के अपनी safe-zone में पड़े रहने हेतु खुद को कारण देते रहे हैं!

मीन-मेख, यह कि सिख में भी तो जातिवाद है, समुदाय के हिसाब से अलग गुरुद्वारे हैं; तो वहां में व् यहाँ फंडियों वाले मनुवाद में फर्क क्या है; इसलिए यहीं पड़े रहो| 


Idealism यह कि सब कुछ 100% परफेक्ट हो तो फलां धर्म में जाएं अथवा फलां में ना जाएं| 


ऐसे विचारक प्राकृतिक थ्योरी के सिद्धांत पर चल के सोचते ही नहीं हैं| यह सोचते ही नहीं कि प्रकृति यानि तत्व कहता है कि 100% आदर्श यानि Ideal कुछ होता ही नहीं है| धर्म-सम्प्रदाय-समाज-जाति चलती हैं मानवता, बराबरी व् जस्टिस के इंडेक्स की पालना पर; जो ज्यादा मानवता-बराबरी-जस्टिस सिस्टम देता मिले; इंसान को उस समूह-थ्योरी-फिलोसॉफी के साथ जाना-रहना सर्वोत्तम होता है| 


और इस पैमाने पर देखो तो मनुवाद, सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के किसी भी धर्म-सम्प्रदाय-थ्योरी-फिलोसॉफी से अमानवीय, असमान व् अन्यायकारी है| दरअसल यह इकलौता ऐसा कांसेप्ट है धरती पर जो आपको धर्म भाई बोल के, आपके ही खिलाफ चतुर्वर्णीय वर्गीकरण करने चलता है (जो कीदेखा जाए तो इसी के शास्त्रों के विरुद्ध है), इस बनाम उस तो इतना ज्यादा है जैसे कि किसी कॉर्पोरेट कम्पनी का कंस्टीटूशन हो कि यह तो करना हमारा जन्मसिद्ध नियम है, इसके बिना तो सर्वाइवल ही नहीं| 


अत: इन दोनों की अवस्थाओं से बचो| ना तो idealism की तरफ जाओ व् ना ही मीन-मेख निकालने की तरफ| 


जाओ तो अपनी पुरख किनशिप के सिद्धांतों की तरफ व् वह सिद्धांत सबसे ज्यादा किस धर्म-सम्प्रदाय के नजदीक हैं उनकी तरफ| मेरे अनुसार यह चीजें कुछ-कुछ ऐसे हैं:


1 - खाप-खेड़ा-खेत किनशिप का सबसे नजदीकी नेचुरल धर्म सिख ही है| इसमें जो अलग-अलग गुरूद्वारे होने की बात है, यह 90% फंडियों द्वारा इनके यहाँ 'कान-फुंकाई' करवा के बनवाए हुए हैं; और फंडी 'कान-फुंकाई' हर उस जगह करता है, जो उसका टारगेट हो या उसको टक्कर देता दीखता हो व् खुद उसके ऊपर 'जैसे को तैसा' ना करता हो| जैनी जैसे को तैसा करता है; इसलिए फंडी कभी जैनियों को नहीं छेड़ता| सिख धर्म बस इतना कर ले, उसी दिन यह 'खालिस्तान' से ले तमाम सिखों को टारगेट करने के फंडी के प्रोपैगैंडा खत्म हो जाएंगे| मैं सिखी में जाने का समर्थक हूँ अगर खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के यौद्धेयों के वाणी बनवाने की आज्ञा व् हरयाणवी भाषी इलाकों में गुरुद्वारों में पंजाबी के साथ-साथ हरयाणवी भाषा को स्थान दे दे तो| 

2 - कल्चरल यानि ब्याह-शादी के नियमों व् खेती-किसानी के नियमों व् नैतिकताओं को देखो या व्यापार में नैतिकता देखो; इस मामले में ईसायत खाप-खेड़ा-खेत के अगला नजदीक कांसेप्ट है| गौत-नात व् खेती-किसानी के नियमों पर तो इस ग्रुप की अपनी रिसर्च हैं, जो इन नजदीकियों को स्थापित करती हैं| 

3 - अगर ब्याह-शादी के नियमों को छोड़ दो तो मुस्लिम अगला नजदीकी धर्म कहा जा सकता है खासकर व्यावहारिक व् व्यापारिक नैतिकता में| 

4 - जैनियों में अनैतिक पूंजीवाद ना हो तो, यह धर्म भी बहुत सटीक है हमारे लिए| परन्तु इनमें अनैतिक पूंजीवाद इतना ज्यादा है कि इनका सबसे बड़ा नाम अडानी चारों तरफ इन मसलों से घिरा हुआ है; शाह की अनैतिकता से आज कौन अनजान है| 

5 - बुद्ध धर्म तो इतना उदारवाद है कि इसकी उदारवादिता की अधिकता ही इसकी ठीक वैसे ही दुश्मन रही जैसे खाप-खेड़ा-खेत वालों की रहती आई; यह जल्द ठीक ना की गई तो बहुत बड़े संकट सामने खड़े हैं| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 26 November 2024

कांग्रेस ने देश के लिए किया ही क्या है?

 545 से ज़्यादा छोटी बड़ी रियासतों का विलय,

(सरदार पटेल, नहरू जी, वी.पी.मेनन..)


भारत का संविधान,

(बाबा साहब आंबेडकर, राजेंद्र प्रसाद, नहरू जी, जे.पी.कृपलानी आदी)


-रूस की तर्ज़ पर भारत में भी  पंच वर्षीय योजनाओं का सृजन,

(नहरू जी)


भाकरा नंगल और हीरा कुण्ड जैसे बड़े बाँध,

(नहरू जी)


-भिलाई, राउरकेला और बोकारो में हैवी सटील प्लाँट,

(नहरू जी)


-ISRO,

(नहरू जी)


-DRDO,

(नहरू जी)


-अनेक विश्व विद्यालयों का सृजन,

(नहरू जी)


-AIIMS खुला,

(नहरू जी)


-ढेरों IIT खुले,

(नहरू जी)


-भारतीय रेल विश्व की सबसे बड़ी रेल नेटवर्क एवं सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला रेल नेटवर्क बनी,

(नहरू जी, शास्त्री जी, इंदिरा गाँधी आदी)


-भारतीय आर्मी विश्व की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में शामिल,

(इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह)


-भारतीय वायु सेना विश्व की 5वीं सबसे ताक़तवर वायू सेना बनी,

(इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, मनमोहन सिंह)


रियासतों को दिए जाने वाले Privy Purse की समाप्ती,

(इंदिरा गाँधी)


-गुजरात में श्वेत (दुग्ध) क्रांती,

(इंदिरा गाँधी)


-बैंको का राष्ट्रीयकरण,

(इंदिरा गाँधी)


-दो दो बार पाकिस्तान को युद्ध में करारी शिकस्त,

(लाल बहादुर शास्त्री एवं इंदिरा गाँधी)


-पाकिस्तान को युद्ध में हरा कर, बंगलादेश के रूप में, दो टुकड़ों में करना,

(इंदिरा गाँधी)


-पूरे विश्व के विरोध के बावजूद पोखरण में परमाणू परिक्षण,

(इंदिरा गाँधी)


-अनेक Pay Scale Commissions का सृजन और उनकी अनुशंसाओं को लागू किया,

(नहरू जी, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह)


-भारत का अंतरिक्ष में राकेश शर्मा के रूप में पहला क़दम,

(इंदिरा गाँधी)


-वोट देने की उम्र 21 से 18 घटाना, जिससे युवाओं की राजनीत में भागीदारी बढ़ी,

(राजीव गाँधी)


-दूरसंचार क्रांती,

(राजीव गाँधी)


-कंप्यूटर क्रांती,

(राजीव गाँधी)


-जवाहरलाल नहरू रोज़गार योजना (JNRY),

(इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी)


-नयी मौद्रिक नीती (New Economic Policies) का सृजन,

(नरसिम्हा राव एवं मनमोहन सिंह)


-पंचायती राज कानून,

(नरसिम्हा राव)


-नगरी निकाय कानून,

(नरसिम्हा राव)


-PSLV, CLV जैसे अनेकों अंतरिक्ष सेटेलाईट का सफल परेक्षण,

(नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह)


-अग्नी, त्रिशूल, नाग आदी जैसे अनेक देसी मसाइल को बनाना,

(नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह)


-सुज़ूकी, हुंडई, शेव्रोले, नोकिया, सैमसंग, LG, रेनोल्ट, मोटोरोला, पेनासोनिक, पायनियर, JBL जैसी अनेक अंतराष्ट्रीय कंपनीयों द्वारा भारत में निवेश, जिससे लाखों रोज़गार generation हुआ और हमारी अर्थव्यवस्था और मज़बूत बनी,

(नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह)


-महात्मा गाँधी रोज़गार गारेंटी योजना (MANREGA), जो की विश्व की सबसे बड़ी सफल रोज़गार योजना साबित हुई,

(मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी)


-सूचना का अधिकार (RTI),

(मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी)


-पेंशन योजना,

(मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी)


-ज़मीन अधिकरण कानून,

(मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी)


-NRHM (108 एम्बुलेंस) योजना,

(मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी)


-शिक्षा का अधिकार,

(मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी)


-मिड डे मील योजना,

(मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी)


-इंदिरा आवास योजना एवं राजीव आवास yojna

(मनमोहन सिंह)


-जननी सुरक्षा योजना,

(मनमोहन सिंह जी, )


-आधार कार्ड,

(मनमोहन सिंह, )


-जम्मू कोटरा रेल लाइन का सृजन,

(मनमोहन सिंह, )


-चंद्रयान मिशन,

(मनमोहन सिंह, एवं ISRO)

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वैसे कुछ लोगों ने

बिलकुल सही कहा,


कांग्रेस ने देश के लिए किया ही क्या है...😎


Monday, 25 November 2024

क्या कारण है कि बीजेपी लैंड-स्लाइडिंग विक्ट्री गुजरात-मध्यप्रदेश व् महाराष्ट्र में कर पाई; हरयाणा में नहीं?

क्योंकि इन तीनों जगह बीजेपी, आरएसएस व् फंडियों के जरिए लोगों का दिमाग व् वैचारिकता, इनमें सदियों से "वैचारिक वर्णशंकरता" फैला कर, इस हद तक दब्बू व् भीरु बनाई जा चुकी है कि बीजेपी को यह डर लगता ही नहीं कि गुजरात में पटेल, महाराष्ट्र में मराठा, एमपी-यूपी में यादव इतना बड़ा बवाल या आंदोलन खड़ा कर सकते हैं कि जितना हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी की किसान-मजदूर बिरादरी कर सकी हैं| हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी में उदारवादी जमींदारी सिस्टम होने के चलते (खाप व् किसान यूनियनों की विशाल व् असरकारक उपस्तिथि की वजह से), अभी तक फंडी यहाँ लोगों का उस हद तक का ब्रैनवॉश नहीं कर पाया है कि यह दब्बू व् भीरु वाली केटेगरी में काउंट होने लगें; व् बीजेपी यह जानती थी, इसीलिए हरयाणा में तीसरी बार सरकार के लिए सिर्फ जीत के मार्जिन को पार किया गया, क्योंकि लैंड-स्लाइडिंग गड़बड़ करने पर यहाँ के लोगों द्वारा विद्रोह का डर आज भी इनके अंदर है; परन्तु गुजरात-मध्यप्रदेश व् महाराष्ट्र लैंड-स्लाइडिंग जितनी बड़ी विक्ट्री करते वक्त घबराए नहीं क्योंकि वहां सामंती जमींदारी व् स्वर्ण-शूद्र के मनुवाद का हद से ज्यादा धरातल पर होना बड़ी वजहें हैं| 


कहने को लोग अक्सर सुने जाते हैं कि गुजरात में बीजेपी पटेल बनाम नॉन-पटेल करती है (परन्तु आज के दिन पटेल मुख्यमंत्री है तो वहां), मध्यप्रदेश-यूपी में यादव बनाम नॉन-यादव करती है (परन्तु एमपी में यादव मुख्यमंत्री है तो बीजेपी का व् यूपी उपचुनाव में देखो किधर है यादव बनाम नॉन-यादव, लोकसभा में भी सपा की 36 सीट योगी को मोदी काटना था इसलिए आ गई, वरना कहाँ है वहां यादव बनाम नॉन-यादव); व् महाराष्ट्र में मराठा बनाम नॉन-मराठा करती है (अभी देखो किसको सीएम बनाएँगे) और साथ जोड़ देते हैं कि ऐसे ही हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट करती है| जबकि चारों ही जगह यह इस बनाम उसका इतना बड़ा सा मसला है ही नहीं| 


मसला है तो उदारवादी जमींदारी बनाम सामंती जमींदारी सिस्टम होने का; जिसको कि खापलैंड के लोगों को समझना होगा| इस लैंड स्लाइडिंग जीत व् मात्र मार्जिन छू कर रुक जाने के पीछे का मनोवैज्ञानिक कारण पकड़ना होगा| और वह है उदारवादी जमींदारी सिस्टम से जो स्वछंद मति का कल्चर आता है, वह| इस सिस्टम के भेद को और बारीकी से समझना है तो उदारवादी जमींदारी की खाप-खेड़ा-खेती फिलोसॉफी को जानिए, पढ़िए व् समझिए| 


चेतावनी: बीजेपी की तीसरी जीत, हरयाणा में अब उदारवादी तंत्र को खत्म करने पर काम करेगी; परन्तु अगर इसको यहाँ के लोग बचा गए तो अपनी स्वछंद मति बचा जाएंगे| व् यह खत्म हो इसके लिए बीजेपी ने यहाँ किसान-मजदूर जातियों के बीच अपना "वैचारिक वर्णशंकरता" का हथियार आजमाना चालू किया हुआ है, व् इसीलिए यहाँ कुछ संसदें व् धाम इसी पर कार्यरत हैं| इनसे अपने समाज व् पीढ़ियों को बचाओ; क्योंकि फंडी खुद नहीं उतरेगा आपके बीच व् आपके बीच से ऊठा के एजेंट्स उतारेगा व् "वैचारिक वर्णशंकरता" फैलाएगा और जिस दिन यह जितनी उनको चाहिए उस स्तर की फ़ैल गई; उस दिन मान लेना कि यह यहाँ भी "लैंड-स्लाइडिंग विक्ट्री" जितनी गड़बड़ करने से नहीं घबराएंगे ये| इसलिए खापलैंड व् पंजाब अभी भी इनसे सुरक्षित हैं बशर्ते इस "वैचारिक वर्णशंकरता" के फैलने को वक्त रहते थाम लिया जाए| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 24 November 2024

मैं कुछ पेड पतलचाट यूट्यूबर और एजेंट नेताओं से पूछना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में तो कोई बाबू बेटा भी नहीं थे?

 बाबू बेटा बाबू बेटा करने वाले ये उन बाप बेटा की मेहनत की बदौलत ही हरियाणा में अकेले इतनी कांग्रेस की सीट (37 सीट) आई हैं लगभग जितनी महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर तीनों राज्यों की मिलाकर (38 सीट) आई हैं। हरियाणा में कांग्रेस की वोट प्रतिशत 40% के करीब बीजेपी के लगभग बराबर आई हैं। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की सिर्फ 34% (कांग्रेस 11.57%) वोट आई हैं बीजेपी गठबंधन की 49% (बीजेपी 26.19%) वोट आई हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा में तो कांग्रेस गठबंधन के 48 में से 31 सांसद थे अब 288 विधानसभा सीट में सिर्फ 46 सीट आई हैं, कांग्रेस गठबंधन में 101 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 16 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई है हरियाणा में 90 में से 37 सीट, महाराष्ट्र में जीत का स्ट्राइक रेट 16% और हरियाणा में 41% से ज्यादा, अब किसका कसूर काढ़ोगे?


महाराष्ट्र में तो कांग्रेस पार्टी किसी एक परिवार की पार्टी भी नहीं थी?

महाराष्ट्र में तो एक नहीं बल्कि तीन तीन पार्टियों के साथ गठबंधन भी था

महाराष्ट्र में तो किसी एक आदमी ने 72 टिकटें भी नहीं बांटी थी

महाराष्ट्र में तो किसी नेता में अहंकार नहीं हुआ होगा?

महाराष्ट्र में तो कोई फ्री हैंड नहीं होगा

जिनका हरियाणा में अपमान होने की बात कह रहे थे उसका महाराष्ट्र में तो अपमान नहीं हुआ होगा वहां तो पूरी इज्जत और सम्मान दिया था


मगर फिर भी महाराष्ट्र में पार्टी की इतनी बुरी हार क्यों?


 जो लोग बाबू बेटा बाबू बेटा बाबू बेटे की पार्टी का प्रचार दिन रात चला रहे थे यानी वो सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे, तब भी सिर्फ बाबू बेटा ही संघर्ष कर रहे थे बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे थे यहां तो अकेले बाबू बेटा ही थे जबकि वहां तो 3- 4 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी, इतने सारे नेता थे सब मिलकर लड़ रहे थे यहां तो सिर्फ बाबू बेटा ही थे जो इतनी सारी वोट लोगों की लड़ाई लड़कर लेकर आए हैं, बीजेपी के बराबर वोट देने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान तो ना करो, उनका सम्मान करो बाबू बेटा को बीजेपी के 56 लाख वोटों के लगभग बराबर 56 लाख ही वोट दे रखी हैं 36 बिरादरी ने, जाट समाज की तो 40% में से मात्र 13% वोट ही कांग्रेस को मिली हैं बाकी 27% तो सभी बिरादरी ने दे रखी हैं। जाट समाज ने टोटल में से 53% कांग्रेस 28% बीजपी और 19% अन्य को वोट दी, अगर लोकसभा की तरह अकेले जाट समाज एकजुट होकर 70% वोट कांग्रेस को दे देता तो सुरते हाल अलग होती हरियाणा में, 52-53 सीटों के साथ कांग्रेस की सरकार होती, बहरहाल जबकि चारों राज्यों में कोई एक नेता बता दो जो हुड्डा साहब की तरह  छत्तीस बिरादरी में मजबूत हो, हुड्डा साहब ही सबसे कद्दावर नेता थे उन्हीं के बल पर हरियाणा में बीजेपी के बराबर वोट आई हैं वो अलग मामला है कि हम चुनाव हार गए उसके लिए बीजेपी के तमाम हथकंडों षड्यंत्रों को श्रेय देना चाहिए कि कैसे धन के बल पर छल किया निर्दलीय खड़े कर वोट बांटे, evm का दुरुपयोग धन के बल पर वोट खरीदे, सारे मर्यादाओं को ताक पर रखकर सजायाफ्ता बाबाओं का सहारा लिया, यंत्र तंत्र का खुलकर दुरूपयोग किया, लोकतंत्र का चीर हरण किया उसके बाद भी लोगों का बाबू बेटे को इतना आशीर्वाद मिला, कि सत्तादल के बराबर वोट आए हैं नंबर गेम में बेशक पिछड़ गए लोगों के प्रेम में नहीं पिछड़े। दीपेंद्र हुड्डा तो वो नेता है जो पूरे हरियाणा में सबसे अधिक वोटों से जीता था और देश में राहुल गांधी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मार्जन से जीतने वाला कांग्रेस का नेता, विधानसभा में चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश में दूसरे सबसे बड़े मार्जन से जीतने वाले नेता हैं लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दी हैं दे रखी हैं उन वोट देने वाले वोटर्स का अनादर अपमान तो मत करो उनके ऊपर अंगुली उठाने वाले नेता दरअसल खुद अपने ऊपर केअंगुली उठा रहे हैं कहीं ना कहीं उनको भी पता है इसके *मैं कुछ पेड पतलचाट यूट्यूबर और एजेंट नेताओं से पूछना चाहता हूं कि महाराष्ट्र में तो कोई बाबू बेटा भी नहीं थे?


बाबू बेटा बाबू बेटा करने वाले ये उन बाप बेटा की मेहनत की बदौलत ही हरियाणा में अकेले इतनी कांग्रेस की सीट (37 सीट) आई हैं लगभग जितनी महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर तीनों राज्यों की मिलाकर (38 सीट) आई हैं। हरियाणा में कांग्रेस की वोट प्रतिशत 40% के करीब बीजेपी के लगभग बराबर आई हैं। जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन की सिर्फ 34% (कांग्रेस 11.57%) वोट आई हैं बीजेपी गठबंधन की 49% (बीजेपी 26.19%) वोट आई हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा में तो कांग्रेस गठबंधन के 48 में से 31 सांसद थे अब 288 विधानसभा सीट में सिर्फ 46 सीट आई हैं, कांग्रेस गठबंधन में 101 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 16 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई है हरियाणा में 90 में से 37 सीट, महाराष्ट्र में जीत का स्ट्राइक रेट 16% और हरियाणा में 41% से ज्यादा, अब किसका कसूर काढ़ोगे?


महाराष्ट्र में तो कांग्रेस पार्टी किसी एक परिवार की पार्टी भी नहीं थी?

महाराष्ट्र में तो एक नहीं बल्कि तीन तीन पार्टियों के साथ गठबंधन भी था

महाराष्ट्र में तो किसी एक आदमी ने 72 टिकटें भी नहीं बांटी थी

महाराष्ट्र में तो किसी नेता में अहंकार नहीं हुआ होगा?

महाराष्ट्र में तो कोई फ्री हैंड नहीं होगा

जिनका हरियाणा में अपमान होने की बात कह रहे थे उसका महाराष्ट्र में तो अपमान नहीं हुआ होगा वहां तो पूरी इज्जत और सम्मान दिया था


मगर फिर भी महाराष्ट्र में पार्टी की इतनी बुरी हार क्यों?


 जो लोग बाबू बेटा बाबू बेटा बाबू बेटे की पार्टी का प्रचार दिन रात चला रहे थे यानी वो सब मानते हैं कि अकेले बाबू बेटा ही चुनाव लड़ रहे थे और किसी ने साथ दिया नहीं उल्टा साथ देने की बजाय पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले बयान तक दे रहे थे, तब भी सिर्फ बाबू बेटा ही संघर्ष कर रहे थे बीजेपी से लड़ाई लड़ रहे थे यहां तो अकेले बाबू बेटा ही थे जबकि वहां तो 3- 4 पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी, इतने सारे नेता थे सब मिलकर लड़ रहे थे यहां तो सिर्फ बाबू बेटा ही थे जो इतनी सारी वोट लोगों की लड़ाई लड़कर लेकर आए हैं, बीजेपी के बराबर वोट देने वाले लोगों की भावनाओं का अपमान तो ना करो, उनका सम्मान करो बाबू बेटा को बीजेपी के 56 लाख वोटों के लगभग बराबर 56 लाख ही वोट दे रखी हैं 36 बिरादरी ने, जाट समाज की तो 40% में से मात्र 13% वोट ही कांग्रेस को मिली हैं बाकी 27% तो सभी बिरादरी ने दे रखी हैं। जाट समाज ने टोटल में से 53% कांग्रेस 28% बीजपी और 19% अन्य को वोट दी, अगर लोकसभा की तरह अकेले जाट समाज एकजुट होकर 70% वोट कांग्रेस को दे देता तो सुरते हाल अलग होती हरियाणा में, 52-53 सीटों के साथ कांग्रेस की सरकार होती, बहरहाल जबकि चारों राज्यों में कोई एक नेता बता दो जो हुड्डा साहब की तरह  छत्तीस बिरादरी में मजबूत हो, हुड्डा साहब ही सबसे कद्दावर नेता थे उन्हीं के बल पर हरियाणा में बीजेपी के बराबर वोट आई हैं वो अलग मामला है कि हम चुनाव हार गए उसके लिए बीजेपी के तमाम हथकंडों षड्यंत्रों को श्रेय देना चाहिए कि कैसे धन के बल पर छल किया निर्दलीय खड़े कर वोट बांटे, evm का दुरुपयोग धन के बल पर वोट खरीदे, सारे मर्यादाओं को ताक पर रखकर सजायाफ्ता बाबाओं का सहारा लिया, यंत्र तंत्र का खुलकर दुरूपयोग किया, लोकतंत्र का चीर हरण किया उसके बाद भी लोगों का बाबू बेटे को इतना आशीर्वाद मिला, कि सत्तादल के बराबर वोट आए हैं नंबर गेम में बेशक पिछड़ गए लोगों के प्रेम में नहीं पिछड़े। दीपेंद्र हुड्डा तो वो नेता है जो पूरे हरियाणा में सबसे अधिक वोटों से जीता था और देश में राहुल गांधी के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक मार्जन से जीतने वाला कांग्रेस का नेता, विधानसभा में चौ.भूपेंद्र सिंह हुड्डा ऐसे नेता हैं जो पूरे प्रदेश में दूसरे सबसे बड़े मार्जन से जीतने वाले नेता हैं लोगों ने कांग्रेस को खुलकर वोट दी हैं दे रखी हैं उन वोट देने वाले वोटर्स का अनादर अपमान तो मत करो उनके ऊपर अंगुली उठाने वाले नेता दरअसल खुद अपने ऊपर अंगुली उठा रहे हैं कहीं ना कहीं उनको भी पता है इसके लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं।


महाराष्ट्र से तो हरियाणा का चुनाव परिणाम ही सौ गुणा अच्छा और प्रभावी रहा है*लिए वो खुद ही जिम्मेदार हैं।


*महाराष्ट्र से तो हरियाणा का चुनाव परिणाम ही सौ गुणा अच्छा और प्रभावी रहा है

      हरियाणा की जनता ने अपनी तरफ से आरएसएस बीजेपी और इसके सहयोगियों को खदेड़ने के लिए भरपूर वोट दी है आरएसएस बीजेपी को वोट डालने वाला कोई भी चाहे कर्मचारी वर्ग हो, किसान वर्ग हो मजदूर वर्ग हो कमेरा वर्ग हो, पेंशनर, डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर, पटवारी, सरपंच, बालवाड़ी, सभी तो इस सरकार की पुलिस के लट्ठ खा चुके थे तो भला इनको वोट क्यों देते? किसी ने इस आरएसएस बीजेपी को वोट नहीं दी। गड़बड़ है तो केवल चुनाव आयोग के द्वारा बढ़ाई गई वोट परसेंटेज % और शासन प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर के दबाव बनाकर के मेनू प्लेटेड रिजल्ट तैयार करना। उन 14 लाख वोट का डिस्ट्रीब्यूशन हुआ है, जहां जिसको जिताना चाहा उसको जीता दिया, जहां जिसको हराना चाहा हरा दिया। फिर भी अगर किसी पत्तल चाट या यूट्यूबर को कोई शक हो तो चुनाव आयोग से मांग करें किसी एक कांस्टीट्यूएंसी हरियाणा की उठा लो और उस कांस्टीट्यूएंसी के हस्ताक्षर रजिस्टर, हर बूथ के वोटर के सिग्नेचर वाला रजिस्टर उठाकर के टोटल वोट्स पोल्ड का और बोगस वोट पोल्ड का ईवीएम मशीन वी वी पैड की पर्चियां का मिलान करके भला देख तो ले, मिलान हो ही नहीं सकता, क्योंकि 14 लाख वोट बढी पाई गई है। एक्चुअल रिजल्ट तो हस्ताक्षर रजिस्टर ही देगा कि उस बूथ में कितनी वोट पोल हुई है और किस-किस ने वोट डाली है बोगस है या ठीक?सारी घपले बाजी पकड़ी जा सकती है। हर बूथ का हस्ताक्षर रजिस्टर चाहे बोगस वोट डलवाए गए हो या घटाएं तथा बढ़ाएं गए हो सब पकड़ में आ जाएंगे गहरी जांच का विषय है। 

इस आरएसएस बीजेपी सरकार और चुनाव आयोग तथा न्यायपालिका के कुछ जजों की मिली भगत से अमृतकाल की रेवड़ी खाने से ही जनता के वोट का अधिकार को समाप्त कर दिया गया है तथा ऐसा लगता है। कि भारतीय संविधान और लोकतंत्र खतरे की तरफ धकेला जा रहा है। इस सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारतवर्ष को कॉरपोरेट्स के हवाले करके, गर्त में डुबोया जा रहा है। कोरिया चीन रूस साउथ अफ्रीका की तरह एक तंत्र शासन स्थापित करने की गहरी साजिश रची जा सकती है!

डॉ ओम प्रकाश धनखड़ प्रधान धनखड़ खाप कोऑर्डिनेटर सर्वखाप पंचायत।

Friday, 22 November 2024

ब्राह्मणवाद सबसे जटिल और चालाक वैचारिक यंत्र!

विचारों के इतिहास में, ब्राह्मणवाद सबसे जटिल और चालाक वैचारिक यंत्र रहा है। उदाहरण के लिए, चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, ब्राह्मणवाद अपने भीतर से ब्राह्मण विरोधी संप्रदाय के उदय को बढ़ावा देने या अनुमति देने के द्वारा स्वयं को बनाए रखता है और मतभेद फैला देता है।


ये संप्रदाय ब्राह्मणवाद के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन वास्तव में, असंतोष को फैलाने और नियंत्रित करने के लिए या रणनीतिक रूप से इसके द्वारा समर्थित हैं। एक बार परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाने के बाद, ब्राह्मणवाद व्यवस्थित रूप से इन संप्रदायों को समाप्त कर देता है और अपने नग्न आधिपत्य को पुनः स्थापित करता


ऐतिहासिक रूप से, महाजनापद काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उदय में यह रणनीति देखी जा सकती है। शुद्रों के बीच ब्राह्मण विरोधी भावनाओं का सामना करते हुए ब्राह्मणवाद ने बुद्ध और महावीर जैसे नेताओं को क्षत्रिय का दर्जा दिया। इसने उनके नेतृत्व को वैध बनाया और उनके तत्वधान में ब्राह्मण विरोधी संप्रदाय के गठन की अनुमति दी। हालाँकि, गुप्त काल के दौरान, जैसे-जैसे ब्राह्मणवाद ने सामाजिक-राजनीतिक प्रभुत्व प्राप्त किया, इन संप्रदायों को व्यवस्थित रूप से दबा दिया गया या ब्राह्मणवाद में आत्मसात किया गया।


इसी तरह ब्रिटिश काल में ब्राह्मणवाद ने आर्य समाज आंदोलन को बढ़ावा देकर उत्तर-पश्चिम में उच्च वर्ग के शूद्रों के बीच बढ़ती ब्राह्मण विरोधी भावनाओं का जवाब दिया था। यद्यपि यह ब्राह्मणवादी रूढ़िवादी को चुनौती देता प्रतीत हुआ, लेकिन आर्य समाज ब्राह्मणवादी संरचना के भीतर कार्य करता था। स्वतंत्रता के बाद जैसे जैसे ब्राह्मणवाद ने अपना प्रभुत्व प्राप्त किया, आर्य समाज आंदोलन को व्यवस्थित ढंग से ध्वस्त कर दिया गया।


मुगल काल के दौरान पंजाब में ब्राह्मणवाद को एक समान चुनौती का सामना करना पड़ा था। सूफी शिक्षाओं से प्रेरित और उत्थान शुद्रों और दलितों ने मजबूत ब्राह्मण विरोधी भावनाओं का विकास किया। जवाब में, ब्राह्मणवाद ने खत्री नेताओं के साथ सहयोग किया, उन्हें क्षत्रिय का दर्जा दिया, और इस असहमति को प्रबंधित करने के लिए सिख संप्रदाय के निर्माण में मदद की। एक बार इस चुनौती को संबोधित किया गया तो ब्राह्मण सिख संप्रदाय को पूरी तरह से दबाने के कगार पर थे। हालांकि, 1857 के विद्रोह के प्रकोप ने अचानक उनके प्रयासों को बाधित कर दिया, क्योंकि अंग्रेजों ने सिखों को बहुमूल्य सहयोगी पाया, सक्रिय रूप से समर्थन दिया और सिख धर्म को ब्राह्मणवाद से मुक्त किया।


यही घटना भागवत संप्रदाय, गोरख संप्रदाय और कई अन्य मामलों में देखी जा सकती है। इस रणनीति ने ब्राह्मणवाद को " विरोधाभास की श्रृंखला बना दिया है। " 

शिवत्व बेनिवाल