लेख का उद्देश्य: फंडियों के psychological war-game को समझने हेतु!
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Sunday, 30 May 2021
जाति नहीं, वर्ण खत्म हो!
Saturday, 29 May 2021
उदारवादी जमींदारी कल्चर की धरती अडानी-अम्बानी जैसे कॉर्पोरेट्स को इतना क्यों आकर्षित कर रही है कि इसको हड़पने को येन-केन-प्रकेण से कृषि का नाम दे कर 3 काले कानून पास करवा लिए?
भूमिका: आज के दिन अडानी-अम्बानी जैसे बड़े-बड़े कॉर्पोरेट वालों को भी खेती करने का शौक चढ़ा है, 5000-5000 एकड़ के बड़े एग्रीकल्चर-फार्म बनाना चाहते हैं हरयाणा-पंजाब की धरती पर| एक तो आखिर पूरे देश में इनको यही धरती क्यों चाहिए? ऊपर से सोचो तुम्हें-हमें तो बचपन से यह तर्क दे कर बड़ा किया गया कि "पढ़ ले बेटा, कुछ नहीं धरा खेती में" या किसी का बालक नहीं पढता था तो कहते थे कि, "इसको दो-चार महीने खेतों में रगड़ा लगाओ खेती का, अपने आप पढ़ाई की कीमत समझ आ जाएगी"| अब पता नहीं यह हीन भावनाएं कौन लाता था समाज में, वह भी ऐसे धंधे बारे, जिसकी सबसे स्थाई इकॉनमी देने की क्षमता व् महत्ता किसान कम जानते थे व् यह बड़े-बड़े व्यापारी शायद ज्यादा जानते हैं जो किसान बनने को लालायित हुए जाते हैं?
Wednesday, 26 May 2021
'मार दिया मठ', 'हो गया मठ', 'कर दिया मठ'!
यह कहावतें हमारे समाज में होने का मतलब समझने की जरूरत है| कल थोड़ा सा व्यस्त था इसलिए बुद्ध पूर्णिमा पर पोस्ट नहीं निकाल पाया| 'मठ' बुद्ध धर्म का ही कांसेप्ट है, वहीँ से कॉपी हुआ है बाकी सब जगह| जाट महाराजा हर्षवर्धन बैंस बुद्ध धर्मी हो गए थे, यह वही जाट राजा हैं जिन्होनें "सर्वखाप" सिस्टम को 643 AD में विश्व में सबसे पहले 'लीगल सोशल जस्टिस' में समाहित किया था व् खापों को ठीक वैसी ही सोशल जूरी होने की वैधानिक मान्यता दी थी जैसी कि आज के दिन अमेरिका-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया आदि में पाई जाती है|
Monday, 24 May 2021
किसान आंदोलन का हिसार अध्याय व् आगे की दिशा!
थोड़ा किसान आंदोलन के साइड-बाई एक और जो जरूरी पहलु है उस पर बात करूँगा, जो बात को किसान आंदोलन के जीवन से भी आगे जाती है|
कच्छाधारी फंडियों की 7 साल की सरकार में आज हिसार में पहली सबसे बड़ी वह कामयाबी मिली जिसने लोकंतत्र जिंदा होने की आस को फिर से खड़ा किया है| परन्तु क्या आगे की राह इतनी आसान है? नहीं है, जब तक ओबीसी व् दलित में जिस भी स्तर तक कच्छाधारी अपना प्रभाव जमा चुके हैं; उसको एक-एक किसान-मजदूर का बालक प्रचारक बन के नहीं निकालेगा या कम-से-कम इनके दोगले चेहरे व् सोच को नंगा नहीं करेगा; तब तक सफर भी अधूरा व् मंजिल भी दूर|
मुझे तो ताज्जुब होता है हर उस ओबीसी व् दलित पर जो गोलवलकर के उन बारे यह विचार कि "मैं सारी जिंदगी अंग्रेजों की गुलामी करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन जो दलित, पिछड़ों व् मुसलमानों को बराबरी का अधिकार देती हो ऐसी आज़ादी मुझे नहीं चाहिए|" जानकर भी इनके साथ जुड़े हुए हैं| जिनकी सोच के मूल में दलित व् ओबीसी के लिए इतनी नफरत हो, वह संघ की शाखाओं में कितना ही बराबरी का राग अलापते रहें, जातिवादी नहीं होने की पीपनी बजाते रहें परन्तु इनके मूल में तो नफरत व् जातिवाद ही है ना? अन्यथा दलित व् ओबीसी बारे ऐसी बातें करने वाला व् ऐसी सोच रखने वाला कैसे आरएसएस का 33 साल तक प्रमुख रहा? ताज्जुब है कि आज तक कोई दलित ओबीसी ऐसा नहीं दीखता, जिसने उनके बारे गोलवलकर की यह बात जानी हो और इसपे इनसे कभी सवाल किया हो? या गोलवलकर की कही इस स्टेटमेंट में सिर्फ मुसलमान शब्द देख कर इनके साथ डट जाते हो व् इसको इग्नोर कर देते हो कि मुसलमान के साथ-साथ उसने इसमें दलित व् पिछड़े को भी लपेटा हुआ है? यही समाज की मानसिक गुलामी व् पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह है|
ऐसे लोगों की यह चुप्पी चाहे जिस भी वजह से है परन्तु इसका दंड यह तो भुगत ही रहे हैं साथ-की-साथ उत्तरी भारत की बड़ी किसान कौमें भी भुगत रही हैं| क्या इनको ज्वाइन करने वाला कोई ओबीसी व् दलित यह बताएगा कि ऐसी कौनसी वजहें हैं जो यह आपको बताते या सिखाते हैं व् आप दिनरात आपके साथ खड़ी रहने वाली व् आपसी रोजगार की सूत्रधार किसान जातियों को छोड़ इनके साथ मिलके आप इन किसान जातियों के ही खिलाफ खड़े हो जाते हैं, जैसे कि फरवरी 2016 का 35 बनाम 1? आप नहीं भी खड़े होते होंगे तो यह इस 35 में आपका नाम तो जोड़ ही लेते हैं| और वह भी बावजूद इसके कि यही वह लोग हैं जो आपको वर्णवाद में शूद्र श्रेणी में रखते हैं, छूत-अछूत, ऊंच-नीच में बांटते हैं? आपका छुआ खाना-पीना तक पसंद नहीं करते?
यह जो जहर इन कच्छाधारी फंडियों ने समाज में नीचे-नीचे उतारा है, इसको साफ़ करने को कदम बढ़ाने होंगे| तब जा कर किसान समेत मजदूर वर्ग अपनी उस आभा-गौरव को वापिस पा सकेंगे जिस पर आ के दिन इन फंडियों के इनके polarisation व् manipulation के जहर की काली स्याही फेरी हुई है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Friday, 21 May 2021
फंडी कैसे किसी को उसके साइकोलॉजिकल ट्रैप (जाल) में लेता है!
ग्रीक फिलोसोफर Aristotle की theory of convincing के अनुसार तीन तरीकों से एक इंसान को प्रभाव में लिया जा सकता है:
1) Ethos (Authority) यानि अधिकृत विषेशज्ञ
2) Logos (Logics) यानि तार्किकता
3) Pathos (Emotions) यानि भावुकता, भावनात्मकता
एक संसार को स्वस्थ तरीके से चलाने हेतु इन तीनों का बराबर से इस्तेमाल ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है| परन्तु फंडी, इनमें से सिर्फ इमोशंस को आप पर इस्तेमाल करता है यानि भावना|
और भावना किस से पैदा होती है? Ekman, Paul; Davidson, Richard J. (1994) के अनुसार "कोई भी ऐसी चीज/अनुभव/विचार/व्यवहार जो आपको दुःख या ख़ुशी की, जुड़ाव या अलगाव की तरंगे दे; वह आप में उस वस्तु/व्यक्ति आदि के प्रति नकारात्मक या सकारात्मक भावना पैदा करता है|
और फंडी हर उस बाह्य वस्तु/विचार को आप पर अपनी भावनाएं थोंपने के लिए इस्तेमाल करता है जो आप में सकारात्मकता व् जुड़ाव, कहिये कि आदर भाव पैदा करती होती हैं|
जब आंतरिक तौर पर आप पर हमला करना होगा तो आपकी नकारात्मकता को फंडी सबसे ज्यादा कुरेदता है|
इस तरीके से जब उसने आपकी रग पकड़ ली, फिर वह आप पर साम-दाम-दंड-भेद आजमाता है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Thursday, 20 May 2021
फंडी, ना साइंस से चलता है और ना लॉजिक से; वह चलता है साइकोलॉजिकल ट्रैपिंग से!
फंडी को समझने के लिए साइंस या लॉजिक्स ना पढ़ें अपितु साइकोलॉजी यानि मनौविज्ञान के ज्ञाता बनें| जिस दिन इनका मनौविज्ञान से चलना समझ गए, उस दिन इन बातों पर आश्चर्य करना छोड़ दोगे कि, "हाय-हाय फलाना-धकड़ा या फलानी-धकडी इतना पढ़ा-लिखा हो के भी फंड-आडंबर में डूबा हुआ या हुई है"| या कहो कि "इतना बड़ा असफर-साइंटिस्ट हो के भी आकंठ आडंबर में डूबा निकला", आदि-आदि|
Tuesday, 18 May 2021
बावन बुद्धि आणिया, छप्पन बुद्धि जाट!
सुनी थी छप्पन बुद्धि जब महाराजा सूरजमल ने चलाई तो नागपुर-पुणे के चितपावनी पेशवे भी दिल्ली पर राज करने के सपनों का मन-मसोसवा के व् हाथ-मलवा के वापिस पुणे छुड़वा दिए गए थे| क्यों पड़े हो फिर से इनके चक्कर में, यह इतने भले होते तो तुम्हारा यह पुरखा इनको वापिस जाने की हालत में लाता क्या?
हवन इतना कमजोर कब से हो गया कि उसको धूणी की पद्दी (पीठ) बिठाना पड़ रहा है?:
Tuesday, 11 May 2021
"Disqualified दादा कल्चर" फ़ैलाने वालों से बचें!
हरयाणवी कल्चर में दादा
या तो गाम के खेड़े को कहा जाता है
या तो पिता के पिता को
या गाम के नेग से दादा लगने वाले 36 बिरादरी व् सर्वधर्म के व्यक्ति को
या किसी खाप-तपे के चौधरी को कहा जाता है|
इस परिधि से बाहर आने वाले हर बुजुर्ग को "ताऊ" कहा जाता है, जैसे "ताऊ देवीलाल"|
विशेष: ऊपर लिखित परिधि से बाहर वाले को "ताऊ" कहने के साथ-साथ ताऊ, पिता का बड़ा भाई या गाम के नेग में ताऊ लगने वाले 36 बिरादरी व् सर्वधर्म के व्यक्ति को कहा जाता है|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Monday, 10 May 2021
फ्रांस का लोकल आयुर्वेद!
1) साबूत अलसी (Lin), तिल, रागी का खाने में प्रचुर प्रयोग होता है| pave lin, baguette, में सबसे ज्यादा|
Friday, 7 May 2021
चौधरी अजित सिंह को उनकी मृत्यु पर सिर्फ जाट नेता कहने-लिखने वालो सुनो!
आईए फंडियों की एक और केटेगरी बारे जान लेते हैं!
जातिवाद-वर्णवाद में अंधे कैसे हुआ जाता है इसकी एक बानगी देखनी है तो आज के अखबारों में कल चौधरी अजीत सिंह के निर्वाण पर हुई कवरेज देखिएगा| नोट कीजियेगा कि कितने अखबारों ने उनको सिर्फ किसान नेता लिखा और कितनों ने जाट नेता लिखा| साथ ही इन सब लिखने वालों के उपनाम भी नोट कीजिएगा| गारंटी देता हूँ सिर्फ "जाट नेता" कह के पूरा लेख लिखने वाले तमाम फंडी मिलेंगे| और यह वही मिलेंगे जो कभी इनकी बिरादरी से आने वाले किसी नेता के नाम के आगे-पीछे उसकी जाति-वर्ण कभी नहीं लिखते| उदाहरण के तौर पर कुछ कटिंग्स सलंगित भी किए दे रहा हूँ| इनको फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने महान बने, शहरी रहते हुए बने या ग्रामीण, अक्षरी ज्ञान वाली डिग्रियां होते हुए बने या जिंदगी के तजुर्बे वाली विद्वानी से; इनके लिए अगर तुम इनकी बिरादरी के नहीं हो तो सिर्फ तुम्हारी जाति के नेता और इन वाली के हो तो सर्वसमाज के नेता|
यह मत समझिएगा कि वर्ण-जाति-आडंबर-पाखंड फैलाने वाला ही फंडी है; यह अखबार वाले फंडी "वर्ण-जाति-आडंबर-पाखंड फैलाने" वालों के भी फूफा होते हैं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Monday, 3 May 2021
अपने धर्म में दान के सदुपयोग बारे सिखी जैसे सुधार करवाईये!
क्योंकि दान में धन-अनाज आप भी इतना ही देते हैं, परन्तु सिखी में दिया उसी मकसद व् नियत में काम आता है जिसके लिए दिया जाता है; उदाहरणार्थ किसान आंदोलन व् कोरोना महामारी| जबकि धर्म के नाम पर आप जिन नर-पिशाचों को दान दे रहे हैं; यही आपकी सबसे बड़ी दुर्गति की वजहें हैं| ना आपके दान से आपका यश बढ़ता, ना मानवता की सेवा में ये उसको लगाते|
Sunday, 2 May 2021
2 मई के चुनाव नतीजों के बाद, किसानों पर ट्राई होगा धर्म की अफीम का इमोशनल कार्ड!
किसान नेताओं पर अब यह धर्म व् धर्मगुरुओं का इमोशनल ट्रैप फिंकवाने का पैंतरा चलने की ताक में रहेंगे; खासकर तथाकथित धर्म की अफीम सूंघे हुए, पीछे बीजेपी को वोट कर चुके व् संघी बैकग्राउंड के नेताओं के जरिए| ठोड्डी पकड़ते हुए, सत्यार्थ प्रकाश वाले "जाट जी" की स्तुति वाले ग्यारहवें सम्मुलास की भांति कहेंगे कि, "अगर सब संसार जाट जी जैसा मानवीय हो जाए तो संसार से पाखंडलीला खत्म हो जाए व् पंडे भूखे मर जाएँ"| अबकी ऐसी कोई बात आवे तो इनको बोलना कि "हम कौन होते हैं आपको खत्म करने वाले, "गीता ज्ञान" की घूंटी पियो-पढ़ो और कर्म करो; कर्म करने से कौन भूखा मरा भला"? तुम ही कहते हो ना कि "कर्म किए जा फल की चिंता ना कर रे इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान; ये है गीता का ज्ञान"? तो लागू करो इसको पहले खुद पे|