Protection of any business, or product is against basic economics and market.
खेती मूल है मेरे भाई।
देश की सारी ईकोनामी और मार्किट खेती पर ही टिकी हुई है। बाजारों में यदि लोग नहीं जायेंगे तो दुकानदार अपने सामान और सर्विस को भला किसे बेचेंगे।
रही बात प्रोटेक्शन की व्यवस्था ने 16 लाख करोड़ रुपये के कर्जे/ देनदारियाँ बैंकों के माध्यम से इंडस्ट्रियल सेक्टर की माफ़ की हैं। ताकि इंडस्ट्री चलती रहे और लोगों की व्यवस्था बनी रहे।
यहाँ कोई प्रोटेक्शन नहीं मांग रहा है यहाँ बात वैल्यूएशन की है जिसपर सभी कंपनियां टिकी हुई हैं और उसी के लिए दिन रात खटती और मरती हैं।
उत्पादक भी यही कह रहा है कि मेरे उत्पाद की मिनिमम कीमत तो तय कर दो। जैसे टमाटर की कीमत पांच रुपये किलो, दूध की चालीस रुपये किलो तय कर दो और उसे लीगल बना दो।
सरकार शराब की कीमतों को भी तो इंफोर्स करती है। एक तय सीमा से नीचे नहीं आने देती।
How many farmers govt will protect??milk? Poultry? Vegetables??
सभी उत्पादकों को प्रोटेक्शन नहीं उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिलना ही चाहिए ताकि देश की ईकोनामी का सर्कल पूरा घूमे। उसमें सभी लोग शामिल हों।
Why others working class is secondary citizen then... protect my factory also if it goes to less?? Where to stop??
किसने कहा मेरे भाई वर्किंग क्लास सेकेंडरी सिटीजन है। क्या उत्पादक देश की नॉन वर्किंग क्लास है। सरकार नौकरी पेशा व्यक्तियों को DC रेट, EPF, ESI, बोनस, आदि देकर प्रोटेक्शन ही तो देती है। इंप्लॉयर कंट्रीबयूशन के बराबर सरकार ही तो जमा करवाती है। फिर मैटरनिटि लीव के पैसे भी तो सरकार देती है। EPF का पूरा कानून देखो और समझो मेरे भाई देश के सभी वर्किंग क्लास में कवर्ड है।
शॉप एंड एस्ताब्लिशेमेंट एक्ट में एम्प्लॉयी को कंप्लसरी पेड़ लीव का प्रावधान भी तो सरकारी प्रोटेक्शन है मेरे भाई।
रोहतक में दंगे हुए थे दुकाने जला दी गयी थी सरकार ने एक एक दुकानदार दो उसके नुक्सान के मुताबिक पैसे दिये थे। वो भी तो सरकारी प्रोटेक्शन ही है मेरे भाई।
A labor on the road(India has many more in number and will have many in number till the country is developed)needs more social security than these farmers .
EPF और ESI में सारी इंडस्ट्रियल लेबर कवर्ड है मेरे भाई।
यहाँ तक कि घर में काम करने वाली बाई के लिए भी पोस्टल डिपार्टमेंट की इंश्योरेंस की स्कीम है जिसमें साल के तीन सौ रुपये प्रीमियम पर पाँच लाख तक का रिस्क कवर मिलता है। इसको पॉपुलर बनाने के लिए PM साहेब खुद अपील कर चुके हैं लोग जिनके घरों में महिलाएं झाड़ू चौका बर्तन करती हैं उन्हें वो इंश्योरेंस पॉलिसी गिफ्ट करें।
Why we need so many farmers ?? when the economy is growing from agrarian to service and manufacturing .
सोनू मेरे भाई खेती प्रोफेशन नहीं लाइफ स्टाइल है। जहाँ से किसान और जवान दोनों पैदा होते जो देश का स्टील हैं। पचास लाख के लगभग जो फौज और पैरा मिलिट्री में हैं 99% के लगभग किसानों के घरों के ही बच्चे हैं।
जिस ग्रोविंग इकोनामी की बात आप कर रहे हैं ना वो सिर्फ झाग है एक मिनट में ढुसस हो जाती है। करोना काल में हमें रोटी सब्जी सही समय पर तभी मिल पा रही थी जब खेती किसानी और उसके सिस्टम ठीक से काम कर रहे थे।
किसानी आज भी सबसे बड़ा इंप्लॉयमेंट देने वाला सेक्टर है जो लोगों को एंगेज किये हुए है।
Gdp contribution I quite less vs their number.
ईब GDP की सुन ले मेरे भाई। एक पेड़ जो फल ऑक्सीजन पानी छाया जीवन सब दे रहा होता है तो हमारे इकॉनॉमिस्ट GDP में उसका कोई कांट्रीबयूशन नहीं मानते। लेकिन जब वो काट दिया जाता है तो उसकी लकड़ी को GDP का हिस्सा मान लेते हैं।
मेरे भाई हमारे फार्मूले गलत हैं इसीलिए हमारे उतर भी गलत निकल रहे हैं।
They don't want capital, technology to come in this field, which in short term may feel them in secure but actually is the only way to increase productivity and income. One can improve on numbers ,quality and efficiency too.
मेरे भाई वो MSP के माध्यम से कैपिटल ही तो मांग रहे हैं। प्रोडक्विटी से इनकम लिंक नहीं है मेरे भाई। इनकम का लिंक रेट से है। साढ़े ग्यारह टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन है पंजाब में गेहूं और धान सालाना और इससे आगे जाना प्रकृति से खिलवाड करना ही होगा।
ये नम्बर्स वाली बात आपकी सही है सोनू भाई, MSP को लीगल बाइंडिंग करवा के नम्बर ही इंप्रूव करने की कोशिश है।
कवालिटि वाली बात भी आपकी ठीक है।
Every one has to compete in market economy and that's only way of survival.
ये हो हल्ला जो हो रहा है, बातें चल रही हैं, आप भी सोच रहे हैं TV रेडियो सब जगह विमर्श चल रहे हैं। Yeh सभी कम्पीटिशन का ही हिस्सा है।
खेती किसानी जीवन शैली को बचाने का कंपिटीशन। हमारे देश में जो शांति का स्वभाव है उसके मूल आधार में सात्विकता है जो खेती किसानी की जीवन शैली से आती है।
अन्यथा शराबी कबाबी जीवन शैली तो पूरी दुनिया में क्या गुल खिला रही है आंकड़े सभी के सामने ही हैं।
एक बात मैं और रखना चाहता हूँ सोनू भाई इस दुनिया में जितनी भी जगमग है उसका करंट खेतों से ही आता है उसका बिल किसान और उसका सहायक ही भरता है। मैंने खूब अच्छे से स्टडी की हुई है।
उदहारण के तौर पर जींद जिले का ईग्राह गाँव सुबह सात बजे से पहले पहले बीस हजार रुपये की तो बस बीड़ी बीड़ी पी जाता है। बाकी दिन का हिसाब आप लगा लिजिये।
एक एक गाँव करोड़ों रुपये का उपभोग सुबह से शाम तक कर देता है।
खूब घणे सारे सवाल पूछने के लिए सोनू भाई का हार्दिक धन्यवाद।