Thursday, 31 October 2024

उज्जड़ कुआ बाट देखरया नेज्जू की पनिहारी की।

 उज्जड़ कुआ बाट देखरया नेज्जू की पनिहारी की।

ल्या री सासू दे दे झाकरी ,भर लाऊं मैं पाणी की ।
सच्चे घोट्टे की काढ चूंदड़ी, कंद का दामण भारी दे दे
टूम ठेकरी गळ की गळसरी,गात्ती-पात्ती सारी दे दे।
हाथां के हथफूल काढ दे,जूती पै फुलकारी दे
पिंडी ऊपर मोर मोरणी , कड़ी छैलकड़े भारी दे दे।
नाड़ा दे घूंघरूआं का, तागड़ी मेरी प्यारी दे दे
आंख्या पर दो तिल खिणवादे , ठोड्डी पै टिकारी दे दे।
ऊंचा चूंडा बंधवा दे मेरा नाई की न बुलवा कै
चूंडे ऊपर लगा बोरला मोती मणिए जड़वा कै।
बाळां के मैं किलफ लगा चाँदी की देखै बणवा कै
धोळा कुड़ता पहरूंगी आजदर्जी के पै सिमवा कै।
पाँच शेर की टूम टमोळी आज पहरा मनै तुलवा कैं
संगी सवेहली जेठाणी मेरी देख मन्नै पड़ैं गस खा कैं।
कान कै पाच्छै कर काळा टीका
ना लगै टोक किसे स्याणी की
ल्या री सासू दे दे झाकरी, भर लाऊं मैं पाणी की ।

Sunita करोथवाल

Monday, 28 October 2024

डेह जाट - आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं!

इस बार मेवात क्षेत्र से जो तीन मुस्लिम विधायक बने हैं उनमें से दो आफताब अहमद व मामन खान जाट जाति से हैं, पर इस ओर शायद ही किसी का ध्यान गया हो | इसका कारण है धर्म। नस्ली भाईचारे के बीच धर्म एक बहुत बड़ी दिवार है, जोकि दोनों तरफ से ही खड़ीं की जाती है। अगर कोई अपने को जाट का बेटा कह दे तो धर्मों के ठेकेदार तोहमत लगानी शुरू कर देते हैं, गुरु पीर पैगम्बरों की दुहाई देना शुरू कर देते हैं। लोग अपना कबीला बढ़ाते हैं, परन्तु जाट एक ऐसी जाति है जो अपना ही कबीला घटाने में विश्वास रखती है और इसीलिए देहात में एक आम कहावत है कि “जाटड़ा और काटड़ा (कट्टा) अपने को ही मारते हैं। रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम कहते हैं – ‘जट्स एंड संसार (मगरमच्छ) कबील गालदा‘ , यह हमारी कौम की कमजोरी है। हमारे विरोधी सब अवसरों पर इसका लाभ उठाते हैं।

“ का , कबूतर , कम्बो कबील पालदा ,
जाट , मया , संसार कबील गालदा “
बिलकुल सही कहा है, कौवा कबूतर आदि सब अपना कबीला पालते हैं, पर जाट, झोटा, मगरमच्छ ऐसे हैं जो अपने कबीले का ही नुकसान करते हैं। जाट दूसरों के बहकावे में आकर खुद को बांटता आया है। चौधरी छोटूराम एक ऐसे रहबर हुए जिसने इनको एक झंडे निचे एक किया था, इनको इनके एक्के इकलास की ताक़त का एहसास करवाया था। परन्तु अफ़सोस कि उनके जाने के बाद इन्होने बिखरने में महीने भी नहीं लगाये। मैं आज के हरियाणा की बात करूँ तो आज कुछ गिनती के ही लोगों को पता होगा कि हरियाणा के मेवात क्षेत्र में जो मुस्लिम हैं उनमें बहुल संख्या मुस्लिम जाटों की है। गिनती के लोग ही जानते हैं कि अलवर रजवाड़े के विरुद्ध जो आन्दोलन हुआ था वह यूनियनिस्ट पार्टी के चौधरी मोहम्मद यासीन खान की अगुवाई में हुआ था, वह कौन थे किस जाति किस गोत्र के थे? चौधरी मोहम्मद यासीन खान धैंगल 1936 में यूनियनिस्ट पार्टी से पंजाब अस्सेम्ब्ली के सदस्य भी बने थे और इनको चौधरी छोटूराम के 14 हनुमानों में से एक माना जाता था। चौधरी मोहम्मद यासीन खान डागर/धैंगल गोत्र के जाट थे और इन्हीं के पौत्र जाकिर हुसैन इस बार बीजेपी की तरफ से चुनावी मैदान में थे। जाकिर हुसैन चुनाव हार गए और कांग्रेस से आफ़ताब अहमद धैंगल (डागर) चुनाव जीते। ऐसे ही फिरोजपुर झिरका से कांग्रेस के उम्मीदवार मामन खान की जीत हुई। इनके बारे में भी लोग सिर्फ इतना ही जानते होंगे कि कोई मेव मुस्लमान होंगे। जबकि मामन खान भी जाट है और इनका गोत्र गोरवाल है।
धैंगल असल में डागर गोत्र की ही पाल/खाप बताई जाती है। बृज क्षेत्र में जिन जाटों ने धर्म परिवर्तन किया उन्हें डेह कहा जाने लगा। डेह यानि जो डह गया। 11 वीं सदी में मेवात क्षेत्र में लोगों ने इस्लाम अपनाना शुरू किया था। बृज क्षेत्र के डागर पाल के जिन जाटों ने इस्लाम अपनाया उन्हें डेह जाट कहना शुरू कर दिया। डागर पाल के इन मुस्लिम जाटों का गोत्र डागर से धीरे धीरे कब कैसे धैंगल हुआ इसकी जानकारी आज खुद इनके ही लोगों को बहुत कम है।| ऐसे ही मामन खान जिनका गोत्र गोरवाल है, इस गोरवाल का इतिहास यह बताया जाता कि इनकी वंशावली महाराजा सूरजमल से जाकर मिलती है। ऐसे ही हथीन से मरहूम जलेब खान विधायक होते थे, जिनके बेटे इजराइल ने इस बार कांग्रेस की टिकट पर हथीन से चुनाव लड़ा था। जलेब खान अक्सर कहते थे कि मैं रावत गोत्री जाट हूँ।
मेवात में मुस्लिम जाटों को डेह कहने का नुकसान ये हुआ कि अब इन्होने अपने मूल गोत्र की बजाए पाल/खाप के नाम पर ही गोत्र लिखने शुरू कर दिए, जैसे कि धैंगल ,छिरकलोत आदि। मेवात में पालों का नक्शा पोस्ट के साथ लगाया है। मेवात में सहरावत, तंवर, पंवार,देशवाल, डागर,बडगुर्जर आदि ऐसे कई मुस्लिम जाट गोत्रों के गाँव हैं जो साथ लगते पलवल क्षेत्र में हिन्दू जाट गोत्रों के गाँव हैं। ये डेह जैसे बेतुके शब्दों का पूरा-पूरा फायदा उठाया कुछ पोंगा-पंथी इतिहासकारों ने, इन्होने इन मेवाती जाटों के दिमाग में कुछ नया ही इतिहास डाल दिया, जिस कारण आज ये खुद अपने मूल से हटकर पोंगा-पंथी इतिहास का शिकार हो कर अपने मूल से कट चुके हैं। इस लेख में मेरे कहने का सार यह है कि कब तक आखिर ऐसे बंटे रहेंगे? जब रहबरे आज़म चौधरी छोटूराम की बात करते हो तो उनके सूत्र को भी समझो। कबीलदारी कैसे होती है यह सर छोटूराम के फलसफे से समझो, न कि कट्टर पोंगे-पंथियों के फलसफे से। कब तक इन पोंगे पंथियों की बातों में आकर डहते रहोगे? नस्ली इतिहाद ही हमारी असली ताकत है और यही हमारे रहबर चौधरी छोटूराम का सन्देश था। अगर दिल से रहबरे आज़म का सम्मान करते हो तो उनके सन्देश का भी सम्मान करो, वरना फिर उनके प्रति हमारा यह सम्मान सिर्फ ढोंग ही है और यह बात सभी के लिए हैं चाहे वह किसी भी आस्था को मानने वाला हो।
यूनियनिस्ट राकेश सिंह सांगवान

Wednesday, 23 October 2024

#जाट_के_खिलाफ_पैंतीस_बनाम_एक_क्यों___एक_विश्लेषण...

जिस जाति का आर्थिक प्रभुत्व नहीं होता, उसके खिलाफ कभी भी लामबंदी नहीं होती, चाहे उसकी संख्या कितनी भी क्यूं न हो। एक जाट ही नहीं राजपूतों के खिलाफ भी ध्रुवीकरण होता है, आप बाड़मेर, जैसलमेर, शिव ऐसी अनेक जगह देखेंगे जहां राजपूतों के खिलाफ ध्रुवीकरण होता है, हरियाणा में अटेली विधानसभा क्षेत्र देखिए, वहां यादवों के खिलाफ तगड़ा ध्रुवीकरण हुआ, हरियाणा के नांगल चौधरी में यादवों के खिलाफ तगड़ा ध्रुवीकरण हुआ और यह तो यदि कांग्रेस बादशाहपुर में किसी ब्राह्मण व रेवाड़ी में किसी बणिए को टिकट दे दे तो वहां भी तगड़ा ध्रुवीकरण हो जाए... तो जो भी जाति जिसके पास संसाधन होंगे, उसके खिलाफ ध्रुवीकरण होगा ही, यह अकेले जाटों की समस्या नहीं...


अगर हम मीणों की बात करें, तो उनके खिलाफ मीणा बहुल इलाकों में भी वैसा ध्रुवीकरण देखने को नहीं मिलता जैसा जाट इलाकों में जाटों के खिलाफ... क्यों? इसका कारण है, मीणा आपको नौकरियों में तो दिखेंगे, लेकिन अभी इनका बाजारों, दुकानों पर वैसा कब्जा नहीं है, जैसा जाटों का है। दौसा, सिकंदरा जैसे इलाकों में भी मीणाओं की कोई तगड़ी दुकानें नहीं मिलेंगी आपको, बिजनेस में कोई खास भागीदारी नहीं मिलेगी आपको मीणा लोगों की, यहां तक कि ये प्रोपर्टी डीलर भी नहीं हैं, प्रोपर्टी भी ये खरीद जरूर लेते हैं इनके अफसर, कर्मचारी वगैरह ऑनलाइन कहीं किसी कॉलोनी में कोई प्लॉट वगैरह, वो एक अलग बात है... लेकिन ये जाटों की तरह कोई कॉलोनाइजर हैं या इनका रियल एस्टेट का कोई बिजनेस है, ऐसा कोई लफड़ा नहीं है... जबकि जाट कॉलोनाइजर आपको हर छोटे-बड़े शहर में नजर आ जाएंगे, डीएलएफ, इंडिया बुल्स जैसी जाटों की रियल एस्टेट कंपनियां शेयर बाजार तक में लिस्टेड हैं... या कि दौसा से चलने वाली एसी कोच मीणा लोग चलाते हैं, ऐसा भी कुछ नहीं है जबकि इससे इतर जाट लोग ट्रांसपोर्ट के मामले में भी खासी दखल रखते हैं... एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स की बात करें तो आपको नीट-आईआईटी में बणियों के प्रभुत्व वाली एलन कोचिंग के पैरलल जाटों का आकाश एजुकेशनल इंस्टीट्यूट हर शहर में दिखेगा..., सीएलसी, गुरूकृपा जैसे छोटे-मोटे तो कई कोचिंग बन गए जाटों के... तो मीणा लोगों के खिलाफ ध्रुवीकरण इसलिए नहीं होता कि इनका सारा फोकस नौकरियों पर है... 


अब जाटों के साथ समस्या क्या है कि वो फर्नीचर की दुकान भी खोल लेगा, नाई का सैलून भी खोल लेगा, माली वाला काम भी कर लेगा (नर्सरी या सब्जी की दुकान), मिठाई की दुकान भी खोल लेगा,... तो मूल कारण यह है जाटों के विरोध का, जो भी जाति सामाजिक तौर पर, आर्थिक तौर पर वर्चस्वशाली होगी, उसका विरोध होगा ही... अब इससे इतर राजपूत आपको कहीं नहीं मिलेगा जो मिठाई की दुकान खोल लेगा या सब्जी की दुकान खोल लेगा तो राजपुरोहित से या माली से राजपूत का टकराव क्यों होगा? तो ये जो जाटों की समस्याएं हैं, वे आर्थिक वर्चस्व की समस्याएं हैं और ये रहेंगी ही, इस विरोध का अब कोई उपाय नहीं है, इसको आपको अब झेलना ही पड़ेगा, स्वीकार करना ही पड़ेगा...


मतलब बात आ गई दूसरों के अङने वाली, जैसे बणिए हैं, बाजार में हैं, अपना व्यापार कर रहे हैं, उनकी पुरानी दुकानें हैं... दूसरों के अङना कब होता है? जब आप उनके क्षेत्र में जाकर उनकी संपत्ति खरीदो... अब बणिए हैं तो वो अपनी जगह हैं, ऐसे थोड़े ही कर रहे हैं कि वो गांवों में आ गए, वहां जाटों की जमीनें खरीदने लग गये, ट्यूबवेल लगा लिए, ऐसा तो नहीं हुआ न, मतलब जो परंपरागत सामाजिक व्यवस्था है, आर्थिक व्यवस्था है, उसमें असंतुलन जाट पैदा कर रहे हैं, विरोध का मूल कारण यह है... और मुझे नहीं लगता कि इसका कोई इलाज भविष्य में निकलेगा...


इस विरोध से बचने का उपाय तो सिर्फ एक ही है कि या तो जाट भी 5-5 बच्चे पैदा करें, कोई पुचके बेच रहा, कोई बसों में खलासी बन रहा, इस तरह की जेनरेशन पैदा करो ‌या फिर वस्तुस्थिति स्वीकार कर लो...


बाकी जाट बोलने में अक्खड़ है, उस वजह से विरोध है, ऐसा कुछ नहीं है, वो चीजें तो बहुत पीछे छूट चुकी...

तब तक आप इस पुराणे इतिहास को महशुस करी - घेर

ग्रामीण भारत की घर घेर प्रणाली एक मजबूत सामाजिक व्यवस्था का आधार।

हरियाणा के भीतरी इलाकों में घुमने के बाद एक पुरातन व्यवस्था की ओर ध्यान गया जो इस इलाके से लेकर राजस्थान व उत्तरप्रदेश तक प्रचलित है।

रहने के लिए सब जगह जैसे घर होता है यहां घर के अलावा एक घेर भी होता है।

घर पर महिलाओं का अधिपत्य होता है जबकि घेर में पुरुष सत्ता का अधिपत्य होता है।

घेर में उठने बैठने बातें करने और स्वतंत्र रूप से आने जाने की समाजिक सुविधा होती है।


घेर और घर के बीच में एक लॉजिस्टिक सप्लाई लाइन होती है जिसे अक्सर युवा मैनेज करते हैं। चाय खाना जैसे जिसकी जरूरत होती है युवा दौड़ लगाते रहते हैं।

जिन जातियों समाजों ने घर घेर की व्यवस्था बनाई हुई है वो समाजिक रूप से ज्यादा समृद्ध है। उनकी सामाजिक बॉन्डिंग बाजारवाद के इस युग में भी बची हुई है कायम है और मजबूत है।

घर में आने जाने से बाहरी लोग हमेशा परहेज ही करते हैं क्योंकि हमारी संस्कृति ही ऐसी है इसीलिए सब लोग निर्बाध रूप से आ जा सके तो घर के एक्सटेंडेड वर्जन घेर का आविष्कार किया गया था।

कुछ दिन पहले मे जीद जिले म एक मित्र के घेर में रुके था जहां उनके पिता जी और चाचा जी व उसके  मित्रों  से भी मुलाकात हुई थी।

चाय के दौर चलते रहे और हंसी मजाक ठठा भी खूब हुआ।

घेर में आम तौर पर पशु भी होते हैं जहां उनका बेहतर ध्यान रखा जाता है।

मित्र के पिता जी ने आज के मॉडर्न दौर में घेर की प्रासंगिकता पर बात हुई तो उन्होंने बताया कि फ्लैट सिस्टम या एकल घर प्रणाली में जहां घेर नहीं होता है वहां महिलाओं और पुरुषों को एक ही छत के नीचे सारा दिन रहना पड़ता है तो वे ज्यादा खटपट और खिंचाव को महसूस करते हैं।

हम सारा दिन घेर में रहते हैं वहीं से अपने सारे प्रोफेशनल और सोशल अफेयर्स मैनेज करते हैं जिससे घर पर अनावश्यक साईकोलॉजिकल दबाव नहीं बनता है और भाईचारा भी बेहतर मजबूत होता है।

घेर का कंट्रोल सीनियर बुजुर्गों के हाथ में रहता है छोटे बालकों की वहां ट्रेनिंग चलती रहती है। घेर के सभी काम बालकों को सीनियर्स की देख रेख में करने होते हैं


घेर के बिना घर मुझे अधूरे जैसा लगने लगा है।

आज से अगले 10 दिन तक छत्तीसगढ मे कुछ भाइयो से उनके फार्म व घेर पर मुलाकात करने की कोशिश करुगा 

सब भाइयो को नमस्कार राम राम  🙏 सतीश दलाल 🙏

Tuesday, 22 October 2024

हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी!

जब हम छोटे थे तो हमारे घर में चार धुंए की फैक्टरियां थी। उनमें से एक तो पार्ट टाइम थी। यानी चूल्हे पर सुबह- शाम खाना और रोटियां बनती थी। दूसरी फैक्ट्री होती थी, जिसमें गर्म होने के लिए दूध रखते थे, वह लगभग 8 घण्टे धुंआ छोड़ती थी। तीसरी फैक्ट्री थी, जिस पर पशुओं के लिए बिनोले पकते थे। और चौथी फैक्ट्री थी, जिसमें सभी के लिए पानी गर्म होता था। इसके इलावा सर्दियों में गर्मी के लिए खूब भूसा जलाया जाता था। इसके इलावा पशुओं के मच्छरों से बचाव के लिए भी धुआं करते थे। इसके इलावा धान की पैराली भी जलती थी। इसके इलावा, खास कर आज से पंद्रह दिन पहले, कोल्हू भी चलने लगते थे, और वहाँ दिन रात गुड़ पकता था। औऱ ऐसी फैक्टरियाँ घर- घर होती थी। यानी एक गांव में हजारों फैक्टरियाँ ,और अकेले हरियाणा में लगभग 6600 गांव और शायद 9000 के करीब पंजाब में।

लेकिन किसी ने गांव, देहात, किसान को प्रदूषण के लिए आरोपित नही किया। अब लगभग देहात के सभी धुंआ उद्योग बन्द हो चुके हैं। केवल एक पराली जलाते हैं लेकिन इन हराम खोरों ने किसान को बदनाम कर के रख दिया। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।सारा प्रदूषण केवल और केवल इंडस्ट्री/उद्योग/ फैक्ट्री से होता और बदनाम गरीब किसान को करते हैं। और ऐसे ही ये कर्णधार हैं, जिनको हम ही चुन कर भेजते हैं। और ज्यादातर हैं भी गांव देहात से, लेकीन चु भी नही करते।
Dr Mahipal Gill

लेवा पटेल, कड़वा पटेल!

गुजरात के कड़वा पटेल और लेवा पटेलो से सम्बंधित Pratap Fauzdar जी की एक पोस्ट पढ़ी। फ़ौजदार जी की पोस्ट से मुझे राजकोट के विठलभाई जी हिरपरा जी की मुलाक़ात याद आ गई। विठलभाई हिरपरा जी लेवा पटेल हैं और गुजरात शिक्षा विभाग से बीओ या डीओ की पोस्ट से रिटायर हुए हैं।


2011-12 की बात है, मैं गुड़गाँव के सेक्टर 56 में केंद्रीय विहार हाउसिंग सॉसायटी के सामने की गली में रहता था। उन दिनों विठलभाई पटेल जी अपने बेटे Ketan Hirpara से मिलने गुड़गाँव आए हुए थे। केतनभाई केंद्रीय विहार में रहते थे। केंद्रीय विहार सॉसायटी के मुख्य गेट के सामने एक मिश्रा चाय वाला था। विठल जी उन मिश्रा चायवाले के पास चाय पीने गए और मिश्रा से पूछा कि सुना है हरयाणा में जाट बहुत हैं, मुझे किसी जाट से मिलवाओ। मिश्रा ने कहा, आप गुजरात के पटेल हैं, आपको जाट से मिलकर क्या करना है। विठल जी ने कहा, हम भी जाट ही हैं। इन दोनों की ये वार्तालाप चल ही रही थी कि वहाँ समर कादियान भाई चाय पीने पहुँच गया। मिश्रा ने दोनों की मुलाक़ात करवाई। समर भाई विठल जी को मेरे पास ले आए, बताया कि विठल जी गुजरात से हैं और कह रहें हैं कि ये भी जाट हैं, जाटों से मुलाक़ात की इच्छा है। तब विठल जी से लेवा पटेलों के गोत्रों, रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से बात हुई। लाहौर से आए थे तो नाम लेवा पड़ा। तब मुझे पहली बार पता चला था कि गुजरात में पटेल दो बड़े धड़े हैं, कड़वा पटेल और लेवा पटेल, कड़वा पटेल ख़ुद को गुर्जर शाखा का मानते हैं तो लेवा पटेल जाट। विठल जी के ससुर सांसद थे और वो चौधरी चरण सिंह और चौधरी देवी लाल के काफ़ी क़रीबी थे। विठल जी ने बताया कि जब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने तब चौधरी साहब ने कहा कि हम एक हैं, और इसी बात पर गुजरात के पटेल सांसदों ने श्री मोररजीभाई देसाई के साथ की बजाए चौधरी चरण सिंह का साथ दिया था। उसके बाद जब चौधरी देवी लाल केंद्र में गए तब चौधरी देवी लाल का साथ दिया।

फोटो 1990 की है। फोटो में विठलभाई पटेल जी के छोटे भाई Rameshbhai Bachubhai Hirpara चौधरी देवी लाल जी को फूलों की माला पहना रहें हैं।

ख़ैर, इतना पक्का है कि कड़वा पटेल और लेवा पटेल दोनों किसान क़ौमें हैं और इनका सम्बंध जाट व गुर्जरों से जरूर हैं। वक़्त के साथ धीरे धीरे अलग होते गए।

By Rakesh Sangwan



Monday, 21 October 2024

आज जो प्लेन जमीन आपको दिखाई देती हैं।

जो काफी लोगों को तकलीफ़ भी देती हैं।

आज से #500 .,700 साल पहले ये ऐसी नहीं थी। ऊंचे नीचे टीले थे, जिसे हमारे #पूर्वजों ने #बैलों_से_जोत के समतल किया है।
ये जमीन किसी #नवाब_राजा ने जागीर में नहीं दी है, ये कमाई गई है।और जमीनें तो सभी के पास थी, अगर आज आपके पास नहीं बची है तो अपने #पूर्वजों से पता कीजिए की क्या किया उन्होनें अपनी जमीन का।
आज तो #ट्रैक्टर_और_साधनों का ज़माना है, सोच के देखिए क्या संघर्ष किया होगा उन पीढ़ियों ने जिन्होंने #बैलों_से_खेती की है। किसान खुद भी #बैल_की_तरह अपने आप को जोत में जोड़ देता था,#कंधे_पर_हड्डी 4 इंच उभर आती थी, कमर कुबड़ी हो जाती थी, #कुएं_से_पानी निकालने के लिए पूरे #परिवार_को_ऊंट की तरह काम करना होता था, #नहरों_रजवाहों का पानी चलाने के लिए हफ्तों घर जाना नसीब नहीं होता था।
यहां आकर 200 rs के नेट पैक के माध्यम से कुछ भी बकवास करना तो काफी सरल है।
Andy maan

Sunday, 20 October 2024

Jat and Festival Economy!

 जब हम भाई बहन टीवी में किसी व्रत या त्योहार का सेलिब्रेशन देख उत्साहित होते तो हमारी माँ डाँट लगाते हुए कहतीं, “ये सब बाहमन बनिया के काम हैं.”

जवान हुआ और यूनिवर्सिटी में चार अक्षर सीख आया तो मैंने माँ को जातिवादी डिक्लेअर करते हुए कहा, “आप हर बात में दूसरी जातियों को गालियाँ क्यों निकाल फेंकती हैं. त्योहार तो त्योहार होता है. क्या बनिये का क्या बाहमन का क्या जाट का.”
वह कुछ देर चुप रहीं. फिर बड़ी सहजता से बोलीं, “हम वे त्योहार नहीं मनाते जो फसल कटने के बाद आते हैं. वे हाथ आयी पूँजी को खर्च करवाने वाले रिवाजों के साथ आते हैं. हम वे त्योहार मनाते हैं जो फसल जुताई और पकाई के समय आते हैं. ताकि हम फसलों के उगने और फिर पकने का उत्सव मना सकें. बाहमन बनिये का तो मैं इसलिए कह देती हूँ क्योंकि इनके पास खर्च करने के लिए पैसे होते हैं. दान-पुन करने के भी. नये लत्ते कपड़े ख़रीदने के भी. किसी से लिया देयी (उपहार देने लेने) करने के भी. ग़रीब का एक ही त्योहार होता है, जो कमाया है वो बच जाए. ताकि अड़ी-भीड़ में उधार न लेना पड़े.”
मैंने उन्हें जात पर कमेंट करने पर टोका तो वह आर्थिकता पर आ गयीं. देसी हिसाब से कमाई बचाने का गणित समझाने लगीं. बाज़ार की चालाकी समझाने लगीं. फिर कहने लगीं, “ग़रीब की के (क्या) जात. ग़रीब तो बाहमन भी दुखी अर जाट भी.”
माँ अब दुनिया में नहीं है, लेकिन अब भी वे त्योहार नहीं मना पाता जिनमें दस पाँच हज़ार खर्च होते हों, जबकि इतना खर्च कर सकता हूँ. इतने तो माँ भी खर्च कर सकती थीं, लेकिन उनकी सास यानी मेरी दादी की ग़रीबी ने उन्हें खूब ही कंजूस बना दिया था. किसी त्योहार पर उन्हें पैसे खर्च करते नहीं देखा. चूरमे या खीर में ही बेवकूफ बना लेती थीं हमें.

Journalist Mandeep Punia

Other side of Karwa Chauth

 ऐतिहासिक तौर पर जिन समाजों में विधवा औरत को पुनर्विवाह की इजादत नहीं रही है, जिनमें विधवा औरत को मनहूस बता के काल-कोठरों में रखने की रीत रही है व् जिन समाजों में विधवा औरत को अपशकुनी मान ब्याह-शादी जैसे पारिवारिक मौकों से घरों में दूर रखा जाता है; जहाँ सती-प्रथा व् जोहर-प्रथा रही हैं; उन समाजों का त्यौहार रहा है "करवा-चौथ"| उन समाजों की औरतें उनके यहाँ की विधवा औरतों के दयनीय हालात देख के, उनके वहां की विधवा वाली जिंदगी ना जीनी पड़ जाए; इसलिए डर के मारे यह त्यौहार मनाती हैं| खाप-खेड़े-खेतों की उदारवादी जमींदारी मानने वाले समाजों में तो औरत पर यह सब जुल्म व् भेदभाव रहे ही नहीं कभी| इनके यहाँ तो ऐसे सिस्टम रहे कि जिनके चलते कहवाते रही कि, "जाटणी कभी विधवा नहीं होती"; जिनका ब्याह के वक्त ही यह सीटनें बोल के भय 'विधवा-की-उपविदित-दर्दनाक-जिंदगी-जीने' का भय निकाल के विदा किया जाता रहा है कि, "लाडो हे ले ले फेरे, यू मर गया तो और भतेरे"| 


हमें दिक्क़त नहीं, कि कौन समाज इस त्यौहार को मनाते हैं, हो सकता है उनके पास इसको अच्छा बताने के बेहतर कारण भी मिल जाएं; परन्तु अगर अपनी कल्चर-किनशिप की इन थ्योरियों को समझे बिना इन त्योहारों मनाओगे तो 35 बनाम 1 में भी फंसोगे व् कंधे से ऊपर कमजोर भी कहे जाओगे| क्योंकि कॉपीराइटेड त्यौहार तो तुम्हारा यह है नहीं, इम्पोर्टेड त्यौहार है व् इम्पोर्टेड त्यौहार बनाम कॉपीराइटेड त्यौहार कौन समाज कितने मनाता है यह भी एक पैमाना है, भारतीय समाज में आपकी कंधे से ऊपर की मजबूती मापने का| 


और ऊपर से हास्यास्पद यह भी कि "आज जिस चाँद में पति ढूंढेंगी, कल उसी में बच्चों को चंदा-मामा भी दिखाएंगी"| फिर ही जो जहाँ खुश हो, वह रहे! परन्तु हमारे लिए यह औरत के अंदर भय संचालित करने, उसको और ज्यादा नाजुक बनाने का तंत्र ज्यादा है; उसको मर्दवाद में धकेलने का मोहब्ब्ती लहजा है|


Friday, 18 October 2024

धुर्र फिटे मुंह तेरा, यह दुःख कम क्यों नहीं होता रे - ये जाट तो यहाँ भी हाथ मार रहे हैं

"धुर्र फिटे मुंह तेरा, यह दुःख कम क्यों नहीं होता रे - ये जाट तो यहाँ भी हाथ मार रहे हैं" - तथाकथित 35 बनाम 1 के पटे पे चढ़ के बीजेपी को वोट देने वाले एक चिंटू का दर्द!


निसंदेह 2014 के बाद कल कोई रेगुलर भर्ती की बीजेपी ने हरयाणा में, C व् D ग्रुप में 25000 लोगों की| और इसमें भी 5435 जाट लग गए 21.7% लगभग हरयाणा में इनकी जनसंख्या के अनुपात के नजदीक ही मानिये जो कि 24-25% बताया जाता है, यादव भाई भी लगे 1242 (लगभग 5%, यादव भाईयों की हरयाणा में जनसंख्या है 8% के लगभग)| 


ये बीजेपी वाले 35 बनाम 1 की नफरत पे सवार हो इनको वोट देने वालों का सरकार बनते ही पहले ही दिन से मजाक लग गए बनाने? इतने जाट लगाने पे इनको तो कोई जाटराज, जाटों की सरकार कह के भी नहीं कोस सकता; जो कि अगर इतने जाट, कांग्रेस या इनेलो सरकार में लगे होते तो हर 35 बनाम 1 की बीमारी से ग्रस्त चिंटू "जाटराज-जाटराज" चिल्ला रहा होता!


परन्तु इस सब के बीच एक गंभीर समस्या बीजेपी दे रही है हरयाणा को; जिस पर इस हर 35 बनाम 1 की नफरत में सुलग रहे चिंटू को सोचनी होगी; और वह यह कि 129 जजों की भर्ती में 80% से भी ज्यादा बाहर के लगाए बता जा रहे हैं और उधर एक और दूसरी भर्ती में BDPO की 8 पोस्ट, 7 भर्ती किए, जिसमें 4 बाहर के, 3 हरयाणा के। तुम हरयाणवी ऐसे ही बीजेपी के दिए इस 35 बनाम 1 के नफरती शिगूफे में टूल-टूल इनकी सरकार बनवाते रहना; और इस तरह यह एक दिन तुम्हें अंग्रेजों के जमाने में ले जाएंगे, जहाँ A व् B ग्रेड जॉब पे अंग्रेज होते थे व् बाकी पे भारतीय; ऐसे तुम हरयाणवी होने वाले हो, A व् B ग्रेड जॉब पे गैर-हरयाणवी व् तुम हरयाणवी सिर्फ C व् D ग्रेड पे|

Sunday, 13 October 2024

मां बता रही हैं कि दादी के जमाने में रिश्ता करने से पहले!

लड़की वाले लड़के वालों के खेत देखकर आते और खेत में चिंटियों के बिल देखते इससे अनुमान लगाते घर खाता पिता है।घर पर आकर बटोड़ा(पशुओं के गोबर के गोसे से बना) देखकर यह अनुमान लगाते कि गृहिणी चतर व मेहनती है।यानि इस घर में सब कुछ मिलेगा।अपनी बेटी को उस घर में ब्याह देते।

उस समय की जरूरत के हिसाब से यह लोजिकल लगा
लेकिन आजकल पढ लिख बच्चों की शादी के लिए कुंडली मिलान ,मुहूर्त और दिखावे पर खूब अनावश्यक खर्च फिर परिणाम????

Suman Krishnia

Friday, 11 October 2024

”थारा तो सिर्फ दीवा था! दीये में तेल और बत्ती तो मेरी आपणी थी” - लहरी सिंह

 तेल और बती तो मेरी आपणी थी “!🤣🤣🤣

वर्ष 1960, 61…. मैंने जाट हीरोज मेमोरियल एंगलो संस्कृत हायर सेकेंडरी स्कूल रोहतक आठवीं क्लास में दाखिला लिया कोई खास ज्ञान नहीं था, छोटे-छोटे बच्चे थे, हमने देखा कि प्रातः प्रातः सुबह एक नेताजी वाली ड्रेस में हाथ में छड़ी लिए हुए एक सुंदर व्यक्तित्व का धनी,उसके पीछे-पीछे एक बंदूक वाला खाकी ड्रेस में और उनके साथ एक जर्मन शेफर्ड अल्सेशन कुत्ता प्रतिदिन स्कूल के ग्राउंड में देखा करते थे।हम उस समय फुटबॉल ग्राउंड में जाते थे, बहुत वक्त से सुबह-सुबह हाथ अंधेरे प्रैक्टिस करते थे। उस समय मेरे साथी फुटबॉल खिलाड़ी महावीर हुड्डा, मेरे ही गांव का मेरा फुटबॉल गोलकीपर भगवान सिंह, मेरे साथ लडायन गांव का मेरा साथी खिलाड़ी राजरूप सिंह, अतर सिंह बाल्मीकि, ताले राम, वीरेंद्र सिंह, जगबीर खेड़ी आसरा, चांद, ओम प्रकाश, भगता भागी बिरोहड़, पहलवान वेदपाल मोर हमारी फुटबॉल टीम का बैक, दयानंद सांगवान, इत्यादि ग्राउंड में खेलते थे,और कभी-कभी हमारे कोच फुटबॉल इंचार्ज श्री रन सिंह नरवाल जी कथुरा उनसे ग्राउंड में खड़े होकर वार्तालाप किया करते थे। एक दिन हमने हमारे फुटबॉल इंचार्ज कोच से हिम्मत करके मैंने पूछ ही लिया कि गुरुजी यह कौन है? उस दिन हमने पहली दफा जाना उस व्यक्ति के बारे में! अब जब आज के नेताओं को देखते हैं तो वह शख्सियत बड़ी याद आती है काश कि आज के युग में भी जिंदा होती! उन दिनों में पार्टीयों को कोई नहीं पूछता था नेता के कार्यकलाप की ही प्रशंसा होती थी, आजकल कल के नेताओं की तरह नहीं कि जितना बड़ा बदमाश उतना अच्छा नेता?????
पोस्ट छोटूराम इरा में चौधरी लहरी सिंह की गिनती रोहतक जिले के प्रभावशाली नेऔर अग्रणी नेताओं मैं होती रही है!
असुलों के!सिद्धांतों के पक्के! मज़बूत इरादे!
1965 के भारत पाक युद्ध के परांत इंदिरा जी ने पंजाबी सूबे के मसले को सुलझाने के लिए सरदार हुकम सिंह की अध्यक्षता मैं एक कमेटी कांस्टिट्यूट की और इस कमेटी में हरयाणा के पक्ष के प्रतिनिधित्व के लिए चौधरी बंसीलाल और चौधरी लहरी सिंह को बतौर मेंबर रखा!
उस समय चौधरी बंसीलाल राज्य सभा के सदस्य थे और चौधरी लहरी सिंह जनसंघ के सिंबल ” दीये ” पर रोहतक संसदीय क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए थे!
पंजाबी सूबे की मांग के मामले में जनसंघ पार्टी की सोच अकालियों की सोच से भिन्न थी! अकाली अलग पंजाबी सूबे की मांग कर रहे थे और जनसंघ की मांग थी कि ” महापंजाब ” का गठन किया जाये जिसमें सिख अल्पमत में आ जाएँ और पंजाबी हिन्दू का बहुमत हो!
पर चौधरी लहरी सिंह की इस मामले में सोच अलग थी! उनकी शुरू से ही सोच थी कि अगर स्वतंत्र हरयाणा प्रदेश का गठन कर दिया जाये तो हरयाणा वासियों के हित अधिक सुरक्षित रहेंगे! अपनी इस सोच पर वो अडिग रहे और हुकमसिंह कमेटी में चौधरी लहरी सिंह ने अलग हरयाणा प्रदेश के गठन की मांग की! 👍👍👍
हालांकि उस दौर में बहुत से कोंग्रेसी भी अलग हरयाणा प्रदेश की मांग के बारे में मुखर नहीँ थे!🫢🫢🫢
चौधरी लहरी सिंह की इस सोच की, इस विचारधारा की, उस समय की जनसंघ पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने आलोचना की! उनका विरोध किया! उनको उलाहना दिया कि हमारे चुनाव चिन्ह दीये पर निर्वाचित हो हमारा ही विरोध!🫢🫢🫢
चौधरी लहरी सिंह बहुत ही सपष्ट, निर्भीक, मज़बूत जनाधार और सिद्धांतों के पक्के नेता थे!
उनका जवाब था!” थारा तो सिर्फ दीवा था! दीये में तेल और बत्ती तो मेरी आपणी थी!”
ज़ाहिर था चुनाव उन्होंने अपने जनाधार एवं लोकप्रियता के दम पर जीता था ना क़ि जनसंघ पार्टी के दम पर!
इतने निर्भीक थे हमारे पूर्वज़!
सलाम ऐसे निर्भीक और परिपक्व सोच के नेताओं को!
आज़के फसली बटेर इन बुज़ुर्गो से कोई प्रेरणा ले सकें तो उनका भी कल्याण हो जाये! उनके पाप कट जाएँ!
आज समय की मांग है की इन विदेशी यूरेशियन नस्ल के भारतवर्ष के झूठे, लुच्चे लफंगे, बदमाश, बलात्कारी, व्यभिचारी, दुराचारी, भ्रष्टाचारी शासको को इस देश से जड़ मूल से उखाड़ कर फेंकने की आवश्यकता है।

Thursday, 10 October 2024

ठगी बाजार की सैर!

सरकार बीजेपी की बनी है, कांग्रेस हारी है लेकिन कोई उत्सव बीजेपी भी नहीं मना पा रही है। पहली बार देख रहा हूं कि जो जीत गए है वो भी डर में है और जो हारे वो सदमे में हैं कैसे हारे। कल तक बीजेपी के लोग अपनी 20 सीट भी नहीं बता रहे थे और वो अपने नए नए नायक खडे कर रहे हैं, जिनको बीजेपी चुनाव में लाने तक में शर्म महसूस कर रही थी।

आज बीजेपी के पास सिर्फ नंबर हैं, सच्चाई ये है कि जितने वोट आपको लोगों ने दिए हैं उससे कहीं ज्यादा लोगों ने आपके खिलाफ वोट किया है। अकेले कांग्रेस को आपके बराबर के वोट मिले हैं। आप निर्दलीय को खडा करके, झूठे नैरेटिव बनाकर, अपनी खामियों को छिपाकर चुनाव जीते हैं। देवेंद्र कादियान, सावित्री जिंदल, राजेश जून आपकी छल प्रपंच की जीती जागती मिसालें हैं। आपके पास धनबल और छलबल था और उसे आपने जनबल को हरा दिया, बस ही है इस चुनाव का नतीजा।
बीजेपी की टोल आर्मी मुझ पर दबाव बना रही है, मुझे कोस रहे हैं कि मैं माहौल बीजेपी के खिलाफ बताता था? क्या गलत था? था, माहौल बीजेपी के खिलाफ था लेकिन बीजेपी ने लोगों से वोट की ठगी कि और वो लोग समझ नहीं पाए तो उसमें किसी गलती बताई जाएगी? बीजेपी के लोग खुद मान रहे थे कि लोग उनको नहीं चुनेंगे? बेचारे लोग ही नहीं समझ पाए तो उसमें भी हमारी गलती है क्या? चारसौ पार बीजेपी बोल रही थी कि हमारी सीट आएगी, कम आई तो प्रधानमँत्री ने देश से माफी मांगी थी क्या? क्या पोल वालों ने माफी मांगी है? क्या चैनल वालों ने माफी मांगी है?
कांग्रेस तो हारने ही लायक है, वो आपस में में ही लडते रहते हैं उनका तो हश्र ही यही होना है, लेकिन जो वोट की ठगी बीजेपी ने जनता के साथ की है उसका जवाब जनता मांगेंगी। बीजेपी से जो सवाल जनता के चुनाव से पहले खडे थे वो आज भी खडे हैं ज्यों के त्यों। क्या हालत होगी उस दलित वोटर की जो बात तो मनुवाद से लडने की करता है, लेकिन उसको चुनाव में दूसरी जाति का डर दिखाकर कथित मनुवादियों को ही वोट डलवा दिया गया। जब उसे होश आएगा तो चिंघाड मारकर रोएगा वो।
वो किसान अहीर बेचारा गंठे के साथ रोटी खाता है उसके बिगडैल बेटे सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ सवाल उठाने वाले को कोस रहे हैं, जबकि सच्चाई ये कि अहीर कम्यूनिटी के पल्ले भी कुछ नहीं आएगा क्योंकि राजा साहब की जिंदगी हमेशा ठाठ की रही है तुम्हें हाथ कुछ नहीं लगना।
मैनेजमेंट से बीजेपी जीती है लेकिन हरियाणा में कानून व्यवस्था, रोजगार, आधारभूत ढांचा, शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दे आज भी ज्यों के त्यों हैं। बीजेपी की टोल आर्मी मेरे पीछे लगाने से क्या मैं रूक सकता हूं? कांग्रेस मरे मर जाने दो, मैं हरियाणा का स्थाई विपक्ष हूं, मैं सवाल पूछूंगा? हर रोज पूछंगा, हर दिन पूछूंगा। सवाल पूछना काम है मेरा।
अरे मान लिया जाट मुख्यमंत्री नहीं बना लेकिन मूर्खों तुम्हें तो वही गंठा फोडकर रोटी खानी है। तुम कौनसे बिडला हो गए हो। जाट कम्यूनिटी तो अपनी जितनी जमीन उसके पास बची है केवल वही बचा ले गई तब भी उनका कुछ नहीं उखडा लेकिन तुम्हारा कुछ नहीं बचना है।
गोरख पांडे की एक कविता है
वे डरते हैं
किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे डरना बंद कर देंगे।

Farmers and Labourers unity and Haryana Election 2024

Farmers and Labourers मे एकता न होने के कारण कांग्रेस को इन सीटों का नुकसान हुआ है 👇👇👇👇👇


1• विधानसभा नरवाना - 


▪भाजपा उम्मीदवार को वोट मिले - 59474 ( 11499 से जीता ) 


▪कांग्रेस उम्मीदवार को वोट मिले 47975 ( 11499 से हार ) 


▪इनैलो को वोट मिले - 46303 


▪इनैलो + कांग्रेस = 47975 + 46303 = 94278 



94278 -  59474 = 34804 


▪अगर नरवाना के जाट एक होकर वोट करते तो भाजपा 100% हारती। नरवाना से।


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2• विधानसभा उचाना 


▪भाजपा को मिले वोट - 48968 ( 32 वोट से जीत ) 


▪कांग्रेस को मिले वोट - 48936 ( 32 वोट से हार ) 


▪निर्दलीय विरेन्द्र घोघडीयां को मिले वोट - 31456 

 

▪निर्दलीय विकास ( काला ) को मिले वोट - 13458 


▪निर्दलीय दिलबाग संडील को मिले वोट - लगभग 7500 


▪दुष्यंत को वोट मिले - लगभग 7500


31456+ 7500+7500+13458 = 59914 


▪लगभग 60,000 वोट खराब कर दिए जाटों ने अपने। 


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3• सफीदों विधानसभा 


▪भाजपा को कुल वोट- 58983

▪कांग्रेस को कुल वोट - 54946

▪भाजपा की जीत - 4037


▪आजाद को मिले वोट 👇

▪जसबीर देशवाल- 20114

▪बच्चन आर्य - 8807


8807 + 20114 = 28121 वोट जाटों ने अपने खराब किए। 


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4• लाडवा विधानसभा - 


▪अगर जाट और जट सिख यहां एकता दिखाते तो और अपने वोट न बांटते तो सीएम नायब सैनी भी अपनी सीट नही बचा पता।


▪भाजपा उम्मीदवार नायब सैनी को मिले वोट - 70177 


▪भाजपा की जीत 16054 वोट से- 


▪कांग्रेस उम्मीदवार मेवाराम को मिले वोट- 54123


▪इनैलो उम्मीदवार सपना बडशामी को मिले वोट - 7439


▪आप उम्मीदवार विक्रमजीत सिंह चीमा को मिले वोट - 11191 


▪जाटों ने वोट खराब करे - 7439+ 11191 =  18630 


▪अगर ये वोट का प्रयोग भाजपा को हराने के लिए करते तो नायब सैनी की 2000 से हार होती।


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5• विधानसभा बाढडा- 


▪भाजपा को मिले वोट - 59315


▪कांग्रेस को मिले वोट - 51739


▪आजाद उम्मीदवार सोमवीर घोसेला को मिले वोट - 26730


▪कांग्रेस 7585 वोट से हारी। 


▪अगर जाट अपने 26730 वोट खराब न करते तो बाढडा मे कांग्रेस जीतती।


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6• बरवाला विधानसभा  - भाजपा 26942 वोट से जीती। 

 

▪भाजपा को वोट मिले - 66843

▪कांग्रेस को वोट मिले - 39901

▪इनैलो को वोट मिले - 29055 


  ▪कांग्रेस + इनैलो = 39901+29055 = 68956 


अगर जाटों ने अपने वोट कांग्रेस और इनैलो मे न बांटे होते तो आराम से भाजपा हारती यहां से 


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7• गोहाना विधानसभा 


▪भाजपा जीती - 10429 से 


▪आजाद उम्मीदवार को वोट मिले 

▪हर्ष छिक्कारा - 14761 

▪राजबीर दहिया - 8824 


14761 + 8824 = 23585 


23585 मे से कम से कम 18000 जाट वोट थे जो जाटों ने आजाद उम्मीदवार वोट देकर खराब दिए।



8• पुंडरी विधानसभा 



▪भाजपा उम्मीदवार को मिले वोट -  42805


▪आजाद उम्मीदवार सतबीर भाणा को मिले वोट - 40608


▪आजाद उम्मीदवार सज्जन ढुल को मिले वोट - 5000


▪कांग्रेस को मिले वोट -  26341


▪इसके अलावा सिखों ने अपने उम्मीदवार गुरिंदर सिंह को 8100 वोट दिए। 


▪इस सीट पर भाजपा 2197 वोट से जीती है। अगर जाट और सिख अपने वोट एक जगह डालते। तो यहां भाजपा को हराकर आजाद उम्मीदवार सतबीर भाणा जीत सकता था।


इन जगह के पोलिंग बूथ पर पाई गई 99% बैटरी की मशीनें, 
जो की बदली गई।
*महेंद्रगढ़ _*
नारनौल_
पानीपत_
पानीपत सिटी_
अंबाला कैंट_
दादरी_
अटेली_
रेवाड़ी_
कोसली_
बरवाला_
स्वाभाविक रूप से मशीनों की बैटरी 60% से 70% के आसपास होनी चाहिए , ✅
क्योंकि मशीनों में पोलिंग हुई है।🤷🏻‍♂
पर इन जिलों में 99% वाली मशीनें कहा से आई ये बड़ा सवाल है।
क्या पहले ही मशीनें बदल दी गई थी ?

in seats par ye machines se jeete hain v 5 Sonipat, 1 Jhajjar, 4 Jind, 1 Dadri v 2 Bhiwani, baagiyon ki vajah se jeete hain. Congress ne ye baagi waqt rahte bitha liye hote to situation ye na hoti

yani total 24 seats BJP ko wo gai, jo usko jaani hi nahin thi, practically BJP 24 pe simat rahi thi

Tuesday, 8 October 2024

मेरे हिसाब से हरयाणा 2024 assembly polls में उथल-पुथल के यह कारण रहे

1 - कांग्रेस द्वारा इंडिया अलायन्स को सीटें देने की कंजूसी, 2-4 सीटों पर आप वाले भी उलझाए रखे जाते तो perception बनी रहती, सभी के साथ होने की

2 - कांग्रेस का पुराने घोड़ों पर हद से ज्यादा दांव, एक भी नहीं बदला

3 - बीजेपी का दलित में SC व् DSC का विभाजन

4 - रामरहीम फैक्टर 

5 - दोनों तरफ बीजेपी व् कांग्रेस निर्दलीय बागी फैक्टर

6 - 13 फरवरी 2023 से हरयाणा-पंजाब बॉर्डर्स पर लगवाए किसान धरनों के जरिए बीजेपी यह संदेश देने में कामयाब रही कि इनको हमने ठिकाने लगा दिया है; जबकि मैंने बिना पूरे SKM के इस आंदोलन को सिर्फ 2-4 सगंठनों द्वारा चलाने पे ही यह बात कह दी थी कि यह बीजेपी प्रायोजित है, हरयाणा इलेक्शन को देखते हुए

7 - सेंट्रल कांग्रेस द्वारा सीएम चेहरा घोषित ना करना

8 - जाट, नॉन-जाट इतना ज्यादा नहीं था, क्योंकि यह विगत लोकसभा चुनाव में ही लगभग ध्वस्त हो चुका था

9 - काउंटिंग के दिन इलेक्शन मशीनरी का भरपूर दुरूपयोग; ऐसा पहली बार हुआ जब से हरयाणा बना है कि 12 बजे तक जहाँ सब सीटों के रिजल्ट आ जाते थे, वहां शाम होने तक भी रिजल्ट्स पूरे नहीं हुए हैं

10 - किसान संगठनों द्वारा कोई एक रणनीतिक समर्थन बना के ना चलना व् ना ही कांग्रेस द्वारा किसान संघटनों से सही तालमेल बिठाना; एक-आध को भी सेट कर देते 1-2 सीटों पर तो किसान वोट में इतनी अफरातफरी, कहीं अतिआत्मविश्वास तो कहीं पशोपेश ना बना होता; जो कि गलत संदेश दे के गया!


Jai Yauddhey! - Phool Malik