Thursday, 30 June 2022

महाराष्ट्र एपिसोड!

इंडिया की पॉलिटिक्स दो तरीके की liasoning पर चलती है, एक इंटरनेशनल व् दूसरी इंटरनल|

इंडिया में international liasoning करने वाले आज़ादी से पहले मुख्यत: छह ग्रुप रहे हैं, जिनमें कि जैन ग्रुप (जैनियों का), हिन्दू महासभा ग्रुप (लिबरल ब्राह्मण-बनियों की लीडरशिप का), संघी ग्रुप (कंज़र्वेटिव ब्राह्मण-बनियों की लीडरशिप का), लेफ्ट ग्रुप, यूनियनिस्ट ग्रुप (खाप-खेड़े-खेतों की किनशिप वाली तमाम जाति-धर्मों का) व् मुस्लिम लीग ग्रुप होते थे| मुस्लिम ग्रुप आज़ादी के बाद बंटवारे के चलते बंट सा गया; यूनियनिस्ट ग्रुप, सर छोटूराम के बाद इसकी लिगेसी ढंग के हाथों में नहीं जाने के चलते लुप्तप्राय हो गया| संघी व् हिन्दू महासभा वाले धीरे-धीरे एक हो गए या ऊपरी तौर पर एक दिखते हैं| कुल मिला के आज के दिन international liasoning में जैनी व् संघी ही मुख्य दिखते हैं|
अब जब इस समीकरण को महाराष्ट्र के हिसाब से समझें तो एक पेंच और है| और वह है कायस्थों (ब्राह्मण से व्यापारी बना वर्ग) व् चितपावनी ब्राह्मणों की आपसी लड़ाई| बाल ठाकरे, कायस्थ हैं जबकि फडणवीस ग्रुप चितपावनी| यहाँ वह लोग ध्यान दें जिनको उनकी जाति या कौम के भीतर आपसी लड़ाई व् फूट से चिंता रहती है कि यह एक कब होंगे| रोळा एक होने का है ही नहीं, रोळा तो इस बात का है कि आप लोग आपस में एक कौम के आंतरिक लड़ते किसलिए हो, व्यक्तिगत सर ऊँचा रखने को या कौम का सर ऊँचा रखने को? खैर, महाराष्ट्र में जो भी हुआ परन्तु शारद पंवार नाम के मराठे का खौफ अभी भी कायम है, इसलिए बारहवीं पास फडणवीस को inter में दाखिला दिलवाया गया व् शिंदे एक मराठे को सीएम बनाया गया| एक हिसाब से मराठों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ क्योंकि उनको मराठा सीएम मिल गया| लेकिन इसमें जैनियों के जरिए यह फैसला हुआ है हमारे सूत्र बताते हैं|
जैनी व् संघियों में भी इंटरनल रस्साकसी है, जो सिर्फ उनको दिखेगी जो जैनियों को बारीकी से ऑब्ज़र्व कर रहे होंगे| आज का लब्बोलुआब यही है कि आज के दिन इंडियन पॉलिटिक्स में क्या होने वाला है उसके लिए संघी नहीं, बल्कि जैनियों की पॉलिटिक्स को समझिये| संघी, हरयाणवी भाषा में कहे जाने वाले "आडुओं" से ज्यादा कुछ नहीं| यह सिर्फ इमोशंस को एक्सप्लॉइट करना ज्यादा जानते हैं जबकि जैनी एक्सप्लोइटेड इमोशंस का अग्रिम इस्तेमाल जानते हैं| इसीलिए सारा संघ, मात्र 50 लाखी जैनी समुदाय के आगे कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं|
देखना यह योगी के पीएम बनने के सपने को भी 2024 आते-आते कैसे धराशायी करेंगे| अगला पीएम मोदी या शाह ही होना है या फिर कोई तीसरा ही चेहरा आएगा, योगी नहीं|
ऐसे में सर छोटूराम की आइडियोलॉजी वालों से अनुरोध है कि थारे उस पुरखे के खड़े किये उस इंटरनेशनल चैनल की कुछ सुध ले लो अगर कहीं अपना भी नाम चाहो तो; वरना करवाते रहना अपने साथ "बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना" वाली बार-बार|
जय यौधेय! - फूल मलिक

हेमराज डाकू (बाग्गी)!

एक रियल स्टोरी। 

हेमराज डाकू (बाग्गी)का (गोरा रंग अति सुन्दर कद 6'3")जन्म सन 1915 में जिला जींद के  मेहरडा गाँव में हरेराम के घर हुवा।ये मशहूर निघाइया(1856) की पांचवी पीढ़ी से थे।हेमराज की 3 बहनें छ्न्नो,धनकोर तीसरी का नाम याद नहीं है थी हेमराज के दो भाई दीवाना और भगत में से दीवाना काफी दबंग था अपने साथ काफी लठैत रखता था इनका परिवार काफी संपन था।इनका फ़ादर हरेराम 20,25 गांवो का चौधरी था। 

गांवों में कुछ बाह्मण भी रहते थे एक दीपा बाह्मण इनसे किसी डांगर की खरीद फरोख्त बाबत उलझ गया वो भी आछा संपन था उसने और उसके हमजातों ने मिलकर हेमराज के बाप हरेराम को मार दिया हेमराज बहुत सरीफ़ था इस घटना से पहले।उसके बाद हेमराज ने अपने गांव के सभी बाह्मणो का सफाया कर दिया तथा आस पास या हरयाणा के  गांवो से ये गूर्जरता तो जाती पूछता उसमें अगर कोई  बाह्मण मिला उसी को मार दिया करता।बाकी कई कहानियां हैं अलग अलग इलाकों की जो प्रचलित हैं।

अंत में 1955 में एक मुख्बिरी से हेमराज एक पुलिस मुठभेड़ में बूढ़ाखेडा गाँव में घिर गया उसने अपनी ही बंदूक से अपना जीवन समाप्त किया।

चेता किसान। (https://www.facebook.com/profile.php?id=100040322672354) 

Monday, 20 June 2022

अग्निवीर के बारे में कुछ बहम!

1) इससे आरएसएस के कैडर को ट्रैन किया जाएगा? ऐसा ही होता तो एनसीसी भी तो गोलियां चलाना सिखाती है, व् इतना ट्रेनिंग भी करती है कि 90% आरएसएस वाला तो उसी से थक के भाग खड़ा हो? या नहीं? तो 4 साल की फ़ौज वाली ट्रेनिंग में जायेंगे तो जरूर, पर वही जो जाते रहे हैं|

2) अडानी-अम्बानी या नेताओं आदि के सिक्योरिटी गार्ड बनेंगे: वह तो अभी भी बनते आ रहे हैं, बस जुल्म यह हुआ है कि पहले 37-40 की उम्र में जा के बनते थे अब 20-21 की उम्र में बनेंगे|
3) देशभक्ति की भावना को कोई फर्क नहीं पड़ेगा: बिलकुल पड़ेगा व् लुप्तप्राय हो जाएगी| विश्व का कोई भी रोजगार उठा के देख लो, लम्बी नौकरी में ही इंसान का अपनी जिम्मेदारी व् संस्था के प्रति लगाव व् समर्पण पैदा होता है| फ्रांस में तो प्राइवेट सेक्टर तक में सरकारी की तरह जॉब सिक्योर होती है, एक बार उस पर चढ़ गए तो कोई आपकी नौकरी नहीं छीन सकता, सिवाए आप दिवालिये व् जानबूझ के परफॉर्म करना छोड़ दो तो| यह पॉइंट सबसे खतरनाक होगा, इस पालिसी में| 17 साल न्यूनतम वाली नौकरी में फौजी स्थाई होते ही ब्याहा भी जाता था यानि 20-21 साल की उम्र में बंदा नौकरी व् शादी दोनों में सेटल, इससे उसका सिस्टम व् देश के प्रति मोह व् प्रतिबद्धता बढ़ती थी; देशभक्ति चरम छूती थी| और यह तभी होता है जब 17 साल वाली जॉब वाला स्थाईत्व हो यानि वो कहते हैं ना कि "भूखे पेट देशभक्ति नहीं होती"| 4 साल वाली में तो बंदा कहाँ इन बातों तक की भावना तक जा पाएगा, अपितु 2 साल होते ही दूसरी नौकरी व् ब्याह की चिंता में डिस्टर्ब रहेगा| यह बहुत घातक कदम में इस सरकार का; वह भी राष्ट्रभक्ति का दम भरने वाली सरकार का| ताज्जुब है राष्ट्रभक्ति रटने वाली सरकार को यह नहीं पता कि राष्ट्रभक्ति बना के कैसे रखी जाती है|
4) 25% में सब ईमानदारी से लिए जाएंगे| नहीं लिए जाएंगे, असली घपला ही यहाँ होगा| भाई-भतीजावाद, चाटुकारिता चरम पर बढ़ेगी, 25% में शामिल होने को| स्वछंद कर्मचारी का कल्चर खत्म करेगी यह योजना|
5) फौजियों की अर्निंग कैपेसिटी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा: पड़ेगा, 60 व् 70 हजार की सैलरी पर पहुँच कर, पेंशन समेत रिटायर होने वाले फौजियों का जमाना लद गया है इससे| कहाँ तो 2022 के पंजाब-यूपी आदि एलेक्शंस में सिविल जॉब्स में पेंशन स्कीम वापिस आ रही थी, कई राज्यों ने घोषणा भी कर दी थी; तो उसका पक्का इलाज बांधा गया है कि किसी को भी पेंशन नहीं दी जाए| फौजी तो गए ही इससे, साथ ही सिविल में भी देखना शायद ही कोई राज्य पेंशन की पुनर्बहाली की घोषणा करे| ऐसा किसी गुलाम स्टेट में ही हो सकता है, आज़ाद में नहीं| शायद ही दुनिया में ऐसा कोई देश हो, जो अपने कर्मचारियों को रिटायर पेंशन नहीं देता हो| इन दोनों ही बातों से आम फौजी की अर्निंग कैपेसिटी कभी भी 70 हजार महीना नहीं पहुँच पायेगी वरन इससे आधे के नीचे रह लेगा| इनकी कैपेसिटी आधी यानी कंस्यूमर कैपेसिटी आधी| जिससे ना सिर्फ फ़ौज को नुकसान होगा, आने वाले वक्त में कंस्यूमर कैपेसिटी आधी होने के चलते, बिज़नेस वालों का सामान भी आधा बिकेगा यानि बिज़नेस पर सीधा-सीधा असर| बिज़नेस वालों को इससे इसलिए फर्क नहीं पड़ता क्योंकि बिज़नेस का कल्चर ही "बड़ी मछली, छोटी को खाने वाला" होता है; तो रोड्स पर तो आएंगे परन्तु छोटे व् मझले व्यापारी| यानि इजराइल अमेरिका से अग्निवीर की कॉपी करने से पहले, वहां के छोटे व् मझले व्यापारी को कैसे बचा के रखा जाता है इसकी भी कॉपी करते तो अग्निवीर लागू करने की सोचते ही नहीं|

लेकिन लगता है मनुवाद इनके सर चढ़ कर बोल रहा है| अभी सचेत हो जाओ, यह हिन्दू राष्ट्र के नाम पर भी तुमको "मनुवाद" परोसने वाले हैं; कहीं कहो कि किसी ने चेताया नहीं था|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 19 June 2022

आंतरिक रोळा घर का हो या कौम का, गळी में लाने से सदा उलझता ही है, सुलझता नहीं!

बात 2017 की है: फरवरी 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन के बाद, जनवरी 2017 में इंडिया आया था तो आधी जनवरी व् पूरी फरवरी लगा के फरवरी 2016 मुद्दे पर विवेचना करने को एक-के-बाद एक चार खाप कॉन्फरेन्सेस करवाई थी व् शांति से निबटवाई| पहली रोहतक, दूसरी कुरुक्षेत्र, तीसरी दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के प्रांगण वाले लॉ कॉलेज में व् चौथी फिर से रोहतक ही|

इनमें से एक में भवन बुक करने में दिक्कत आई, वह भी वहां के स्थानीय खाप चौधरी साथ होते हुए, भवन भी कौम के नाम का ही था; परन्तु हमारी बात नहीं बनी तो हमने तुरताफुर्ति यूनिवर्सिटी कॉलेज में वह कांफ्रेंस करवाई|

परन्तु उस भवन की देखरेख करने वालों पर ना खुद क्रोधित हुआ व् ना जो मेरे साथ थे उनमें से किसी को होने दिया| सोशल मीडिया पर उनका मीडिया ट्रायल खोल के बैठने की तो सपने में भी नहीं आई|

बल्कि बैठ के उन वजहों पर विचारा गया कि यह नौबत क्यों आई, वह भी खाप तक के चौधरी साथ होते हुए| और कमी खुद की सैडुलिंग, नेटवर्किंग व् जरूरी कम्युनिकेशन में पाई गई| कुछ इशू कुछ स्थानीय लोगों के आपसी तालमेल में अहम् का भी पाया गया| परन्तु सबसे पहले खुद की तरफ से रही कमियां सुधारी गई| आपस में सर-जुड़वाए गए व् आगे इसका ध्यान रखवाया गया तो आगे के कार्यक्रमों में कभी भी नौबत नहीं आई|

एक-दो ने कहा भी कि ऐसा भवन जो समुदाय के नाम से है व् समुदाय के ही काम नहीं आ सकता तो इस मुद्दे को यूँ ना दबाओ या छोटा मानो| लेकिन यह कह के सब शांत करवा दिए कि ऐसे मसले घर के हों या कौम के, गळी में नहीं ले जाए जाया करते| और अगर तुम उनको घर-कौम के भीतर रख के, आपस में जरूरी सरजोड़ करके नहीं सुलटा सकते तो तुम उनको भी दुश्मन बना लोगे जो उस भवन में थे व् तुम्हारे काम आ सकते थे या उनकी नजर में तुम्हारा मामला गया ही नहीं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 18 June 2022

सालाना 48000 कुंवारे राष्ट्रीय स्तर पर व् 4800 कुंवारे अकेले हरयाणा स्तर पर बढ़ाया करेगी "अग्निवीर" योजना!

तथ्यात्मक बात से शुरू करते हैं: "अग्निवीर" के बाद रेगुलर व् ट्रेडिशनल रेजिमेंट्स (जैसे कि सिख-गोरखा-मराठा-जाट-राजपूत-ग्रेनेडियर्स-डोगरा रेजिमेंट्स आदि) में सैनिकों की भर्ती अब "अग्निवीर" से ही हुआ करेगी, जिसमें कि अग्निवीर पालिसी के तहत हर साल 25% को इसमें लिया जाएगा| औसतन हर साल 60000 भर्तियां इंडियन डिफेंस करती आई है| बस अब हुआ इतना करेगा कि 75% यानि 48000 की हर साल "अग्निवीर" पालिसी के तहत फ़ौज से छुट्टी होती रहा करेगी|

अब हकीकत देखते लेते हैं:
1) पहली बात तो जो अंधभक्तों के जरिए फैलवाई जा रही है कि जातीय नामों वाली रेजिमेंट्स खत्म हो रही हैं यानि यह लोग रेजिमेंट्स के नाम बदलने मात्र के जरिए ही तथाकथित जातिवाद खत्म करने जा रहे हैं (जो कि फ़ौज में ना तो लीगली मान्य व् ना ही कभी देखने को मिलता; कम से समाज में पाए जाने वाले वर्णवाद के स्तर का तो 1% भी नहीं), तो ऐसा फैलाने वाले लोग व् उनकी बहकाई में आने वाले लोग दोनों अपनी गलतफहमी दूर कर लें, कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है| कम से कम अभी तो नहीं| तो यह सिवाए इस बात का आनंद लेने से मतलब रखने वाले लोग कि, "हमारी दोनों आँखें भले फूटें, पर पडोसी की एक फूटनी चाहिए' अपनी यह आदत सुधार लें, क्योंकि दोहरा नुक्सान तुम्हारा हो रहा है, तुम्हारी अगली नस्लों का हो रहा है|
2) अग्निवीर की पॉलिसी को जितना बढ़ा-चढ़ा के यह सरकार परोस रही है, इससे बढ़िया भर्ती की सुविधाएं जवानों को ट्रेडिशनल रेगुलर भर्तियों में पहले से ही मिलती आ रही हैं (ज्यादा होगा 19-20 का हेरफेर होगा)| इसलिए थोड़ा सा तुलना करने का जोखिम उठाया करो, अग्निवीर में नया या चमत्कारी कुछ भी नहीं है|
3) अभी तक ट्रेडिशनल तरीके से रेगुलर फौजी की नौकरी औसतन 17 साल की होती थी| जब वह रिटायर होता था तो उसकी औसत तनख्वाह 60-70 हजार होती थी व् आजीवन पेंशन की सुरक्षा अलग से| और यही वह स्थाईत्व व् स्टैण्डर्ड देख के लोग, फौजियों को फ़ौज में लगने के 1 से 2 साल के भीतर ही अपनी बेटियां देने को एडवांस में ही बुक करना शुरू हो जाते थे व् अधिकतर की तो ट्रेनिंग पूरी होते ही शादी भी हो जाती रही है| यानि बंदा 20-21 की उम्र में स्थाई रोजगार व् शादी दोनों फ्रंट्स से सेटल व् संतुष्ट| देश व् देश के प्रति देशभक्ति, आदर व् प्यार में अंतहीन इजाफा अलग से| और जो रिटायरमेंट के बाद सिक्योरिटी गार्ड या कोई भी एडमिनिस्ट्रेशन की नौकरी, रिटायर्ड फौजी शौकिया तौर पर करते होते हैं, मारामारी में नहीं, वह पोस्ट-रिटायरमेंट सुरक्षा अलग से| 17 साल की सेविंग्स व् पेंशन के बैक-अप के चलते 70000 हजार से रिटायर हुए फौजी को एक 15000-20000 हजार रूपये की सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हुए इसीलिए फील नहीं होती यानि दिल-दिमाग की शांति के साथ यह नौकरी कर लेता है वो, अन्यथा 20000 में कौन खुश व् संतोष हो सकता है या घर व् जिंदगी चला सकता है?
अब क्या होगा?
1) 4 साल वाले को कोई छोरी नहीं देगा, अगर उसका 4 साल की नौकरी के अलावा कोई और बैक-अप जैसे कि जमीन या पुस्तैनी काम-धंधा या प्रॉपर्टी नहीं हुई तो| और हरयाणा-वेस्ट यूपी व् पंजाब में तो शादियों के दूल्हे चूज करने के स्टैण्डर्ड इतने हाई हैं कि न्यूनतम 90% अग्निवीर कुंवारे ही फिरेंगे यानि पहले से ही शादियों का संकट झेल रहे देश में सालाना 48000 कुंवारे राष्ट्रीय स्तर पर व् 4800 कुंवारे अकेले हरयाणा (10% फ़ौजी हैं हरयाणा से) स्तर पर बढ़ाया करेगी यह "अग्निवीर" योजना|
2) मानसिक दबाव से मानसिक व् शारीरिक स्वास्थ्य बिगड़ेंगे, अग्निवीरों के 4 साल बाद| ब्याह ना होने की वजह से घरों में क्लेश व् शांति भंग होंगी|
3) आज के दिन 40-50 साल के सिक्योरिटी गार्ड की भी अधिकतम तनख्वाह कितनी होती है, औसतन 20 हजार? यह बीस हजार तो वह 17 साल की फ़ौज की नौकरी करके आने के बाद भी कमा ही रहा होता है| परन्तु उन 17 सालों का खाता किधर रहा उसके पल्ले, जिसका बैक-अप उसको इतनी छोटी नौकरी करने को महसूस ही नहीं होने देता| यानि सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी जो अब तक एक्स्ट्रा इनकम का जरिया मानी गई, अग्निवीरों के लिए अब वह एक बाध्यता व् मजबूरी का मात्र सोर्स रहा जायेगा| तो एक ऐसी उम्र जब सबको ब्याह करके सेटल होना होता है, उस उम्र में अग्निवीर किन मानसिक, व् सामाजिक ट्रोमाओं से गुजरा करेंगे, इसपे सोचा कुछ अग्निवीर लांच करने वालों ने?
इसीलिए हो रहा है विरोध इस अग्निवीर का व् जम के विरोध करो इसका|
व्यापारियों के हजारों लाखों करोड़ों करोड़ NPA माफ़ करते वक्त या माल्या-चौकसियों व् मोदियों को हजारों करोड़ के घपले करवा के भगाते वक़्त यह चीजें नहीं दिखती होती हैं क्या कि इनको हद से ज्यादा फैवर करने से, देश के बाकी के सिस्टम्स चरमरा जायेंगे व् फौजों तक को सैलरी से ले पेंशन तक देने के लाले पड़ जायेंगे? बस यह किया-धरा व्यापारियों का है व् भुगतवाई अब फ़ौज जा रही है| आए बड़े फ़ौज में नए सुधार करने वाले| यह क्यों नहीं कहते कि सारा सिस्टम, सारा पैसा चटवा दिया अपने चहेते व्यापारियों को व् अब उनका खून चूसेंगे जो सबसे ईमानदार देशभक्त हैं?
यह है इनकी तथाकथित राष्ट्रभक्ति की नंगी सच्चाई| चाहिए तो थी फौजियों की अर्निंग कैपेसिटी बढ़ानी परन्तु यह सुधार के नाम पे उसको भी आधे से भी नीचे ला के छोड़ रहे हैं| मतलब दोहता यानि व्यापारी कुकर्म करो व् नानी यानि फ़ौज दंड भरो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 16 June 2022

चाहिए तो था FCI के अनाज गोदामों को साईलो-गोदामों में तब्दील करना, लेकिन बनवा दिए अडानी के!

व् इस तरह एक नंबर के धूर्त पीएम ने देश पर कई गुणा आर्थिक बोझ डाल दिए|

प्राइवेटाइजेशन का बोझ: सारा अनाज सरकारी व् सहकारी कब्जे से निकाल एक अडानी को सौंपा| इसका दुष्परिणाम किसान तो जो भुगतेंगे वह खे भी लें शायद, परन्तु असल भुग्तभोगी तो लम्बे दौर तक आम जनता यानि आम ग्राहक रहने वाले हैं, जो अभी फ़िलहाल कहीं 35 बनाम 1 तो कहीं हिन्दू-बनाम-मुस्लिम में उलझे जाते हैं|
डबल लैंड का खर्चा व् उपजाऊ जमीन का खोह: नए गोदाम नई जगह, यानि नई खेती लायक जमीन का खोह; FCI के गोदामों की जमीन का क्या होगा, जब यह रद्द होंगे? क्या यह जमीन उन गामों को वापिस की जाएगी, जिनसे मिली होगी; वह भी किसानों की ह्रदय-विशालता के चलते, शायद फ्री में सिर्फ सरकारी प्रोजेक्ट लगने के नाम पे व् लोकल्स को रोजगार के नाम पे? क्या सरकार अपने ही व् इनको चलाने वाली सहकारी समितियों के कण्ट्रोल में बात को रख के FCI के गोदामों का ही आधुनिकरण करके वहां साईलो गोदाम बनवा नहीं सकती थी? नहीं बनवाये, क्योंकि नियत तो पूरे देश की पूँजी का एक-दो खसम बनाने की, वही आरएसएस के गोलवलकर वाली सोच कि, "सारे देश की पूँजी अपने 1-2 को सौंप दो व् बाकियों दो जून की रोटी की जद्दोजहद तक ही रखो"| और सौंपे भी तो किसको, किसी हरयाणवी को नहीं, अपितु गुजराती को; जिनसे हरयाणवियों का ना कल्चर मिलता, ना भाषा, ना एथिक्स| ये जो हरयाणे वाले इनके भक्त बनते फिर रहे हैं ना, यह समझो कि तुम्हारी अगली पीढ़ियां तुम्हें ही सबसे ज्यादा कोसा करेंगी|
अगर तुम सिर्फ अपनी या अपने जन्म तक की सोचते हो तो तुम निरे जन्योर हो| जिसने अगली पीढ़ी के लिए अपनों संग सरजोड़ के निर्णय लेने व् चलने नहीं सीखे, वह समूह अंत दिन खुद के साथ "घूं-कुत्त्यां आळी" करवा के खत्म हो जाते हैं धरती से| और यही हो रहा है, कहीं राजी हुए टूल रहे हो कि बस अपना व् अपने परिवार का जुगाड़ कर लिया, बाकी जाति-समूह-कल्चर-किनशिप जाओ भाड़ में| कितने ही गैरों की, उसमें भी सबसे खतरनाक फंडियों की चाटुकारिता में जीवन काट लो, फंडी तुम्हें कभी ना तो बराबर बैठाएंगे व् ना ही उनके कल्चर-किनशिप में तुम्हें स्थान देंगे| वही कल्चर-किनशिप जो कि एकल व परिवार से बाहर हर इंसान की आइडेंटिटी होती है| इसको बचाना फर्ज है या नहीं? या समूह से संबंधित होने की भावना खत्म कर चुके हो अपनी? तो फिर ऑफिसियल तौर पर ही डिक्लेअर कर लो कम से कम कि आज के बाद मेरा कोई समूह-कल्चर-किनशिप नहीं; ताकि हमारे जैसे फिर सिर्फ उन पर फोकस रखें, जिनको समूह-कल्चर-किनशिप चाहिए होती है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 15 June 2022

माननीय राज्यपाल सतपाल मलिक जी, हमारे पुरखों ने सिखाया है कि "जेली-लाठी तो फंडी-फलहरियों पर उठाई जाती हैं", "अडानी के साईलों को तो कलम से तोड़ा जाता है"; नीचे पढ़िए कैसे!

आपसे अपील है आगे जब भी ऐसे बोलने का अवसर मिले तो अडानी के साईलो तोड़ने की बजाए, गाम-गाम गेल अपने गाम की सालाना कैपेसिटी के डेड या दोगुने साइज के व् अपने कण्ट्रोल के साईलो बनाने की अपील करें, तमाम किसान कौम को; उससे अडानियों को ज्यादा चोट लगती है साहेब| और नार्थ इंडिया की किसान कौम यह काम बाकायदा कर सकती है, क्योंकि जब यह कौम गाम-गाम गेल मिनी फोर्ट्रेस टाइप की साझली परस-चौपाल खड़ी कर सकती है तो साईलो गोदाम बनाना कौनसी बड़ी बात है|

और एक और बात, म्हारे लोग साईलो गोदाम भी बना लेंगे परन्तु उसके आगे का एक और लेवल है जिसपे काम हो| और वह है इनके साइलो से सीधा देश-विदेश के ग्राहक तक अनाज पहुंचाने का रास्ता बाँधा जाए| और यह रास्ता बाँध सकते थे उस कार्यक्रम में आये NRI जिसमें आपने साइलो तोड़ने की बात कही| आप उनको अपील करते कि हम यहाँ गाम-गाम साइलो बनवाते हैं व् आप विदेशों में अपने किसान भाईयों को अनाज सीधा बिकवाने का इंतजाम बैठाइये| इंडियन गोवेर्मेंट से इसपे पालिसी मैं बनवाऊंगा कि सिर्फ अडानी का ही नहीं, हमारे इस मॉडल से जमा हुआ अनाज भी विदेशी मार्किट में जाए, इसका प्रावधान हो|
यानि अपनों की लकीर बड़ी करने की बातें कीजियेगा साहेब, खासकर तब जब आपकी कौम पे 35 बनाम 1 की तलवार 24 घंटे लटकी रहती हों तब तो अवश्यम्भावी ही कीजिए|
ये बही-खातों की चोट समझने वाले लोग हैं, और आज तक यही चोटें इनका इलाज बांधती आई हैं| अभी अल्लाह पर नूपुर शर्मा के जवाब के बदले अरब से आई रिएक्शन का तुरता-फुर्ती एक्शन देखा ना?
इतिहास में हमारे ही पुरखे सर छोटूराम की कलम ने यह साबित भी किया हुआ है| जब उस आदमी की कलम चली थी तो कहते हैं कि यूनाइटेड पंजाब के गाम-के-गाम 'बही-खातों के जरिए डंडी मारने वालों' से खाली हो गए थे, व् आज भी हैं भतेरे ऐसे गाम| एक भी नहीं बचा है आज के दिन| हम तो unethical capitalism को ऐसे गायब कर देने वालों के मुरीद हैं|
सर छोटूराम की कलम की दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि रही थी APMC एक्ट| जिसके चलते किसानों ने आढ़त पर 70% कब्जा कर लिया था व् इस फील्ड से भी डंडी मारने व चक्रवर्धी सूधख़ोरी वालों को लगभग खदेड़ ही दिया था| इससे पहले "बार्टर सिस्टम" से किसान ethical capitalism वाला व्यापार करता था, परन्तु उसमें अनएथिकल कैपिटलिज्म के धोतक सूदख़ोरों ने चक्रवर्धी ब्याज चढ़ाने शुरू किये तो सर छोटूराम ने उनको आढ़त के नियमों में बाँध दिया|
व् इसी ताकत से खदेड़ दिया था, इसीलिए तो अब उनके लिए नए बंदोबस्त किये गए हैं| परन्तु यह बंदोबस्त किसान से ज्यादा इनको खुद को मारने वाले हैं| खैर, इस पर विस्तार से फिर कभी|
लबोलवाब यही है कि जो खुद को कहती तो पचासियों बुद्धि है परन्तु उस बुद्धि पर जब-जब अपनी अणख पर चल 56 बुद्धि आगे बढ़ी है, तब-तब गाम-के-गाम बिना लाठी-जेली उठाए इनसे खाली हुए| वह जो गाना चलता है ना गांधी जी पर कि "दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग, बिना ढाल"; इसको किसान-मजदूर के मामले में सही में किसी ने चरितार्थ किया था तो सर छोटूराम ने| ना एक जेली उठवाई लोगों से, ना लठ; बस एक कलम चली थी और सारे unethical capitalism वाले खत्म या बचे तो वो जो ethical capitalism से चले व् किसान-मजदूरों को सूधख़ोरों के चंगुल से 1936 से ले 2014 तक तो कन्फर्म तौर पर आज़ादी रही; यानि 78 साल|
तो जब आपके पुरखों के वैल टेस्टेड व् प्रूव किए रास्ते आपके सामने हैं तो इन पर क्यों जेली-लाठी-गंडासियां उठवाते हो? जेली-लाठी गंडासी फंडी-फलहरी पर उठाने की कह गए थे पुरखे ना कि अडानियों पर| इनको कलम से सीधा किया जाए, ऐसा कैडर खड़ा कीजिये किसान कौम में|
वो कहते हैं ना कि, "हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है; बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा" - हमें ऐसा सिस्टम चाहिए जो एक और सर छोटूराम जैसा दीदावर पैदा कर दे| यह सिस्टम, यह माहौल फिर से बनाने पर कौम को लाइए| वह आ गया तो फिर से 78 साल यानि लगभग 4 पीढ़ियों का ऐसा ही जुगाड़ बाँध जायेगा, जैसा सर छोटूराम ने बाँधा|
और आज इस दीदावर के पैदा होने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा, अडानियों ने नहीं अपितु फंडियों ने लगाया हुआ है| आपके घर-कौम की औरतों-मर्दों के दिमागों में नस-नस में माइथोलॉजी घुसा, घर-कुणबे-कुल-खूम की लड़ाइयों के महाभारती स्टेज सजवा उनके बीच कभी आपस में आँखें तक ना मेलने की दरारें डाल के| यह दरारें टूटें, व् लोग फिर से बैठक-परस-चौपालों में बैठ मंत्रणाएं शुरू करें; इससे निकलेगा रास्ता| जब इनके सरजुडेंगे यानि फिर से सरजोड़ होंगे तो भटाभट लठ भी बजेंगे व् सिस्टम भी हिलेंगे| लठ बजेंगे फंडियों पर व् उनके लठ लगते देख रास्ता छोड़ भागेंगे अडानी-अम्बानी|
इसलिए लठ से पहले कलम चलवाइए जिसकी चोट सर छोटूराम जैसी हो|
अपील: जो कोई इस लेख को माननीय राज्यपाल तक पहुंचावे, मैं उसका धन्यवादी होऊं!
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 12 June 2022

मुस्लिमों से बदतर ही व्यवहार रखते हो फंडियो तुम जाट-गुज्जर से!

कुछ एक दिनों पहले जैसे आगरा व् ताजमहल जाटों के नाम करने चले थे फंडी, ऐसे ही अरब से आये प्रेशर को डाइवर्ट करने को जाट व् गुज्जर के नाम से कुछ सोशल मीडिया हैंडल से नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्टें निकलवाई जा रही हैं| इनसे बच के दोनों ही| जैसे आगरा व् ताजमहल का मसला उल्टा इनके मुंह पे मारा था, ऐसे ही इसपे मारो| अपना-अपना काम करें जाट-गुज्जर, इनके तो हर दूसरे रोज के ड्रामे हैं ये| धर्म-वर्म का कोई मसला नहीं है इसमें सिवाए, व्यापार हथियाने के| अब पोस्टें निकालती फिर रही है कि शिवजी को बुरा-भला कह रहे थे, तो कोई बात नहीं हमारे धर्म के एक अकेले व् शिवजी के चेले, धरती को बार-बार धरती तथाकथित क्षत्रियों से खाली करने वाले ही काफी हैं, ऐसे लोगों से निबटने को; अभी भी जिन्दा बताये जाते हैं वो उनको चिट्ठी भिजवा दो|

या फिर जाट-गुज्जरों को बालकों को एनसीआर की MNCs में सबसे पहले नौकरियों में वरीयता दो, जिनको कि तुम भाषा व् जाति देखते ही सबसे पहले लिस्ट से काट देते हो| नौकरियों-रोजगारों-सम्मान की बात हो तो जाट-गुज्जर तुम्हारे सबसे बड़ी "NO" लिस्ट में व् वैसे तुम्हारे हागे हुए को साफ़ करने को तुम्हें जाट-गुज्जर चाहियें| वैसे भी जाट-गुज्जर दादा खेड़ों को मानने वाले लोग हैं, जो ना धर्म से नफरत करना सिखाते ना जाति से; हमारे लिए जितने तुम देश के नागरिक उतने ही मुस्लिम|

अत: खामखा बहाना बना रहे शिवजी की आड़ ले कर, पूरे 8 साल किसी को बात-बेबात डंडा करके रखोगे व् उनमें कोई एक आध वह भी गोदी मीडिया का पठाया हुआ कुछ उल्ट-सुलट फेंक गया तो इसपे जाट-गुज्जर तुम्हारे लिए मुस्लिमों को मारें? तब कहाँ जाते हैं जाट-गुज्जर तुम्हारे लिए, जब सम्राट भोजराज को व् पृथ्वीराज को गुज्जर बताना होता है या किसान आंदोलन पर इनको किसानी हक देने होते हैं या इनपे जब 35 बनाम 1 रचते हो? मुस्लिमों से बदतर ही व्यवहार रखते हो तुम जाट-गुज्जर से|

जय यौधेय! - फूल मलिक

अपने कान व् जेहन दोनों को फंडियों की वाहियातों से बचा के रखिये!

विषय: पैगंबर मोहम्मद के ब्याह की जिरह व् तुम्हारी-हमारी मनोस्थिति|

पैगंबर मोहम्मद का ब्याह तो सदियों पहले हुआ था, तुम अपने दादा-दादी वाली पीढ़ी में ही झाँक लो ना; असल तो 80% नहीं तो न्यूनतम 50% यानि हर दो में से एक के दादा-दादी के ब्याह "पोतड़ों" या "परातों" में हुए ना मिलें तो?
दरअसल तुम में से जो भी इन संघी-फंडियों की तकियानूसी वाहियातों को अपने जेहन में जगह दे रहा है, उसका कॉमन सेंस, रेशनलिटी व् ह्यूमैनिटी इस कदर मर चुकी है कि तुम्हें वही बात दूसरों के यहाँ बीमारी लगती है जो रही तुम्हारे यहाँ भी है अगर इसको बीमारी ही मानने लगे हो तो जो फंडियों ने तुम्हारे कानों व् जेहन में फूंक देनी होती है|
मोहम्मद पैगंबर के ब्याह में कोई नया बिघन नहीं हुआ था, वही हुआ तो जो तुम्हारे दादा-दादियों के मामले में हुआ था| यानि दूध पीते की उम्र से ले 6-8-10 साल की छोरे-छोरी की शादी व् जब लड़की व्रजसला होती तो उसका मुकलावा या गौना| व् लड़की का व्रजसला होना गर्म-शरद इलाकों में अलग-अलग उम्र में होता है| शरद इलाकों में जहाँ यह उम्र 11-12 साल होती है वहीँ गर्म इलाकों में 9-10 साल|
नबी की बेगम 6 साल की थी जब उनका ब्याह हुआ परन्तु मुकलावा हुआ 9 साल की उम्र में वह भी लड़की की माँ के संदेशा पहुंचाने पे कि लड़की बालिग़ हो गई है, मुकलावा ले जाओ|
अभी 2006-07 तक जर्मनी-जापान जैसे ऐसे देश रहे हैं जिनमें लड़की की ब्याह की उम्र 13 साल रही है| कनाडा-ऑस्ट्रेलिया में तो आज भी 16 से 18 साल उम्र है|
और तुम बहस कर रहे हो न्यूनतम 1500 साल पहले की?
फिर भी इसको गंद ही मान रहे हो, फंडियों के कहने से तो जरा खुद की माइथोलॉजी में ही झाँक लो पहले? इनके यहाँ तो मान्यता होने पर ही खून में भी रिश्ते करते हैं, तुम्हारे वालों ने मान्यता के विरुद्ध जा के बेटियों तक से ब्याह रचाये हुए हैं व् फिर भी भगवान बनाये बैठे हो उनको?
"बैया, बंदर को सलाह दे और अपना ही घर तुड़वा ले" - इन व्यर्थ की बहसों में फंसे अनाड़ी लोगों को देख कर, यह तथ्यात्मक बातें करते हुए हमें तो यह लाइन तक याद हो आती है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 11 June 2022

12 जून 1761 - जाट सेना द्वारा आगरा का लालकिला फतेह करने की गौरवमयी तिथि!

आज के दिन 1761 में एशियाई ऑडिङ्स जाटों के प्लूटो लोहागढ़ महाराज सूरजमल सुजान द्वारा आगरा का लालकिला फतेह किया गया था|

इससे ठीक 91 साल पहले इसी लालकिले के आगे फव्वारा चौक पर ब्रज के सर्वखाप चौधरी दादावीर गॉड गोकुला जी महाराज व् उनके दो भाईयों का बोटी-बोटी कर बलिदान लिया गया था, क्योंकि उन्होंने जैसे अभी 2020-21 में मोदी ने तीन कृषि के काले कानून धक्के से लागू करने की चेष्टा की थी ऐसे ही औरंगजेब ने कृषि कर बढ़ा दिया था| तब सर्वखाप ने अप्रैल 1669 से नवंबर 1669 तक लगातार लगभग 7 महीने बढ़े कृषि कर वापिस करवाने को "सर्वखाप किसान क्रांति" करी थी| औरंगजेब ने जितने भी हिन्दू-मुस्लिम राजा-नवाब सर्वखाप के विद्रोह को दबाने को भेजे, सर्वखाप आर्मी ने सब काट डाले तो तब खुद औरंगजेब को सेना ले कर मैदान में आना पड़ा था| सनद रहे, उस सर्वखाप आर्मी में मुस्लिम शामिल थे|
12 जून 1761 की आगरा के लाल किले पर जाटों की फतेह को सन 1669 के बदले के स्वरूप भी देखा जाता है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 8 June 2022

भक्तो, अरब देशों से आई रिएक्शन को, पुराने जमाने का मुगलिया हमला ही कहो!

ऐसा हमला जिसके होते ही फंडी सबसे पहले दुमदबा के भागते थे, छुपते फिरते थे, देश-जनता-धर्मभक्ति-राष्ट्रभक्ति सब को छोड़ मुगलों के ही दरबारी बनने दौड़ पड़ते थे| नूपुर शर्मा व् जिंदल पर हुई कार्यवाही हूबहू ऐसी ही है| बताओ पार्टी के ऑफिसियल राष्ट्रीय प्रवक्ताओं को "Fringe Element" बता के कट लेने में एक पल ना लगाया| यही हकीकत है इनकी धर्मभक्ति व् राष्ट्रभक्ति की; अब भी नहीं समझोगे तो शायद ही कभी समझ पाओ|
तब के जमाने में मैदानी युद्ध होते थे आज डिजिटल युद्ध हुआ है व् एक ही वार में फंडी सीधे बिलों में घुसा दिए| लेटर्स लिखवाए जा रहे हैं वह भी इंडिया के मुस्लिम इन्फ्लुएंसर्स से, अरब देशों को शांत करने के लिए; गज़ब|
जो लोग यह पूछते रहते हैं ना कि देश इतने साल गुलाम क्यों रहा? सटीक उदाहरण सामने है| यह फंडी, जब देश पे कोई हमला ना हो तो नकली धर्मवाद व् राष्ट्रवाद की चासनी में डुबो-डुबो देशवासियों को सुकून से रहने देते नहीं और हमला हो तो सबसे पहले मैदान से भाग खड़े होते हैं| जब लोग देखते हैं कि खापों ने मोहम्मद गौरी को मारा, महमूद ग़ज़नी से सोमनाथ का खजाना लूटा, अकबर, खिलजी, औरंगजेब, कुत्तुब्बुद्दीन सबसे लोहा लिया, अंग्रेजों तक को सबसे ज्यादा नाकों चने खापों ने चबवाये तो फिर भी देश इतनी सदियों तक गुलाम कैसे रहा; बस इस ताजा उदाहरण से समझ लो; यानि इन फंडियों के इन्हीं पल्ला झाड़ने वाले लच्छणों की वजह से| खापों, को ऐसे मौकों पर इन पर वोकल होने की जरूरत है कि जब देश में हमारे जैसों के बलिदानों से शांति स्थापित होती है तो तब तो हमें ही मीडिया ट्रायल्स करवा-करवा के बदनाम करके डाउन करने पर लगे रहते हो समाज में, व् अब जब खुद देश के सिस्टम-शांति का मलियामेट भी कर दिया व् सामने वाला सही में उग्र हुआ तो पल्ला झाड़ गए| संदेश साफ़ है, जैसे खापों के पुरखों ने अपना स्वछंद सिस्टम रखा फंडियों से अलग; वह कायम रखा जाए| वरना यह तो अपने ऑफिसियल प्रवक्ताओं तक को मिनट नहीं लगाते "Fringe Element" कहने में|

पैसे का पुजारी होना जरूरी है, वह होना भी चाहिए| और हम जानते हैं व्यापार पर लात लगी है तो तब सकपकाए हैं ये, परन्तु व्यापार के लिए एथिकल रास्ते भतेरे| इतना अनएथिकल हो कर भड़क लेने-देने की जरूरत ही नहीं| असल में रोळा, गोलवलकर की लिखी लाइन का है कि "देश के 1 प्रतिशत लोगों को सब धन सौंपवाओ, व् बाकियों को सिर्फ 2 जून की रोटी के लाले पड़ने पर लगाए रखो अगर लम्बा व् स्थाई राज चाहो" व् उसी चक्कर में गच्चे खाते आये हैं ये वह भी सदियों से और स्थाई राज इसीलिए हुए नहीं इनके|

विषय: मुझे मेरा देश जान से प्यारा है व् फंडी व् इनका फंड देश नहीं है; कहीं कोई चला आये पोस्ट पे बरगलाते हुए धर्मभक्ति व् राष्ट्रभक्ति के सर्टिफिकेट्स देने|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 5 June 2022

पृथ्वीराज के जरिए वास्तविक इतिहास में झूठ परोसने की ताकत कहाँ से आती है इनको?!

झूठे तथ्यों पर आधारित फिल्म भी हिट करवा लेंगे का कॉन्फिडेंस इनको इस बात से आता है कि तुमने जब इनकी 30 साल से परोसी जा रही माइथोलॉजी की फिल्मों व् टीवी सीरियलों पर कभी सत्यता की डिबेटें नहीं की व् जिसने की उनको नास्तिक या धर्मविरुद्ध बता के वह सब मिथ्स अपने दिमाग में उड़ेलते रहे तो "पृथ्वीराज" मूवी में 1206 में मरने वाले गौरी को 1192 में मार के दिखा दिया तो क्या जुल्म हो गया? उनमें 30 साल से ऐसा करने का कॉन्फिडेंस तो तुमने ही भरा है ना; भुगतो अब| अभी क्या है, अगर आगे भी नहीं सुधरे तो इतिहास कितना और मरोड़ के दिखाने वाले हैं ये उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते| यह तो शुक्र है कि यूरोप व् अरब की इंटरनेशनल हिस्ट्री को तोड़मरोड़ नहीं सकते व् वह ज्यों-की-त्यों इंटरनेट पर उपलब्ध है; वरना मामला सिर्फ भारत के भीतर का रहा होता तो यह जो इंटरनेट से सच जान लेते हो यह भी गायब होता व् कहीं ढूंढें से भी नहीं मिलता|
और जहाँ-जहाँ इनका काबू है गायब कर भी रहे हैं| ध्यान दो खासकर राखी गढ़ी जैसी खुदाई पर, 2017 में दक्कन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इन इस रिसर्च में राखीगढ़ी की मम्मियों में जाट का DNA मिलना तो बता दिया; तुम्हारी मैथ्स व् माइथोलॉजी को सच मानने की यही स्पीड रही व् यूँ मूर्छा में चलते रहे तो 10-20 साल बाद यह भी गायब मिलेगी| और यह लोग इस काम पर लग भी चुके होंगे| आपके कितने शोधक इस लीड को और गहरी खोद कर उसको बड़ी बनाने में लगे हैं? नहीं लगे हैं तो उनका ध्यान लगवाइए इन बातों की तरफ|
यह मुग़लों-अंग्रेजों से इतिहास बिगाड़ा और उसको यह सुधार के लिखेंगे व् दिखाएंगे| देख लो इनका सुधारना व् दिखाना| और वह जाट जो इनके अंधभक्त बने हैं वह खासतौर से देख लो कि 1206 में खाप चौधरी दादा रायसाल खोखर के हाथों मारे जाने वाले गौरी के तथ्य की ऐतिहासिक सच्चाई कैसे छुपाई जा रही है| चलो मान लिया हम तो इनके विरुद्ध हैं, परन्तु आप क्या कर या करवा पा रहे हो इनके साथ रह के अपनी कौम-कल्चर-किनशिप की सत्यता की बहाली के लिए? और अगर नहीं ही कुछ करवा पा रहे या करवाने की चेष्टा तो जो कर रहे हैं उनको कम से कम मूक ही सही परन्तु समर्थन तो दिया करो|
और इस बात से यह भी समझ लो कि "खाप व् खाप वालों के लिए" इनके मन में कितना आदर मान-सम्मान है; रत्ती भर भी नहीं| वरना होता तो मोहम्मद गौरी को मारने वाले खाप चौधरी के साथ यह तिरष्कार कि उसको राष्ट्रीय हीरो बनाने की बजाए, उसके किये का क्रेडिट कहीं और दिया जा रहा है? यह खाप से संबंधित एक-एक नुमाईंदे-बंदे के लिए विचार-विमर्श का विषय है|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Friday, 3 June 2022

UCC (Uniform Civil Code) कानून में शादी बारे एक क्लॉज लाया जा रहा है, जिसके ऊपर बैठ कर बड़ी राजनीति की जायेगी!

क्या, किसपे व् कैसी राजनीति की जाएगी?

अमूमन लोकसभा के आगामी मानसून सेशन में क्लॉज़ आ रहा है कि, "ब्याह शादी में पूरे देश में एक कानून होगा व् उसके तहत भाई-बहन को भी आपस में ब्याह की इजाजत होगी"|
अब इसपे इनकी पॉलिटिक्स क्या व् किसपे है?: इसका सबसे ज्यादा विरोध वह समाज व् उसकी सामाजिक संस्थाएं करेंगी जो "गाम-गौत-गुहांड" छोड़ के ब्याह करते हैं व् इसमें भी गौत छोड़ के तो जरूर से जरूर करते हैं| वह उत्तरी भारत का एक ख़ास तबका है, जिसने किसान आंदोलन को भी लीड किया था|
कैसी राजनीति होगी?: देश की बाकी जनता को दिखाया जाएगा कि हम चाहे कुछ भी कर लें, परन्तु इन्होनें रहना हमारे विरोध में| व् इस तरह से इस तबके को बाकी तबके से आइसोलेट करके दिखाया जाएगा| व् विरोधों को देखते हुए इस क्लॉज़ को बाद में वापिस भी ले लेंगे| यानि यह गेम होगा बस इस तबके को जन्मजात विरोध करने वाला दिखा को|
इलाज क्या है इस चाल का?: पहले से ही अपनी बैठकें-पंचयातें करके, डीसी ऑफिसेस व् मीडिया के जरिए संसद तक अपनी यह ऑब्जेक्शन पहुंचा दो, वरना इसके आने के बाद में पहुंचाओगे तो वही होगा जो ऊपर लिखा है|
पता नहीं, "गाम-गौत-गुहांड" छोड़ के ब्याह करने में विश्वास रखने वाले भक्त लोग अब इसपे क्या करेंगे; बेचारे चले थे इनके साथ देश व् धर्म बचाने, पता लगा इनका रक्तबीज ही बदलने जा रहा है| जो जागरूक हैं वह एक्शन ले लें ऊपर बताये तरीके से वक्त रहते|
जय यौधेय! - फूल मलिक

मोहम्मद गौरी को मारने वाले खाप चौधरी दादावीर रायसाल खोखर की जय हो!

अक्षय कुमार अभिनीत "पृथ्वीराज चौहान" फिल्म, इतिहास नहीं, एक काल्पनिक उपन्यास की कहानी है! - बकौल यशराज फिल्म्स


एक सामाजिक महासभा ने यशराज फिल्म को लीगल नोटिस भिजवाया कि जब पृथ्वीराज चौहान की मौत सन 1192 में हो चुकी थी व् उसको मारने वाले मोहम्मद गौरी की मौत होती है सन 1206 में जा के हुई, वह भी खाप चौधरी दादा रायसाल खोखर के हाथों; तो यह इतना बड़ा झूठ क्यों परोस रहे हो?

तो यशराज फिल्म ने जवाब दिया कि हमने इतिहास पर फिल्म नहीं बनाई है अपितु एक काल्पनिक उपन्यास पर फिल्म बनाई है व् इतिहास से हमारा कोई लेना देना नहीं|

और इस फिल्म के मेकर्स को मजबूर किया गया यह बात फिल्म के बिलकुल शुरू में "Disclaimer" में लगाने को कि यह सच्चा इतिहास नहीं अपितु एक काल्पनिक कथा है| देखिएगा आज फिल्म में यह डिस्क्लेमर है कि नहीं|

उन तथाकथित धर्म-भीरुओं की विडंबना देखो कि वो उनसे राष्ट्रवाद सीखते हैं, जिनको माइथोलॉजी तो माइथोलॉजी, वास्तविक इतिहास तक भी "काल्पनिक उपन्यास" बता के परोसने पड़ते हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 1 June 2022

सिद्धू मुसेआळे की चार सबसे बड़ी देन!

1 - किसानां के पुत्त मोटरसाइकिल-कारों से उतार वापिस ट्रैक्टर्स पर बैठने में गर्व करने सीखा दिए|

2 - "झोटा" शब्द को इंटरनेशनल ब्रांड बना दिया|
3 - कमा-धमा के गामों में ही ठाठ से बसणा सीखा दिया|
4 - किसान-मजदूर का पुत्त हो के भी इंटरनेशनल लेवल का मास-अपील वाला लेखक-गायक हो सकता है, दुनिया को जता दिया|
आओ इस चीज को पुख्ता करें कि उसके जैसी हत्या दोबारा ना हो समाज में, इसके लिए सरकारों के कानों में आवाज ले जानी है तो वो हो; या गैंग्स में सुलह करवानी हो तो वह भी हो| कम-से-कम इतनी सुलह जरूर हो कि अपनी ही कौम-खून-खूम-पिछोके के लोगों को नहीं मारेंगे|
मैं जब कॉलेज लाइफ में था तो मेरा घर-गाम के पशुओं से इतना लगाव था कि उन पशुओं को गली-घर-गोरे पे जहाँ होता वहीँ, मेरी इतनी पहचान थी कि गाम आळा झोटा तो मुझे कहीं भी देख लेता तो लाड में पूंछ उठा दिया करता व् नाड से खस के कहता कि मेरे खाज कर दे| गाम आळा खागड इसी स्टाइल में खुर्रा मारने की कह देता| एक-आध जलकंड हर जगह होते हैं, जिनसे कोई मेरे बारे पूछता तो कहते कि, "बाकी तो छोरा ठीक सै पर जब देखो डांगर-खागड-झोटयां के चीचड़ तोड़ें जा सै"|
एक बार तो म्हारे गाम आळे झोटे को चाबरी में (सीम लगता गुहांड सै म्हारा) षड्यंत्र के तहत अधमरा करके डाल दिया गया था, झोटे से उठा भी नहीं जाता था, ट्राली में डाल के लाया था गाम व् म्हारे घेर में रखा गया था| एक मेडिकल नर्स की भांति उसकी सेवा मैंने अपनी देखरेख में की थी व् न्यूनतम वक्त में उसको वापिस खड़ा होने लायक बना दिया था| उस दौरान वह झोटा जब भी मेरी गोद में सर रख के सोता तो उसकी आँखों से आंसूं टपकते रहते व् मैं उनको पोंछता रहता|
भाई रै सिद्धू मुसेआळे मैं आज भी वही जाट सूं, बैठा बाहर जरूर सूं; पर आत्मा खाप-खेड़े-खेतों में ही रमती है यहाँ बैठे भी| और धन्यवाद "झोटा" शब्द को ब्रांड बनाने का तो खासतौर से|
जय यौधेय! - फूल मलिक