Sunday 30 June 2024

हड़नियों से बना हरयाणा नाम!

हड़निये यानि हड़प लेने वाले, लूट लेने वाले!


इस वीडियो वाले कांसेप्ट से सहमत होने के यह कारण भी हो सकते हैं:

1 - 'जाटों को कई इतिहासकारों ने लुटेरा लिखा है; वजह रही यह कि जो विदेशी आक्रांता जैसे कि ग़ज़नी-तैमूरलंग आदि इनके इलाकों से गुजरे, उनको इन्होनें जी भर के लूटा व् मारा भी| तो हड़निये तो यह रहे हैं, परन्तु दुश्मन का माल; जो इनका अपना बन के रहा, उसको अपने यहाँ बसने में सबसे ज्यादा भाईचारा इन्होनें ही दिखाया| 

2 - खापलैंड पर दो तरीके के गाम बसते आए, एक धाड़ी व् एक गैब| धाड़ी वो गाम जो धाड़ मार के खाया करते थे व् गैब वो गाम जो खेती-बाड़ी करके कमा के खाते थे; परन्तु धाड़ मारणियों गेल जब टकराना पड़ता तो अधिकतर जीतते गैब ही थे| जैसे कि मेरा गाम निडाणा, जिला जींद (जिंद) में| इसी धाड़-गैब कल्चर पे निडाना गाम बारे, जब बारात में आए जागसी वाले मशहूर धाड़ी दादा निहाले की हल की फाली पेट में मारने से सोते हुए की हत्या कर दी गई थी (हत्यारे इन्हीं के गाम से आये थे इनपे घात लगा के) तो इनकी माँ ने रोंदी हुई ने एक तान्ना मारया था अक, "ना मरया रे बेटा, सींक-पाथरी, ना मारया रे उल्हाणे-मदीणे; अर जा मरया रे बेटा गैबां के न्यडाणे"! यह पाँचों गाम मलिकों के हैं, सींक-पाथरी-उल्हाणे-मदीणे जब्र भारी गाम रहे हैं व् न्यडाणा गैब गाम|


जय यौधेय! - फूल मलिक



Friday 28 June 2024

लायक नहीं ये एक झोंपड़ी बनाने के, ठेके थमा दिए इनको एयरपोर्टों के!

ये निजीकरण वाले अडानी ने किसी गरीब की झोंपड़ी बनाई है या इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड के एयरपोर्ट जो बारिश-हवा तक नहीं झेल पा रहे व् ढह जा रहे हैं सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार व्याप्त है, कर्मचारी कामचोर हो जाते हैं; सामान में मिलावट कर देते हैं; यह ताने व् कारण दे-दे कर तो हर संस्था के निजीकरण के पीछे पड़े यह लोग, पिछले दस साल से| अब निजीकरण ने क्या गुल खिलाए हैं, देख लीजिये हाल, भोपाल, अयोध्या व् दिल्ली एयरपोर्ट्स की छतों-छज्जों-दीवारों द्वारा बारिश मात्र नहीं झेल पाने की दशा से| अडानी ने कौनसे गुल खिला दिए क्वालिटी वर्क डिलीवरी में; सरकारी वालों से अलग? जैसे-जैसे छत तक गिरने, टपकने जैसे बचकाना हादसे हो रहे हैं; ऐसे तो शायद ही कभी सुनने को मिलते थे सरकारी महकमों में; जितनी भरमार अब हुई पड़ी है|

यह जो तथाकथित राष्ट्रवाद, तथाकथित जाति-धर्म के नाम " इस बनाम उस वाली नफरत की धोंकनी" में देश को झोंक के, उसकी आड़ में यह जो बवंडर कर दिए हैं इन अंधभक्तों लोगों के आकाओं ने, उसकी वजह से कई पीढ़ियां भुगतने जा रही हैं देश की| और अंधभक्ति का आलम यह होता है, मुड़ के पूछने-टोकने तक की औकात व् बिसात नहीं होती अंधभक्त की कि क्या हमने इसी बदहाली के लिए तुम्हें अँधा समर्थन दिया था|

सम्भल जाओ हरयाणा वालो, खासकर वो जो इनको 10 साल देख के भी अब भी तथाकथित 35 बनाम 1 की धोंकनी में धधके जा रहे हैं; आगामी विधानसभा में बचा लो अपने बच्चों के लोकतान्त्रिक भविष्य को!

फूल मलिक

Wednesday 26 June 2024

Maharaj फिल्म समीक्षा !

 Maharaj फिल्म समीक्षा : वाडो के काले कारनामो को उजागर करती वास्तविक घटना पर आधारित ये फिल्म - न केवल पाखंड को उजागर करती हैं बल्कि थाईलैंड से आयातित धार्मिक पाखंडो के पाप से भरे घड़े को भी फोड़ती हैं.


उत्तर भारत में यह धार्मिक उन्माद नया नया हैं इसलिए यहाँ ऐसा नहीं हुए लेकिन इस धार्मिक ढांचे के इतिहास इतना कला हैं की मंदिर की मुर्तिया भी काली बनायीं जाती थी.

धर्मांध और अंधविस्वास में लिप्त लोगो को इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए. की कैसे भगवान और धर्म के नाम पर मंदिर बनाए गए और फिर उनके नाम पर लूट और शोषण की शुरुआत हुई. कैसे धर्म को धंधा बनाया गया और कैसे इनका भगवान अपने मुँह पर कालिख पोते मंदिर की मूर्ति में मृत पड़ा रहा.

इतिहास : समय क्या नहीं करवाता 1400 ईस्वी में थाईलैंड कल्चर भारत में दस्तक देता हैं. पहली शताब्दी से ही सिल्क रुट पर इजिप्ट और थाई मनोविज्ञान विशाल चर्चा का विषय था. छठी शताब्दी तक इस मनोविज्ञान की अनेको तकनीके अपभ्रंश होकर विकृत परम्परावादी धार्मिकता का रूप ले रही थीं. जैसे आजके समय में नेता अभिनेता यूटूबर आदि प्रसिद्ध हैं. ऐसे ही 7 सदी से लेकर 14 वि सदी तक के इस दौर में लेखन प्रसिद्धि का मुखर विषय बना. इंडियन रीजन ( अफगान बॉर्डर से लेकर इंडोनेशिया तक ) थाई कम्बोडियन और इंडोनेशिया ये तीन ऐसे क्षेत्र थे जहा मनोवैज्ञानिक विषयो से अनेको कहानिया सांस्कृतिक परम्पराओ में विकसित हो चुकी थीं.

चोल सशको के दरबारों में नाटक करने वाले निषाद नट उन कहानियो को कॉपी कर प्रदर्शित नाटकीय रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं. थाईलैंड कम्बोडिआ ऐसे क्षेत्र रहे हैं जहा सबसे पहले मंदिरो (วัด वाड - थाई भाषा में मंदिर को वाड कहा जाता हैं. वाड एक ऐसा अधिकृत क्षेत्र जो चारो और से सुरक्षित स्थान हो ) इसलिए थाई राजा इस वाड में विशेष रूप से रहता हैं. आज भी थाई राजा राम (दसम ) अपने वाड (मंदिर ) में रहता हैं.

वजिरालंकरण 16 अक्टूबर 2016 को 64 वर्ष की आयु में थाईलैंड के राजा बने. लेकिन राजगद्दी पर अपने पिता के निधन के 50 दिवसीय शोक के पश्चात् दिसम्बर 01, 2016 को आसीन हुए. इन्हें "फरा राम दशम" की उपाधि से अलंकृत किया गया. रामकियेन ( रामायण ) थाईलैंड का राष्ट्रिय ग्रन्थ हैं.

ऐसे ही वाड चोल शाशको ने बनवाए जिन्हे वो चोलेश्वर ( चोलो के ऐश्वर्य का स्थान ) कहते हैं. आज ये वाड़े दक्षिण के अनेको मंदिरो में बदले गए है. ऐसे ही एक वाड़े और उसके धार्मिक महाराज और शोषिक धार्मिक अंधभगति की वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म है Maharaj - जिसमे Jaideep Ahlawat ने महाराज का रोल निभाया है और करसनदास मुलजी का रोल निभाया है Amir Khan के बेटे Junaid Khan ने. फिल्म के लेखक है Saurabh Shah.

फिम्ल में फिल्म निर्माण नियमो के तहत और धार्मिक माहौल को देखते हुए थोड़ा बैलेंस करके दिखाया गया हैं. ताकि लोग बेवजह विरोध न करें. हालाँकि धार्मिक पाखंडियो ने भोली भली जनता का शोषण किया हैं वो दिखने लायक और बताने लायक भी नहीं हैं.

लेकिन फिल्म का मुख्य प्लाट थाईलैंड ये आयातित धार्मिक पाखंड के इतिहास को प्रत्यक्ष रूप से उजागर करता हैं. पुरे देश के धर्मांध लोगो को इसे देखना चाहिए और इन धार्मिक पाखंडो से खुद को बचाकर आने समाज को भी करसनदास मुलजी की तरह जागरूक करना चाहिए. इन मंदिरो की कोई महानता नहीं हैं ये शोषण के काले इतिहास और अश्लीलता को समेटे हुए हैं. इसलिए दक्षिण के सभी मंदिरो की मुर्तिया भी काली मिलेंगी क्योकि ये कालिख इनके निर्माताओं के चेहरे की हैं.

कर्म ही धर्म हैं और वास्तविकता से स्पष्ट वाकसिद्धि से परिपूर्ण अंधविस्वासो से मुक्त सार्थक और सत्य को धारण करना वास्तविक धर्म हैं. किसी भी कल्पना अंधविस्वास और पाखंड में धर्म नहीं हैं. धन्वयाद

~Rajesh Dhull



Jat riwaj in Turkey!

 रिवाजों की समानता!

लगभग दो साल पहले मैंने तुर्की की एक वीडियो सांझा की थी, जिसमें वहां की औरतें आपस में तीन बार गले मिलती है। बिलकुल वैसा ही रिवाज हमारी बुजुर्ग महिलाओं का भी है।
अब कल ही ये ईरान की एक वीडियो सामने आई। इसमें जब लड़की घर से जाती है तो उसकी गाड़ी के पीछे लड़की की मां पानी फेंकती है। अब ये वाला रिवाज हमारे यहां भी है, जब लड़की जाती है तो गाड़ी के पीछे या टायरों पर पानी डालते हैं। शायद ये रिवाज पूरे हिंदुस्तान में नहीं है, क्योंकी जब ये लड़की इस रिवाज के बारे में बता रही थी और कहती है कि मुझे नहीं पता इंडिया में भी ये रिवाज है या नहीं, तो इस लड़के की कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। यदि ये रिवाज इनमें भी होता तो ये लड़का जरूर हां भरता।
सभी धर्मों के अपने नियम कायदे हैं परंतु सभी धर्मों में एक पैरलल सामाजिक/काबिलाई नियम कायदे भी चलते हैं। जिसमें धर्म दखल नहीं दे पाए। हालांकि, समय स्थान और सहालातों की वजह से इन सामाजिक नियमों में बदलाव आता रहा है।

By: Rakesh Sangwan



Sunday 23 June 2024

इन आम चुनावों में एक बात साफ हो गई कि मोदी-शाह की राजनैतिक शैली से आरएसएस खुश नहीं था और न हिन्दू धर्म के बड़े धर्माचार्य!

मोदी-शाह की जोड़ी जब पूंजी पर बैठकर नैतिकता के प्रतिमान तय कर रही थी तब एक शर्त यह भी थी 75 पार के नेता मार्गदर्शक मंडल में रहेंगे।

मोदीजी 74 साल के हो चुके है।यह तय माना जाना चाहिए था कि एक साल बाद पीएम कोई और होगा फिर भी मोदीजी के नाम पर चुनाव लड़ा गया।
अगर स्वनिर्मित नैतिकता के ये प्रतिमान नहीं गढ़े जाते तो आरएसएस के साथ-साथ 10 साल सत्ता चलाने वाले मोदी-शाह के सहयोगी लोग इस बार बगावत नहीं करते।
10 साल सरकार में रहने के बावजूद बीजेपी अपने कार्यों पर वोट मांगती नजर नहीं आई।आरएसएस सहित हितग्राही संगठनों के पास 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद जनता को विश्वास में लेने के लिए बताने को कुछ नहीं था।
मोदी जी ने मित्रों के सहयोग से आडवाणीजी को विश्वास में लेकर जो गुजरात मे राजनीति शुरू की वो आगे जाकर क्या करवट लेगी वो आरएसएस को भी नहीं पता था!
गोधरा के बाद जिस तरह अटलजी ने राजधर्म की नसीहत दी व आडवाणीजी ने बचाया वो बात जगजाहिर है।आरएसएस को हिंदुत्व का कोई मेचोमैन चाहिए था वो गोधरा कांड के बाद मोदीजी बन ही चुके थे और मित्रों को न्यायिक व्यस्था से बचने के प्रयास में लगा ऐसा आदमी चाहिए था जो उनकी हर बात माने!
तमाम खोजी पत्रकारों ने स्टिंग किये,सारे अपराध पटल पर थे लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार की अगुआ कांग्रेस हल्के में हांक रही थी!देश की आबोहवा बता रही थी कि गुजरात में 2002 में हुए दंगों का आयोजन किसने व कैसे किया!
लेकिन कांग्रेस में जमे संघियों ने जमकर पैरवी की और बचाया ही नहीं बल्कि सरकार में बैठकर सरकार को बदनाम किया और नितिन गडकरी के खिलाफ महाराष्ट्र में मंत्री होने के समय फर्जी आंदोलन चलाने वाले अन्ना हजारे को उठाकर दिल्ली ले आये!
आरएसएस चंगुल में बुरी तरह फंस चुका था लेकिन पूंजी की ताकत जान नहीं पाया!आरएसएस के लाखों कार्यकर्ता अन्ना आंदोलन में शामिल रहे!जमकर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार किया!
जब 10 साल सत्ता चल चुकी है।छोटे-छोटे मंदिरों को गिराकर धर्मस्थलों को व्यापारिक कॉरिडोर बनाया जाने लगे तो हिन्दू धर्माचार्यों को अहसास हुआ कि हमारे नीचे से गद्दी खींच ली गई है तो मुँह खोलने लगे!
पहले 5 साल में आरएसएस के कार्यकर्ताओं को अगले 5 साल में परिणाम देखने की नसीहत दी गई!अगले 5 सालों ने इस पूंजीवादी सरकार ने आरएसएस के पदाधिकारियों को भ्रष्ट-ऐशो आराम की जिंदगी जीने में व्यस्त कर दिया!
अब मोदी-शाह के पास मित्रों की पूंजी का पावर है तो आरएसएस के पास वैक्सीन का ओवरडोज लिए बीमार कार्यकर्ता है।
अब आरएसएस के कार्यकर्ताओं के पास 75 साल की उम्र वाली महामानव द्वारा गढ़ी नैतिकता का तुरुप का पत्ता है तो दूसरी तरफ भारतीय समाज,संस्कृति को साथ लेकर नितिन गडकरी जैसा विद्वान नेता!
मोहन भागवत जी योगीजी से बात कर रहे है!लेकिन यह मामला जमेगा नहीं।यूपी की हार की समीक्षा जूतमपैजार होती हुई सड़कों पर देखी गई है!एक साल बाद जब मोदीजी 75 साल के हो जाएंगे उस समय लड़ाई सड़कों पर आएगी!
आरएसएस में कितना ईंधन बचा है वो इस बात से तय होगा कि ठीक एक साल बाद शांतिपूर्वक सत्ता का हस्तानांतरण होगा कि नहीं।अगर सामंजस्य नहीं बैठेगा तो आरएसएस व बीजेपी में से एक का खत्म होना तय है।
अगर पूंजीवाद ने मजबूती पकड़ी तो आरएसएस का तिलिस्म टूट जाएगा और अगर समाजवाद की धारणा ने जोर पकड़ा तो बीजेपी हाशिये पर चली जायेगी और संघ बच जाएगा।
विपक्षी दलों में ही नहीं बल्कि सत्ता विरोधी सोच वाले तमाम नागरिकों के बीच भी नितिन गडकरी एक स्वीकार्य नेता है।अगर 75 साल की उम्र सीमा लागू हुई व नितिन गडकरी प्रधानमंत्री बनते है तो आरएसएस व बीजेपी दोनों को बचने का अवसर मिल सकता है!
आक्रोश बहुत था लेकिन पूंजी के बल पर,मीडिया पर कब्जा करके किसी न किसी तरह बच गए,यह सहूलियत अब आगे नहीं मिलनी है!

Prem Singh Sihag

यह हिंदूजा बन्धु इंडिया में होते तो क्या कोई इंडियन कोर्ट, स्विट्ज़रलैंड कोर्ट की भाँति सजा दे पाती की तो छोड़िए; क्या देने की सोचती भी?

 अनैतिक-पूंजीवाद के धोतक हिंदुजा बंधुओं प्रकाश हिंदुजा (78 साल) और कमल हिंदुजा (75 साल) को साढ़े चार साल और उनके बेटे अजय और बहू नम्रता को स्विट्ज़रलैंड की अदालत ने चार चार साल की सजा सुना दी है। सजा की वजह इनके द्वारा अपने घरेलू नौकरों का शोषण और उत्पीड़न करना है। स्विस अदालत ने पाया कि ये रईस घर मे काम करने वाले अपने कर्मचारियों को मात्र 700 रुपया (8$) रोज की पगार देते थे। यह भुगतान भी भारतीय रुपयों में किया जाता था, और रुक रुक कर, तरसा तरसा कर किया जाता था। यह राशि स्विट्ज़रलैंड के न्यूनतम वेतन से 10 गुना और इन हिन्दूजायों के द्वारा अपने कुत्तों पर किये जाने वाले खर्च से चार गुना कम हैं। इसके अलावा ये रईसजादे इन नौकरों को पेट भर खाना नहीं देते थे, मारपीट करते थे, क्रूरतापूर्ण बर्ताव करते थे। इन सबके पासपोर्ट भी हिन्दुजाओं ने जब्त करके अपने पास रख लिए थे ताकि वे देश वापस न जा सकें। शोषण के शिकार ये सभी कर्मचारी "इंडिया दैट इज भारत दैट इज हिंदुजा के अपने देश हिंदुस्तान के थे"।  


#ध्यान_दें

यह कर्म उस हिंदुजा खानदान ने किया है जो "इंग्लैंड दैट इज यूनाइटेड किंगडम" का सबसे रईस खानदान है और स्विट्जरलैंड की हसीन वादियों के जिस विला - भव्य आलीशान भवन - का यह कांड है, उसकी कीमत ही अरबों रुपये में हैं।


यह हिंदूजा बन्धु इंडिया में होते तो क्या कोई इंडियन कोर्ट, स्विट्ज़रलैंड कोर्ट की भाँति सजा दे पाती की तो छोड़िए; क्या देने की सोचती भी? इस हद तक हमारा देश ऐसे संवेदनहीन अनैतिक पूंजीवादियों के कब्जे में आता जा रहा है दिन-भर-दिन।


न्यूज़ सोर्स: https://www.forbes.com.au/news/billionaires/billionaire-hinduja-family-members-get-4-5-years-in-swiss-prison/


Monday 17 June 2024

यार 5911 वरगा!

सिधू मुसेवाले के साथ एक ट्रॅक्टर का भी चर्चा है जो हमारी पीढ़ी ट्रक्टर था और जिसका अपने जमाने में पूरा टोरा था । ये था सरकारी कंपनी hmt ( हिंदुस्तान मशीन टूल्स ) का hmt 5911 मॉडल । 5911 को सिधू मुसेवाले में गीतों में इतना ज्यादा इस्तेमाल किया किया की किसानों के इस साथी टैक्टर का नाम दिल्ली मुंबई के पबो तक गुज गया । शहर मे जिस किसी ने आज तक इस ट्रक्टर को देखा तक नहीं वो भी 5911 का नाम जानता है , हालाकि बहुत को ये भी नही पता की 5911 किस चीज का नाम है ।


चलो आज हम बताते 5911 hmt ट्रक्टर के बारे में । इसका इतिहास जानने से पहले हमको एक और ट्रक्टर बारे में जानना पड़ेगा । ये था ज़ीटर , ये एक हथियार बनाने वाली चकोस्लोवाकिया की कम्पनी का बनाया हुआ अलग अलग पॉवर का टैक्टर था जिसको ज़ीटर कहा जाता था । ज़ीटर यूरोप के साथ अनेक देशों में बहुत पसंद किया गया । भारत मे hmt नाम की सरकारी कंपनी की नींव 1953 में रखी गई थी । चकोस्लोवाकिया कम्पनी अपना ज़ीटर ट्रैक्टर विदेश से ही बना कर भारत भेज रही थी , वो इस ट्रक्टर को भारत में बनना चाहती थी , इसके उसने भारत की कम्पनी hmt के साथ हाथ मिलाया , hmt ने अपना कारखाना हरियाणा के पिंजौर में लगाया और फिर शुरू हुआ hmt के टैक्टर का निर्माण । तब टैक्टर पर hmt के साथ ज़ीटर भी लिखा आता था । आम लोग भी इसे ज़ीटर कह के बुलाते थे ।
1971 में यहाँ से पहला hmt ज़ीटर टैक्टर बन कर बाहर निकला । शुरवाती मॉडल में 2511 , 3511 जैसे टैक्टर थे उसके बाद 4511 , 5911 और 7511 के अलावा कई मॉडल आये ।

3511 के साथ 5911 बहुत मशहूर हुआ । hmt 5911 थोड़े बड़े किसानों ने बहुत पसंद किया । ये 59 हॉर्स पॉवर का ट्रक्टर तब अपनी कैटेगरी में अकेला ही राज करने वाला ट्रक्टर था । इसके 16 के बड़े टायर और भारी वजन धरती पर बहुत पकड़ देते थे , ज़ीटर तकनीक की इसमें लगी लिफ्ट और उस समय हाइड्रोलिक ब्रेक इसको सब टैक्टर से अलग करती थी । किसानों ने इसके पीछे कराह डाल डाल कर बड़े बड़े रेत के टिब्बों को समतल कर बढ़िया खेत बना लिए । इसका गियर लीवर तब की कारो की तरफ स्टेरिंग के पास था और इसको क्लासिक लुक देता था । इसमें 4 स्ट्रोक 4 सिलेंडर इंजन लगा हुआ हुआ जो 59 हॉर्स पॉवर के बावजूद भी बहुत कम तेल खाता है । इसका तेल टैंक 70 लीटर का और स्टीरिंग मैनुअल ही आता था । ये इतनी ज्यादा पॉवर जनरेट करता था की इसके पीछे डले कृषि औजार कही अड़ने से टूट जाते थे । मेरे एक रिश्तेदार ने 5911 को एक जमीन में धंसे स्वराज 855 के आगे डाल कर जोर लगा दिया , ट्रक्टर तो नही निकला अलबत्ता दो टुकड़े हो गया । वन विभाग ने इसको बहुत इस्तेमाल किया , इसके साथ इसके आगे हाइड्रोलिक लगा कंस्ट्रक्शन वालो ने इसे जेसीबी और लोडर की तरह बहुत इस्तेमाल किया । जरनेटर में बहुत कामयाब था , जरनेटर पर 5911 जितना कामयाब कोई ट्रक्टर नही हुआ । डबल क्लच इसमें शुरवात थी सबसे पहले कम्बाईन पर यहीं कामयाब हुआ था ।

इन सब खूबियों के साथ hmt 5911 कमियों से भी भरा पड़ा था । सबसे बड़ी कमी में इसका स्टेरिंग , जो की मैन्युअल था । इतने भारी ट्रक्टर में पॉवर स्टेरिंग ना होने कारण इसको मोड़ना बेहद मुश्किल था । इसको चलाने के बाजुओं में जान चाहिए थी । कमजोर आदमी तो इसके स्टेरिंग के साथ झूलता ही रहता था । अगली कमी इसका का डीजल इंजन पंप था , जो की बेहद खराब रहता था , कई ट्रक्टर तो खत्म हो गए मगर उनके पंप की हवा का पता नहीं लगा । पंप तो मिस्त्री पर गया ही रहता था । अगली कमी इसके गियर और क्लच था , बड़ी हॉर्स पॉवर के आगे गियर की गरारी और क्लच प्लेट जल्दी साथ छोड़ जाती थी । इसके वाटर बॉडी भी कुछ खास नहीं थी , पानी का रिसाव रहता ही था । इसकी एक और बड़ी कमी थी की इसके पिछले पहियों में रिडक्शन लगी थी जो चलते वक़्त बहुत आवाज करती थी और खराब भी जल्दी हो जाती थी । इसका एक बहुत बड़ी कमी थी जिस से बहुत लोग दूर भागते थे वो थी इसकी लीकेज । इसकी कवर बॉडी बहुत हिलती थी जिस से जल्द बुढ़ापा आ जाता था , ये बहुत जगह से लीकेज करता था , इसके चलाने वाले के कपड़े साफ नही रहते थे , डीजल टैंक की भी लीकेज थी ।

इन कमियों और खूबियों के साथ hmt 5911 ने राज भोगा है ये वाकिया ही झोटे जैसे जान लगाता था । इसको hmt 5911 या ज़ीटर 5911 ना कह कर बल्कि सिर्फ 5911 कह के बुलाया जाता था । hmt कम्पनी खुद को अपडेट नही कर पाई और शायद 2016 में बन्द हो गई । 80 के दशक में hmt के साथ करार पूरा होते ही ज़ीटर ने गुजरात की किसी कम्पनी से हाथ मिला लिया था और उसने अपने ज़ीटर मॉडल की नकल पर दमदार हिंदुस्तान नाम से ट्रक्टर निकाले । hmt आज बन्द है मगर चकोस्लोवाकिया में ज़ीटर आज भी बड़ी कामयाबी से चल रही है ।

खेतो के राजा 5911 को एक किसान सालाम

By: पलविंदर खैहरा।



Saturday 15 June 2024

शमशाद बेगम जी मान गोत की जाट थी!

हमारे समाज में सिर्फ़ जाति आधार पर ही भेदभाव नहीं है, यह भेदभाव क्षेत्र आधार पर भी है, यह भेदभाव धर्म के आधार पर भी है। यह भेदभाव वाली व्यवस्था सिर्फ़ दूसरी जातियों से ही नहीं ख़ुद की जाति से भी है। एक ही जाति, एक ही गोत, पर अगर धर्म अलग-अलग हैं तो दोनों एक दूसरे से पूरी धार्मिक छुआछूत बरतते हैं। इस धार्मिक छुआछूत का उदाहरण महान गायक मोहमद रफ़ी, शमशाद बेगम आदि हैं। बॉलीवुड का ज़िक़्र आता है तो हमारी सोच सिर्फ़ पहलवान दारा सिंह जी और धर्मेंद्र जी तक सीमित रह जाती है। जबकि इन्हीं लोगों के समकालीन बॉलीवुड में गायकी में कई दशकों तक जिनकी बादशाहत रही उनके बारे में हमारे लोगों को या तो पता नहीं, पता है तो ज़ुबान सिल जाती है क्योंकि वो मुस्लिम जाट हैं? मोहमद रफ़ी साहब का बेटा इंटर्व्यू में ख़ुद कहता है कि वो लोग पंजाब के जाट हैं। पर नहीं, हम तो इन्हें मिरासी या हज्जाम मानेंगे? जबकि उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी में उनका गाँव गोत सब लिखा है, उनका बेटा ख़ुद को गर्व से जाट बता रहा है।

रफ़ी साहब की तरह ही एक वक़्त में बॉलीवुड में महान गायिका शमशाद बेगम जी का पूरा सिक्का चलता था। पर मैंने हमारे किसी भाई को कहते नहीं सुना कि वो जाट थी। जबकि इनकी ऑटोबायोग्राफ़ी में इनका गोत और जाति बड़ी स्पष्ट लिखी हुई है। शमशाद बेगम जी का जन्म लाहौर में मान गोत के मुस्लिम जाट परिवार में हुआ था। 1940 से 1970 तक शमशाद बेगम जी का बॉलीवुड में पूरा सिक्का चला। मंगेशकर बहनों (लता जी व आशा जी) ने अपना कैरीअर शमशाद बेगम जी की सहगायिका के तौर पर शुरू किया था। दोनों बहनें शमशाद जी के कोरस में गाया करती। शमशाद बेगम जी एक महँगी गायिका थी, जो प्रडूसर्ज़ के लिए अफ़ॉर्ड करना आसान नहीं था तो जब मंगेशकर बहनों का कैरीअर आगे बढ़ना शुरू हुआ तो प्रडूसर इनसे माँग करते कि आप लोग शमशाद बेगम के अन्दाज़ में गाओ। सन 2009 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में शमशाद बेगम जी को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 23 अप्रैल 2013 को मुंबई में शमशाद बेगम की का निधन हो गया था।

By: Rakesh Sangwan

Friday 14 June 2024

इस महाशय को अब अकेले जाट ही क्यों याद आएं हैं?:

जब जंतर-मंत्र पर पहलवान बेटियां घसीटी जा रही थी; तब नहीं बोला यह महाशय कि यह बेटियां जाट हैं व् जाट देश की शान होते हैं; उनकी आवाज को इस तरीके से क्यों दबाया जा रहा है? 13 महीने चले किसान आंदोलन में नहीं चुस्का यह महाशय कि यह जो किसान आंदोलन लिए चले आएं हैं दिल्ली तक, इनमें 80% तक किसान जाट-जट्ट बिरादरी से हैं, तो इनको आवाज सुनो व् बिना तकलीफ दिए इनको न्याय दो| जब अग्निवीर ला के सेना का अभिमान कुचल रहा था मोदी, तब नहीं चुस्का यह महाशय कि उस सेना को ऐसे मत खत्म करो, क्योंकि उसमें हर तीसरा सैनिक इसी जाट समाज से आता है, जिसको यह आज देश की शान बता रहा है? 


अब चुस्का है क्योंकि पूरी खापलैंड व् मिसललैंड पे फंडियों को, फ़िलहाल हुए लोकसभा चुनावों में जब जाट-दलित-सिख-मुस्लिम व् 50% ओबीसी समाज ने मिल के रसातल में चिपका दिया तो इन महाशय को सिर्फ जाट याद आ रहे हैं (बाकी दलित व् ओबीसी कोई याद नहीं आया)| इसका तथाकथित हिन्दू राष्ट्र की आड़ में "मनुवाद राष्ट्र" बनाने का भूत उतरा नहीं है सर से अभी भी| यह कवायद अब आगामी हरयाणा विधानसभा चुनावों बारे लगती है; व् इनको इसकी ड्यूटी दी गई हो जैसे| और देखें जरा कितनी arrogance व् बदतमीजी से कह रहा है; जैसे जाट कौम इसकी बंधुआ हो| 


यह वही भाषा व् एप्रोच है, जैसी 'जाट जी जैसी सारी दुनिया हो जाए तो पंडे-पुजारी भूखे मर जाएं' वाली स्तुति सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें सम्मुल्लास में लिखी है; वह व्यक्ति कम-से-कम ईमानदारी से सादर तो लिख रहा था; इसका तो लहजा ही "जाट समाज को बंधुआ" समझने वाला है| भला, कौन तो जाट किसी को भूखा मारने वाला; व् जाट ने किसी के हाथ जूड़ रखे हैं या उनको कमाने-खाने से रोकता है; जो वह भूखे मर जाएंगे; और कौन जाट, जो इसको "मनुवाद राष्ट्र" बना के देगा| बना ले अपने तथाकथित ज्ञान व् शक्तियों से खुद ही; जिसके जाल में फंसा के इतनी जनता अपने पीछे लगाए फिरता है; इसके बाद भी जाट की जरूरत की कसर ही रह गई; हद है| 


दूर रखें खुद को व् अपने बच्चों को ऐसे फलहरियों से; होते म्हारे दादों-पड़दादों वाले जमाने तो लठ लगते इसकी पिण्डियों पे| 


Bageshwar Dhaam baba about Jats in below video!



राजा vs खाप

राजा का बेटा राजा बनेगा! राजा उसे पहले ही राजकुमार घोषित कर देगा और समय पर उसका राजतिलक कर देगा! प्रजा जय जयकार करेगी और शासन बडे राजा से पुत्र राजा के पास चला जाएगा! उसका शब्द ही कानून होता है और उसका आचरण ही नैतिकता की सीमाएं तय करता है! दशरथ ने समय रहते राम के राज्याभिषेक की तैयारी कर दी थी परंतु जंगल जाना पडा लेकिन जंगल से भी राज चलाते रहे जैसे अब कुछ राजा जेल चले जाते हैं और उनकी जगह भरत गद्दी पर उनकी खडाऊँ रख कर उनके नाम से राज करते हैं!

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ये राजा पता नही कहाँ होते थे हमारे यहाँ तो खाप होती थी जो सामूहिकता से फैसले लेती थी और उनका प्रधान हर बार अलग चुना जाता था! खापलैंड में ये सब सामंतवाद नही होता था और राजकुमार की तो छोडिए राजा ही नही था! खाप ही सामाजिक राजनीतिक और सभी प्रकार का मंच होती थी और वहीं सब फैसले करती थी!
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लोकतंत्र आया और लोग चुने जाने लगे लेकिन उनके चुनने का तरीका थोडा खाप से अलग होता रहा! खाप में चुनाव जहां हाथ उठा कर सामने सहमति से होता था वहीं ये चुनाव पर्दे की आड में होता था! लोगों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास बढता चला गया कि उसने नही दी होगी वोट या इसने नही दी होगी! इस तरह चुनाव से लोग विधायक सांसद चुने जाने लगे और मन्त्री मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने लगे! अगर पुराने समय के अनुसार बोलूं तो राजा बनने लगे! जब राजा बनने लगे तो राजकुमार भी बनने लगे! बेशक लोकतंत्र था लेकिन एक ही व्यक्ति को आप बार बार चुना जाता रहा तो वो खुद को राजा ही समझने लगे और समझें भी क्यों नही जब जनता ही उनको राजा बनाने पर आमादा थी और आंख बंद करके उन्हीं को बना देती रही! जब उनको ये गुमान हो गया कि वे राजा हैं तो उनके बेटे भी राजकुमार ही होगें! अब जब जनता ही राजा बनाने पर तुली है तो राजकुमार भी जनता ही बनाती है! लोकतंत्र राजशाही में बदल गया! कई कई राजाओं के तो राजकुमार भी आ गये और उनके राजकुमार भी आ गये!
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हरियाणा में लगभग चालीस विधायक पूर्व विधायक अपने बेटों के लिए टिकट मांग रहे हैं! ये उनका हक है क्योंकि ये वहीं लोग हैं जिन्होंने काफी काफी सालों से अपने अपने क्षेत्र में राजा का कद प्राप्त कर रखा है! कोई पैंतीस साल से चुना जा रहा है कोई चालीस साल से चुना जा रहा है! जनता भूल चूकी है कि कोई और भी चुना जा सकता है! अब इनको गुमान हो गया है कि उनके बेटों का राजतिलक होना चाहिए! अब उनकी जगह उनके बेटे राज संभालेगें और वो अब आराम करेगें! ये सब काम वो अपने जीते जी ही करना चाहते हैं! ये खाप की धरती पर हो रहा है उस धरती पर हो रहा है जहां गणतंत्र था जहां कोई राजा वजीर नही होता था! कुछ राजकुमारों का राज्याभिषेक हो चुका है लेकिन अगला चुनाव इनका ही होगा! जनता जोरदार तालियां पीटे जनता इनकी जय जयकार करे! उसके पास बस केवल यहीं है एक दिन पोलिंग बूथ पर जाए और बटन दबा आए और राजकुमार का राजतिलक कर आए!!
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अब जो राजकुमार हैं वो राजा बनेगें और फिर अपने बेटों को राजकुमार घोषित कर देगें फिर समय पर राजा बना देगें! प्रजा अपने बेटों के लिए डी ग्रुप की नौकरी के लिए उनके दरवाजे पर माथा टेकती रहे! हजूर माई बाप आप मेरे लडके को लगवा दें तो रोटी पेट की चिंता कम हो! चिरौरी करनी होती हैं और मिन्नतें करनी होती हैं! लोकतंत्र फिर अहसास कराता है जनता को कि तुम मालिक हो इस देश के और वो फूल कर कुप्पा हो जाती है! टेढी टेढी चलना शुरु कर देती है और चुनाव वाले दिन उसके सामने दो विकल्प दे दिए जाते हैं दो राजकुमार! आप इस राजकुमार को चुनो या उस राजकुमार को चुनो! आप वोट ना भी दोगे तो राजकुमार का राजतिलक नही होगा इस खुशफहमी में मत रहना!
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राजकुमार तैयार हैं राजा तैयार हैं राजतिलक का समय तैयार है और जनता जय जयकार करने के लिए तैयार है! चंवर डुलाए जाएगें जयकारें लगाए जाएगें राजा बनाए जाएगें तुम्हारा क्या बे! काटडे की मां के धूण दूध पर काटडे का क्या? जनता देखती रहे सुनती रहे और राजतिलक पर थोडी बहुत मिठाई खाती रहे! क्या ये खापलैंड की जनता इस पर ध्यान देगी? क्या ये समानता का समाज अपने में से किसी को राजा बनाएगा या राजा पुत्रों को ही राजकुमार बनाएगा!

By: Sukhwant Singh Dangi

बागडी जाट और देशवाली जाट!

बागडी जाट और देशवाली जाट के पहले रिश्ते नही होते थे! भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दादा चौधरी मातूराम ने पहली बार देशवाली और बागडी जाट के बीच रिश्ते करवाने की मुहिम शुरु की और अपने परिवार से ही बहुत रिश्ते बागडी जाटों में किए! ये मुहिम जोर पकडती गई और धीरे धीरे सब सामान्य होता चला गया! जाटों में ब्याह रिश्ते का बडा ख्याल रखा जाता था और लगातार विकास की कोशिश जारी रहती थी! गोत्र छोड कर शादी करना भी इसी का हिस्सा था जो बाद में सांइटिफिक निकला!

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बागडी जाट उसे कहते हैं जो अपने मूल स्थान को छोड कर दूसरी जगह जाकर बस गया! पहले अकाल पडते थे लंबा सूखा आम था तो लोग जब एक जगह पर गुजारा नही हो पाता था तो दूसरी जगह चले जाते थे और बस जाते थे! एक तो मजबूरी और भूखे मरने की नौबत और दूसरे के यहां जाकर शरण लेना इससे उनके आत्मविश्वास और मनोबल पर फर्क पडता था तो वो कम बोल्ड हो जाता था! दूसरों के ईलाके में शरण लेने से उसके व्यवहार आचार और विचार पर बहुत फर्क पडता था और वो एक अलग ही तरह का व्यवहार करता था! उस ईलाके के मूलनिवासी उन पर हावी रहते थे और वो जैसे तैसे उनमें एडजस्ट होने और आगे बढने की कोशिश करता था! बागडी जाट दूसरों की बजाए ज्यादा व्यापारिक सोच का होता था और एक प्रकार का सामंतवाद उनके ईलाकों में देखने को मिलता था! 1890 के आसपास राजस्थान से भारी संख्या में जाटों का आगमन हरयाणा में हुआ और क्योंकि ज्यादा उपजाऊ जमींन पर और लोग बैठे थे तो वो हरयाणा के कम उपजाऊ और रेतीले ईलाकों में एडजस्ट हुआ और चौधरी देवीलाल का परिवार भी उसी समय राजस्थान से हरयाणा आया था!
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देशवाली जाट वो जो यहां का पहले से निवासी था! देशवाली का मतलब होता है जिसके देश के देश बसते हों! एक व्यक्ति जो अपने भाईयों के बीच रहता हो वो खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है और उसका मनोबल और आत्मविश्वास ज्यादा होता है! उसे कोई भय नही होता और जब भय नही होता तो मानसिक रुप से व्यक्ति बहुत मजबूत होता है और बोल्ड होता है! उसकी एक अजीब तरह की साइकोलॉजी होती है और वो बात बात पर विरोध करता है! कुछ गांव ऐसे हैं जो अपने ईलाके में एक ही गोत के गांव हैं पर देशवाली हैं क्योंकि पूरा गांव अपने भाईयों के साथ रहता है! पहले जाटों का माइग्रेशन नही होता था और केवल राजस्थान से ही जाट हरयाणा आया था! हिंदू उतराधिकार अधिनियम के बाद जमींन में लडकी का हिस्सा होने के बाद जाटों का माइग्रेशन हुआ और वो दूसरे की देहल पर जाने लगे!
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चौधरी देवीलाल के परिवार ने एक अलग ही थ्योरी लोगों के दिमाग में घुसेड दी और उसने बागडी जाट को जिलों के आधार पर कहना शुरु कर दिया! अब जाटों की बसासत ऐसे तो बसी नही कि आगे चल कर जिले बनेगें तो जिले की सीमा से इधर बागडी और उधर देशवाली! इस थ्योरी को पेश करने में उस परिवार की अपनी सोच थी! वे ज्यादा से ज्यादा जाटों को अपने जैसा बनाना चाहते थे ताकि उनकी संख्या बढे और वोट के समय उनमें अपनापन आए और उनकी ताकत बढे और दूसरा सबसे अहम वजह ये थी कि उनका ये ना पता चले कि वो बाहर से आए हैं! लोगों ने उनकी इस थ्योरी पर ध्यान नही दिया और उनके समर्थकों ने बडे पैमाने पर ये बात फैलाई कि ये बागडी हैं और उन्होंने मोटा मोटी रोहतक सोनीपत झज्जर को छोड कर भिवानी चरखी दादरी तक वो बागडी में ले गये! किसी ने ये सोचा ही नही! जब चौधरी देवीलाल का परिवार सिरसा आया तो ऐसा तो था नही कि वहां कोई जाट बसता ही ना हो! वहां जो जाट बसते थे उनसे इस परिवार का लंबा संघर्ष चला भी है तो जो वहां पहले रहते थे वे देशवाली जाट थे और इनसे दबते नही थे! औमप्रकाश हिटलर उसी परिवार से थे जो देशवाली जाट थे! इस थ्योरी से उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद खूब प्रचार किया जिससे वो चरखी दादरी को भी अपना ईलाका मानते थे जबकि चरखी दादरी देशवाली ईलाका है! अजय सिंह ने चुनाव ही इसलिए लडा था कि इस ईलाके को अपने साथ जोडा जाए! औमप्रकाश चौटाला इस बात को जानते थे कि जाटों के अगर नेता बनना है तो देशवाली जाट को अपनी तरफ करना होगा! महम कांड लंबा संघर्ष इस पर फिर कभी! चौधरी देवीलाल के परिवार ने कभी भी किसी देशवाली जाट को उभरने नही दिया! पूरे हरियाणा में एक भी बता दो! हर जगह से टिकट उस जाट को दी जो गोत से अकेला था और किसी ना किसी वक्त कहीं से माइग्रेट होकर आया था!
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सिरसा हिसार देशवाली जाटों के ईलाके हैं! चुरु झुंझुनूं नागौर देशवाली जाटों के ईलाके हैं! जमींन से कोई बागडी या देशवाली नही होता है! ये थ्योरी ही गलत है और चौटाला फैमिली द्वारा फैलाई गई है! पहले आर्य समाज और उसके बाद संघ बागडी जाटों में घुसा! मैं ये भी बताता चलूं कि रोहतक में भी बागडी जाट हैं और बागपत बिजनौर में भी बागडी जाट हैं! पश्चिमी और दक्षिणी हरयाणा थार का मरुस्थल है! रोहतक भी इसी में आता है! जहां जहां धूल भरी आंधी इस मौसम में चलती है तो वो थार के मरुस्थल पर बसा हुआ ईलाका है! रोहतक में नहरें पहले आ गई तो जमींन समतल होती चली गई इसका मतलब ये बिल्कुल नही है कि वो अलग ईलाका है!
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इस सब्जैक्ट पर पूरा पढने के बाद भी मुझे ये समझ नही आया कि चौधरी मातूराम ने ऐसा क्यों किया? बागडी जाट से उसके लगाव की वजह क्या रही! कोई अगर किसी को उसका हक दिलवाता है तो उससे कोई ना कोई लगाव की वजह होती है! बागडी जाट डी एन ए में बराबर होता है परन्तु जैसे कुछ दिन पहले उस जाट को कमजोर माना जाता था जिसके घर में भैंस नही होती थी और उसके बारे में ये कहते थे कि यो कैसा जाट है इसके तो डोली में दूध आता है! जब कोई जाट किसी रिश्तेदारी में जाता था तो सबसे पहले ये पूछते थे कि धीणा के है! भैंस कितने दिन में ब्यायेगी? जाट जमींन को छोड कर नही जाता था और बागडी जाट को जमींन छोड कर आनी पडती थी तो उसे डोली में दूध लाने वाले जाट की तरह ही कमजोर माना जाता था और रिश्ते नही होते थे! चौधरी मातूराम ने इसकी शुरुआत की और बाद में ये सब नार्मल हो गया! चौधरी मातूराम आर्य समाज के भी बडे और आरंभिक नेताओं में थे! उनके भाई ने आदमपुर में एक गांव भी बसाया जिसका नाम लुदास है!
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एक अंग्रेज अधिकारी की किताब के आधार पर और कुछ मेरी अपनी परिकल्पना के आधार पर लिखा है! आप कमेंट करें और खुल कर करें हो सकता है आप स्वीकार ना कर पाओ क्योंकि आपके दिमाग में पहले से कुछ और भरा है! चौधरी देवीलाल और चौधरी चरण सिंह दोनों बागडी जाट थे इसीलिए चौधरी चरण सिंह ने देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए वीटो की!

By: Sukhwant Singh Dangi