Friday, 29 December 2023

बहुत देर कर दी आते आते ...

श्री रामचंद्र जी भी सोचते होंगे कि ये कैसे भक्त हैं मेरे, जिन्होंने पांच सो साल लगा दिए? जबकि इस बीच मेरे इन संघि भक्तों के पूर्वजों (पेशवाओं) का दिल्ली पर राज भी रह लिया! और अब भी इन्होंने ये बनाया भी है तो वोटों के लिए, न कि आस्था के नाम पर। मेरे इन स्वार्थी संघी भक्तों ने पहले बनवाने के नाम पर वोट मांगे और अब 2024 में बनने के नाम पर वोट मांगेंगे! 

और एक वो खालसा बाबा बघेल सिंह ढिल्लों था, जिसने मुगलों के हलक में लठ देकर दिल्ली में न सिर्फ गुरुद्वारों के लिए जमीन ली, बल्कि इनके निर्माण के लिए खर्च भी मुगलों से ही लिया। और सिर्फ एक ही नहीं, बल्कि चार गुरद्वारों का निर्माण करवाया। क्योंकि उसकी नीयत सिर्फ आस्था की थी, सियासत की नहीं। जबकि मेरे इन भक्तों को सिर्फ एक मंदिर बनवाने में पांच सो साल लग गए, क्योंकि इनकी नियत सिर्फ सियासत की है!? 

By Rakesh Sangwan

Wednesday, 27 December 2023

साक्षी मलिक व् विनेश फौगाट बहनों के रूप में कल्चर व् किनशिप का अंतर् बड़ा स्पष्ट हो जाता है!

एक किनशिप से यह दोनों आती हैं, जिसकी मूल किनशिप में औरत को मुसीबत के आगे जोहर करना या सति होना नहीं सिखाया जाता अपितु महारानी किशोरी की भांति लड़ना सिखाया जाता है| जैसे महारानी किशोरी ने उनके बेटे महाराजा जवाहरमल को दिल्ली फतेह में लीड किया था ऐसे ही साक्षी मलिक बनी भाई बजरंग पूनिया व् भाई वीरेंद्र सिंह यादव द्वारा पद्मश्री त्याग देने की लीड| फिर आई विनेश बेबे, खेल रत्न व् अर्जुन अवार्ड त्याग देने वाली| यह उस किनशिप से आती हैं जिसने "गाम की बेटी 36 बिरादरी की बेटी" व् "गाम-गौत-गुहांड" के सिद्धांत पाले हैं| कम से कम इतने तो पाले ही हैं कि बलात्कारियों-मोलेस्ट्रो के पक्ष में जुलूस नहीं निकाले कभी|


यह बातें भी आज के दिन जो व्यवस्था में बैठे हैं इनको समझ क्यों नहीं आ रही? क्योंकि इनका कल्चर-किनशिप, औरत को सिद्धांत रूप से बलि की बेदी बनाये रखने का है| औरत का पति मर जाए तो उसके साथ औरत सती होगी या खुद को मनहूस मान काल-कोठरी में रहेगी या विधवा आश्रमों में चली जाएगी, औरत के पति पे मुसीबत आ जाए तो औरत लड़ने की बजाए जोहर करेगी| अछूत कही जाने वाली बिरादरी की बेटी हुई तो तथाकथितों द्वारा देवदासी बना ली जाएगी| व् इन किनशिप के समाजों के लोग उनके यहाँ के बलात्कारियों-मोलेस्ट्रो को गलत कहने की बजाए उनके पक्ष में जुलूस निकालते हैं| 2014 के बाद तो ऐसे नजारों की पूरी लिस्ट साक्षात् देख ही चुके हो?

और क्या इससे आगे, खुद को देवदासी बनाने के लेवल तक समझौते करती यह बेटियां?

नादाँ हैं वह तमाम भक्त, इन बिरादरियों व् इन जैसी बिरादरियों की कल्चर-किनशिप से जिससे साक्षी व् विनेश आती है; व् यह तमाम लोग यह मूल अंतर् नहीं समझ पा रहे; इनके कल्चर व् अपने कल्चर में| तुम्हारा तो कल्चर-किनशिप ऐसी है कि एक पल को मर्द कुछ एडजस्ट करने के मोड में जाते भी दिखेंगे तो तुम्हारी औरतें ही तुम्हें उधर नहीं जाने देंगी; उदाहरण साक्षी मलिक|

यह हमारे समाज का वह ग्लोबल चरित्र है जिसका सबसे बड़ा उदहारण फ्रांस की औरतें हैं| वसुधैव-कुटुम्ब्क की बक-बक बकने वालों को बताना यह बात कि जहाँ बदनीयती से हिटलर आता है परन्तु फ्रांस के मर्दों से पहले फ्रांस की औरतें ही उसको झुका देती हैं| इसीलिए फ्रांस में औरत को इतना सम्मान है व् यही बानगी आपकी कल्चर किनशिप की है; इसको पहचानों, वक्त रहते कि इससे पहले देर हो जाए व् तुम इस कल्चरल बुलंदी से नीचे गिर जाओ|

क्यों खामखा खुद को भी परेशान करते हो व् समाज को भी परेशान करके रखे हुए हो; इन छद्मों के चाटुकार हो के| वक्त रहते अपनी किनशिप की यह जिद्द, यह अनख पहचानों व् इन नादानियों से किनारे रहो| एक उत्तर है तो एक दक्षिण; एक पूर्व है तो एक पश्चिम| अत: अपने इस किनशिप के स्वभाव को समझो व् इसके अनुरूप चलने की लाइन पे रहो|

करने दो व् मानने दो जो औरत को विधवा-आश्रम में सड़ाना सही मानते हैं, उसको सती करना, जोहर करना सही मानते हैं; हमें क्या दिक्कत उनसे, उनका समाज, उनके मर्द-औरत वह जानें; आप बस अपने को बचाने व् कायम रखने पे फोकस रहो| बल्कि इनका आदरमान करो, इन बातों के लिए अगर यह खुश हैं तो; परन्तु इनको अपने अंदर या अपने ऊपर ओढ़ने की नादानी मत करो; क्योंकि तुम्हारा खून व् तुम्हारी औरतें तुम्हें ऐसा करने ही नहीं देंगी; उदहारण साक्षी मलिक व् विनेश फोगाट|

विशेष: वह गधे इस पोस्ट से दूर रहें, जिनको यह सब पॉलिटिक्स हेतु ड्रामा लगता है; क्योंकि यह पॉलिटिक्स थी भी तो तुम्हारे आकाओं को भी 11 महीने यह मौका दिया गया था कि इन बहनों के जरिये कोई पॉलिटिक्स का बहाना निकलता है तो मोदी-शाह लपक लें| परन्तु नहीं लपका; तो कहीं तो जा के अपना मान-सम्मान बचाएगा इंसान; या मोलेस्टेर्स को यूँ खुला सर पे नाचता देखता रहे? कोई तो बॉर्डर लाइन होगी, जुल्म की इंतहा को मात्र पॉलिटिक्स से आगे जा के देखने की या नहीं?

जय यौधेय! - फूल मलिक

बाकी उरै-परै की छोड़, अगर सिखी ना होती तो

 बाकी उरै-परै की छोड़, अगर सिखी ना होती तो किसान आंदोलन भी नहीं होता! हमारे वाले फंडियों से लड़ पाए क्योंकि सिखी पहले चढ़ के साथ आई| अकेले से आपसे 11 महीने चला पहलवान बेटियों का मसला हल ना हुआ; शुक्र मनाओ कि लोकसभा चुनाव सर पर हैं तो वोटों के डर से कुश्ती संघ ससपेंड कर दिया; वरना कौनसे और खून के आँसू चलवाते ये; दूसरों की बेटियों को देवदासियां बनाने की वासना व् हेय नजर रखने वाले, आपको समझ भी ना आती| 


किसी रोंदे-पिटदे आत्महीनता से ग्रस्त गैंडा सिंह का लिखा की अंतिम वाक्य हो जाएगा क्या? ऐसे-ऐसे नौसिखिये लेखक हमारी जूती पे व् ऐसे नौसिखियों की ऑथेंटिसिटी को मानने वाले उनके जैसे नौसिखिए नए-नए गैरअनुभवी विद्वान् बालक ही हो सकते हैं; कोई ऐसा विद्वान् नहीं जो पढ़ा व् कढ़ा दोनों ही हो| यहाँ मेरी इंटरप्रिटेशन यह है कि खुद को आपसे निम्न समझने की inferiority से भरा हुआ व्यक्ति यानि गैंडा सिंह ही आपको ऐसे लिखेगा| इतना पढ़ लिख गए हो और आज तक इतनी समझ नहीं बना पाए हो? इस लाइन पे बढ़ो अगर अभी इसपे कुछ नहीं सीखे हो तो| 


किसी कौम-कल्चर का किसी धर्म-जाति में उत्थान या पतन मापने का पैमाना क्या है तुम्हारा? 

मानसिक स्वछंदता है पैमाना है? - तो सिखी ज्यादा सरल है व् सुगम है| 

आर्थिक स्वछंदता पैमाना है? - तो किसान आंदोलन जो लड़ के अपनी जमीनें बचा ले, इससे बड़ी ताकत व् स्वछंदता और क्या होगी? एक 2019 का कोई सरकारी आंकड़ा उठा के तुम तरक्की दिखा रहे हो? उस रिपोर्ट को क्वोट करने से पहले जानते भी हो कि 60% हरयाणा NCR में आ चुका है? हरयाणा के वह आर्थिक आंकड़े, अकेले कृषि परवारों के नहीं होते, अपितु उन कंपनियों के भी होते हैं, जो 90% हरयाणा से बाहर वालों की हैं? खुद को विद्वान् बोलने लगे हो व् इतनी अक्ल नहीं ली अभी तक? एक जाति के स्तर पर जा के तुलना करने लगे हो या एक धंधे के आधार पर यानि कृषि के आधार पर तुलना करने लगे हो तो सिर्फ उसके आंकड़े देखो निकाल के| वरना हर दूसरा व्यक्ति यही कहेगा कि किसी संघी के हाथों में खेल रहे हो| 

सामाजिक सम्मान पैमाना है? - 35 बनाम 1 के दस-दस साल नफरत व् धुर्वीकरण के कुँए-खाई में कहाँ पड़े झेल रहे हो? 

आपसी सौहार्द पैमाना है? - तो फरवरी 2016 किधर झेले, मुज़फ्फरनगर 2013 किधर रहते हुए इस्तेमाल हुए? 

सोशल सिक्योरिटी? - इसपे भी सिखी को सबसे बढ़िया कहने में कोई हिचक है क्या किसी को? 

100% इस धरती पर कुछ नहीं है, तुम्हें चुनना होता है सबसे ज्यादा अच्छे व् सबसे ज्यादा बुरे में से| तमाम कमियों-खामियों के बाद तुलनात्मक पैमाने पे सिखी में वह बहुत कुछ है, जो वहां कभी हो भी नहीं सकता; जहाँ तुम बैठे हो| 


एक तो तुम्हारी यही समझ नहीं आती कि तुम जहाँ पड़े हो, उनसे भी तकलीफ व् जो इस लीचड़ व्यवस्था से पिंड छुड़ा गए या छुड़ा रहे हैं उनसे भी तकलीफ| तुम्हें यहाँ पड़ा रहना है तो पड़े रो ना; कौन क्या कह रहा है तुम्हें? दो किताबें, दो हर्फ़ क्या ज्यादा सीख लिए; सिखी में नुक्स निकाल रहे हो| इसको कोई ढंग से anthropology व् analogy सिखाओ यार; वरना ज्ञान इसने अर्जित किया है व् उसका इस्तेमाल फंडी करते रहेंगे| 


और मैं ना आज के दिन सिखी में हूँ, ना वहां जाने का हाल-फ़िलहाल कोई ईरादा| जो गए उनको भी सवाल किये थे, वह बिना जवाब दिए गए| परन्तु एक नीतिगत कौम-प्रेमी को चाहिए कि अपनों के खिलाफ खुद ही मोर्चे खोल के ना बैठे, इतना तो उन फंडियों से ही सीख लो, जिनकी तुम गाहे-बगाहे अनजाने में जस्टिफिकेशन करने लगे हुए हो? और मैं वो हूँ जो दिनरात खाप-खेड़ा-खेत पर काम करता है| 


और खुश हूँ जो सिखी में जा रहे हैं उनके लिए व् जो उदारवादी जमींदारी किनशिप को भी खड़ा कर रहे हैं, उनके लिए भी| 


हाँ, एक बात के लिए इस बच्चे को धन्यवाद बोल सकते हो, कि सिखी के "गुरु ग्रंथ साहिब" में अगर कहीं किसी जाति-बिरादरी के लिए कोई छोटा-माडा लिखा हुआ है तो उसको सुधार करवाया जाए| सुधार किसी भी धर्म के बढ़िया होने की निशानी है; जैसे बाईबल में निरंतर सुधार होते रहते हैं| यह तो मैंने इन उधर जाने वालों को शुरू दिन ही कही थी, कि देर-स्वर आपको इन सवालों पर घेरा जाएगा, परन्तु किसी अपने ही नादाँ से घिरवाने की कोशिश होगी, यह हास्यास्पद है| और आप लोग उसके आगे डिफेंसिव हो रहे हो, क्यों किस इज्जत या डर में? इस नादाँ से ही नहीं जिरह जीत पाए तो बाकियों को कैसे convince करोगे?   


जय यौधेय!

Monday, 25 December 2023

Periyar Ji’s speech as why he is burning the Constitution of India

Ladies and Gentlemen!


Can anybody say that India was one united nation before the British came? Was the Dravidian land ruled by anyone who was not a Dravidian? The British, for their own convenience tied together the various places he had won in his conquests together. He used the name that the Muslims gave him. One way or another this nation maybe a reality today, but how is it fair for you to exploit and rule this nation in a way that is worse than the Mughals and the British? You are imposing your language on us just like they imposed theirs.


You’ve made yourself this constitution. It is much like the Manu sashtra, a book of law that denies intervention or change by one and all. In the name of this book you have begun to control and oppress us. As per the constitution, one cannot oppose exploitation; we cannot ask for an independent nation, we cannot ask for reservations. You have made all of these efforts ‘punishable by law’.


Today, I would like to declare that we will not accept this constitution. This constitution affects us adversely. It has not been framed by our representatives. We will burn it.


With whose consent and with whom did you frame this constitution? You held elections maintaining the suffrage system as established by the British; for the rich and the educated alone. Those who won that election then made the constitution. Remember, you yourself boycotted all the laws that the British brought in using this suffragette system!


The two and a three fourth Brahmins, five rich people and their servants are to be the representatives of this nation? Was this constitution made with the participation of the poor of this country; the majority of the population? In 1946 you declared that the constitution will be made by the representatives elected after all people above the age of 21 can vote in this country. Did you do that?


Do you actually believe that you can get away with anything just because the British flung the country into your hands as they left in a hurry? You’ve established a constitution that will permanently oppress us and make it easy for you to exploit us. You then go ahead and impose this constitution on all of us? Did you tell the British you were going to do this when you asked for ‘independence’?


So, we will burn the constitution just like we burnt the Ramayana, Mahabharatham, Geethai, Prabandam etc. Just like how we declared and burnt all of those texts as being impractical and harmful for our everyday lives, we will do the same with this constitution that has been put in place to make it easy for those in power to enslave and exploit the people of this country. We will burn it. Yes, we will!


….


(Speech at Chennai beach, Triplicane, 03.08.1952. Viduthalai, 07.08.1952)

Friday, 22 December 2023

बृजभूषण दबदबा इसको कहते हैं!

 आड़ै दिन-रात सारे संघी, लोगों को यह कह के झूठा डराते हैं कि जाटों को वोट ना दियो ना तो यह थामने दबा लेंगे, थारा यह खोस लेंगे, वह खोस लेंगे; जाणूं जाट ना हो गए, शोले फिल्म आळा गब्बर हो गए कि सो जा बेटा ना तो गब्बर आ जाएगा| बता यह दबदबा है जाट-ब्रांड का और बृजभूषण के फिर भी यूं बहम है कि उसका दबदबा सै| यूं ज्युकर संघियों के जाट शब्द का ताप चढ़ा रहै, तेरा नाम ले के न्यू ताप चढ़ाने लायक जिस दिन संघी तेरा नाम इस्तेमाल करेंगे; उस दिन हम भी मान लेंगे बृजभूषण कि है तेरा दबदबा| मेरे बटों की सरकार आई को 9 साल हो लिए; पर "जाट-जाट-जाट का ताप ही नहीं टूट रहा इनका आज भी" कि हर संघी की बाकायदा ड्यूटी है "जाट का नाम ले के डराने की", म्हारे बीच की ही बिरादरियों को डराए रखने की| वरना यह सीधे मुंह एक वोट ही ले के दिखा देवें इनके बढ़िया काम समाज को गिनवा के? इतनी हस्ती बना बृजभूषण फिर कहता जचेगा कि है तेरा दबदबा| जाट का झूठा डर दिखाए बिना तो राजनीति नहीं चलती तेरे जैसों को सपोर्ट करने वालों की| जाट का तो झूठे में भी नाम ले के लोग वोट ले लेवें, इतना दबदबा सै इस नाम का|


दबदबा किसको कहते हैं वह मेवात एपिसोड जो अभी जुलाई 2023 में हो के हटा; जहाँ जाट व् खाप ने उल्टा हाथ क्या खींचा, तेरे जैसे मेवात चढ़ने की राह भूल गए थे; इसको दबदबा कहते हैं बृजभूषण| जिस दिन इतनी हस्ती हो जाए; उस दिन मान लेंगे कि है तेरा दबदबा

सत्यार्थ प्रकाश में एक ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने जाट को "जाट जी" का सम्मान देते हुए जाट के बारे लिखा है कि, "जो सारी दुनिया जाट जी जैसी हो जाए तो पंडे-पाखंडी भूखे मर जाएँ"| दबदबा इसको कहते हैं बृजभूषण; तेरे बारे आज तक कहीं ऐसा लिखा गया हो ऐसा तो मानें तेरा दबदबा|

दबदबा इसको कहते हैं कि जब महाराजा सूरजमल ने पानीपत की तीसरी लड़ाई से हाथ खींच लिए थे तो सिर्फ इतने मात्र से पानीपत में घुटने टेक रोये थे पेशवे कि खुद चल के मदद देने आये जाट का किस मनहूस घड़ी में अपमान कर बैठे और तब समझ आई कि "बिन जाटां किसनें पानीपत जीते"| दबदबा इसको कहते हैं बृजभूषण| हम तो किसी को छिंटक देवें तो इतने से ही अगले की हार हो जाती है|

तू बाकी छोड़; जिस दिन तेरे पुरखों को 21 बार धरती से मिटा देने वालों की; शोभा यात्रा रोक देगा; उस दिन मान लेंगे तेरा दबदबा| तेरी छाती व् घरों के आगे से निकाल के ले जाते हैं, हर साल वो शोभा यात्रा|

"जाटड़ा और फोड़ा, जितना दबाया उतना उभरा" - राजी मत हो; तेरे ऐसे ब्यान तो जाट के लिए ट्रेनिंग का काम करते हैं|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 21 December 2023

साक्षी मलिक बेबे वाली समस्या हो या उपराष्ट्रपति वाली बात हो!

यह दोनों ही तरह की समस्याएं तब हल होंगी जब जिस culture-kinship से यह दोनों आते हैं, वह कल्चर-किनशिप, इसके सबसे वृद्ध-समृद्ध 'Folk-culture' को अपने पुरखों की भांति 'Organized Culture' पर फिर से upgrade नहीं करेगी; इसके 'Folk-religion' को ही फिर से 'Organized religion' नहीं बनाएगी| यह कल्चर-किनशिप ऐतिहासिक तौर पर सबसे organized रही है, परन्तु इसके अपने लोगों के इन दोनों कार्यों पर इनके पुरखों की भांति निरंतर सरजोड़ करते रहने की परम्परा के विखंडित कर दिए जाने से या खुद की ही अति-उदारवादिता के आगे कर दी गई अनदेखियों से विखंडित होने दिए जाने से, एक ऐतिहासिक तौर पर सबसे socially professional कल्चर-किनशिप आज सबसे unorganized अवस्था में आई हुई है| 


हमारे जैसे कुछ लोग इसको फिर से दुरुस्त करने में शांतचित से लगे तो हुए हैं; परन्तु यह रास्ते अति-गहन व् अति-धैर्य से चलने वाले होते हैं, इसलिए काफी दुष्कर व् तप से भरे होते हैं| तो धैर्य धार मेरी बाहण, हम मुड़ेंगे जरूर; उसी पुरखों वाली अनख व् ठनक के साथ; जिसने इस सप्ताब की धरती को सबसे समृद्ध व् खुशहाल धरती बनाया है| 


आज जो इस धरती पर दावे ठोंकने चले आए हैं, वह तेरे पुरखों की मेहनत के निखार की रौनक के लुटेरे हैं; इसके पोषक नहीं| पोषक होते तो यहाँ की मिटटी के मिजाज को समझ कर चलते| बस इतना सा कर बेबे, तेरी पहलवान लॉबी का सरजोड़ करने का मिशन बना ले अब जिंदगी का, फुल-टाइम ना सही तो पार्ट-टाइम ही सही; व् उनको अपनी पुरख कल्चर-किनशिप पर वापिस जोड़ती जा| यही वह रास्ता है जो तेरी दुखी आत्मा को वह राह देगा; जिसकी अनख में तू इन वर्णवादी भेड़ियों से जा टकराई| 


जब किसी कौम के सबसे नाउम्मीद लोग ही उस कौम के मसीहा उछाले जाने लगें, व् बावजूद इसके उछाले जाने लगें कि खुद कौम ही उनको ऐसा ना मानती हो तो समझ लेना इसी को "किसी कल्चर-किनशिप-कौम-समाज के उल्टे लगना कहते हैं"| कम कहे में ज्यादा समझना; क्योंकि मैं अपनी ही कल्चर-किनशिप के व्यक्ति के क्रिटिक में न्यूनतम संदेश देने जितनी ही ड्योढ़ी छूता हूँ| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 20 December 2023

Two-thirds of northern Rajasthan were ruled by Jat rajas or nobles

 At least, the last Maharaja of Bikaner accepted in his book 'The Relations of the House of Bikaner With the Central Powers (1465-1949)' that prior to his Rathore ancestors (in the 1480s), two-thirds of northern Rajasthan were ruled by Jat rajas or nobles. The book in the picture is still considered the best book on the history of Rajasthan, written by Colonel James Tod between 1820 and 1832, and it mentions seven major Jat noble families. - By Shivatva Beniwal




Monday, 18 December 2023

जाटों को सिख गुरुओं ने एक लड़ाकू जाति बनाया?

जाटों को सिख गुरुओं ने एक लड़ाकू जाति बनाया?

उत्तर: महमूद ग़ज़नवी के इतिहासकार बेहाक़ी (1000s) ने जाटों को हिंदुस्तान की प्रमुख लड़ाकू जाति बताया। तुर्क तैमूर (1390s) ने जाटों को लड़ाकू राक्षस बताया, जिनसे सारे लोग डरते थे। प्रामाणिक प्राथमिक साक्ष्य प्रस्तुत किया जा रहा हैं, जिनको आप स्वयं पढ़े।







कोई यह सच्चाई नहीं मिटा सकता हैं कि जाटों को "चांडाल" एवं "शूद्र" सिख खत्री विद्वानों ने बनाया हैं, विशेषकर स्वर्गीय गंदा सिंह और पतवंत सिंह ने। हालांकि किसी भी जाति का वर्ण कभी भी पूरी तरह से तय नहीं था, पर कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थानी साहित्य के आधार पर जाटों को छत्तीस कुल के क्षत्रिय माना हैं, आप चाहे तो यह बात उनके प्रसिद्ध ग्रंथ में देख सकते हैं। टॉड ने यह बात कुमारपालचरित, पृथ्वीराजरासो, इत्यादि ग्रंथों के आधार पर लिखी हैं। फिर खत्री सिख विद्वानों ने कुछेक फ़र्ज़ी सबूतों के आधार पर यह साबित किया कि जाट सिंध के भगौड़े चांडाल हैं, जिनको खत्री गुरुओं ने सभ्य मनुष्य बनाया और जिनको बंदा बहादुर ने कृषि भूमि दी। यह ही सिखी को एक महान धर्म बनाती हैं कि उन्होंने डेढ़ करोड़ सिंधी चांडालों को सभ्य एवं समृद्ध मनुष्य बनाया। यह ही बात मुझे और मेरे विद्वान जाट मित्रों को चुभती हैं, वरना हमारी सिखी से कोई दुश्मनी नहीं हैं। खत्री चाहे तो राम के वंशज बने और चाहे तो सम्राट सारगोन महान के वंशज बने, उससे हमें कोई अपाति नहीं हैं। पर खत्री जाति को महान बनाने के लिए, जाटों के इतिहास पर कलंक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। बस। एडिट: वह प्रथम डॉक्यूमेंट जिसमें जाट को चांडाल लिखा हैं, को अच्छे से देखो। वो किसने, किससे और क्यों लिखवाया हैं?


कर्नल जेम्ज़ टॉड ने, वर्ष 1820 और 1832 के मध्य में, कुमारपालचरित, पृथ्वीराजरासो, सहित राजस्थानी साहित्य और एक अभिलेख के आधार पर लिखा कि पाँचवीं शताब्दी अथवा उससे पहले से ही जाट राजस्थान में रह रहें थे और उनको छत्तीस कुल के क्षत्रियों में शामिल किया हुआ था। लेकिन पहली बार वर्ष 1967 में पंजाब में एक पुस्तक छपी जिसमें जाटों को बारहवीं शताब्दी में सिंध से आये चांडाल बताया गया। (Essays in Honour of Dr. Ganda Singh. Eds. Harbans Singh and N. Gerald Barrier: Punjabi University, Patiala, 1970. pp. 94.) फिर उस किताब को बहुत बड़े स्तर पर quote किया गया और सिंध एवं चांडाल वाली थ्योरी को प्रसिद्ध किया गया




जाटों को सबसे पहले शस्त्र रखने की अनुमति सिख गुरुओं ने दी?

जाटों को सबसे पहले शस्त्र रखने की अनुमति सिख गुरुओं ने दी। उससे पहले जाटों को शस्त्र रखने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि जाट शूद्र थे।


उत्तर: ब्रिटिश काल तक खत्री को भी एक नीच और वर्णसंकर जाति माना गया। तो खत्री गुरुओं को यह किसने अधिकार दिया कि वो जाटों को शस्त्र रखने की अनुमति दे? वैसे बिना शस्त्र जाट महमूद ग़ज़नवी, तुर्क तैमूर, आदि से लड़े कैसे? सच्चाई तो यह हैं कि स्वयं सिख गुरु मुग़लों से बचने के लिए जाट शस्त्रधारियों की शरण में रहते थे। जाट लोगों के कारण ही सिखी में शस्त्र रखने की परंपरा आई और यह बात W.H. McLeod ने लिखी। 



क्या जाट भूमिहीन शूद्र थे?

यह कहना या उछालना-उछलवाना एक फंडी-प्रोपेगंडा है कि "जाट भूमिहीन शूद्र थे, जो खत्रियों और राजपूत ज़मींदारों के खेतों पर दिहाड़ी मज़दूरी करते थे। जाटों को बंदा बहादुर ने ज़मीनें दी"।


उत्तर: आ’यन-ए अकबरी के अनुसार गंगा से झेलम नदी के मध्य जाट सबसे प्रमुख ज़मींदार जाति थी। खत्रियों के पास ज़मीन, नहीं तो पहले थी और ना ही आज हैं। खत्री जाट ज़मींदारों के पटवारी और मुंशी होते थे। सतलुज के आगे राजपूत नाम की कोई जाति ही नहीं थी।

संदर्भ: Khan, Zahoor Ali. “ZAMINDARI CASTE CONFIGURATION IN THE PUNJAB, c.1595 — MAPPING THE DATA IN THE ‘A’IN-I AKBARI.’” Proceedings of the Indian History Congress 58 (1997): 334–41. http://www.jstor.org/stable/44143925. 



Saturday, 16 December 2023

एनिमल मूवी का 500 करोड़ की कमाई का कॉकटेल!

कई बार पूछा जाता है कि यह जाट-जट्ट शब्दों का फिल्म व् गानों में इतना ज्यादा इस्तेमाल क्यों होता है; व् अधिकतर इस्तेमाल हिट भी होते हैं? वह भी हर जाति-धर्म में? हिंदी बेल्ट की कोई ही ब्याह शादी होगी जो इन शब्दों वाले गानों के बिना पूरी होती हो? इसकी वजह से कई जातिवाद के कीड़े, उनकी जाति कहीं पीछे तो नहीं छूट गई की फील से कुंठित, इसको ही जातिवाद का नाम दे-दे चिंघाड़ने-बरड़ाने लग जाते हैं|


मखा यह एक आर्गेनिक ब्रांड है जो 13-13 महीने किसान-कामगार की आवाज उठाने हेतु "दिल्ली किसान आंदोलन" जब इस जाट-जट्ट के टैग वाले लोगों की अगुवाई में होते हैं तो वह मुहिमें, लोगों को एक मानसिक संदेश व् पैठ भेजती है कि 'जुल्म की इंतहा' पर 'यह कितने भी बड़े तानाशाह से लड़ सकते हैं'; जब कोई भी न्याय-अन्याय की बातों पर बोलना छोड़ जाता है तो यह बोलते भी हैं व् अपनी बात पारदर्शी तरीके से मनवा भी लेते हैं| ऐसे मूवमेंट्स इंडिया तो क्या वर्ल्ड में भी इक्का-दुक्का समुदाय हैं जो करते हैं| तो यह जाट-जट्ट ब्रांड वैल्यू ऐसे तपों से आती है व् "अर्जन वैली, गाने में दो बार जट्ट शब्द आ जाने मात्र से" एक फिल्म का भाग्य बदल जाता है| क्योंकि लोग "हो गई लड़ाई भारी, जट्ट भिड़दे" जैसे मुखड़ों को हकीकत के वाक्यों से सहजता से जोड़ लेते हैं| जब एनिमल का हीरो, गाम के उसके काका-ताऊ के भाईयों से मदद ले के आता है तब बैकग्राउंड में यह शब्द फिर बजता है; तो लोग वहां भी सहजता से जोड़ लेते हैं|

तो एक कॉकटेल तो एनिमल मूवी का यह है; जिसने किसान-कामगार जातियों के किसान आंदोलन फैन हर धर्म-जाति के तबके को थिएटर्स तक खींचा|

ऊपर से विलेन साइड में मुस्लिम तड़का लगा के, संदीप वांगा रेड्डी ने भक्त-केटेगरी सिनेमाओं में हाजिर करवा दी| मुस्लिम भी मायूस ना हों, इसलिए हीरो व् विलेन की जोड़ी को सगे चचेरे भाई दिखा दिया| इससे मुस्लिम तबका भी आन चढ़ा थिएटरों में| हीरो का जीजा मल्होत्रा दिखा दिया तो वह तबका भी टूट के पड़ा|

अब इससे ज्यादा और क्या चाहिए एक बॉलीवुड फिल्म को इंडिया में ब्लॉकबस्टर होने को?

लगता है खान-बंधुओं के अलावा, बॉलीवुड के जो सभी हीरो लोग लगभग पिटे जा रहे थे; या साउथ-फिल्म्स के रीमेक से काम चला रहे थे; उनको "किसान आंदोलन" व् "जाट-जट्ट" ब्रांड सटीक फार्मूला सूझा ही गया| अभी गदर-2 भी तो इसी जट्ट-पाकिस्तान के कॉकटेल से ब्लॉकबस्टर हो के हटी है|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 11 December 2023

धारा 370 पर फ़ैसला उम्मीदों के मुताबिक़ ही आया है..लोकतंत्र और क़ानून साथ साथ है..कितना सुकून है.

◆ फ़ैसले में बताया गया है कि जब 370 लागू थी तब भी जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा था..या'नि धारा 370 से हिंदुस्तान की एकता और अखंडता को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था..ये एक "स्पेशल क़ानून" था जिसके तहत जम्मू-कश्मीर की 'अवाम को कुछ "स्पेशल हक़" दिए गए थे जो अब नहीं है..

● 370 जैसी ही एक और धारा है : धारा 371..यह भी "स्पेशल क़ानून" है और "स्पेशल हक़" दिए जाते हैं..शायद 370 से ज़्यादा स्पेशल 371 है..
1. पंडित नेहरू ने धारा 371 की शुरु'आत गुजरात से की थी..गुजरात के हर 'इलाक़े में हर भारतीय ज़मीन नहीं ख़रीद सकता..धारा 371 महाराष्ट्र, आंध्र, तेलेंगाना में भी लागू है..कुछ राज्यों ने 370/371 जैसे ख़ुद के क़ानून बना रखे हैं..
2. पूरे उत्तरपूर्व/नार्थईस्ट में धारा 371 लागू है..इन 'इलाक़ों में आप ज़मीन नहीं ख़रीद सकते, व्यापार नहीं कर सकते, बाशिंदे नहीं बन सकते..
3. ज़मीन, कारोबार के 'अलावा इन 'इलाक़ों में शादी, संस्कृति, तलाक़, जायदाद की विरासत, इनकम टैक्स के भी अलग क़ानून है जो भारत के दूसरे राज्यों से बिल्कुल अलग है..
◆ नेहरुजी ने केवल धारा 370 ही नहीं धारा 371 भी लगाई थी..और धारा 371 वाले राज्य भी भारत का उतना ही अटूट हिस्सा है जितना 370 वाला जम्मू-कश्मीर..
👉 ज़रा भारत से बाहिर निकल कर एशिया, यूरोप और अमरीका में जाएंगे तो आपको भारत जैसी धारा 370 और 371 की भरमार मिलेगी जिसका फ़ाईदा "राष्ट्रवादी NRI" भी उठाते है..
✋ जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है और अब "परमानेंट आँसू" भी है..फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद केवल आँसू दे सकता है..गाँधी के क़त्ल से पैदा हुए आँसू जम्मू-कश्मीर का सैलाब बन चुके है.. #कृष्णनअय्यर

Saturday, 9 December 2023

जमुना के जाटों और पंचनद के जाटों की एकता के प्रयास।

कानूनगो के अनुसार सूरजमल के दो मुख्य लक्ष्य थे। पहला, मुसलमान रुहेलों और अब्दाली के बीच मेल-मिलाप को पूरे तौर से रोक देना, जोकि यमुना से रावी नदी तक था। जमुना के जाट पाँच नदियों के जाटों की ओर मानो जातीय प्रवृत्ति के कारण आकर्षित हो रहे थे। एक शक्तिशाली धारा की दो शाखाएँ जो पुरातन काल के धुँधले दिनों में सिंध में विभाजित हो गई थीं। क्योंकि ये दो शाखायें एक ही रक्त की हैं और दोनों का राजनीतिक व धार्मिक स्वार्थ एक ही था इसलिए सूरजमल अपने राज्य के जाटों एवं पंजाब के सिक्ख जाटों का मेल-जोल करना चाहता था।

दूसरा, वह दिल्ली से नजीब खान को बाहर निकालकर उसके स्थान पर इमाद को साम्राज्य का फिर से वज़ीर बनाना चाहता था।
(हिस्ट्री ऑफ जाट्स; के० आर० कानूनगो, पृ० 146-147)
इतिहास में जब भी ऐसा प्रयास हुआ है तो कोई न कोई कुदरती आफत या सियासी ताकत ने जमुना और पंचनद के जाटों को दूर किया है। ऐसा आखरी प्रयास चौधरी छोटूराम ने भी किया था और काफी हदतक कामयाब भी हुए थे परंतु उनकी अकाल मृत्यु ने जाटों को फिर उसी दोराहे पर ला खड़ा किया। लंबे अंतराल के बाद हाल के किसान आंदोलन से फिर वही प्रयास दोहराया गया है। अब इसको भी तोड़ने के प्रयास तो काफी हो रहें हैं। अब जमुना और पंचनद जाटों की समझदारी देखते हैं कि खुद कामयाब होते हैं या दूसरे पक्ष को कामयाब होने का मौका देते हैं!

By: Rakesh Sangwan




जाट राजा ठाकुर सुखपाल सिंह तोमर , कुँवर हठी सिंह तोमर

यह घटना 1688 ईस्वी से शुरू होती है जब सौंख गोवर्धन क्षेत्र पर जाट राजा ठाकुर सुखपाल सिंह तोमर का अधिपत्य था। उनके कुँवर हठी सिंह तोमर थे। जब भारत के अन्य सभी राजा मुगलो को अपनी बहिन बेटी दे कर समझौता कर चुके थे। लेकिन जाटों को यह गुलामी मंजूर नही थी आज़ादी की यह ज़िंदगी उन ही अमर शहीद जाट वीरो की सौगात है।

---जब जाटों ने मथुरा ,भरतपुर ,आगरा समेत सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र को आज़ाद करवा दिया था। ऐसे समय में अत्याचारी मुगलो ने अपने सेनापति जयपुर (आमेर) के विशन सिंह (मुगल नौकर)मुस्लिम सेना के साथ सौंख गढ़ भेजा सितम्बर सन 1688 ईस्वी में विशन सिंह ने सौंख गढ़ी पर घेरा डाला था| कुंवर हठी सिंह के पिता उस समय यहाँ के अधिपति थे| कुछ इतिहासकारों ने हठी सिंह को यहाँ का शासक लिखा है बिशन सिंह प्रारंभिक युद्ध में इतना अधिक उदास हो गया था की उसने युद्ध में विजय मिलने की आश छोड़ दी थी | सौंख गढ़ के वीरो ने मुगलों की विशाल फ़ौज को सितम्बर के महीने में लडे गए इस युद्ध में इतनी करारी शिकस्त दी की बिशन सिंह युद्ध समाप्त कर के आमेर चलने को तैयार हो गया था|
इतिहासकार उपेन्द्र नाथ शर्मा के अनुसार जब इस घटना की खबर दिल्ली के बादशाह को प्राप्त हुई तो उसने बिशन को लालच दिया की यदि वो इस गढ़ को जीत लेता है तो उसका मनसब बढ़ा दिया जाएगा साथ ही मुगलों की विशाल आरक्षित सेना बिशन सिंह की सहायता के लिए सौंख गढ़ भेजी गई थी|
मुग़ल सेनापति बिशन सिंह की सेना जाट सेना से इस कदर भयभीत थी| उन्होंने अपना पड़ाव तक सौंख से सुरक्षित दुरी पर लगाया था| सौंख गढ़ की एक सैनिक टुकड़ी ने मुग़ल सेना पर फराह की तरफ से हमला कर के उनकी रसद और हथियार छीन लिए थे| मुगलों की अतरिक्त सेना जब सौंख गढ़ पहुंची तो उनका जाटों से भयंकर युद्ध हुआ जिस में सौंखगढ़ की सेना विजयी हुई थी| परन्तु लम्बे समय से संघर्ष करते करते सौंख गढ़ में हथियारों और रसद की कमी होने लगी थी|
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा ॥
जनवरी 1689 ईस्वी में बड़े संघर्ष और अपने अनेको अजेय योद्धाओं को खोने के बाद ही मुग़ल मनसबदार बिशन सिंह इस पर कब्ज़ा कर पाए
सौंख की गढ़ी कब्ज़ा करने में बिशन सिंह को चार महीने लग गये थे | यह कब्ज़ा कुछ समय तक ही रहा इस युद्ध में हठी सिंह अपने चाचाजगमन व बनारसी सिंह के साथ सकुशल निकल कर अपने रिश्तेदारों के पास पहुचने में सफल रहे थे|
सौंख गढ़ को पुनःप्राप्त करने के लिए अपनी सेना को पुनः संगठित करने के लिए धन और हथियारों की आवश्यकता थी| इसलिए इन वीरो ने मुगलों की सैनिक चौकी और थानों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था|
जाटों ने राजोरगढ़ (वर्तमान राजगढ़ ) और बसवा को निशाना बनाया था| जाटों ने 1689 ईस्वी में रैनी को लूट लिया था| यहाँ से यह टुकड़ी बसवा पहुंची यहाँ इन वीरो ने मुगलों और जयपुर की सभी चौकियो और ठिकानो से कर वसूल किया था|
डॉ राघवेन्द्र सिंह राजपूत भी कुंवर हठीसिंह और जयपुर की मुगल सेना के मध्य युद्ध होना लिखते है|
डॉ राघवेन्द्र सिंह के अनुसार यह जाट मथुरा के समीप (सौंख )क्षेत्र के निवासी थे| जयपुर सेना और इनके मध्य भीषण युद्ध लड़ा गया था| डॉ राघवेन्द्र सिंह के अनुसार इस युद्ध की साक्षी अनेको छतरी और चबूतरे आज भी बसवा में मौजूद है|
जयपुर इतिहास में यह युद्ध कार्तिक माह में संवत 1746 (1689 ईस्वी) में होना लिखा है|
हाथी सिंह ने एक सेनी टुकड़ी दौसा के समीप ठिकाने से कर वसूलने भेजी थी| इस टुकड़ी में गये कुंतल वीरो ने यहाँ खूटला नाम से एक ग्राम बसाया था| जो आज भी मोजूद है| यहाँ से यह टुकड़ी रणथम्भोर क्षेत्र में चली गई थी| यहाँ इन्होने कुंतलपुर(कुतलपुर) जाटान नाम से एक और ग्राम बसाया था |
राजा हठी सिंह ने कुछ समय बाद सौंख पर कब्ज़ा कर लिया था । इसके बाद 1694 ईस्वी में मुगलो और जाटों के मध्य सौंख का युद्ध एक बार पुनः हुआ जिस में हाठीसिंह के जाट वीरो ने मुगलो को करारी शिकस्त दी इस युद्ध मे 800 से ज्यादा मुगल मुस्लिम बंदी बनाए गए सैकड़ो मुगल मुस्लिम अल्लाह को प्यारे हो गए इस विजय के बाद सौंख में विजय उत्सव बनाया गया था| जनश्रुतियो के अनुसार रण(युद्ध) से विजयी होने पर सभी वीरो की वीरांगना रणस्थल से सौंख गढ़ तक विजयी उत्सव मनाते हुए आई थी|
गावत विजय गीत सुहागने चली आई बहि थान
जहाँ खड़े रण रस में सने वीर बहादुर तोमर जट्ट जवान।।।

Source: FB Page Jatt Chaudharys

Wednesday, 6 December 2023

कई लोग कहते हैं, 35 बनाम 1 अब खत्म हो चुका; लेकिन यह तो 2023 में भी उछाला जा रहा है!

उछाला जा रहा है, बाकी ऐसा कोई हव्वा नहीं है धरातल पर| उछाला जा रहा है ताकि 1 वाले को अकेला रह जाने का मानसिक डरावा दे कर सकपकाए रखा जा सके व् इसी मानसिक भय में उसको ज्यादा-से-ज्यादा अपना पिछलग्गू बना लिया जाए| दिवंगत गोगामेड़ी की विधवा के मुख से 35 को फिर से उछलवाना; फंडियों की इसी गहरी manipulation का हिस्सा है| यह सब एक reverse psychology के तहत 1 को submissive mode में लाने हेतु किया जा रहा है| 


सिख धर्म में 60-65% जाट, धन्नावंशी -वैरागी -स्वामी में 95% जाट, विश्नोई सम्प्रदाय में 90-95% जाट, आर्यसमाज में 75-80% जाट, कबीरपंथी 90-95% जाट , जसनाथ सम्प्रदाय में 100% जाट है (आंकड़े अर्जुन अहलावत भाई की पोस्ट के हैं), और भी कई सम्प्रदाय और ग्रुप है जिनमें जाट बहुलता में है, इनमें से कई संप्रदायों ने अपनी अलग आईडेंटिटी बना ली, कुछ आज भी अपने रूट्स से जुड़े है| 


परन्तु इनमें से कोई अपराध करता है तो उसको माना जाट ही जाता है; जैसे रोहित गोदारा आज के दिन स्वामी है, परन्तु क्योंकि वह जाट से स्वामी बना है, फिर भी उसकी आइडेंटिटी जाट ही आई निकल के| यह वीडियो इस बात का सबूत है| 




तो फिर क्यों नहीं यह सारे अपने-अपने आध्यात्मिक धड़े में रहते हुए, "जाट" शब्द की अम्ब्रेला बॉडी बना लेते मिल के? इससे होगा यह कि इनमें बाकी जो जातियां जुडी हुई हैं जो कि अधिकतर किसान-कामगार वर्गों से ही आती हैं, वह भी आप से जुड़ जाएंगी अथवा जुड़ा हुआ महसूस करेंगी| मैं तो अक्सर हर बाबा-संत जो भी मेरे से सम्पर्क में है, उसको यही कहता हूँ कि जब तक आप लोग इन डेरों-मतों की एक साझी बॉडी नहीं बनाओगे; आपकी मार्किट फंडी ऐसे ही खाता रहेगा| 


कई लोग कहते हैं, खासकर पोलिटिकल पार्टीज वाले की 35 बनाम 1 अब खत्म हो चुका; जबकि मेरे जैसे बार-बार कहते हैं कि यह खत्म नहीं हुआ, बल्कि बढ़ाया जा रहा है| और इसका हरयाणा 2016 से निकल 2023 में सीधा जयपुर में जा के किसी की मरगत पे बुलवाया जाना, ना सिर्फ यह कहता है कि यह जिन्दा है अपितु फंडी समझता है कि इसमें अभी भी दम है| तो जब तक इसको प्रत्यक्ष-परोक्ष-गुप्त रूप से अड्रेस करते हुए पॉलिटिकल पार्टीज अपना एजेंडा नहीं बनाएंगी, किसान राजनीति वालों, को तो खासतौर से आगे की ठाह नहीं मिलनी| 


इस एक को भी अपनी इस ब्रांड-वैल्यू भी कीमत व् अहमियत समझनी होगी, क्या चीज है यह जो फंडी को दिन-रात सोने नहीं देता| इतनी दुश्मनी-नफरत तो फंडी को मुस्लिम से नहीं, जितनी इस 1 से दिखती है? मतलब किसी के यहाँ मरगत हो रखी है व् वहां बजाए बाकी सुख-दुःख कहने-सुनने के, 35 कहलवाया जा रहा है, दिवंगत की विधवा से? ऐसा तो तभी होता है जब किसी की किनशिप-कल्चर-फिलोसॉफी-दर्शनशास्त्र दूसरे से बिल्कुल भिन्न हो व् इस बात का अहसास फंडी को तो है परन्तु उसको ही नहीं है जिसकी यह है|  


यह 35 बनाम 1 में ही इस 1 की ताकत छुपी है; बशर्ते यह 1 इस शगूफे के मानसिक व् भावुक दबाव में ना आते हुए; इसको अपने पक्ष में प्रयोग करना शुरू कर दे| और वह हमारे ग्रुप ने करके देखा है, छोटे-छोटे एक्सपेरिमेंट्स में; जहाँ किया वहीँ 100% सफलता मिली हमें| 


जय यौधेय! - फूल मलिक