इसीलिए "गोल्डी बराड़" का जब नाम आया मुसेवाला की मौत में तो उसने तुरंत वीडियो जारी करके कहा कि इसमें उसका रोल नहीं है|
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Tuesday, 31 May 2022
अबकी बार जाट-जट्ट "अपना-अपने को मारे" वाली गलती नहीं कर रहा, डॉन तक इस बात की अहमियत को समझ रहे हैं!
Monday, 30 May 2022
जाट-जट्ट की अगुवाई वाली किसान एकता व् स्थिरता फंडियों को पागलपन की हद पर ले आई है!
सुनो फंडियों (जिस किसी भी जाति का हो), तुम्हें तुम्हारी भाषा में समझा देता हूँ; हमें तो यह भाषा चाहिए ही नहीं होती परन्तु क्योंकि तुम चलते ही इसके जरिए हो तो इन्हीं शब्दों में सुनो!
कल तक सादगी दिखाने वाले, आज दादगी दिखाने लगे; मतलब आ गए असली औकात पर!
लेख में आगे बढ़ने से पहले SKM को अपील: संयुक्त किसान मोर्चा भी फिर से एक होने की सोचे व् जो इलेक्शन लड़ने चले गए थे, उनको माफ़ करके, अबकी बार एक मिनिमम कॉमन प्रोग्राम बना के फिर से एक हों|
आज बैंगलुरु में चौधरी राकेश टिकैत की सभा को छिनभिन्न करने वालों का हंगामा देख कर, मुझे मेरे बचपन के वो वक्त याद आ गए जब मेरे गाम में किसी फंडी के घर सतसंगी आते थे तो गाम के गाबरू बाळक उनके घर रेत के लिफ़ाफ़े भर-भर फेंक के आते थे, पत्थर तक मारते थे सतसंगियों को; कि गाम का कल्चर बिगाड़ रहे हैं, सिस्टम बिगाड़ रहे हैं व् खड़ताल-ढोलकी बजा लोगों की नींद हराम करते हैं, शोर यानि ध्वनि प्रदूषण करते हैं (जो कि कानूनी भी अवैध होता है), अश्लीलता फैलाते हैं| तब फंडी लोग मिमियानी सी आवाज बना के बोलते कि हम तो म्हारे घर में कर रे सां, किसे नैं के कहवाँ सां; रोळा यानि शोर घर तें बाहर गया सै तो कोए ना गलती होई, फेर ना होवैगी|
आज समझ आई कि वह क्रिया क्यों जरूरी होती थी| वह इसलिए जरूरी होती थी कि जो आज हो रहा है यहाँ तक के हालात कभी समाज में ना बनें| यह वही मिमियाने लोग आज खुद यही हरकतें कर रहे हैं, वह भी किसी शोर-सतसंग की वजह से नहीं; किसानों द्वारा बाकायदा सरकार की परमिशन लिए स्थलों पर अपने हक-हलोल पर चर्चा-मंत्रणा करने मात्र पर| इन हालातों के साथ समझौते किये हैं तो भुगतने तो होंगे ही अन्यथा यह सब ठीक चाहिए तो आ जाओ उसी मोड में|
सोचो क्या हो, जोणसे कनेक्शन जिधर से ढीले छोड़े चल रहे हो, उनको तो वहीँ से टाइट करने से काम चलेगा| वरना इन्नें तो कर दी, "सिंह ना सांड और गादड़ गए हांड" वाली|
जय यौधेय! - फूल मलिक
अभी सिद्धू मुसेवाला की मौत का बहाना बना कर, एंटरटेनमेंट जगत में "गन कल्चर" व् पंजाबी-हरयाणवी गानों में "जट्ट-जाट" के जिक्रे होने को निशाना बनाया जाएगा; इनके ललित निबंधों/उपदेशों से घबराने का नहीं!
Sunday, 29 May 2022
हरयाणा में नगर परिषद चुनाव जेजेपी को छोड़ अकेले लड़ेगी बीजेपी!
Monday, 23 May 2022
"जाट" शब्द चौराहे पे खड़ी गाय बना दी; वैसे तो माता और खुशामद व् हक के नाम पर "तत्तत आगे नैं चाल"!
कभी मीडिया, कभी नेता, कभी कथावाचक; इन सब पर किसी भी जाति के शब्दों के इस्तेमाल पर कानूनी बैन होना चाहिए; ठीक वैसे ही जैसे "मार्केटिंग का कॉर्पोरेट लॉ है" - marketing law for corporates"| कॉर्पोरेट लॉ - corporate law कहता है कि बिना कॉम्पिटिटर - competitor का नाम लिए, उसकी बुराई किए, उससे तुलना किए; सिर्फ अपनी ब्रांड-प्रोडक्ट - brand-product की प्रमोशन करो| और इसके लिए वजह दी जाती है हैल्दी कम्पटीशन - healthy competition की व् कॉर्पोरेट के आपसी रिश्तों की - coporate relations management| यही मीडिया, नेता व् कथावाचकों पर होना चाहिए| आज के दिन इन मामलों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है "जाट" शब्द का और वह भी बड़े ही वाहियात और सेलेक्टिव तरीके से|
कथावाचक हैं इनको तो बाकी किसी जाति का शब्द दीखता ही नहीं, "जाट" के अलावा; ऐसे बना के दिखाएंगे कि ना तो धरती पर जाट से बड़ा कोई भगत ना दाता| और जब इसी जाट पे 35 बनाम 1 होती है तो सबसे बड़ी दड्ड (घुन्नी चुप्पी) यही मारते हैं|
मीडिया तो पिछले 2 दशकों से तो खासतौर से देखते ही आ रहे हो|
हद इन नेताओं ने कर रखी है, मलाल जाति-विशेष में भाजपा को थोक में वोट दे के भी, सीएम की कुर्सी नहीं मिलने का और भाजपा को डराने का औढ़ा "जाट" के जरिए| बल्या, "ये तो राज देख रे हैं, ये तेरे से कैसे खुश होंगे"| रै भले मानस, राज देखने की बात है तो तेरे आळे सेण्टर के टोटल 70 साल में से कितने साल राज देख रे सें, उसको देखते हुए तो फेर अदला-बदली ही करवा दो ना; स्टेट का राज थम ले लो और सेण्टर का हमने दे दो| या आपको जो माँगना सीधी मारो बीजेपी के टक्कर, जाटों को क्यों इस नेगेटिविटी में घसीट रहे हो? पॉजिटिव शायद ही कुछ करके दिया हो जाट के लिए आज तक, पर नेगेटिव में घसीटेंगे|
यार मतलब "जाट" शब्द चौराहे पे खड़ी गाय बना दी; वैसे तो माता और खुशामद व् हक के नाम पर "तत्तत आगे नैं चाल"|
जाट समाज के जागरूक लोगों को, इन पहलुओं पर बात करनी चाहिए|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Sunday, 22 May 2022
जाट मुग़लकाल से ज्यादा ब्रिटिश काल में क्यों मुस्लिम व् सिख बन रहे थे?
अक्सर यह कहा जाता है कि मुगलों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया थ, लेकिन अंग्रेजी शासन के समय के आंकड़े कुछ और ही कह रहे है, देखिये सलंगित पन्ना।
1881 की जनगणना के मुताबिक संयुक्त पंजाब में हिन्दू जाटों की जनसंख्या 14 लाख 45 हजार थी। पचास वर्ष बाद अर्थात 1931 में जनसंख्या होनी चाहिए थी 20 लाख 76 हजार लेकिन घटकर 9 लाख 92 हजार रह गई। संकेत साफ है कि अंग्रेजी शासन के इन 50 सालों में 50%जाट सिक्ख व मुसलमान बन गए। इस दौरान हिंदुओं की आबादी 43.8%से घटकर 30.2%हो गई व सिक्खों की आबादी 8.2% से बढ़कर 14.3% व मुसलमानों की आबादी 40.6% से बढ़कर 52.2% हो गई।
जाटों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि फंडियों की सनातनी चतुर्वर्णीय व्यवस्था, इनको ठीक वैसे ही जलील कर रहा थी, जैसे अब 2014 से जब से यह सरकार आई है 35 बनाम 1 के नाम पर कर रही है। पाखंड व अंधविश्वास की लूट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी।
जाट सदा से प्रकृति के नजदीक रहा है। इंसान जीवन मे सरलता ढूंढता है लेकिन सनातन ने कर्मकांडों का जंजाल गूंथ दिया था जिससे मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ा।
हालांकि दयानंद सरस्वती के अथक प्रयासों के कारण जाटों को धर्म परिवर्तन से रोका गया था। चुपके से जाटों के "दादा नगर खेड़ों/बाबा भूमियों/दादा भैयों" से मूर्तिपूजा नहीं करने का कांसेप्ट इनको बिना इस कांसेप्ट का क्रेडिट दिए उठाया व् "जाट जी" और "जाट देवता" लिख-लिख स्तुति करी तो जाट रुके| आज आर्य समाजी ही राममंदिर निर्माण के लिए बधाइयां दे रहे है,चंदा दे रहे है जैसे वहाँ मूर्ति नहीं लगनी हो| खैर,धरती में कोई धर्म नहीं होता है। जबरदस्ती किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। धर्म लोगों का ऐच्छिक विषय है।
जात नहीं बदली जा सकती है इसलिए धर्म बदलकर जीवन मे सरलीकरण ढूंढा जाता रहा है। अँधभक्तों की सुविधा के लिए यह बताना जरूरी है कि अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों ने पकड़कर रंगून भेज दिया था व उसके बाद पूरे भारत पर अंग्रेजों का राज कायम हो गया था।
1857 के बाद में हुए धर्म परिवर्तन का मुगलों से कोई संबंध नहीं था। वैसे भी मुगलों के दरबार मे बैठकर साहित्य रचने वाले ब्राह्मण जजिया कर से मुक्त रहते थे। अगर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का मसला भी होता तो सबसे पहले ब्राह्मण इस्लाम मे होते!
लेख: फूल मलिक द्वारा सोधित, मूलत: लेखक पंडित हिमांशु कुमार
Saturday, 21 May 2022
भारतीय किसान यूनियन बिखराव पर आज शामली में हुई सर्वखाप पंचायत की मीटिंग के अपडेट!
1) गठवाला खाप की यूपी विंग के सभी थांबेदारों ने पुरानी भारतीय किसान यूनियन में ही विश्वास जताया व् पूरा समर्थन व् आशीर्वाद जारी रखने का निर्णय हुआ| आपको बता दें थांबेदारों के पास खाप के चौधरी को बदलने की वीटो पावर होती है|
Friday, 20 May 2022
जो अपने बाप-दादाओं की किनशिप ना ही तो समझ सकते और ना ही उसको आगे बढ़ा सकते; ऐसे शुद्रमती लोगों को ही सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह व् ताऊ देवीलाल की विचारधारा पुरानी व् बोझ लगने लगती है!
Thursday, 19 May 2022
पंडित हिमांशुकुमार की पोस्ट!
हमारे परदादा पंडित बिहारीलाल शर्मा आर्यसमाजी थे।
वे महर्षि दयानंद के उत्तर प्रदेश में पहले शिष्य थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद मुज़फ़्फ़रनगर में हमारे घर में ठहरते थे।
उस समय आर्यसमाज वाले डंके की चोट पर प्रचार करते थे कि राम कृष्ण शिव भगवान नहीं है इनकी पूजा मत करो मंदिर मत जाओ मूर्तिपूजा मत करो। आर्यसमाजी अवतारवाद को नहीं मानते। वे राम कृष्ण या शंकर को भगवान का अवतार नहीं मानते।
उस समय आर्यसमाजी सनातनियों से शास्त्रार्थ करते थे। बड़ी-बड़ी सभाएं होती थी और उसमें सनातनी और आर्यसमाजियों के बीच शास्त्रार्थ होते थे। जिसमें आर्यसमाजी सनातनियों के अवतारों की ख़ूब खिल्ली उड़ाते थे और उनके सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा देते थे।
एक दौर था कि लाखों लोग सनातनधर्म छोड़कर आर्यसमाजी बन गये। भगतसिंह का परिवार भी आर्यसमाजी था।
आज आरएसएस ने देश का माहौल इतना ज़हरीला बना दिया है। आरएसएस ने हिंदूधर्म को इतना कट्टर और ख़तरनाक बना दिया है कि आज अगर कोई राम-कृष्ण को अवतार मानने से मना करे तो संघी और बजरंग दल की भीड़ उसके घर जाकर उसका घर जला देगी। आज से 70 साल पहले हिंदुओं में जितनी सहिष्णुता थी आज वह भी आरएसएस ने ख़त्म कर दी है।
हिंदुओं में शास्त्रार्थ की परंपरा थी आप खुलकर चर्चा कर सकते थे एक दूसरे के मतों का खंडन कर सकते थे अपना मत रख सकते थे वही हिंदू धर्म की विशेषता थी। आज आरएसएस ने ऐसा माहौल बना दिया है कि आप धर्म के ऊपर शास्त्रार्थ की बात सोच भी नहीं सकते आप की हत्या कर दी जाएगी या पुलिस में आप के ख़िलाफ़ एफ़आईआर कर दी जायेगी कि इन्होंने मेरी धार्मिक भावनाओं का अपमान किया है।
हिंदुओं को गंभीरता से सोचना चाहिये कि आरएसएस द्वारा उनके धर्म को क्या से क्या बना दिया गया है ! अगर हम चर्चा नहीं कर सकते शास्त्रार्थ नहीं कर सकते अपने स्वतंत्र विचार नहीं रख सकते तो इससे भयानक कट्टरता क्या होगी हमसे ज्यादा कट्टर धर्म कौन-सा धर्म हुआ हम अपनी कौन-सी सहिष्णुता की डींग हांकते हैं ?
मैं मानता हूं ईसाईयों मुसलमानों यहूदियों के धर्म में परंपरा ही धर्म है। वहां अगर आप परंपरा छोड़ेंगे तो आप धर्म से बाहर हो जायेंगे। लेकिन भारत में धर्म हमेशा से शोध यानी खोज का विषय रहा है भारत में सत्य की खोज की जाती है और नये सत्य को स्वीकार किया जाता है।
भारत का धर्म कभी परंपरा के पालन को मान्यता देनेवाला नहीं रहा हमारे यहां सत्य खोज लेने के बाद 'नेति नेति' कहा जाता था अर्थात यह भी नहीं यह भी नहीं अर्थात जाओ और नये सत्य खोजो ! लेकिन आरएसएस ने हर नये सत्य के लिए दरवाज़ा बंद कर दिया और अवतारवाद को सनातन धर्म और हिंदू धर्म का रूढ़ सिद्धांत बना दिया।
भारत में षड्दर्शन थे जिसमें वैदिक दर्शन मात्र एक दर्शन था। इसके अलावा यहां सांख्य योग न्याय मीमांसा वैशेषिका वेदान्त दर्शन भी थे
सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता इसी तरह यहां अन्य अनीश्वरवादी दर्शन भी थे जो ईश्वर को मानते ही नहीं जिसमें जैन दर्शन है बौद्ध दर्शन है लोकायत यानी चार्वाक दर्शन है। आज अगर आप कहे कि मैं ईश्वर को नहीं मानता मैं राम को भगवान नहीं मानता या मैं शंकर को भगवान नहीं मानता तो आप की हत्या की जा सकती है।
भारत का जो धर्मविचार इतना विशाल समुंदर जैसा था उसे आरएसएस ने एक छोटी-सी गंदी नाली में बदल दिया है। इस गंदी नाली में तैरने वाली कुछ मछलियों और कीड़ों को धर्म रक्षक बना दिया गया है। और भारतीय धर्म विचार का जो विशाल महासागर था उसकी चर्चा को भी अपराध घोषित कर दिया गया है।
आज मैं खुद को अनीश्वरवादी विचारों के ज्यादा नजदीक पाता हूं मुझे लोकायत और बुद्ध के विचार ज्यादा सत्य और व्यवहारिक लगते हैं। लेकिन अपने इन विचारों के कारण मुझे रोज गाली खानी पड़ती है
मुझे रोज लगता है कि पता नहीं किस दिन मेरे खिलाफ कोई भाजपाई या संघी बजरंगी एफआईआर कर देगा और पुलिस द्वारा मुझे उठा कर जेल में बंद कर दिया जाएगा
हमारा धार्मिक सामाजिक राजनीतिक चिंतन रोज अपने स्तर से नीचे गिरता जा रहा है
भारत विचारहीनता के भयानक दौर में पहुंच चुका है जहां कोई भी नया दर्शन नया विचार नया रास्ता नहीं खोजा जा सकता क्योंकि ऐसा करना आपकी जान ले सकता है या आप को जेल पहुंचा सकता है ...!
Wednesday, 18 May 2022
हमारे खाप-खेड़ा-खेत का कोई भला सिद्ध नहीं होता इन बातों से जो फंडियों ने आज के दिन हव्वा बना रखी हैं!
हम आज भी मुस्लिमों के साथ इसलिए आराम से रह लेते हैं क्योंकि हम ही वो थे जिनके पुरखों ने इनसे सबसे ज्यादा लड़ाइयां लड़ी व् बहुतों में इनको हराया भी| तो म्हारा तो गुबार साथ की साथ लड़ के शांत होता रहा| चाहे वो मुग़लों के साथ लड़ी या अंग्रेजों के साथ|
वह इन्हीं के पुरखे थे जो पानीपत की तीसरी लड़ाई जीतने पर, दिल्ली जाटों को देने की बजाए मुग़लों को ही देने की बात किया करते थे; हाल ही की पानीपत मूवी में देखा ना? तो फिर तब इतना प्रेम था मुग़लों से तो आज क्यों हवा हुआ जाता है? मतलब साफ़ है आपको आपके भगवानों का राजनैतिक इस्तेमाल करके इनकी सत्ता कैसे कायम रहे, उसके लिए बेवकूफ काट रहे हैं| खिलजी के हाथों चितौड़ के राणा रत्न को मरवाने वाले ये रहे, राजा नाहर सिंह को समझौते के नाम पर धोखे से कैद करवाने वाले ये रहे|
ना सिर्फ इनके यह ऊपर बताए उदाहरणों वाले प्यार मुग़लों-अंग्रेजों से रहे, अपितु सबसे ज्यादा दरबारी इन पुरखे रहते थे| गुप्त अनैतिक समझौते करते थे| म्हारे वाले समझौते करते भी थे तो डंके की चोट पर, जैसे सर छोटूराम ने गेहूं का भाव 6 रुपये की बजाए 11 रूपये लिया था| रोटी-बेटी लेने-देने के रिश्ते इनके पुरखों ने सबसे ज्यादा इनसे रखे| तो इनको मलाल है की हम किसानों व् खापों की भांति इनसे कभी अपना लोहा नहीं मनवा पाए तो अब "सांप निकलने के बाद, लकीर पीटने वाली बात" की भांति जगह-जगह खुदाई करवा रहे हैं|
ना यह अच्छे मैनेजर हैं व् ना अच्छे जिम्मेदार; तभी तो समाज का शिक्षा, नौकरी, व्यापार, स्वास्थ्य सब मोर्चों पर जनाजा निकला जाता है| और इन पर आपको फोकस करना है| वरना यह इतना ही धर्म के प्रति चिंतित होते तो अभी 13 महीने दिल्ली के बॉर्डर्स पर जिनसे धूल फँकवाई थी, वह क्या मुग़ल थे या अंग्रेज? फरवरी 2016 याद कर लो तो इनकी तरफ देखने का जी भी ना करे, चाहे सोने के रथ उतर रहे हों इनके घर|
एक और कड़वी बात, कल को पहले की भांति कोई आक्रांता आ गया तो उस वास्तविक अवस्था में यही सबसे पहले भाग के उनके दरबारी बनेंगे जैसे इनके पुरखे बने| इसलिए इनके मुद्दों पर वक्त-ऊर्जा-दिमाग ज्याया मत करो, बल्कि नजर रखो व् कहीं स्थिति 2013 जैसी बनती दिखे तो उसको होने से पहले ही रोकने को अलर्ट रहो| अपने-अपने गाम-गली में यह जिम्मेदारी निभाओ; यही हमें हमारे दादा खेड़े सिखाते हैं|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Sunday, 15 May 2022
"बाबा गुलाम मोहम्मद जौला जी" को उनके आखिरी सफर के लिए गमगीन विदाई!
"हर-हर महादेव, अल्लाह-हू-अकबर" के प्रथम पुरोधाओं में से अहम् एक व्
चौधरी/अमात्य, धर्म, समाज, कारोबार व् बाबा टिकैत!
अकेले भगवाधारी बाबाओं से धर्म व् समाज चलता तो खाकीधारी आरएसएस की जरूरत नहीं होती|
यह जरूरत आपके बूढ़े/पुरखे भली-भांति जानते थे इसलिए समाज-धर्म व् कारोबार में बैलेंस रखने को सदियों से खाप व्यवस्था (समाज को चलाने को), खेड़े (धर्म को चलाने को) व् खेत (कारोबार को चलाने को) रखते आए| आरएसएस तो 97 साल पुराना कांसेप्ट है|
एक बात और यहाँ समझनी जरूरी है कि आरएसएस व् खाप में क्या फर्क है? खाप "नैतिक पूंजीवाद" की धोतक है यानि "कमाओ और कमाने दो" व् सर्वसमाज को जाति-वर्ण-धर्म के भेद के बिना मुफ्त व् अविलंब अधिकतम सम्भव न्याय देने का रिकॉर्ड रखती है; जबकि आरएसएस "अनैतिक पूँजीवाद" यानि समाज की अधिकतम सम्भव पूँजी-सम्पत्ति चंद साहूकारों के कब्जे में होनी चाहिए की लाइन पर चलती है; शायद इसीलिए अडानी-अम्बानी के एकमुश्त अनैतिक तरीके से बढ़ने से ले माल्या-चौकसी जैसे किसी भी हजारों करोड़ के घपलों के भगोड़ों पे चुप्पी रख के चलती है|
जैसे एक व्यक्ति विशेष का जनमानस उसके परवार-ठोळे-पिछोके की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली किनशिप से बनता है व् वह कितना रुतबेदार होगा उसकी व्यक्तिगत क्षमता के साथ-साथ किनशिप की प्राचीनता-सुदृढ़ता व् महत्वता से निर्धारित होता है; ऐसे ही समाज भी एक सामूहिक व्यक्ति होता है जिसका चरित्र सैंकड़ों-हजारों परवार-ठोळे-पिछोके से बनता है| अगला-पिछला जन्म तो खैर नहीं ही होते (इसलिए किसी पाखंडी के चक्क्र में ना पड़ें इन पहलुओं पर) परन्तु पिछली पीढ़ीयों का किया-पाला-माना अगलियों पे जरूर चढ़ता है और वह बाबा टिकैत की इस सलंगित फोटो से भलीभांति झलकता है|
यह जो तीनों धर्मों के नुमाइंदे बाबा टिकैत के दरबार में उनको घेरे बैठे हैं, यह तप आपके पुरखों के पीढ़ियों के उस बल का था जो कभी अपने कारोबारी हकों हेतु लड़ने से राजसत्ताओं से ले कभी किसी पंडित-मौलवी या ग्रंथि से भी नहीं घबराए| सर छोटूराम का वक्त तो ऐसा था कि तीनों धर्म खड़े देखते थे व् वह फरिश्ता इनसे कहीं अधिक मजमा तीनों धर्मों के लोगों का अपने कार्यक्रमों में लगा लेता था| यह वही पिछली पीढ़ियों की बनाई छाप-साख थी जो बाबा टिकैत के जमाने तक फल देती रही व् तीनों धर्म चौधरियों के दरबार में यूँ ही हाजिर होते रहे, ज्यों इस फोटो में बैठे हैं|
परन्तु बाबा टिकैत के बाद, यह उस स्तर का नहीं रहा| अब एक धर्म वालों ने तो सुननी ही बंद कर रखी है| तभी तो किसान नेताओं व् कार्यकर्ताओं के बार-बार आह्वान के बाद भी कोई ही विरला मंदिर वाला 2020-21 के किसान आंदोलन में लंगर की सेवा देने आया हो या सरकारों से गुहार लगाई हो कि हमारे किसानों की सुनो|
बस तुमने एक समाज-सभ्यता-किनशिप के तौर पर कहाँ तक का सफर तय किया है, उसमें कितना उठान या गिराव है; इससे अंदाजा लगा लो|
बस इतना याद रखो कि चौधर-धर्म-समाज-कारोबार, चारों को बराबर नहीं रखोगे तो शूद्र कहलाओगे व् उस तरफ जाते जा रहे हो; वक्त रहते अपने पुरखों की अनख पे आ जाओ वरना हालात बहुत भयावह हैं आगे; क्योंकि लड़ाई "नैतिक पूंजीवाद" बनाम "अनैतिक पूंजीवाद" हो चली है व् अनैतिक वाले बहुत आगे निकल चुके हैं|
"जो टिका रहा, वो टिकैत" की पंचलाइन से मशहूर बाबा टिकैत की पुण्यतिथि पर इससे बढ़िया क्या ही लिख सकता था|
बाबा टिकैत को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Friday, 13 May 2022
इंडिया में श्रीलंका होना इतना आसान नहीं!
श्रीलंका में विद्रोह इसलिए हो गया क्योंकि वहां जिस मेजोरिटी को बहकाया गया था वह बुद्ध धर्म की थी; जो कि इंसानों को आंतरिक तौर से मजबूत, एक व् समान बनाता है; मानसिक तौर पर तोड़ कर मानसिक गुलाम नहीं बनाता| अत: उनका मानसिक बल बचा हुआ था तो जब हद हुई व् स्थिति समझ आई तो कर दी क्रांति|
Thursday, 12 May 2022
12 वीं सदी की Twin Towers: दिल्ली की क़ुतब मीनार व् बुखारा की मीनार-ए-कलां!
See the attached photo:
जय यौधेय! - फूल मलिक
Wednesday, 11 May 2022
रिपब्लिक आर टीवी वालो, शिवजी भोळा कभी धर्म से बाहर के मसलों में नहीं पड़ता!
पड़ा हो आज तक के इतिहास में तो बताओ? हाँ, वह ब्रह्मा-विष्णुओं के बिगाड़े हालातों को ठीक करने बारे जरूर तांडव करता आया है जब भी किया है| उदाहरणार्थ 2020-21 में 13 महीने चला किसान-आंदोलन|
Thursday, 5 May 2022
शुगरमिल-मैन चौधरी अजित सिंह जी को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर शत-शत नमन!
आप अपनी राजनैतिक आइडियोलॉजी की विरासतीय रीढ़ "हिन्दू-मुस्लिम" एकता (आपके पिता जी से विरासत में मिली) को तब भी नहीं छोड़े जब मुज़फ्फरनगर 2013 हुआ था व् आपके ही पिता जी को गुरु कहने वाले इस एकता को तोड़ने में दो में से एक पार्टी बन गए थे|
Wednesday, 4 May 2022
"कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" बनाम "उधारा कल्चर-किनशिप"
यह इधर-उधर से आयातित कल्चर-किनशिप के चक्कर में अपनी "कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" से मुंह मोड़ना आपको उसी तरह बर्बाद कर देगा, जैसे नेचुरल रिसोर्सेज के मामले में रूस वालों पर यूरोप की निर्भरता| जब तक सब सही चलता है तो सही और जब बिगड़ती है तो ऐसे ही "मुंह-बाएं खड़े लखाओ" ज्युकर नेचुरल गैस के लिए पूर्वी-उत्तरी यूरोप बंध सा गया है| इनका प्लान रूस को बड़ा सबक सिखाने का था, परन्तु नेचुरल रिसोर्सेज की इनकी रूस पर निर्भरता ने सब सिमित कर दिया| यही मामला "नेचुरल कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" से निकलता होता है और आपके लिए वह है "खाप-खेड़ा-खेत"| यह जो खुद के साथ-साथ इतने प्रवासियों (विश्व में सबसे ज्यादा प्रवासी रहता है खापलैंड में) को भी पाल पा रहे हो यह किसी अन्तर्यामी, माया या चमत्कार की वजह से नहीं है अपितु आपकी कॉपीराइट कल्चर यानि "खाप-खेड़ा-खेत" से है| उधार के कल्चर्स के रंग-रस भी लो परन्तु अपने कॉपीराइट कल्चर को पहले कस लो|
जय यौधेय! - फूल मलिक