Tuesday, 31 May 2022

अबकी बार जाट-जट्ट "अपना-अपने को मारे" वाली गलती नहीं कर रहा, डॉन तक इस बात की अहमियत को समझ रहे हैं!

इसीलिए "गोल्डी बराड़" का जब नाम आया मुसेवाला की मौत में तो उसने तुरंत वीडियो जारी करके कहा कि इसमें उसका रोल नहीं है|

वह लोग इस बात पर ध्यान दें, जो यह सोच के हताश हुए जाते हैं कि जट्ट, जट्ट को मार रहा है| मेरे ख्याल से किसान आंदोलन ने इतनी शिक्षा कूट-कूट के भर दी है कि अपने को मारने को अपना ही हथियार नहीं बनेगा| जाट-जट्ट तो क्या किसी भी जाति का किसान ऐसा ना करे|
हाँ, सरकारी तंत्र में किसी अफसर आदि या सीएम तक पे जिम्मेदारी धर के इसको जट्ट बनाम जट्ट रंग देना बहुत बड़ी नादानी व् जल्दबाजी दोनों हो सकती है| इस बात का शुकून लो कि जाट-जट्ट एक चल रहा है|
व् तमाम बिरादरियों के किसान की हर स्तर के फील्ड की औलाद इस बात की अहमियत को समझे| भाई पैसा कहीं और से भी कमा लोगे, किसी और की सुपारी ले के भी कमा लोगे; परन्तु उनकी सुपारी मत लो, जो इस किसान आंदोलन की जड़ हैं/थे| और अगर ऐसा कुछ करना भी पड़े तो ज्योना जट्ट, लजवाणिया दादा भूरा व् दादा निंघहिया की भांति करो; रॉबिनहुड की भांति करो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 30 May 2022

जाट-जट्ट की अगुवाई वाली किसान एकता व् स्थिरता फंडियों को पागलपन की हद पर ले आई है!

सुनो फंडियों (जिस किसी भी जाति का हो), तुम्हें तुम्हारी भाषा में समझा देता हूँ; हमें तो यह भाषा चाहिए ही नहीं होती परन्तु क्योंकि तुम चलते ही इसके जरिए हो तो इन्हीं शब्दों में सुनो!

अगर अकेले ब्रह्मा में सब कुछ संभालने की क्षमता होती तो तुम्हारे ही ग्रंथ-पुराण वाले त्रिमूर्ति का कांसेप्ट ना रखते, जो साक्षी है इस बात का कि ब्रह्मा अकेला सृष्टि नहीं संभाल सकता| और अकेले विष्णु में ही यह क्षमता होती तो भी त्रिमूर्ति नहीं होती और ऐसे ही शिवजी इस त्रिमूर्ति का हिस्सा है|
ब्रह्मा ही सब कुछ सीखा सकता तो विष्णु अवतार परशुराम, शिवजी का शिष्य नहीं होते|
अब मोटे-तौर पर सांसारिक सरंचना में यह साइकोलॉजिकल तिगड़ी कैसे पूरी होती है वह भी देख लो और अच्छे से यह समझ लो कि जो तुम चाह रहे हो यह हर सिद्धांत पर तुम्हारे बस से बाहर है; वह कैसे?
ब्राह्मण: ब्रह्मा पर कॉपीराइट रखता है|
बनिया: विष्णु पर कॉपीराइट मानता है|
जाट: शिवजी पर कॉपीराइट मानता है, इसीलिए जाटलैंड पर सबसे ज्यादा शिवाले जाटों से जोड़ कर बताए गए हैं; हैं कि नहीं हम तो आज भी फ़िक्र नहीं करते|
शिवजी जाट है, यह हर दूसरे-तीसरे इतिहासकार से ले हर लोक्कोक्ति-कहावतों तक में पढ़ा-बताया जाता रहा है| यह नहीं भी है तो इतना तो फिर भी है कि जाट शिवजी से पैदा हुए बताते हैं तुम्हारे ही तथाकथित इतिहासकार|
अब आज जो तुम कर रहे हो तुम्हारी वर्तमान सरकार के जरिए, जाट को निशाने पर रख कर; इस ऊपर की व्याख्या से समझ जाओ, तुम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो| क्योंकि यह वह दौर है जब तुम्हारी हर गैर-जिम्मेदारी व् षड्यंत्र की अति हो चुकी है व् उस अति के चलते शिवजी तीसरी आँख खोले चल रहा है व् इसी वजह से किसान आंदोलन में तुमको हार देखनी पड़ी व् तीन कृषि कानून वापिस लेने पड़े|
किसान आंदोलन में हार देख के भी नहीं समझे तो और क्या चाहते हो? नहीं दबा पाओगे, क्योंकि सामने किसानों की एकता की अगुवाई में तुम्हारा ही बताया शिवजी रूप जाट है| समझ लो इस बात को| या हम समझ लें कि फंडी, किसान एकता ने पागल होने के स्तर तक ला छोड़े हैं; और तुम लोग पागल हो चुके हो, दिमाग से पैदल हो चले हो?
यह बहम छोड़ दो कि तुम जाट को आँख दिखा के दो दिन भी चल लोगे| तुम्हारे पुरखे नहीं चल पाए, तुम्हारे पुराण-ग्रंथ लिखने वालों ने यह माना तो तुमको किस बात का बहम हुआ जाता है? यह कहावत यूँ ही नहीं चलती समाज में, पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद से तो सत्यापित तौर पर चलती है कि "जाट को सताया तो ब्राह्मण भी पछताया"|
मुझे नहीं लगता कि इससे शालीन व् सभ्य तरीका और कोई हो सकता था तुम्हें यथास्थिति व् तुम्हारी अवस्था समझाने का| आगे तुम्हारी मर्जी|
और जितना आमने-सामने आते जाओगे, उतना कमजोर होते जाओगे; यह श्राप तुमको ब्रह्मा से ही है कि तुम शिवजी का मुकाबला करोगे तो श्रापित हो के भटकोगे, तुम्हारे ही बताएअश्वत्थामा की तरह|
जय यौधेय! - फूल मलिक

कल तक सादगी दिखाने वाले, आज दादगी दिखाने लगे; मतलब आ गए असली औकात पर!

लेख में आगे बढ़ने से पहले SKM को अपील: संयुक्त किसान मोर्चा भी फिर से एक होने की सोचे व् जो इलेक्शन लड़ने चले गए थे, उनको माफ़ करके, अबकी बार एक मिनिमम कॉमन प्रोग्राम बना के फिर से एक हों|


आज बैंगलुरु में चौधरी राकेश टिकैत की सभा को छिनभिन्न करने वालों का हंगामा देख कर, मुझे मेरे बचपन के वो वक्त याद आ गए जब मेरे गाम में किसी फंडी के घर सतसंगी आते थे तो गाम के गाबरू बाळक उनके घर रेत के लिफ़ाफ़े भर-भर फेंक के आते थे, पत्थर तक मारते थे सतसंगियों को; कि गाम का कल्चर बिगाड़ रहे हैं, सिस्टम बिगाड़ रहे हैं व् खड़ताल-ढोलकी बजा लोगों की नींद हराम करते हैं, शोर यानि ध्वनि प्रदूषण करते हैं (जो कि कानूनी भी अवैध होता है), अश्लीलता फैलाते हैं| तब फंडी लोग मिमियानी सी आवाज बना के बोलते कि हम तो म्हारे घर में कर रे सां, किसे नैं के कहवाँ सां; रोळा यानि शोर घर तें बाहर गया सै तो कोए ना गलती होई, फेर ना होवैगी|

आज समझ आई कि वह क्रिया क्यों जरूरी होती थी| वह इसलिए जरूरी होती थी कि जो आज हो रहा है यहाँ तक के हालात कभी समाज में ना बनें| यह वही मिमियाने लोग आज खुद यही हरकतें कर रहे हैं, वह भी किसी शोर-सतसंग की वजह से नहीं; किसानों द्वारा बाकायदा सरकार की परमिशन लिए स्थलों पर अपने हक-हलोल पर चर्चा-मंत्रणा करने मात्र पर| इन हालातों के साथ समझौते किये हैं तो भुगतने तो होंगे ही अन्यथा यह सब ठीक चाहिए तो आ जाओ उसी मोड में|

सोचो क्या हो, जोणसे कनेक्शन जिधर से ढीले छोड़े चल रहे हो, उनको तो वहीँ से टाइट करने से काम चलेगा| वरना इन्नें तो कर दी, "सिंह ना सांड और गादड़ गए हांड" वाली|

जय यौधेय! - फूल मलिक

अभी सिद्धू मुसेवाला की मौत का बहाना बना कर, एंटरटेनमेंट जगत में "गन कल्चर" व् पंजाबी-हरयाणवी गानों में "जट्ट-जाट" के जिक्रे होने को निशाना बनाया जाएगा; इनके ललित निबंधों/उपदेशों से घबराने का नहीं!

बल्कि ऐसे लोगों को एक तो बॉलीवुड की "एंग्री यंगमैन" यानि "लम्बू" यानि "अमिताभ बच्चन" के जमाने से चले इस "गन" व् "डॉन" कल्चर की याद दिला देना, जो आज तक बदस्तूर जारी रहते हुए इतना वाहियात स्तर ले चुका है कि "धाकड़" फिल्म जैसा गोबर तक परोसने लगे हैं|
और जो "जाट-जट्ट" की बात करे, उनको "विनम्रता से, जी लगा के" फिल्मों में फेरे एक ही जाति का पंडित/शास्त्री ही करवाता क्यों दिखाया जाता है इसकी याद दिलवा देना; वह आर्य समाजी जरूर याद दिलवा देना, जहाँ सभी जाति के शास्त्री हवन-फेरे करवाते आए परन्तु आज इस धंधे पर सिनेमा-मीडिया के जरिए जैसे एक जाति विशेष ही अपना कब्जा चाहती हो| क्यों नहीं दूसरी जाति का पंडित-शास्त्री फेरे करवाता दिखाते, नाम लेने तक को भी?
और अभी इधर हरयाणा में "फरसे" व् "तलवारों" वालों समेत सड़कों पर कंधे लाठी धर यात्राएं निकालने वालों की याद दिला देना; स्टेडियम-अखाड़ों की बजाए पार्कों में लाठियां भांजने वालों की याद दिला देना|
जाट-जट्ट के जिक्रे कम-से-कम झूठे तो नहीं होते और ना ही किसी अन्य को रोकते| लगभग-लगभग हर जाति किसी न किसी गाने में मेंशन हो चुकी है| जाट-जट्ट ज्यादा होते हैं तो किस बात की जलन इस बात से? और इनको यह भी याद दिलाना कि यह बॉलीवुड की फ़िल्में देखो इनमें 90% पॉजिटिव कैरेक्टर कौनसे गौत-जात वाले होते हैं व् नेगेटिव कौनसे वाले? इस जातिवाद पर कब बोलोगे, अगर जाट-जट्ट गानों में आने से ही जातिवाद हो जाता है तो?
जाट-जट्ट कभी गानों में जिक्र आता है तो झूठे क्लेम्स का नहीं आता| इसलिए यह रोते हैं तो इनको रोने दो| अपनी अणख यही कहती है कि खुद को महान बताने को "माफीवीरों" को वीर हम तो नहीं कहेंगे व् दूसरों को बहु-बेटियां दे राज बचाने व् रण छोड़ कर भाग जाने वालों को "वीर", "महान", "राष्ट्रवादी" प्रचारित, हम तो करेंगे नहीं|
हम युगों से "सीरी-साझी" का कल्चर पालने जाट-जट्टों को अब यह बहरूपिए फंडी बताएंगे क्या कि जातिवाद क्या होता है| मुंह धो के आओ, जन्म से मरण तक आकंठ जातिवाद व् वर्णवाद में जीने वाले दोगले लोगो|
जाट-जट्ट अपने को गानों में प्रमोट कर लेते हैं तो इसलिए कि वह असल "सीरी-साझी" कल्चर पालते हैं, जो पालना तुम्हारे फरिश्तों की भी औकात नहीं| इसी कल्चर से जाट-जट्ट में यह आत्मबल आता है कि वह इतने आत्मविश्वास से समाज में अपनी बात कह लेता है| तुम पाल के देख लो इस कल्चर को, यह आत्मविश्वास तुम में भी आ जाएगा|
परवर्दिगार, मुसेवाला की आत्मा को शांति दे व् उनके परवार समेत तमाम पंजाबी-हरयाणवी फिल्म-म्यूजिक इंडस्ट्री व् इनके फोल्लोवेर्स समेत किसान यूनियनों को इस क्षति को खेने का संबल दे!
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 29 May 2022

हरयाणा में नगर परिषद चुनाव जेजेपी को छोड़ अकेले लड़ेगी बीजेपी!

यह बात उन लोगों के लिए सबक होना चाहिए जो यह समझते हैं कि तुम फंडियों से अपनापन दिखाने की होड़ में खुद को व् खुद के परिवार को, अपने पड़दादा को पब्लिकली "असली संघी" भी कह लोगे तो यह तुम्हें अपना मान लेंगे या मानने लगेंगे| किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी से समर्थन वापस लेने बारे हरयाणा विधानसभा में हुई बहस याद है ना?
हमारे जैसे समझाने चलते हैं तो हमें जातिवादी बोल के, 50 साल पुराने विचार बोल के किनारा काटने लगते हो और फिर 100 साल पुराने विचार वालों से गठबंधन करे मिलते हो|
तुम इनसे जितना चाहे चिपक लो, यह तुम्हारा इस्तेमाल करके; तुम्हें फेंकना अच्छे से जानते हैं| इन्होनें बाबा रामरहीम नहीं बख्शा जिसने बैठे-बिठाए 2014 में यह सत्ता में ला दिए थे हरयाणा में; तुम्हें धरते ये सर पे?
अपने कौम-कल्चर के भाईयों से सरजोड़ के नहीं रखने के यही नतीजे होते हैं|
कितनी कोशिश की थी हुड्डा साहब ने कि 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही कि आ जाओ मिलके सरकार बना लेते हैं, डिप्टी सीएम भी बन जाना; परन्तु नहीं|
"अपना मारे, छाँव में गेरे" की लाइन पे चलते हुए उस वक्त अलायन्स कर लेते कांग्रेस व् जजपा तो आज जजपा के साथ यह कहानी नहीं बनती कि बीजेपी का साथ दे के अपनी क्रेडिट वैल्यू भी खोई, अकेले भी छोड़ दिए गए बीच आधी-टर्म और आगे के रास्ते भी बंद कर लिए| चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की पहली सजा के वक्त तो कांग्रेस व् हुड्डा जी दोषी बता दिए; अब रुकवा ली सजा; स्टेट-सेण्टर दोनों जगह गठबंधन की सरकार होते हुए? ना दादा की रुकवा पाए व् अभी पिता-काका का भी पता नहीं कि शायद फिर से हो जाए|
हालाँकि यह राजनीति है इसलिए इसमें जो इस पल सही हो वह जरूरी नहीं कि हर वक्त सही ही हो; परन्तु वह जरूर हर वक्त सही ही होता है जो आइडियोलॉजी पकड़े रहता है, किनशिप थामे रहता है| और बीजेपी व् आरएसएस को यह अच्छे से आता है कि कौनसी, किसलिए, किनके लिए व् किसकी आइडियोलॉजी पकड़नी है व् वह उसको पकड़े चल रही है; भले ही उससे भला सिर्फ फंडियों का होता हो|
फंडियों ने कौन अपना और कौन "यूज एंड थ्रो" सब निर्धारित कर रखा होता है| यह बात सर छोटूराम समझाते-समझाते जा लिए धरती पर से| फंडियों-संघियों की ताकत यह है कि यह किसी भी हालत में अपनी आइडियोलॉजी नहीं छोड़ते; चाहे यह भूखे मर जाएँ या हँघाए छकें| भूखे होंगे तो मांग के खा लेंगे परन्तु आइडियोलॉजी नहीं छोड़ेंगे और जब छके होते हैं तो वही करते हैं जो बाबा रामरहीम के साथ किया या अभी जजपा व् चौटाला परिवार के साथ हो रहा है कि साथ दे के भी, सरकारें बनवा के भी निताणे के निताणे| और आइडियोलॉजी एक व्यक्ति या पीढ़ी का काम नहीं, इसको कायम रखना पीढ़ी-दर-पीढ़ी रिले-रेस जैसा होता है|
जजपा वालों के लिए मेरे अंदर कोई द्वेष आ ही नहीं सकता अपितु दुःख व् अपनापन ही झलक सकता है क्योंकि हम हैं तो एक ही कल्चर-किनशिप के| अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अगर जजपा इनको लात मार के, कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ले तो| आ जाओ इनको छोड़ के, मौका है अभी भी| यह डिप्टी सीएम पद तो कांग्रेस के साथ भी कायम रह जायेगा|
रै रलदू, हुक्का भर ले भाई, स्थाई व् लम्बी राजनीति की ABCD सीखने आ रहा हूँ तेरे से| भाई-भाई को बाँट के कैसे खाना होता है व् बूढ़े जो वह कहावत बता गए ना कि
चलना राह का चाहे फेर क्यों ना हो,
खाना घर का, चाहे जहर क्यों ना हो!
सफर रेल का, चाहे बार क्यों ना हो,
और बैठना भाईयों का, चाहे बैर क्यों ना हो!
इसपे बौराएँगे व् ठहाके लगाएंगे!
जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 23 May 2022

"जाट" शब्द चौराहे पे खड़ी गाय बना दी; वैसे तो माता और खुशामद व् हक के नाम पर "तत्तत आगे नैं चाल"!

कभी मीडिया, कभी नेता, कभी कथावाचक; इन सब पर किसी भी जाति के शब्दों के इस्तेमाल पर कानूनी बैन होना चाहिए; ठीक वैसे ही जैसे "मार्केटिंग का कॉर्पोरेट लॉ है" - marketing law for corporates"| कॉर्पोरेट लॉ - corporate law कहता है कि बिना कॉम्पिटिटर - competitor का नाम लिए, उसकी बुराई किए, उससे तुलना किए; सिर्फ अपनी ब्रांड-प्रोडक्ट - brand-product की प्रमोशन करो| और इसके लिए वजह दी जाती है हैल्दी कम्पटीशन - healthy competition की व् कॉर्पोरेट के आपसी रिश्तों की - coporate relations management| यही मीडिया, नेता व् कथावाचकों पर होना चाहिए| आज के दिन इन मामलों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है "जाट" शब्द का और वह भी बड़े ही वाहियात और सेलेक्टिव तरीके से|


कथावाचक हैं इनको तो बाकी किसी जाति का शब्द दीखता ही नहीं, "जाट" के अलावा; ऐसे बना के दिखाएंगे कि ना तो धरती पर जाट से बड़ा कोई भगत ना दाता| और जब इसी जाट पे 35 बनाम 1 होती है तो सबसे बड़ी दड्ड (घुन्नी चुप्पी) यही मारते हैं|

मीडिया तो पिछले 2 दशकों से तो खासतौर से देखते ही आ रहे हो|

हद इन नेताओं ने कर रखी है, मलाल जाति-विशेष में भाजपा को थोक में वोट दे के भी, सीएम की कुर्सी नहीं मिलने का और भाजपा को डराने का औढ़ा "जाट" के जरिए| बल्या, "ये तो राज देख रे हैं, ये तेरे से कैसे खुश होंगे"| रै भले मानस, राज देखने की बात है तो तेरे आळे सेण्टर के टोटल 70 साल में से कितने साल राज देख रे सें, उसको देखते हुए तो फेर अदला-बदली ही करवा दो ना; स्टेट का राज थम ले लो और सेण्टर का हमने दे दो| या आपको जो माँगना सीधी मारो बीजेपी के टक्कर, जाटों को क्यों इस नेगेटिविटी में घसीट रहे हो? पॉजिटिव शायद ही कुछ करके दिया हो जाट के लिए आज तक, पर नेगेटिव में घसीटेंगे|

यार मतलब "जाट" शब्द चौराहे पे खड़ी गाय बना दी; वैसे तो माता और खुशामद व् हक के नाम पर "तत्तत आगे नैं चाल"|

जाट समाज के जागरूक लोगों को, इन पहलुओं पर बात करनी चाहिए|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 22 May 2022

जाट मुग़लकाल से ज्यादा ब्रिटिश काल में क्यों मुस्लिम व् सिख बन रहे थे?

अक्सर यह कहा जाता है कि मुगलों ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाया थ, लेकिन अंग्रेजी शासन के समय के आंकड़े कुछ और ही कह रहे है, देखिये सलंगित पन्ना।


1881 की जनगणना के मुताबिक संयुक्त पंजाब में हिन्दू जाटों की जनसंख्या 14 लाख 45 हजार थी। पचास वर्ष बाद अर्थात 1931 में जनसंख्या होनी चाहिए थी 20 लाख 76 हजार लेकिन घटकर 9 लाख 92 हजार रह गई। संकेत साफ है कि अंग्रेजी शासन के इन 50 सालों में 50%जाट सिक्ख व मुसलमान बन गए। इस दौरान हिंदुओं की आबादी 43.8%से घटकर 30.2%हो गई व सिक्खों की आबादी 8.2% से बढ़कर 14.3% व मुसलमानों की आबादी 40.6% से बढ़कर 52.2% हो गई।


जाटों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि फंडियों की सनातनी चतुर्वर्णीय व्यवस्था, इनको ठीक वैसे ही जलील कर रहा थी, जैसे अब 2014 से जब से यह सरकार आई है 35 बनाम 1 के नाम पर कर रही है। पाखंड व अंधविश्वास की लूट उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही थी।


जाट सदा से प्रकृति के नजदीक रहा है। इंसान जीवन मे सरलता ढूंढता है लेकिन सनातन ने कर्मकांडों का जंजाल गूंथ दिया था जिससे मुक्ति के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ा। 


हालांकि दयानंद सरस्वती के अथक प्रयासों के कारण जाटों को धर्म परिवर्तन से रोका गया था। चुपके से जाटों के "दादा नगर खेड़ों/बाबा भूमियों/दादा भैयों" से मूर्तिपूजा नहीं करने का कांसेप्ट इनको बिना इस कांसेप्ट का क्रेडिट दिए उठाया व् "जाट जी" और "जाट देवता" लिख-लिख स्तुति करी तो जाट रुके| आज आर्य समाजी ही राममंदिर निर्माण के लिए बधाइयां दे रहे है,चंदा दे रहे है जैसे वहाँ मूर्ति नहीं लगनी हो| खैर,धरती में कोई धर्म नहीं होता है। जबरदस्ती किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। धर्म लोगों का ऐच्छिक विषय है।


जात नहीं बदली जा सकती है इसलिए धर्म बदलकर जीवन मे सरलीकरण ढूंढा जाता रहा है। अँधभक्तों की सुविधा के लिए यह बताना जरूरी है कि अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों ने पकड़कर रंगून भेज दिया था व उसके बाद पूरे भारत पर अंग्रेजों का राज कायम हो गया था।


1857 के बाद में हुए धर्म परिवर्तन का मुगलों से कोई संबंध नहीं था। वैसे भी मुगलों के दरबार मे बैठकर साहित्य रचने वाले ब्राह्मण जजिया कर से मुक्त रहते थे। अगर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का मसला भी होता तो सबसे पहले ब्राह्मण इस्लाम मे होते!


लेख: फूल मलिक द्वारा सोधित, मूलत: लेखक पंडित हिमांशु कुमार 




Saturday, 21 May 2022

भारतीय किसान यूनियन बिखराव पर आज शामली में हुई सर्वखाप पंचायत की मीटिंग के अपडेट!

1) गठवाला खाप की यूपी विंग के सभी थांबेदारों ने पुरानी भारतीय किसान यूनियन में ही विश्वास जताया व् पूरा समर्थन व् आशीर्वाद जारी रखने का निर्णय हुआ| आपको बता दें थांबेदारों के पास खाप के चौधरी को बदलने की वीटो पावर होती है|

2) बाबा श्याम सिंह मलिक जी लाख-बावड़ी के थांबेदार ने गठवाला खाप के चौधरी की अलग किसान यूनियन के संरक्षक बनने की अपनी बात पर पुर्नविचार करने को कहा| उनका लहजा बड़ा सख्त व् स्पष्ट था|
3) खाप थांबेदारों ने पूरी भारतीय किसान यूनियन को बाबा टिकैत की कार्यप्रणाली के अनुसार चलने की तस्दीक की, व् टिकैत बंधुओं को इस पर मंत्रणा की|
4) लगभग 12 साल पहले भारतीय किसान यूनियन से अलग हुए बिजनौर जिले के धड़े ने आज वापिस पुरानी किसान यूनियन जो टिकैत बंधुओं द्वारा चलित है, उसमें अपना विलय किया|
5) इसी विषय पर अगली सर्वखाप महापंचयात काकड़ा गाम मुज़फ्फरनगर 29 may में होनी तय हुई, जिसमें भारतीय किसान यूनियन की एकता बारे बड़े फैसले लिए जायेंगे|

सलंगित है इस सर्वखाप पंचायत में बाबा श्याम सिंह मलिक जी का सम्बोधन -
https://m.youtube.com/watch?v=ys5AueRN0PU&feature=youtu.be

जय यौधेय! - फूल मलिक

Friday, 20 May 2022

जो अपने बाप-दादाओं की किनशिप ना ही तो समझ सकते और ना ही उसको आगे बढ़ा सकते; ऐसे शुद्रमती लोगों को ही सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह व् ताऊ देवीलाल की विचारधारा पुरानी व् बोझ लगने लगती है!

ऐसे लोग एक नंबर के उलंड होते हैं, खाना-खाने का सलीका नहीं और लगते हैं ज्ञान पेलने|
इनसे कोई पूछने वाला हो कि
1) 2020-21 के तीनों काले कृषि कानून वापिस करवाने के फ्रंट पर सफल किसान आंदोलन का आत्मिक बल कौनसी विचारधारा थी? क्यों इस किसान आंदोलन में चौधरी चरण सिंह का ड्राफ्टेड कच्चा मंडी कानून, सर छोटूराम ने फिट बना के APMC एक्ट की शक्ल दे के तब के यूनाइटेड पंजाब में जो लागू किया था, वह इस आंदोलन में 2020 में भी मुख्य मुद्दा था?
2) क्यों सरदार अजित सिंह जी का 1907 का "पगड़ी संभाल जट्टा" आंदोलन ही 2020-21 के किसान आंदोलन की भी प्रेरणा बना?
3) सर छोटूराम, जिनको "किसानी व् उदारवाद" के दुश्मन बता गए, उन्हीं झुंडों का पीएम क्यों 2017 में सर छोटूराम के स्टेचू का उद्धघाटन करने चला आता है; अगर वह आज पुराने व् यथार्थहीन हो चुके हैं तो?
कहते हैं कि यूनियनिस्ट मिशन ने जाट को बाकी समाज से अलग-थलग कर दिया| कौनसी पार्टी, कौनसे नेता के आदेश पर ऐसा कर रहे हो, महाराज?
पहली तो बात यह आइडियोलॉजी किसी की मोहताज नहीं, यह अपने आप में इतना दम रखती है कि यह खुद ही जिन्दा हो-हो बाहर आती रहेगी जैसे कि 2020-21 के किसान आंदोलन में उभरी| हर छोटा-बड़ा किसान नेता, वह भी हर धर्म का पूरे आंदोलन के दौरान जब-तब सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह व् सरदार अजित सिंह को याद करता नजर आया, उनके जन्मदिन व् मरणदिन मनाता आया व् तुम कहते हो यह खत्म हो चुके?
तुम अगर अपनी कौम की आभा-शोभा-सुश्रुषा नहीं ही संभाल व् कर सकते तो जाओ कुछ उनसे सीखो जो यूनिवर्सल चीजों को भी उसके नाम से रखता है व् फिर भी उसपे जातिवाद का टैग नहीं लगने देता| उनके बनाए शब्दों को कैसे बोल-बरत लेते हो बे तुम अगर एक ऐसी आइडियोलॉजी के बोझ से टूट जाते हो तो जो तुम्हारे अपने पुरखों के तप-बल ने विश्व स्तर तक जानी-पहचनवाई? इसका मतलब तो जब हम इसी तर्ज पर "जाट-जाटांड-जट्टचरियता-जाटकी" ले के आएंगे तब तो तुम बेशुद्ध हो के भागने लगोगे? हम एक भाषा के सम्मान में "हरयाणा-हरयाणवी-हरयाणत" लाएंगे तो तुम तो बावले ही हो जाओगे?
"जाटड़ा और काटड़ा, अपने को ही मारे" की गलत-उछाली गई कहावत की तर्ज पर, तुम्हें यह पुरानापन क्रमश: 77-33 साल पहले हो के गए सर छोटूराम व् चौधरी चरण सिंह में दिखने लगा है तो यह जो हजारों साल पुराणी के नाम पे माइथोलॉजी ढोते हो, उसपे तो तुमने कोहराम मचा देना चाहिए? पर हमें तो कहीं नहीं तुम चुसकते दीखते?
ऐसा है, कौम के नाम पे चुप रहना सीखो| एक शब्द होता है "KINSHIP" पहले उसको पढ़ो व् जानो| अभी तुम जिस आइडियोलॉजी पे कीचड़ उछाल रहे हो, उसके नर्सरी के लायक भी नहीं हो तुम| किसी नेता व् पार्टी की चमचागिरी मारनी है तो अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए खूब मारो, सभी मारते हैं परन्तु उसके चक्कर में नंबर बनाने को अपने पुरखों की आइडियोलॉजी, हस्ती व् विरासत को मत घसीटो| यूनियनिस्ट मिशन बनने को कलेजा चाहिए, छिछोरापन नहीं|
तुम वो वाले मृग हो जो अपनी ही कस्तूरी की खुशबु को संभालने-समझने की बजाए, उसमें मदहोश व् बावला हुआ आखिरकार मृत्यु को प्राप्त होता है; यही हश्र होगा तुम्हारा अंतदिन ऐ कौम के पुरखों के स्थापित सिद्धांतों व् शौर्यों पर गरद उछालने वाले/वालो| तुम शुद्रमती से ज्यादा कुछ नहीं हो, कहीं अपने आप कोआइडियोलॉजी के "चाणक्य" टाइप कुछ समझने की गलतफहमी में हो| पहले इतना ही सीख लो कि अपनी कौम को जिस आइडियोलॉजी ने 1907 में भी बचाया व् 2020-21 में भी देश के पीएम को झुकाया; उस पर आक्षेप लगा के किसी नेता-पार्टी की चाटुकारिता तो कर लोगे; परन्तु खुद को व् तुम्हें मानने वालों को पुरखों की बुलंदी की जड़ों से काट दोगे|
ऐसा करके तुम तो तुम्हारे पार्टी-नेता को खुश कर लोगे, परन्तु समाज-कौम को सिकोड़ के रख देती हैं तुम्हारे जैसों की यह हरकतें| इसलिए राजनीति करने को जो चाहे करो, परन्तु पुरखों की वैचारिक विरासत को निशाना मत बनाओ| वह उन जमानों में एक ब्राह्मण ऋषि दयानन्द से ग्रामीण व् तथाकथित अक्षरी अनपढ़ होते हुए 1875 में "जाट जी" व् "जाट देवता" कहलवा-लिखवा चले गए; तुम्हारी है क्या आज के दिन उसी आभा को कायम रखने की बिसात? या कहलवा-लिखवा लिया फिर से किसी से या किसी ने लिख दिया हो फिर से उसकी लेखनी में "जाट देवता" व् "जाट जी"? नहीं, बल्कि उल्टा 35 बनाम 1 झेल रहे हो| तो खामोश हो के पहले पुरखों के तेज को सहन करने की औकात बनाओ|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 19 May 2022

पंडित हिमांशुकुमार की पोस्ट!

हमारे परदादा पंडित बिहारीलाल शर्मा आर्यसमाजी थे। 


वे महर्षि दयानंद के उत्तर प्रदेश में पहले शिष्य थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद मुज़फ़्फ़रनगर में हमारे घर में ठहरते थे। 


उस समय आर्यसमाज वाले डंके की चोट पर प्रचार करते थे कि राम कृष्ण शिव भगवान नहीं है इनकी पूजा मत करो मंदिर मत जाओ मूर्तिपूजा मत करो। आर्यसमाजी अवतारवाद को नहीं मानते। वे राम कृष्ण या शंकर को भगवान का अवतार नहीं मानते। 


उस समय आर्यसमाजी सनातनियों से शास्त्रार्थ करते थे। बड़ी-बड़ी सभाएं होती थी और उसमें सनातनी और आर्यसमाजियों के बीच शास्त्रार्थ होते थे। जिसमें आर्यसमाजी सनातनियों के अवतारों की ख़ूब खिल्ली उड़ाते थे और उनके सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा देते थे। 


एक दौर था कि लाखों लोग सनातनधर्म छोड़कर आर्यसमाजी बन गये। भगतसिंह का परिवार भी आर्यसमाजी था। 


आज आरएसएस ने देश का माहौल इतना ज़हरीला बना दिया है। आरएसएस ने हिंदूधर्म को इतना कट्टर और ख़तरनाक बना दिया है कि आज अगर कोई राम-कृष्ण को अवतार मानने से मना करे तो संघी और बजरंग दल की भीड़ उसके घर जाकर उसका घर जला देगी। आज से 70 साल पहले हिंदुओं में जितनी सहिष्णुता थी आज वह भी आरएसएस ने ख़त्म कर दी है। 


हिंदुओं में शास्त्रार्थ की परंपरा थी आप खुलकर चर्चा कर सकते थे एक दूसरे के मतों का खंडन कर सकते थे अपना मत रख सकते थे वही हिंदू धर्म की विशेषता थी। आज आरएसएस ने ऐसा माहौल बना दिया है कि आप धर्म के ऊपर शास्त्रार्थ की बात सोच भी नहीं सकते आप की हत्या कर दी जाएगी या पुलिस में आप के ख़िलाफ़ एफ़आईआर कर दी जायेगी कि इन्होंने मेरी धार्मिक भावनाओं का अपमान किया है। 


हिंदुओं को गंभीरता से सोचना चाहिये कि आरएसएस द्वारा उनके धर्म को क्या से क्या बना दिया गया है ! अगर हम चर्चा नहीं कर सकते शास्त्रार्थ नहीं कर सकते अपने स्वतंत्र विचार नहीं रख सकते तो इससे भयानक कट्टरता क्या होगी हमसे ज्यादा कट्टर धर्म कौन-सा धर्म हुआ हम अपनी कौन-सी सहिष्णुता की डींग हांकते हैं ?


मैं मानता हूं ईसाईयों मुसलमानों यहूदियों के धर्म में परंपरा ही धर्म है। वहां अगर आप परंपरा छोड़ेंगे तो आप धर्म से बाहर हो जायेंगे। लेकिन भारत में धर्म हमेशा से शोध यानी खोज का विषय रहा है भारत में सत्य की खोज की जाती है और नये सत्य को स्वीकार किया जाता है। 


भारत का धर्म कभी परंपरा के पालन को मान्यता देनेवाला नहीं रहा हमारे यहां सत्य खोज लेने के बाद 'नेति नेति' कहा जाता था अर्थात यह भी नहीं यह भी नहीं अर्थात जाओ और नये सत्य खोजो ! लेकिन आरएसएस ने हर नये सत्य के लिए दरवाज़ा बंद कर दिया और अवतारवाद को सनातन धर्म और हिंदू धर्म का रूढ़ सिद्धांत बना दिया। 


भारत में षड्दर्शन थे जिसमें वैदिक दर्शन मात्र एक दर्शन था।  इसके अलावा यहां सांख्य योग न्याय मीमांसा वैशेषिका वेदान्त दर्शन भी थे


सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता इसी तरह यहां अन्य अनीश्वरवादी दर्शन भी थे जो ईश्वर को मानते ही नहीं जिसमें जैन दर्शन है बौद्ध दर्शन है लोकायत यानी चार्वाक दर्शन है।  आज अगर आप कहे कि मैं ईश्वर को नहीं मानता मैं राम को भगवान नहीं मानता या मैं शंकर को भगवान नहीं मानता तो आप की हत्या की जा सकती है। 


भारत का जो धर्मविचार इतना विशाल समुंदर जैसा था उसे आरएसएस ने एक छोटी-सी गंदी नाली में बदल दिया है। इस गंदी नाली में तैरने वाली कुछ मछलियों और कीड़ों को धर्म रक्षक बना दिया गया है। और भारतीय धर्म विचार का जो विशाल महासागर था उसकी चर्चा को भी अपराध घोषित कर दिया गया है। 


आज मैं खुद को अनीश्वरवादी विचारों के ज्यादा नजदीक पाता हूं मुझे लोकायत और बुद्ध के विचार ज्यादा सत्य और व्यवहारिक लगते हैं। लेकिन अपने इन विचारों के कारण मुझे रोज गाली खानी पड़ती है 


मुझे रोज लगता है कि पता नहीं किस दिन मेरे खिलाफ कोई भाजपाई या संघी बजरंगी एफआईआर कर देगा और पुलिस द्वारा मुझे उठा कर जेल में बंद कर दिया जाएगा


हमारा धार्मिक सामाजिक राजनीतिक चिंतन रोज अपने स्तर से नीचे गिरता जा रहा है


भारत विचारहीनता के भयानक दौर में पहुंच चुका है जहां कोई भी नया दर्शन नया विचार नया रास्ता नहीं खोजा जा सकता क्योंकि ऐसा करना आपकी जान ले सकता है या आप को जेल पहुंचा सकता है ...! 

Wednesday, 18 May 2022

हमारे खाप-खेड़ा-खेत का कोई भला सिद्ध नहीं होता इन बातों से जो फंडियों ने आज के दिन हव्वा बना रखी हैं!

हम आज भी मुस्लिमों के साथ इसलिए आराम से रह लेते हैं क्योंकि हम ही वो थे जिनके पुरखों ने इनसे सबसे ज्यादा लड़ाइयां लड़ी व् बहुतों में इनको हराया भी| तो म्हारा तो गुबार साथ की साथ लड़ के शांत होता रहा| चाहे वो मुग़लों के साथ लड़ी या अंग्रेजों के साथ| 


वह इन्हीं के पुरखे थे जो पानीपत की तीसरी लड़ाई जीतने पर, दिल्ली जाटों को देने की बजाए मुग़लों को ही देने की बात किया करते थे; हाल ही की पानीपत मूवी में देखा ना? तो फिर तब इतना प्रेम था मुग़लों से तो आज क्यों हवा हुआ जाता है? मतलब साफ़ है आपको आपके भगवानों का राजनैतिक इस्तेमाल करके इनकी सत्ता कैसे कायम रहे, उसके लिए बेवकूफ काट रहे हैं| खिलजी के हाथों चितौड़ के राणा रत्न को मरवाने वाले ये रहे, राजा नाहर सिंह को समझौते के नाम पर धोखे से कैद करवाने वाले ये रहे|  


ना सिर्फ इनके यह ऊपर बताए उदाहरणों वाले प्यार मुग़लों-अंग्रेजों से रहे, अपितु सबसे ज्यादा दरबारी इन पुरखे रहते थे| गुप्त अनैतिक समझौते करते थे| म्हारे वाले समझौते करते भी थे तो डंके की चोट पर, जैसे सर छोटूराम ने गेहूं का भाव 6 रुपये की बजाए 11 रूपये लिया था| रोटी-बेटी लेने-देने के रिश्ते इनके पुरखों ने सबसे ज्यादा इनसे रखे| तो इनको मलाल है की हम किसानों व् खापों की भांति इनसे कभी अपना लोहा नहीं मनवा पाए तो अब "सांप निकलने के बाद, लकीर पीटने वाली बात" की भांति जगह-जगह खुदाई करवा रहे हैं| 


ना यह अच्छे मैनेजर हैं व् ना अच्छे जिम्मेदार; तभी तो समाज का शिक्षा, नौकरी, व्यापार, स्वास्थ्य सब मोर्चों पर जनाजा निकला जाता है| और इन पर आपको फोकस करना है| वरना यह इतना ही धर्म के प्रति चिंतित होते तो अभी 13 महीने दिल्ली के बॉर्डर्स पर जिनसे धूल फँकवाई थी, वह क्या मुग़ल थे या अंग्रेज? फरवरी 2016 याद कर लो तो इनकी तरफ देखने का जी भी ना करे, चाहे सोने के रथ उतर रहे हों इनके घर| 


एक और कड़वी बात, कल को पहले की भांति कोई आक्रांता आ गया तो उस वास्तविक अवस्था में यही सबसे पहले भाग के उनके दरबारी बनेंगे जैसे इनके पुरखे बने| इसलिए इनके मुद्दों पर वक्त-ऊर्जा-दिमाग ज्याया मत करो, बल्कि नजर रखो व् कहीं स्थिति 2013 जैसी बनती दिखे तो उसको होने से पहले ही रोकने को अलर्ट रहो| अपने-अपने गाम-गली में यह जिम्मेदारी निभाओ; यही हमें हमारे दादा खेड़े सिखाते हैं|  


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Sunday, 15 May 2022

"बाबा गुलाम मोहम्मद जौला जी" को उनके आखिरी सफर के लिए गमगीन विदाई!

 "हर-हर महादेव, अल्लाह-हू-अकबर" के प्रथम पुरोधाओं में से अहम् एक व्

भारतीय किसान यूनियन के प्रथम प्रणेताओं की जब्र-नजीर
राजपूत कुशवाहा चौबीसी खाप, मुज़फ्फरनगर के प्रधान
"बाबा गुलाम मोहम्मद जौला जी"
को उनके आखिरी सफर के लिए गमगीन विदाई!
अल्लाह, परवरदिगार आपको अपनी मुसलसस्ल पनाह बख्शे, आमीन!
आप चिंता ना करना, हम आप पुरखों की "हर-हर महादेव, अल्लाह-हू-अकबर" की विरासत को कयामत तक यूं ही गुंजायमान रखेंगे!
जय यौधेय! - फूल मलिक



चौधरी/अमात्य, धर्म, समाज, कारोबार व् बाबा टिकैत!

अकेले भगवाधारी बाबाओं से धर्म व् समाज चलता तो खाकीधारी आरएसएस की जरूरत नहीं होती| 


यह जरूरत आपके बूढ़े/पुरखे भली-भांति जानते थे इसलिए समाज-धर्म व् कारोबार में बैलेंस रखने को सदियों से खाप व्यवस्था (समाज को चलाने को), खेड़े (धर्म को चलाने को) व् खेत (कारोबार को चलाने को) रखते आए| आरएसएस तो 97 साल पुराना कांसेप्ट है|


एक बात और यहाँ समझनी जरूरी है कि आरएसएस व् खाप में क्या फर्क है? खाप "नैतिक पूंजीवाद" की धोतक है यानि "कमाओ और कमाने दो" व् सर्वसमाज को जाति-वर्ण-धर्म के भेद के बिना मुफ्त व् अविलंब अधिकतम सम्भव न्याय देने का रिकॉर्ड रखती है; जबकि आरएसएस "अनैतिक पूँजीवाद" यानि समाज की अधिकतम सम्भव पूँजी-सम्पत्ति चंद साहूकारों के कब्जे में होनी चाहिए की लाइन पर चलती है; शायद इसीलिए अडानी-अम्बानी के एकमुश्त अनैतिक तरीके से बढ़ने से ले माल्या-चौकसी जैसे किसी भी हजारों करोड़ के घपलों के भगोड़ों पे चुप्पी रख के चलती है| 


जैसे एक व्यक्ति विशेष का जनमानस उसके परवार-ठोळे-पिछोके की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली किनशिप से बनता है व् वह कितना रुतबेदार होगा उसकी व्यक्तिगत क्षमता के साथ-साथ किनशिप की प्राचीनता-सुदृढ़ता व् महत्वता से निर्धारित होता है; ऐसे ही समाज भी एक सामूहिक व्यक्ति होता है जिसका चरित्र सैंकड़ों-हजारों परवार-ठोळे-पिछोके से बनता है| अगला-पिछला जन्म तो खैर नहीं ही होते (इसलिए किसी पाखंडी के चक्क्र में ना पड़ें इन पहलुओं पर) परन्तु पिछली पीढ़ीयों का किया-पाला-माना अगलियों पे जरूर चढ़ता है और वह बाबा टिकैत की इस सलंगित फोटो से भलीभांति झलकता है| 


यह जो तीनों धर्मों के नुमाइंदे बाबा टिकैत के दरबार में उनको घेरे बैठे हैं, यह तप आपके पुरखों के पीढ़ियों के उस बल का था जो कभी अपने कारोबारी हकों हेतु लड़ने से राजसत्ताओं  से ले कभी किसी पंडित-मौलवी या ग्रंथि से भी नहीं घबराए| सर छोटूराम का वक्त तो ऐसा था कि तीनों धर्म खड़े देखते थे व् वह फरिश्ता इनसे कहीं अधिक मजमा तीनों धर्मों के लोगों का अपने कार्यक्रमों में लगा लेता था| यह वही पिछली पीढ़ियों की बनाई छाप-साख थी जो बाबा टिकैत के जमाने तक फल देती रही व् तीनों धर्म चौधरियों के दरबार में यूँ ही हाजिर होते रहे, ज्यों इस फोटो में बैठे हैं| 


परन्तु बाबा टिकैत के बाद, यह उस स्तर का नहीं रहा| अब एक धर्म वालों ने तो सुननी ही बंद कर रखी है| तभी तो किसान नेताओं व् कार्यकर्ताओं के बार-बार आह्वान के बाद भी कोई ही विरला मंदिर वाला 2020-21 के किसान आंदोलन में लंगर की सेवा देने आया हो या सरकारों से गुहार लगाई हो कि हमारे किसानों की सुनो| 


बस तुमने एक समाज-सभ्यता-किनशिप के तौर पर कहाँ तक का सफर तय किया है, उसमें कितना उठान या गिराव है; इससे अंदाजा लगा लो| 


बस इतना याद रखो कि चौधर-धर्म-समाज-कारोबार, चारों को बराबर नहीं रखोगे तो शूद्र कहलाओगे व् उस तरफ जाते जा रहे हो; वक्त रहते अपने पुरखों की अनख पे आ जाओ वरना हालात बहुत भयावह हैं आगे; क्योंकि लड़ाई "नैतिक पूंजीवाद" बनाम "अनैतिक पूंजीवाद" हो चली है व् अनैतिक वाले बहुत आगे निकल चुके हैं| 


"जो टिका रहा, वो टिकैत" की पंचलाइन से मशहूर बाबा टिकैत की पुण्यतिथि पर इससे बढ़िया क्या ही लिख सकता था| 


बाबा टिकैत को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन!


जय यौधेय! - फूल मलिक




Friday, 13 May 2022

इंडिया में श्रीलंका होना इतना आसान नहीं!

श्रीलंका में विद्रोह इसलिए हो गया क्योंकि वहां जिस मेजोरिटी को बहकाया गया था वह बुद्ध धर्म की थी; जो कि इंसानों को आंतरिक तौर से मजबूत, एक व् समान बनाता है; मानसिक तौर पर तोड़ कर मानसिक गुलाम नहीं बनाता| अत: उनका मानसिक बल बचा हुआ था तो जब हद हुई व् स्थिति समझ आई तो कर दी क्रांति|

तुम्हारे यहाँ भूल जाओ यह इतनी जल्दी होना, क्योंकि तुम जिसको संस्कृति-कल्चर-धर्म के नाम पे ढोने लगे हो, ओढ़े टूल रहे हो; वह शुरू ही तुम्हें आंतरिक मानसिक तौर से डरपोक, दब्बू, बिखरे हुए बनाने से होता है| हाँ, थारे में एक ऐसी कौम, कल्चर व् किनशिप जरूर है जो यह विद्रोह कर सकती है और वह है जिसने 13 महीने किसान आंदोलन करवाया| वह खड़े हो गए तो हो गए वरना भ्रम में मत घूमो कि कोई श्रीलंका टाइप क्रांति होगी यहाँ|
और इसी का आरएसएस व् बीजेपी को सबसे ज्यादा डर है; इसलिए इन्हीं के इर्दगिर्द ध्यान रख के कभी 35 बनाम 1 रचती है तो कभी ताजमहल व् आगरा इनको देने को फिरती है| और एक और पोस्ट चला रखी है कि बीजेपी-आरएसएस सनातन नहीं, इनसे बेशक नफरत करो परन्तु सनातन मत छोड़ना| असली भर्मित करने वाली व् भिग्न की जड़ यही नैरेटिव तो है| इनको पता है कि इंडिया में सबसे ज्यादा न्यायायिक चरित्र, सबको इंसान समझना के ट्रेट्स इनमें ही सबसे ज्यादा होते हैं, इनके यह ट्रेट्स जाग गए तो लग गई तुम्हारी लंका|

शूद्र क्या है व् स्वर्ण क्या है? शूद्र वह इंसान होता है जिसको मानसिक तौर पर उनकी किनशिप-कल्चर से तोड़कर अपनी कहबत का बना लिया जाए| व् स्वर्ण इनके अनुसार वह होता है जो खुद को छोड़ बाकी समाज को अधिक से अधिक शूद्र बनाता जाए| और वह तुम बनने पे लगे हुए हो, पिछले 2-4 दशक से तो खासकर; जबसे अपने पुरखों की देवता की छवि वाली कल्चर-किनशिप से उल्टे हटे हो तुम शूद्र ही बनते जा रहे हो|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 12 May 2022

12 वीं सदी की Twin Towers: दिल्ली की क़ुतब मीनार व् बुखारा की मीनार-ए-कलां!

See the attached photo:

Minar-i-Kalan of Bukhara, Uzbekistan - Built in 1127 AD, 150 feet high
Minar-i-Qutb of Delhi, Hindustan - Built in 1220 AD, 238 feet high

मुग़लों के यहाँ इसके 2 सैंपल हैं वह भी एक ही सदी में बने हुए| लाजिमी है कि गौरी व्कुतुबद्दीन दोनों तुर्क थे व् उज़्बेकिस्तान व् तुर्कमेनीस्तान एक कल्चर के देश हैंतो यह क़ुत्ब-मीनार का आईडिया मीनार-ए-कलां से ले के आए हों| इलाहबाद हाईकोर्ट वाली बात, कुछ पढ़लिया करो, तथ्यात्मक शोध-वोध कर लिया करो| अन्यथाइसके जैसा दूसरा सैंपल दिखाओ तुम्हारे पास?

बाकी जिसको इन फंडियों की वाहियतों में माथे खपाने हैं खपाओ, परन्तु खापलैंड के बालकदूर रहो इनकी वाहियतों से| जब वक्त थे मुग़लों से मुकाबले करने के तब तो ये आज केछद्म राष्ट्रभक्त इनके दरबारी बने फिरा करते थे; और आज जब देश एक लोकतान्त्रिकराष्ट्र है तब इनको सोधी आई है बदले लेने की| "शिकार के वक्त कुत्तिया हगाईव् मौका-निकले बाद हम सबके जमाई" वाली कहानी रही है इनकी| तुम उस वक्त जिनवजहों के चलते कमजोर थे उनको ठीक करो, ताकि भविष्य में ऐसी बातों फिर ना हों; अगरइतना ही दर्द है तो| और वह वजहें थी और आज भी हैं - वर्णवाद, शूद्र-स्वर्ण,छूत-अछूत में आकंठ डूबी तुम्हारी तथाकथित धार्मिक थ्योरी|

तुम्हारे धर्म के किसानों को जहाँ हक पाने हेतु 13-13 महीने सड़कों पर बैठना पड़ता हो, वहांतुम्हें उनकी चिंता की बजाए, "सांप निकलने के बाद लकीर पीटने" की भांतिइन चीजों की चिंता है तो निसंदेह तुम फंडी हो| वैसे भी ग्लोबलाइजेशन का दौर है यह,दुनियां बहुत आगे जा चुकी इन चीजों से|

जय यौधेय! - फूल मलिक



Wednesday, 11 May 2022

रिपब्लिक आर टीवी वालो, शिवजी भोळा कभी धर्म से बाहर के मसलों में नहीं पड़ता!

पड़ा हो आज तक के इतिहास में तो बताओ? हाँ, वह ब्रह्मा-विष्णुओं के बिगाड़े हालातों को ठीक करने बारे जरूर तांडव करता आया है जब भी किया है| उदाहरणार्थ 2020-21 में 13 महीने चला किसान-आंदोलन|

इसलिए हे रिपब्लिक भारत के अर्णव गोस्वामी, तुम यह जो ताजमहल को तेजा जी से व् तेजा जी को शिवजी से जोड़ के जो काम तथाकथित छतरी व् छतरियों को 21 बार मारने वालों से नहीं करवा के जाटों से करवाना चाहते हो, ऐसा है तुम्हारा यह षड्यंत्र जाटों के बालकों ने सोशल मीडिया पर ही धराशायी कर दिया है| आजकल जो ज्ञान व् अक्ल तुम लगाते हो उसको तो जाटों के बालक ही गेल-की-गेल निबटा दे रहे हैं|
कौन कहता है कि वैचारिक लड़ाईयां असर नहीं छोड़ती? हालाँकि अर्णव गोस्वामी जैसे इसको एक जाति पर ला कर छोड़ने की सोचते हैं; परन्तु हमारे जैसे साथियों ने जो पिछले 7 साल से ऑफिसियल तौर पर यूनियनिस्ट मिशन के जरिए व् उससे पहले 2006 से 2015 तक अनऑफिशियल तरीकों से सोशल मीडिया से ले ग्राउंड पर फंडियों की बुद्धि की औकात व् बिसात जो सर छोटूराम स्टाइल में पकड़ाई है अपने लोगों को; यह उसी का असर है कि अब जाट समाज के बालक ब्रह्मे-विष्णुओं की चालों में नहीं पड़ते| बल्कि असली शिवजी उर्फ़ स्केण्डेनेविया वाले दादा ओडिन जी महाराज की भांति बन के, तीसरी आँख खोल के चीजों का अवलोकन कर चलने लगे हैं|
और इस पर इनको अपनी किनशिप पकड़ाने वाली अगले स्तर की "खाप-खेड़ा-खेत" मुहीम जो चली है वह तो धीरे-धीरे तुम्हें ऐसा घर बैठायेगी कि बस तुम देखने के अलावा शायद ही कुछ कर पाओगे| जो कि एक बहुत ही सुखद बदलाव है जाट समाज में, वह भी सही वक्त व् सही हिसाब से|
अब इस समाज को फॉर-गारंटीड लेना छोड़ के; देश के हित के कामों में ध्यान लगाओ, रिपब्लिक आर टीवी वालो|
उद्घोषणा: लेखक माइथोलॉजी को नहीं मानता; परन्तु इसका मतलब यह भी नहीं कि माइथोलॉजी नहीं जानता| जब-जब फंडी माइथोलॉजी के हथियार से समाज में उतरेगा, उसको उसी के माकूल तर्क व् जवाब मिलेंगे|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 5 May 2022

शुगरमिल-मैन चौधरी अजित सिंह जी को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर शत-शत नमन!

आप अपनी राजनैतिक आइडियोलॉजी की विरासतीय रीढ़ "हिन्दू-मुस्लिम" एकता (आपके पिता जी से विरासत में मिली) को तब भी नहीं छोड़े जब मुज़फ्फरनगर 2013 हुआ था व् आपके ही पिता जी को गुरु कहने वाले इस एकता को तोड़ने में दो में से एक पार्टी बन गए थे|

ख़ुशी की बात है कि आपके बेटे चौधरी जयंत सिंह इसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं व् इस आइडियोलॉजी में कितना दम था व् आज भी है यह विगत यूपी चुनाव में आपकी पार्टी को मिले समर्थन ने जाहिर कर दिया, जब आप 0 से ऊठ 8 सीटों पर विजयी रहे व् 22 पर द्वितीय, वह भी 200-500 के मार्जिन से| और "यूपी में चौधरियों की चौधराहट खत्म हो गई" के तंज कसने वालों के मुंह बंद किये|
हम कटिबद्ध हैं आप जैसे अपने पुरखों की इस आइडोलोजिक्ल धरोहर की राजनीति को पोषित करने व् करवाने पर|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 4 May 2022

"कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" बनाम "उधारा कल्चर-किनशिप"

यह इधर-उधर से आयातित कल्चर-किनशिप के चक्कर में अपनी "कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" से मुंह मोड़ना आपको उसी तरह बर्बाद कर देगा, जैसे नेचुरल रिसोर्सेज के मामले में रूस वालों पर यूरोप की निर्भरता| जब तक सब सही चलता है तो सही और जब बिगड़ती है तो ऐसे ही "मुंह-बाएं खड़े लखाओ" ज्युकर नेचुरल गैस के लिए पूर्वी-उत्तरी यूरोप बंध सा गया है| इनका प्लान रूस को बड़ा सबक सिखाने का था, परन्तु नेचुरल रिसोर्सेज की इनकी रूस पर निर्भरता ने सब सिमित कर दिया| यही मामला "नेचुरल कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" से निकलता होता है और आपके लिए वह है "खाप-खेड़ा-खेत"| यह जो खुद के साथ-साथ इतने प्रवासियों (विश्व में सबसे ज्यादा प्रवासी रहता है खापलैंड में) को भी पाल पा रहे हो यह किसी अन्तर्यामी, माया या चमत्कार की वजह से नहीं है अपितु आपकी कॉपीराइट कल्चर यानि "खाप-खेड़ा-खेत" से है| उधार के कल्चर्स के रंग-रस भी लो परन्तु अपने कॉपीराइट कल्चर को पहले कस लो|   


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Tuesday, 3 May 2022

आखा तीज!

आंखा तीज एक ऐसा त्योहार था जिसमें मंदिर और बाजार का कोई रोल नहीं था... ना किसी मूर्ती की पूजा ना किसी देवी-देवता की... किसी पंडे का भी कोई रोल नहीं था ... यह सिर्फ किसान का त्योहार था .. किसान का खेत ही अक्षय भण्डार होता है उसी अन्न भण्डार के हमेशा भरे रहने की कामना के लिये यह प्रतीकात्मक त्योहार मनाया जाता था... हार्वेस्टिंग के बाद किसान फुरसत में होते थे.. अपने बच्चों की शादियां भी इसी दिन करते रहे l
मगर किस तरह 'आखा तीज' को अक्षय तृतीया में बदल दिया गया.. आपको पता ही नहीं चला.. इसे कहते हैं कल्चरल अटेक.. सांस्कृतिक आक्रमण... मोठ बाजरे की खिचड़ी और हल कहीं पीछे छूट गये... बाजार ने इसे लक्ष्मी से जोड़ दिया.. चांदी के सिक्के पर लक्ष्मी की फोटो ऊकेर कर... क्योंकि बाजार को हल से कोई फायदा नहीं... पंडों ने इसे महाभारत के अक्षय पात्र से जोड़ दिया... ताकि अप्रत्यक्ष कंट्रोल उनका रहे आपके त्योहार पर l
वो अक्षय पात्र जिसकी कल्पना आप करते हैं..जो हमेशा भरा रहे वो किसान का खेत है... दुनियाँ में कोई भी अक्षय पात्र आज तक बिना पसीना बहाये नहीं भरा रहा.. और ना ही कभी भरा रहेगा... ओलम्पिक से अगर कोई मेडल लाता है तो आप क्रेडिट खिलाड़ी को देंगे या महाभारत को ? फिर किसान अन्न का भण्डार धरती से पैदा कर घर ला रहा है ... मंडियों में लायेगा..देश का पेट भरेगा... इसका क्रेडिट उसे क्यों नहीं दे रहे... उसको अन्न की पैदावार के लिये सम्मान क्यों नहीं... उसके खेत को अक्षय पात्र कहने में क्या दिक्कत है आपको ?
लूट के तरीके बेहद सुक्ष्म हैं...पर बेहद सुनियोजित हैं ...बेहद लुभावनी पेकिंग में पैक हैं l एक काल्पनिक अक्षय पात्र पर नारियल रख कर बाजार और पंडे ने आपको एक फोटू दे दी.. अब अाप सारे दिन उस फोटू को पोस्ट करते रहो/एक दूसरे को फॉरवर्ड करते हो l बाजार आपको आपके खेत की /आपके हल की / आपके घर बणने वाली खिचड़े की फोटू डिजाइन कर के कभी नहीं देगा क्योंकि पंडे का अप्रत्यक्ष कंट्रोल रहे आपके दिमाग पर l आपकी माँ ने आखातीज को आपको जो मोठ बाजरे का खिचड़ा खिलाया है देशी घी में उसकी बराबारी दुनियाँ की कोई अक्षय तृतीया नहीं कर सकती .. उसे उचित सम्मान देणा आपका कर्तव्य है ll
अाप सभी को आखातीज की बहुत बहुत
बधाई
l आपके खेत हमेशा भरे रहे ll
May be an image of sky, grass, tree and nature
Ravinder Singh Dhankhar, Satya Pahal Duhan and 59 others
10 comments
6 shares
Like
Comment
Share