Saturday, 31 October 2015

एन.सी.आर. और जाटलैंड में दो तरह के बिहारी और दो तरह के ही जाट हैं, बताओ दोनों में फर्क क्या?

पहले दो तरह के कौन-कैसे वो देखते हैं:

दो तरह के बिहारी: एक मजदूर क्लास, दूसरी हाई-फाई मीडिया से ले अफसर क्लास|
दो तरह के जाट: एक ग्रामीण किसान जाट, दूसरा शहरी अफसरी-व्यापार-कारोबार से ले साधन-सम्पन जाट|

अब फर्क समझते हैं:

हाई-फाई मीडिया और अफसर क्लास बिहारी, ना सिर्फ इस बात का ख्याल रखता है कि बिहार से हजार कोस दूर आकर भी उनकी संस्कृति (जैसे छट पूजा मानना इत्यादि) तो कायम रहे ही रहे साथ ही मजदूर क्लास बिहारी से अन्याय ना हो| रवीश कुमार जैसे बिहारी -मूल के रिपोर्टर को देखा है ना यदाकदा एन.सी.आर. में उसके बिहारी मजदूर समाज के दर्द को उठाते हुए?

जबकि शहरी जाट अफसरी-व्यापार-कारोबार से ले साधन-सम्पन जाट, हजार कोस दूर की तो छोड़ो मात्र दस-बीस कोस गाँव से शहर में आकर भी अपनी संस्कृति को संभाले रखने की जिम्मेदारी के बिल्कुल उल्ट सबसे पहले उसी को तोड़ता है और पीछे मुड़ के अपने भाई ग्रामीण जाट किसान के अधिकारों व् सम्मान को कैसे संभाल के रखवाए या रखने में मदद करे इसपे ना कोई विचार, ना संगठन या रुचि|

फिर कहते हैं कि जाटलैंड पर ही जाट अकेले पड़ते जा रहे हैं, सौतेला व्यवहार हो रहा है उनसे| भाई तुम आपस में अपने ही भाईयों से और अपने ही संस्कृति से सौतेला व्यवहार बंद करके देखो पहले, अगर ना वापिस वही बहारें और खुशनुमा फिजायें लौट आये तो|

Jai Yoddhey! - Phool Malik

जाट-जट्ट अलग कब कैसे हुए?

बंटना बहुत आसान है और हमें बांटने वाले भी तैयार बैठे है | जाट जाति के साथ ऐसा ही हो रहा है , कभी कोई इन्हें धर्म के नाम पर बाँट देता है तो कभी कोई बोली क्षेत्र के आधार पर और ये बावले जाट बांटने वालों की मान बहुत जल्दी बंट भी जाते है | कभी कोई आएगा और इनसे कहेगा तुम जाट पंजाब के जट्ट से अलग हो , तुम जाट हो वो जट्ट है और ये बावले मान भी लेते है , यह नहीं सोचते की यह सिर्फ उच्चारण का फर्क है | ये बावले कभी इतिहास में झांक कर नहीं देखते है , इतिहास में झांक कर देखोगे तो पाओगे की हमारी जितनी भी छोटी बड़ी जाट / जट्ट रियासते थी सबकी आपस में रिश्तेदारियाँ थी | उदाहरण के तौर पर -

भरतपुर रियासत की कई रिश्तेदारियाँ पंजाब के सिक्ख जाटों से थी जैसे :- महाराजा जसवंत सिंह की शादी महाराजा पटियाला की बेटी बिशन कौर से हुई , महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह की शादी फ़रीदकोट के कुँवर गजीनद्र के बेटी से हुई , राव राजा गिरिराज सिंह मथुरा से दो बार सांसद भी रहे की शादी कपूरथला की महाराजकुमारी सुशीला देवी से हुई ...
 

धोलपुर रियासत की रिश्तेदारियाँ :- राणा भगवंत सिंह के बेटे कुलेन्द्र सिंह की शादी महाराजा पटियाला नरेंद्र सिंह की बेटी बसंत कौर से हुई , इनका एक बेटा हुआ जिसका नाम राणा

निहाल सिंह जिनकी शादी लाहौर के पास पंडरिगनेशपुर के शाह देव सिंह के बेटी से हुई , इनके बेटे राणा राम सिंह की शादी महाराजा नाभा हीरा सिंह की बेटी से हुई , इसी रियासत के राजा हेमंत सिंह महाराजा नाभा प्रताप सिंह के बेटे है जिन्हें उनके नाना ने गोद ले लिया था |
 

हाथरस रियासत :- राजा महेंद्र प्रताप सिंह की शादी जाट सिक्ख रियासत जींद की राजुकमारी बलवीर कौर से हुई |
 

जींद रियासत :- राजा रघुबीर सिंह की शादी दादरी के चौधरी जवाहर सिंह की बेटी से हुई |
 

नाभा रियासत :- राजा प्रताप सिंह की शादी धोलपुर के महाराजा राणा उदयभानु सिंह की बेटी उर्मिला देवी से हुई |

यह पूरी लिस्ट तैयार करने लगा तो बहुत लंबी हो जाएगी इसलिए मोटे तौर पर कुछ उदाहरण दिये है , कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि ये जितनी भी जाट व जट्ट सिक्ख रियासते थी इन सबकी आपस मे रिश्तेदारियाँ थी , फिर हम जाट - जट्ट अलग कब कैसे हुए और किसने किए ?

Author: राकेश सांगवान

Thursday, 29 October 2015

उच्च शिक्षा में आरक्षण खत्म करने बारे कल आये सुप्रीम कोर्ट के फरमान से अचम्भित ना होवें, यह अपेक्षित था!

सर छोटूराम ने एक रैली के दौरान उनके एक अभिभाषण में कहा था कि उन्होंने 'मंडी-फंडी' के सिस्टम को इस हद तक विघटित कर दिया है कि आपको जो सीधी पावर और सहूलियत मिली है अब आगे उसको रोकने और आपसे छीनने हेतु और हम 85 प्रतिशतों की एकता बिखेरने हेतु 'मंडी-फंडी' कोर्टों का सहारा लिया करेगा| साथ ही उन्होंने कहा था कि यही इनके हाथ में आखिरी हथियार होगा, परन्तु मैंने पूरे यूनाइटेड पंजाब (आज के हरयाणा-पंजाब-हिमाचल और पाकिस्तान वाला पंजाब) में इतना ग्राउंड वर्क कर दिया है कि 'मंडी-फंडी' का यह कोर्ट वाला हथियार भी सफल नहीं होगा, वरन उल्टा हमें सत्ता तक पहुँचाने में सक्षम रहा करेगा| बशर्ते किसान-दलित एक रहे तो|

कितने दूरदर्शी थे सर छोटूराम कि 1937 में पूर्वानुमानित उनकी बात आज यथावत सत्य हो रही है|

पहले तीन बार लैंड आर्डिनेंस ला के सर छोटूराम ने जो तमाम जातियों और धर्मों के किसान सीधे-सीधे जमीन के मालिक बनाये थे वो मल्कियत छीनने की कोशिश की, परन्तु एक ना चली| अब बाबा साहेब आंबेडकर और सर छोटूराम के दिए आरक्षण को समाप्त करने के हर हथकंडे अपना रहे हैं, परन्तु इसमें भी कामयाब नहीं होंगे|

जय यौद्धेय!

फूल मलिक

Wednesday, 28 October 2015

मैच्योर और इम्मैच्योर राजनीति में फर्क!

अमेरिका में बाप-बेटे जॉर्ज बुश की जोड़ी राष्ट्रपति बनती है, लोग इसमें कोई वंशवाद नहीं ढूंढते और ना ही राजनैतिक प्रतिध्वंधी इसमें वंशवाद उछालते|

जबकि भारत में कांग्रेस हो, भाजपा हो, कम्युनिस्ट हों चाहे जो दल हो, खुद तो ऐसे एंगल्स को एक्सपोज करेंगे ही करेंगे, साथ-साथ जनता भी उनके सुर-में-सुर मिलाने लग जाती है|

ताज्जुब है कि जाति और वर्ण-व्यवस्था में जीने वाले हम लोग, जो जिस कुल-कर्म-वर्ण-जाति-लिंग में पैदा हुआ है उसके लिए उसी कर्म की वकालत करने वाले हम लोगों को इलेक्शन के जरिये चुन के, आने वाले एक राजनैतिक परिवार से दूसरी पीढ़ी का नेता तक मंजूर नहीं होता?

क्या जाति और वर्णव्यवस्था से खत्म करवा दिया इस सिस्टम को जो लेते हो और पॉलिटिक्स में ही इस बीमारी को उठाये रहते हो? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि एक पुजारी चरित्रवान और योग्य है कि नहीं, उसका बेटा-पोता भी उसके जितना ही चरित्रवान और योग्य है कि नहीं? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि एक व्यापारी सूदखोर, जमाखोर व् मिलावट का सामान बेचने वाला तो नहीं है, या उसका बेटा-पोता इस मामले में कैसा है? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि अफसर लोग भाईभतीजावाद, जातिवाद, घोटालेबाज है कि नहीं?

जो देश की राजनीति का चरित्र बनाने और बनने के कारक हैं, देश की राजनैतिक पौध कैसी होगी, इन ऊपर बताये इन कारकों पर भी नजर रखो तो अमेरिका की तरह बिना दुविधा के एक ही वंश के दो बाप-बेटे राष्ट्रपति की पोस्ट पर चल जायेंगे|

असल सच्चाई यही है जातिवाद और वर्णवाद से पीड़ित हमारा समाज और उसकी नब्ज जानने वाले नेता, जानबूझकर ध्यान पलटते हैं जनता का| अरे किसी का बेटा-बेटी नेता बनेगा या नहीं यह तो आपको ही वोट के जरिये निर्धारित करना है ना, वो कोई धक्के से तो जा के नहीं बैठता किसी राजनैतिक कुर्सी पर, जनता आदेश देती है, चुनती है तो ही तो वहाँ तक पहुँचता/पहुंचती है?

यह ना ही तो दादा-लाही खेती है, ना ही दादा-लाही पंडताई, ना ही दादा-लाही साहूकारी, ना ही दादा-लाही दुकानदारी, ना ही दादा-लाही भंगारी, ना ही दादा-लाही दलिताई कि मन हो ना हो झेलनी ही पड़ेगी|

अगर चुनावी प्रक्रिया में कोई झोल है तो उसको ठीक करवाया जाने पे जोर दिया जाना चाहिए, वरना यह कोई श्राप थोड़े ही है कि कोई किसी राजनेता की औलाद हो गया तो वो राजनेता नहीं बन सकता|

फूल मलिक

पहले भागवत अब सुप्रीम कोर्ट!

लगता है हर कोई मोदी के सुवाद लेने पे आमादा है।

अभी दो दिन पहले ही मोदी ने मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए ब्यान से मचे बवाल को शांत करने हेतु बिहार रैली में कहा था कि "मैं आरक्षण बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दूंगा।"

लो मोदी जी, आज सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि उच्च शिक्षा में आरक्षण बंद हो। अब देखते हैं आप वाकई में अपनी जान की बाजी लगाते हो या यह भी एक जुमला ही साबित होगा।

वैसे क्या दिन आ गए हैं जनाब, यह लोग आपके जुमलों को दो दिन भी नहीं चलने दे रहे? क्या मतलब सुप्रीम कोर्ट भी आपसे तंग आ चुका है या मोहन भागवत सुप्रीम कोर्ट के जरिये अपनी बात को अंदरखाते सच साबित करवा रहे हैं?

रै भुंडू, भाई उस आपणे कुलछत्र आळे राजकुमार सैनी साहब ताहीं पुहंचाहिए भाई इस खबर नैं।

फूल मलिक

Monday, 26 October 2015

हिंदुत्व के होने वाले ग्यारहवें अवतार श्रीमान कल्की महाराज, अब अवतार ले ही लो तो शायद हिन्दू धर्म की गरिमा और मर्यादा बचे!

नफरत की ऐसी हद कि एक औरत की कब्र खोदकर उससे बलात्कार किया? दिल्ली से महज पचास किलोमीटर दूर गाजियाबाद के तलहटा गांव में कब्र से निकालकर इस घटना को अंजाम दिया गया| अरे धर्म की ना सही मानवता की ही शर्म कर लो|

"हो रहा विकास और अच्छे दिन" का एक और माइलस्टोन अर्जित किया गया| मुझे और मेरे जैसे वोटरों को तो आपके विकास की इस परिभाषा का पहले से ही पता था, शायद आपको... वोट देने वाले भी समझे होते तो धर्म के नाम पर बदले लेने हेतु चाहे जो कुछ हो रहा होता परन्तु लाशों से बलात्कार तो कम से कम नहीं होता|

अब किस मुंह से संत और प्रचारक विश्व पट्टल पर हिन्दू धर्म की साहिन्षुणता और मर्यादा की शेखीयाँ बघारा करेंगे| मैंने भी दो बार जर्मनी-फ्रांस-इंडिया क्रॉस-कल्चरल सेमिनारों में हिन्दू धर्म की बढ़ाई पे प्रेसेंटेशन्स दी हैं| परन्तु अब लगता है कि अगली बार ऐसा करते हुए ऑडियंस देख के सोचना पड़ेगा कि कहीं कोई ऐसी घटनाओं का हवाला दे प्रेजेंटेशन देते वक्त मेरा मुंह बंद ना करवा दे|

A potential source behind preparing such maniacs: https://www.youtube.com/watch?v=JJtfOnI-6rM

फूल मलिक

जातिवाद क्या होता है?

अपनी जाति पर गर्व करना, उसकी सकारात्मकता का प्रचार करना जातिवाद नहीं होता, अपितु दूसरे की जाति से अपनी जाति की प्रतिस्पर्धात्मक तुलना करना, दूसरे की जाति के बारे बिना वजह भला-बुरा कहना, उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचना, उसके बारे नकारात्मक प्रचार करना जातिवाद होता है|

जातिवाद यह नहीं है जो मैं जाट के बारे उपर्लिखित परिभाषा की परिधि में रहते हुए लिखता हूँ, अपितु जातिवाद वह है जो मीडिया जाट (साथ ही खाप को भी लपेटता है) के बारे बरतता है, जातिवाद वह है जो खट्टर साहब जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो राजकुमार सैनी जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो मोदी हरयाणा में चुनाव-प्रचार करते हुए जाट के बारे बोलते हैं|

इतनी बड़ी-बड़ी हस्तियों और ज्ञानियों द्वारा जाट जाति की छवि, समाज में उसके ऐतिहासिक-सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक-आध्यात्मिक योगदानों और अस्तित्व पर प्रहारों को बिना उनकी जातियों को उनकी तरह कटघरे में खींचे, उनको जवाब देना और अपनी जाति का सकारात्मक पक्ष समाज के आगे रखना जातिवाद कैसे हो सकता है?

एक मुख्यमंत्री, एक प्रधानमंत्री, एक एम.पी. और एक खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाला लगभग समस्त समूह अगर जातिवाद करे तो बोलना बनता है, श्रीमान| आम लोग बोलें तो मायने नहीं रखता परन्तु ऐसे ओहदों और किरदारों पर बैठे लोग बोलें तो डैमेज कंट्रोल जितना बोलना तो बनता ही है|

ऐसा इंसान अथवा समूह सिर्फ मेरा तो क्या समाज में किसी का भी शुभचिंतक नहीं हो सकता| क्योंकि जब वो किसी समाज पे ऊँगली उठाता है तो सैंकड़ों-हजारों उँगलियाँ अपने समाज पे भी खड़ी करवा लेता है, कम से कम प्रश्नात्मक बोहें तो जरूर तनवा लेता है| और मैंने तो फिर भी किसी के समाज पे उँगलियाँ नहीं उठाई, सिर्फ वही कहा जो ऐसी परिस्थिति में कहना बनता है|

इसलिए मेरे मुंह से जाट शब्द निकलते ही चील-कव्वों की भांति झपटने से पहले यह जरूर देखो कि इसने सिर्फ कहने वाले को जवाब देते हुए अपना बचाव किया है, तुम्हारा दुष्प्रचार नहीं|

फूल मलिक

Relation of Jat and Indian Media!

Suppose if one man kills or querrels another somewhere in India.

Scenario 1: If one was non-jat hindu and other a muslim

Journalist rings the editor or his/her media office

Editor: Which caste from Hindu side?
Journalist: Sir, non-jat hindu.
Editor: Keep it Hindu versus Muslim in reporting. Example: All incidents where Jat or Jats were not a part.

Scenario 2: If one was hindu jat and other a muslim
Editor: Make it jat versus muslim and keep the word hindu apart from it in reporting, sending OB Van. Example: Muzaffaranagar riots

Scenario 3: If both were hindus but one dalit and another a jat
Editor: Make it crush of dalits by jat samaj and make it as big as much possible; add the KHAP angle too, sending OB van, informing other media houses fellows, leftists, ngos etc too to reach on the spot. Making sure that international english press covers it in bold coverage. Examples: Mirchpur, Gohana etc.

Scenario 4: If both were hindus but one dalit and another non-jat
Editor: Keep it minimal as a mere rivalry between two families only. Example: Sanped, Faridabad etc.

Phool Malik

भारतीय सेना, सविंधान और सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाती है यह तस्वीर!


इस तस्वीर को खुद हिन्दू होने के पहलु से न्यूट्रल हो के देखूं तो आरएसएस और आईएसआईएस में क्या फर्क करूँ, बताने वालों का शुक्रिया?

यह तस्वीर पिछले हफ्ते इस फोटो में दिख रहे महानुभावों द्वारा किये गए मार्चपास्ट की हैं| मैं इसको देख के ना ही तो विचलित हूँ, ना ही प्रभावित और ना ही अचम्भित अपितु ऐसी हरकतों से विश्वपट्टल पर हिंदुत्व की नई उभरती छवि को ले मंथन में हूँ|

क्या मैं एक सवैंधानिक राष्ट्र जिसकी सुरक्षा का जिम्मा बाकायदा आधिकारिक भारतीय सेना का है, उसके अस्तित्व को नकार के इस तस्वीर को वैध मान लूँ? या भारतीय पुलिस जिसके कंधों पर देश की आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा है, उसके अस्तित्व को नकार के इसको वैध मान लूँ? कि अब इस देश में भारतीय सेना और पुलिस दोनों पंगु हो गई और इसलिए इन्होनें हथियार उठाये हैं?

फिर ऐसी बात है तो मैं बधाई देता हूँ इन लोगों को और आह्वान करता हूँ भारत सरकार को कि कम से कम एक बार भारतीय सेना को छुट्टी दे के, देश की सीमाओं पर इन महानुभावों को तैनात कर दिया जाए| साल-छ महीने इनकी उपयोगिता परखी जाए और यह सेना के बराबर या बेहतर उतरते हैं तो फिर देश की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए देश की सेना की जगह आरएसएस को ही अधिग्रहित कर लिया जाए|

वरना कोई माने या ना माने परन्तु यह लोग, विदेशों में घूम-घूम के सभाएं-कर-करके छवि बनाने की प्रधानमंत्री की सारी कोशिशों पर साथ-साथ पानी फेर रहे हैं| जितना भी कॉर्पोरेट वर्ल्ड का इंडिया है वो भली भांति जानता है कि ग्लोबल कॉर्पोरेट ही नहीं अपितु सारा पश्चिम भी इन लोगों की इन हरकतों को बड़ी बारीकी से देख रहा है| ऐसी हरकतों के साथ आप यूएनओ में स्थाई सीट मिलना तो दूर की बात अपितु इस्लामिक राष्ट्रों की भांति उससे तो कोसों दूर जा ही रहे हो साथ-साथ हिन्दू धर्म को आतंकवाद का चेहरा बना के परोस रहे हो|

और इतने भोले तो आप हो नहीं कि विश्व सिर्फ इस्लाम द्वारा ऐसे खुले में हथियार प्रदर्शन को ही आतंकवाद कहेगा और आप लोगों को इसमें रियायत दे देगा|

आरएसएस और बीजेपी से इतना ही कहूँगा कि तुम्हें अपनी दबंग छवि बनाने हेतु ऐसे हथियार उठा के वीरता के ढोंग करने की आवश्यकता नहीं, अपितु जाटों को आदर-सम्मान से पकड़े रहो, उतना ही काफी है| जाट की विचारधारा की भांति लोकतान्त्रिक व् सभी जाति-धर्मों के प्रति सहिष्णु बने रहो, वही काफी है| हरयाणा और तमाम जाटलैंड में जो तुम जाट-बनाम नॉन-जाट के अखाड़े खोले हुए हो उनको बंद कर दो, उतना ही काफी है|

फूल मलिक

 

बाजैंगी एड, उठैंगी धणक, गूँजेंगी बीन, नाचैंगे छैल!

ब्रज से ले कुरु और मरू से ले दोआब, हरयाणे के अट्टहासों का गजब उमड़ैगा सैलाब।
27 तैं 30 अक्टूबर कुवि कुरुक्षेत्र माह, जाटू अल्हड़ता निसरैगी ला ख़्वाबां कैं पाँख।।

हरयाणवी संस्कृति, सभ्यता और लोक-कला के सबसे बड़े समागम के साक्षी बनना व् इसको आत्मसात करना ना भूलें!

विशेष:
1) आशा है कि हरयाणवियों को कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कहने वाले बेगैरत अपना आत्मसम्मान कायम रखते हुए, इस समागम से दूर रहेंगे।
2) काफी साहित्यकारों व् इतिहासकारों ने हरयाणवी सभ्यता को जाटू सभ्यता का नाम दिया है, इन दोनों शब्दों को एक दूसरे का धोतक कहा है। इसलिए यहाँ इस शब्द का प्रयोग किसी जाति का नहीं अपितु सभ्यता और संस्कृति का सूचक है। संकुचित दिमाग के लोग इसमें जात-पात ना ढूंढें।

जय यौद्धेय! - जय हरयाणा! - जय हरयाणवी! - जय हरयाणत!

फूल मलिक








 

Friday, 23 October 2015

हरयाणा में आजकल खटटर साहब कितना नाम कमा रहे हैं इसकी एक मिसाल एक मित्र ने कुछ इस तरह दी!


हरियाणा में सरकार का भुंडा हाल हो रया सै... जै घरां काटड़ा भी चूंग जा तो भी न्यू कहवैंगे... "अक ले बै ओ चूँग गया खट्टर!"

खट्टर साहब सुन रहे हो, आपने हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर ठहरा दिया तो देखो हर्याणवियों ने आपको क्या बना डाला|
...

शब्दावली:
काटड़ा: भैंस का बच्चा!
चूँग जा: रस्सा तुड़वा के अपनी माँ का दूध पी जाये तो!

विशेष: बुरा नहीं मानने का यह हरयाणा है, यहां राजा हो या रंक सबकी ऐसे ही हंसी उड़ती आई है|

फूल मलिक

म्हारा सीएम खट्टर साहब, घणा स्याणा:!

हरयाणवी में "घणा स्याणा" का मतलब होता है "डेड स्याणा", यानी काइयां किस्म का आदमी| इसके साथ ही यह भी बता दूँ कि चतुर-समझदार-अक्लवान आदमी को हरयाणा में सिर्फ "स्याणा" कहते हैं| स्याणा के साथ घणा शब्द लगा और अर्थ उल्टा|

अब यह "घणा स्याणा" सीएम साहब को कहा किसने है जरा यह भी देख लीजिये| हमारे प्यारे अक्ल के पिटारे हरयाणवी मीडिया के लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने, बीजेपी सरकार के एक साल पूरे होने पे "म्हारा सीएम खट्टर साहब, घणा स्याणा" टाइटल के सांग से खट्टर साहब का स्तुति वंदन के द्वारा|

वाह खट्टर साहब हरयाणा के लोग कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर तक का ज्ञान रखने वाले, सारा दिन मीडिया चिल्ला-चिल्ला के आपको काइयां कहता रहा और आपकी कंधे से ऊपर की अक्ल में यह बात तक नहीं आई कि आपकी खड़ी बैंड बजाई जा रही है| ओह, लगता है जनाब के कंधे से ऊपर कुछ ज्यादा ही अक्ल शरीर पे वसे की तरह परत-दर-परत चढ़ गई है कि इनकी चेतना तक यह शब्द कोंधा ही नहीं|

बड़े शर्म की बात है सीएम साहब, हरयाणा का मुखिया और हरयाणवी का इतना बात-बात पे प्रयोग होने वाले शब्द का अर्थ तक पता नहीं|

सीएम तो सीएम दिन-रात जो यह मीडिया खुद को स्याणों का भी बटेऊ बताता रहता है साबित करता रहता है उन तक को यह भान नहीं कि तुम चला क्या रहे हो?

वाकई में हरयाणा "अंधेर नगरी चौपट राजा" हुआ पड़ा है|

सीएम साहब सच कहूँ, आपके समाज की समझदारी और होशियारी की जो छाप मेरे दिमाग में थी, आप तो उसके बिलकुल विपरीत ही उतर रहे हो| या शायद कंधे से ऊपर मजबूती की ग्लोबल ब्रांड होती ही ऐसी हो|

मैं तो सीएम साहब के उस ओएसडी या राजनैतिक सलाहकार को मिलकर उसकी पीठ थपथपाना चाहूंगा, जिसने इस टाइटल का सांग सीएम साहब के लिए अप्रूव किया|

इसने कह्या करें हरयाणवी में अक "जिह्से हम सयाणे, इह्सी-ए म्हारी ऐल-गैल|"

फूल मलिक

मैं इन तर्कों के आधार पर "सनपेड़ दलित अग्निकांड" को खुद दलित की की हुई साजिश नहीं मानता!

1) दलित के घर के दरवाजे बाहर से क्या खुद दलित ने बंद किये? जबकि मौका-ए-वारदात पहुंची पुलिस ने बताया कि घर के दरवाजे बाहर से बंद थे?

2) उसको षड्यंत्र करना था तो वो खुद को जला लेता, बीवी को जला लेता, भला अपने ही हाथों इतने मासूम वो भी एक 8 महीने का और एक अढ़ाई साल के बच्चों को आग क्यों लगाएगा?

3) उसको षड्यंत्र करना होता तो वो रात को तीन बजे ही क्यों करता? दिन में या शाम में ना करता? जबकि रात में करने के वक्त उसको भी पता था कि उसको कोई बचा नहीं पायेगा| दिन में करता जलने का नाटक, ताकि लोग झट से बचा लेते| साफ़ है कि घर को आग लगाने वालों ने रात का वक्त और वो भी जगराते की रात के शोर का वक्त इसलिए चुना ताकि पकड़े ना जाएँ, किसी को दिखें ना, पुलिस तो फिर खुद दुर्गा-जगराता देखने में लगी ही हुई थी| जगराते के शोर में पुलिस को ना वो आते सुने ना जाते, वरना शांत वातावरण में पुलिस को उनमें से किसी की तो पदचाप सुनती? इसलिए बड़ा सोच-समझ के वक्त और मौका चुना गया|

4) अगर शराब पी के आग लगाई होती तो जब उसकी डॉक्टरी व् मरहम-पट्टी हुई तो उन डॉक्टर्स ने भी तो उसको चेक किया होगा? तो शराब पिए हुए होता तो क्या डॉक्टर नहीं रिपोर्ट में बता देते? वैसे भी ऐसे मामलों में डॉक्टर फर्स्ट-ऐड करते वक्त मरीज की यथास्थिति पे रिपोर्ट जरूर बनाता है| जलने के बीच और अस्पताल पहुँचाने के बीच इतनी देर तो नहीं लगी थी कि उसकी दारू उत्तर चुकी होगी, उसके चेहरे से ही दिख जाती कि वो पिए हुए था या नार्मल? नार्मल रहा होगा तभी डॉक्टर्स ने उसकी रिपोर्ट में शराब नहीं बताई| और बताई होती तो सबसे पहले मीडिया ने ही गा दिया होता|

5) शराब पी के पेट्रोल छिड़कता तो क्या उसके सिर्फ हाथों पर ही पड़ता| शराब पिया हुआ आदमी काँपता है, हिलता-डुलता है, असंतुलित होता है तो ऐसे में उसके बाकी हिस्सों पे भी तो पेट्रोल गिरता? उसके सिर्फ हाथ जले, शायद बच्चों को बचाने की कोशिश में और उसपे पेट्रोल नहीं गिर पाया होगा, बच्चों और बीवी पे गिर गया होगा| इसलिए वो ज्यादा जल गए, उसके सिर्फ हाथ और आग की आंच से मुंह जले|
 

6) कह रहे हैं कि दोषियों को पुलिस ने सोते हुए गिरफ्तार किया, वो अपराधी होते तो भाग जाते| अब जैसा कि बिंदु 3 में सीन को देखा जाए तो उनको यह विश्वास रहा होगा कि तुमको जगराते के शोर में किसी ने नहीं देखा है, इसलिए किसी को क्या पता लगेगा, चुपचाप जा के सोने का नाटक करो, सब नार्मल दिखेगा| परन्तु इस परिस्थिति में पुरानी रंजिश के संदेह से कैसे बचोगे, इस पर वो लोग होमवर्क करना भूल गए|

यह सब अभी तक इस केस में जो दिखा और सुना उसके आधार पर लिखा, बाकी अब रिपोर्ट आती है तो तब देखते हैं, दलित और राजपूत कैसे अपना-अपना पक्ष साबित करते हैं|

फूल मलिक

जो आज मुग़लों को दुश्मन बता रहे, वो खुद दिल्ली मुग़लों को देने की बात किया करते थे!

इस वीडियो में पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले "जाट-पेशवा ब्राह्मण-सिंधिया-होल्कर" अलायन्स में होती चर्चा सुनिए।

पेशवा सदाशिव राव भाऊ: "दिल्ली को मुगलों को देंगे!"
 

महाराजा सूरजमल: "दिल्ली जाटों की है।"

मतलब आज जो मुस्लिमों से नफरत करते नहीं थकते, उन्हीं नागपुरी पेशवाओं को दिल्ली मुग़लों तक को देनी मुहाल थी, परन्तु जाटों को नहीं।

अचरज है कि जब दिल्ली देनी ही मुग़लों को थी तो अब्दाली से लड़ने ही किसलिए जा रहे थे? आखिर वो भी तो अफगानी मुग़ल ही था? मुग़ल-मुग़ल लड़ लेते आपस में दिल्ली के लिए, नहीं?

और ऐसे दम्भ में भरे पेशवा जाटों को कूच करने का संदेशा मिलने का इंतज़ार करते छोड़ जा चढ़े बिन जाटों के ही पानीपत में अब्दाली के आगे और वहाँ पे मुंह की खाई, तत्पश्चात जाटों ने ही इनकी फर्स्ट-ऐड करी।

फिर 1764 में महाराजा सूरजमल के सुपुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने अकेले जाट दम पे मुग़लों से दिल्ली जीत के भी दिखाई, वरन अहमदशाह अब्दाली की हिम्मत तक ना हुई आ के दिल्ली को महाराजा जवाहर सिंह से छुड़वाने की।

और यही रूख इन नागपुरी पेशवाओं का जाटों के प्रति आज है। कुछ नहीं बदला, इन्होनें इतिहास से कोई सीख नहीं ली। वही ढाक के तीन पात, चौथा होने को ना जाने को।

फूल मलिक

 

इतिहास के आईने में राजपूत-जाट भाईचारा।

 
"6 जून, 1775 ई. को रेवाड़ी के पास माण्डण नामक स्थान पर शेखावतों तथा शाही सेनाधिकारी के बीच हए प्रसिद्ध युद्ध में जाटों ने शेखावतों की सैन्य सहायता की और युद्ध में अपने प्राणों का उत्सर्ग किया. इस युद्ध में राजपूत-जाट गठबंधन ने शाही सेना को हरा कर भगा दिया था यद्यपि इसमें शेखावतों के प्रायः सभी प्रमुख संस्थापनों तथा शाखा-उपशाखाओं के वीर व बहुत सारे जाट वीर काम आए।
यह था उस काल का “राजपूत-जाट भाईचारा”-
“शेखावतों के सहायक जाटों ने आगे बढ़कर शत्रु सेना पर प्रथम आक्रमण किया
झूलना
पहली तोपखाना सारां दाग दिया, गई होय दिन सूं रात जी
गोळी तीर नेजां की तो मार पड़े, रोकी जाय रेवाड़ी की की बाट जी
केते मारे मरे जो अहीर ही के, चली जाय दिल्ली कुं जो खाट जी
दोनुं फोज मचकी संभुराम सैंकड़ायत', मांय आया काम घणां जाट जी ॥ 51 ।।
चलत
पैली राड़ लई जाट, रोकी रेवाड़ी की बाट, चली खाट ऊपर खाट* मांची किलकारी है* ।
लडै बैंदराबन' नहिं ओलै राखै तन, संभुराम जी को मन महाराज को उमीर है ।
लडै काळेखान जहाँ चलै जंगी बान, लडै रामदत्त* जो धरत नहिं धीर है ।
लडै मित्रसेण जॅह जोगनी चखेहै श्रोण, पडै गोळन की मार-लडै साथ के अहीर है। 52 ।।
झूलना
सूरसिंघ" कहै संभुरामजी’ सू, मचकी जाट की फौज उसील जी ।
खड़ा मत देखो अब जंग कानी, जाट काम आया घणां डील" जी ।
येती वात सुणी रजपूत बांका, लागा नहिं पलक की ढील जी ।
बाजै जोर जूझाऊ नगारखाना, पेला जद नीसाण का फील" जी ॥ 53 ।

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शब्दों के अर्थ : र्दैई दार=सम वयस्क ।, अति साज=सन्नद्ध होकर ।, कोर=रक्षा की सुदृढ़ पंक्ति । तुरकी=तुरक देश का घोड़ा।, ताजी=अरबी घोड़ा।, कुमेत-घोड़े का एक रंग । , लीला=सब्जा, घोड़े का एक रंग । , खोल तणी=बंद या बंधन ढीले कर दिये, खोल दिये । , रामचंगी=लम्बी तोड़ादार बंदूकें । , रहकळा=ऊँटों पर या गाड़ियों पर लादकर चलाई जाने वाली छोटी नाल की तोपें ।, जम्बूर=जुजरवा, एक प्रकार की छोटी-छोटी तोपें ।, सैंकड़ायत=संकीर्ण स्थान, बीच में आ जाना, दबजाना। , खाट ऊपर खाट=लाशों पर लाश गिरने लगी । , माँची किलकारी है=कोलाहल मच गया । , बैंदराबन=जयपुर नरेश की सेना का एक योद्धा जो संभुराम कानूंगो का कोई सम्बन्धी था , रामदत=मित्रसेण की सेना का अहीर योद्धा । , सूरसिंघ=चिराणा के ठाकुर भारमल के पुत्र और जयपुर की सेना के सेनापति । संभुरामजी=सेनाओं को वेतन चुकाने वाला-जयपुर राज्य का एक अधिकारी। , घणां डील=बहुत योद्धा ।, फील=हाथी।“

स्रोत : मांडण युद्ध, लेखक : ठाकुर सुरजन सिंह शेखावत, झाझड़
 

Wednesday, 21 October 2015

एक मित्र ने चैट पे पूछा, फूल तू जातिवादी कब से बन गया?

मैंने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया कि भाई मैं जातिवादी नहीं बना अपितु मेरी जाति की ओर थोड़ा जागरूक और चिंतित हुआ हूँ| मैं आज भी ना सिर्फ धार्मिक सेक्युलर हूँ वरन जातीय सेक्युलर भी हूँ|

उसने कहा तो फिर आमतौर पर शांत रहने वाला और अपनी लाइफ में बिजी रहने वाला फूल यकायक राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक मामलों में इतना सक्रिय कैसे हो गया? पिछले कई दिनों से तेरी पोस्टों से देखने में आ रहा है कि तू खट्टर, बीजेपी और आरएसएस के तो जैसे बिलकुल हाथ धो के पीछे पड़ गया है? ऐसा क्यों?

मैं इसपे अपना पक्ष रखते हुए बोला कि हालाँकि इस जागरण की परतें तो काफी वक्त से बनती आ रही थी, परन्तु ऐसा चुप्पी तोड़ने वाला परिवर्तन तब से आया है जब से खट्टर साहब ने "हर्याणवियों को कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर" का तंज मारा है| अब तक मैं तो यही सोचता था कि 3-4 पीढ़ी हो गई खट्टर साहब के समाज को हरयाणा में बसते हुए सो अब तो हरयाणवी सभ्यता को समझने लगे होंगे, मानने नहीं लगे होंगे तो इसका सम्मान तो जरूर करते होंगे| क्योंकि जो खुद को सभ्य कहने पे गर्व करना जनता हो, वो अन्य सभ्यता को मान देना तो जरूर जनता होगा, ऐसा मेरा मानना था| जब सीएम बने तो हर हरयाणवी समाज ने इनका स्वागत किया, परन्तु इनके इस कंधे के ऊपर-नीचे वाले बयान ने मुझे अंदर तक झकझोर के रख दिया| तो मुझे सोचने पर विवश होना पड़ा कि क्या मेरी जाति और सभ्यता के साथ सब कुछ ठीक चल रहा है?

दोस्त ने फिर कहा कि किसी एक व्यक्ति के कहने से पूरी सोसाइटी का विचार थोड़े ही झलकता है?

मैंने कहा, “बेशक वो कहने वाले का विचार होता है परन्तु जिसके बारे कहा उसने वो तो पूरी सभ्यता के बारे था ना?" और वैसे भी जब बंदा सीएम जैसी पोस्ट पे होते हुए ऐसा बोले तो फिर उसका मायना समाज में यही जाता है| ताऊ देवीलाल, चौटाला जी, हुड्डा जी, बंसीलाल जी सबके सीएम होते हुए भी उनकी बातों को, कार्यों को हर कदम पे जब समाजों ने जाटपन कहा तो खट्टर साहब अतिश्योक्ति कैसे छोड़े जा सकते हैं?

और आरएसएस, उन्होंने क्या बिगाड़ा है आपका?

खट्टर के हरयाणवी रिमार्क के बाद जब यह देखा कि यह किस ब्रांड का प्रोडक्ट है तो आरएसएस फोकस में आई| और पाया कि आरएसएस मेरे समाज का भावुक दोहन करने पर आमादा है| यूँ तो आरएसएस के हिन्दुवाद को मुस्लिमों से बचाने के लिए इनको जाट चाहियें, परन्तु जब एक जातिवाद से विहीन संगठन होने के दावे के विपरीत जा के आरएसएस विभिन्न जातियों के महापुरुषों व् इतिहास पर पुस्तकें निकालती है तो उसको जाट समाज का ना इतिहास नजर आता और ना ही इस समाज के महापुरुष याद आते|

जबकि आरएसएस और बीजेपी में जो यह इतना आत्मविश्वास भरा है वो मुज़फ्फरनगर के बाद जाटों के इनसे जुड़ने की वजह से भरा, वर्ना आज आरएसएस और बीजेपी को यह पता लग जाए कि जाट उसे छोड़ रहे हैं तो दावे से कहता हूँ इनके माइनॉरिटी का दमन करने के हौंसले आधे से कम हो जायेंगे| जाट ताकत और ब्रांड का मिसयूज कर रहे हैं यह लोग|

जरूरत पड़े तो जाट समाज की महत्ता दर्शाते और बघारते वक्त तोगड़िया यह तक कह दे कि, "जब जाट की ही बेटी सुरक्षित नहीं तो किसी भी हिन्दू की नहीं|" परन्तु जब जाट समाज को सम्मान देने, उसपे पुस्तक लिखने की बात आये तो सब कुछ नदारद| पीएम मोदी की आगरा रैली तो आपको याद ही होगी, जिसमें मुज़फ्फरनगर के नायकों को सम्मानित किया गया था? ऐसे मौकों पर इनको ना कोई जाट याद आता और ना ही कोई खाप चौधरी, बजाये ऐसे लोगों का सम्मान करते दीखते हैं जो असली रण छिड़ने पर दस-दस दिन तक अंडरग्राउंड हो गए थे|

यानी वीरता और शौर्यता की शेखी बघारने वाले यह लोग जब चरम शौर्यता हासिल करने की बात आती है तो जाट को याद करते हैं, अन्यथा इनसे जाट इनके अनुसार चार वर्णों में से कौनसे वर्ण में आते हैं पूछो तो पक्के से और अश्वस्तता से बता भी नहीं पाते कि इस वर्ण में आते हैं|

इसलिए मैं आरएसएस द्वारा फ्री-फंड में हो रहे जाट के भावुक दोहन को लेकर व्यथित हूँ|

दोस्त ने फिर पूछा और बीजेपी, उसने क्या बिगाड़ा है?

मैंने कहा बीजेपी और जाट का रिश्ता जानना चाहते हो तो याद करो 2014 के हरयाणा इलेक्शन में पीएम मोदी तक ने, हरयाणा में हरयाणा को एक जाति विशेष (जाट) के राज से मुक्ति के नाम पर कैसे खुल्लेआम वोट मांगे थे| तो एक समझदार जाट के लिए तो बीजेपी से दूर रहने के लिए इतना कारण ही बहुत बड़ा है| उस दिन से पहले कहीं-कहीं थोड़ी बहुत जो इनके लिए अटैचमेंट उभरती थी वो भी मोदी की उस बात से सौ प्रतिशत जाती रही| क्योंकि जब यह लोग इतना खुल के जाट को साइड लगाने की बात सीधे पीएम के मुंह से कहलवाते हैं या पीएम खुद कहता है तो इसके बाद इनसे जुड़ा रहने का कोई मोरल रीज़न भी नहीं बचता|

और ऐसा कहते वक्त बीजेपी और मोदी सबको यह भूल भी पड़ जाती है कि जाट भी उसी हिन्दू समाज का हिस्सा हैं जिसकी एकता और बराबरी तुम्हारी टैग लाइन है।

इन सब वजहों की वजह से ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि यह लोग जाट का भावनात्मक दोहन करने के अलावा उसके लिए कुछ सकारात्मक नहीं कर रहे| जाट के इतिहास, महापुरुषों पर पुस्तकें लिखवाने की तो छोड़ो, हरयाणा में जा के देखो जाटों से चिड़ की वजह से फसलों के दाम तक इतने गिरा दिए कि जाट तो जाट, नॉन-जाट किसान तक की भी फसल उत्पादन की लागत पूरी नहीं हो रही|

वो बेचारे भी अब ऐसे फंसे हुए हैं कि जाट का नुकसान हो रहा है बस इसी ख़ुशी में इस सरकार को झेले जा रहे हैं| परन्तु इस चक्कर में उनको भी फसलों के दाम ना मिलने की वजह से उनके घर की इकॉनमी जो खस्ता हुई जा रही है उसपे उनका ध्यान ही नहीं| इसलिए इस प्रकार बीजेपी द्वारा जाट से नफरत के वेग में चढ़ाये उन नॉन-जाट किसानों का भी नुकसान हो रहा है, वर्ना वो अपने घर की इकॉनमी की तरफ देख के सोचेंगे तो जाट से पहले उनका मन करेगा बीजेपी को वापिस भेजने का|

फूल मलिक

हैप्पी सांझी विसर्जन!

सांझी सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं अपितु "जाटू सोशल इकनोमिक साइकिल" का एक नायाब सिंबल भी रहा है|
मूल हरयाणवी परम्पराओं और समाज में हर त्यौहार को मनाने के आर्थिक इकॉनमी को चालू रखने के कारण प्रमुखता से होते आये हैं| किसानी सभ्यता से बाहुल्य इस समाज में हर त्यौहार या तो आर्थिक लाभ-हानि, लेन-देन से जुड़ा होता आया है या फसल चक्र से या फिर सामाजिक व् वास्तविक मान-मान्यता से जुड़ा होता आया है| काल्पनिक कहानियों के आधार पर घड़े हुए त्योहारों से हरयाणा मुक्त रहा|

अभी शरणार्थियों और विस्थापितों के हमारे यहां पलायन के चलते और खुद हम कट्टर प्रवृति के ना होते हुए इन त्योहारों को मनाने लगे| परन्तु हमें अपने मूल त्यौहार कभी नहीं भूलने चाहियें|

जैसे कि हमारे यहां आज के दिन सांझी विसर्जन के साथ-साथ आज की रात तमाम पुराने मिटटी के बने पानी रखने के लिए प्रयोग होने वाले बर्तन गलियों में फेंक के फोड़े जाया करते थे, जैसे मटका, माट आदि| और इसका कुम्हार की इकॉनमी से जुड़ा कारण हुआ करता| साल में एक बार यह पुराने हो चुके बर्तन फोड़ते आये हैं हम| क्योंकि इसी वक्त कुम्हार के चाक से बने नए बर्तन पक के तैयार हो जाया करते और उसकी बिक्री हो इसलिए हर घर पुराने बर्तन तोड़ दिया करता था|

हालाँकि सारे बर्तन नहीं तोड़े जाया करते, परन्तु कुम्हार को उसकी इकॉनमी चलाने हेतु सिंबॉलिक परम्परा बनी रहे, इसलिए हर घर कुछ बर्तन या जो वाकई में जर्जर हो चुके होते, उनको जरूर फोड़ा करता| और कुम्हार को उसके बिज़नेस की आस्वस्तता जरूर झलकाया करता|

खुद मैंने बचपन में मेरी बुआओं के साथ घर के पुराने मटके गलियों में फोड़ते देखा भी है और फोड़े भी हैं| इसको "जाटू सोशल इकनोमिक साइकिल" भी कहा करते हैं| मुझे विश्वास है कि जो चालीस-पचास की उम्र के हरयाणवी फ्रेंड मेरी लिस्ट में हैं वो मेरी इस बात से सहमत भी करेंगे|

ठीक इसी प्रकार हमारे यहां खेतों में गन्ना पकने के वक्त पहला गन्ना तोड़ के लाने पे दिए जलाये जाते थे, परन्तु इसको अवध-अयोध्या से इम्पोर्टेड दिवाली के साथ रिप्लेस करवा दिया गया|

बसंत-पंचमी तो सब जानते हैं कि सरसों पे पीले फूल आने की ख़ुशी में मनता आया है|

बैशाखी गेहूं की फसल पकने की ख़ुशी में मनती आई है|

आप सभी को शुद्ध हरयाणवी त्यौहार सांझी विसर्जन की बधाई और अवध-अयोध्या से इम्पोर्टेड त्यौहार दशहरे की भी शुभकामनायें!

जय योद्धेय! - फूल मलिक

गैर-हरयाणवी पत्रकारों तुम अपने लीचड़पने से कब और कैसे बाज आओगे?

यह वीडियो देखिये, इसमें रिपोर्टिंग कर रहे मुकेश सिंह सिंगर के लिए सनपेड़ दलित अग्निकांड में जो हिन्दू स्वर्ण जाति थी उसका नाम ले के बात करने की बजाय यह बताना ज्यादा जरूरी था कि इस वीडियो में चल रहा धरना वहाँ के स्थानीय "जाट-चौक" पर हो रहा है। ताकि अभी तक जिन्होनें इस मामले के बारे नहीं सुना, उनके दिमाग में यही जाए कि इस दंगे में जो स्वर्ण पक्ष है वो जाट है।

दस मिनट लम्बी इस वीडियो में एक नहीं अपितु तीन बार इसने "जाट-चौक" का जिक्र किया। एक 4.40 से 4.45 के बीच, दूसरी बार 7.00 से 7.05  के बीच और तीसरी बार 7.30 से 7.35 मिनट के बीच।

मरोगे तुम गैर-हरयाणवी मीडिया वालो एक दिन "जाटोफोबिया" और "खापोफोबिया" हो के। जाट तो न्यू ही गूँज के बसते रहेंगे और थारे ऐसे ही भट्टे से सुलगते रहेंगे।

फूल मलिक

Concerned Video Link: http://khabar.ndtv.com/video/show/news/rahul-gandhi-met-dalit-family-in-ballabgarh-sunped-village-387698

Tuesday, 20 October 2015

कंधे से ऊपर की मजबूती के दूसरे (पहले खट्टर साहब हैं) ग्लोबल ब्रांड "श्रीमान अनिल विज जी" -

गाय यदि राष्ट्रीय पशु बना तो क्या होगा जरा गौर फरमाइए:

1) किसान गाय का दूध नहीं निकला सकता।
2) न गाय को पाल सकता। क्योंकि पालेगा तो उसे डंडा भी मारेगा। लेकिन राष्ट्रीय पशु को डंडा मारना तो दंडनीय जुर्म होगा|
3) किसान बैल को हल या बुग्गी में जोड़ नहीं सकता।
4) गाय को इंजेक्शन नहीं लगा सकता।
5) वैज्ञानिक भी गाय पर रिसर्च नहीं कर सकते।

और फिर जब यह सब कुछ होगा तो देखते ही देखते एक दिन हिन्दू किसान ही स्वत: गाय-बैल को पालना छोड़ देगा।

6) और इन सबसे बड़ी दुविधा अगर आपने गाय को पशु घोषित करवा दिया तो फिर भगत माँ किसको कहेंगे?
वैसे मेरे ख्याल से गाय को पशु कहने की हिमाकत करने पे भगतों द्वारा सबसे पहला बक्कल उधेड़ना तो आपका ही बनता है|

धन्य हो अंधभक्तों के सरदार तुम्हारी, गाय को मारने के लिए किसी गौ-हत्थे या किसी कसाई की जरूरत ही मिटा दी|

यार भेजा-फ्राई फिल्म बनाने वालो, Bheja Fry Part 1 और Part 2 के बाद Part -3 बनाते हुए यह तो बता देते कि Part 3 दो या तीन घंटे का नहीं बल्कि पूरे 43800 घंटे यानी पांच साल का होगा?

फूल मलिक

जाटों को उनका इतिहास पता है, तुम मचा लो बेगैरतों की भांति उछल-कूद जी भर के!

इससे पहले कि मिर्चपुर कांड की फाइल खोल के नजदीक आते जाट-दलित की नजदीकियों को फिर से बढ़ाने हेतु जाटों पे अपने दमनचक्र का अगला चक्का खट्टर, बीजेपी और आरएसएस मिलके फेंकते कि उधर सनपेड़ दलित अग्निकांड ने इनकी पीपनी बजा के रख दी| पहले से ही कालिख लिबड़े हुए इनके चेहरों को सनपेड़ के दलित के घर से उठती लपटों ने और स्याह कर दिया| म्हारे हरयाणे में इसको कहते हैं "कुत्ते का अपनी मौत मरना|"

देखो हरयाणा वालो इन मेहरबानों का दोहरा रवैया, भारत देखे, दुनिया देखे| जाट पर इस सरकार के जुल्म और दमनचक्र की इंतहा देख के तो शायद ऊपर वाला भी अब जाट के साथ आन खड़ा हुआ है, इनकी असलियतें समाज के सामने खोल-खोल के रख रहा है|

दो दिन पहले खट्टर जनाब की सरकार ने अखबारों में निकलवाया कि हरयाणा सरकार मिर्चपुर कांड की फाइल्स फिर से खोलेगी| बड़े चले थे ना जनाब जाटों को दबाने और मिर्चपुर कांड को फिर से खोल के दलित-जाट को भिड़ाने? ले मेरे प्यारे, आपको अपने शौक पूरे करने के लिए ढके-ढकाए ढोल उघाड़ने की जरूरत नहीं, "ऊपरवाले" ने बिल्कुल नया-ताजा पूरा केस ही खोल के दे दिया है| दिखाओ अब करीब आते जा रहे जाट और दलित को फाड़ने की अपनी कंधे से ऊपर मजबूती और कितनी दिखाओगे|

हालाँकि मैं उन दोनों दलित मासूम बच्चों की नृशंस हत्या से पीड़ित हूँ, और इस सरकार को पुरजोर कोस भी रहा हूँ| परन्तु सरकार की चाल पे जब ऊपर वाले की लाठी पड़ती है तो कैसे उसे पंगु बना के छोड़ती है, इस वाकये से सरकार को समझ लेना चाहिए|

खट्टर साहब, अब जाटों को दोष मत देना कि मेरा तो जाट-दमन से अभी मन ही नहीं भरा था परन्तु इससे पहले जाटों ने ही मुझे नहीं टिकने दिया, क्योंकि अब तो ऊपरवाला ही आपके मंसूबों को नहीं चलने दे रहा है और आपकी चालों को आपके ही मुंह पे मारे दे रहा है, इसमें जाटों का कोई दोष नहीं|

लगे रहो, अपने जी भर-भर के अरमान पूरे करने पे, परन्तु इतना याद रखना यह जाटलैंड है, यहां तो तुम्हारी आइडिओलॉजी के नागपुरी पेशवा 1761 में जाट सम्मान को नकारने की पहले ही गलती कर चुके हैं एक बार| उन पर होनी का ऐसा कुचक्र चला था कि उन्हीं जाटों के द्वारे से उन पेशवाओं को फर्स्ट-ऐड मिली थी|

बुद्ध धर्मी बने जाटों और बाकी समाज (ध्यान दीजियेगा यह बाकी समाज वही हिन्दू था, जिसके कैप्सूल गिटकते और गिटकाते आप थकते नहीं) को कुचलने के कुचक्र में जब आपकी ही विचारधारा के लोगों ने मुग़लों के आने से भी पहले वाले उस ज़माने में आपकी ही आइडियोलॉजी की 1 लाख की सेना जाटों पे चढ़ाई थी तो कैसे मात्र 9000 जाटों ने मात्र 1500 जाट योद्धेय खोते हुए आप 1 लाख की गोभी खोदी के रख दी थी| यदि याद ना हो तो इतिहास में झांक के देख लें| वैसे भी बड़ा शौक है आपकी विचारधारा को नए-नए शिरों से इतिहास लिखने का, तो मुझे विश्वास है कि वो आपको यह अध्याय खोल के जरूर आपका ज्ञानवर्धन कर सकेंगे|

बुद्ध बने जाटों और बाकी समाज पे आपकी आइडियोलॉजी के जुल्म की इतनी इंतहा हुई थी कि हरयाणा में उसपे उसी ज़माने में बनी "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" की कहावतें आज भी जनमानस में चलती हैं| परन्तु फिर भी वो जुल्म का पहिया जाटों ने तोड़ के रख दिया था|

हम अपनी ताकत जानते हैं, इसलिए शांत हैं| हम यह भी जानते हैं कि हमारा गुस्सा घर में लड़ती दो लुगाइयों की भांति सिर्फ एक दुसरे के बालों को खींचने वाली नुक्ताचीनी तक सिमित नहीं रहता, जब फटता है तो फिर मुज़फ्फरनगर, सारागढ़ी, बागरु, आगरा, गोहद, मेरठ, हाँसी-हिसार, रोहतक, दिल्ली, लोहागढ़ के ऐतिहासिक अध्यायों से होते हुए तैमूरलंग-गौरी-गज़नी से होते हुए वहाँ तक जाता है जब जाटों ने आपकी आइडियोलॉजी वालों के मुंह सुजाये थे और तब जा के बुद्ध बने जाटों और बाकी समाज पे इसी तरह के जुल्मों का अंत हुआ था जो आपने आज शुरू कर रखे हैं| हम आपसे नहीं अपितु हमारे क्रोध से डरते हैं| और हमारे क्रोध की इंतहा समाज, इतिहास और आपकी आइडियोलॉजी के पुरखों ने भली-भांति चखी और देखी है, और क्रोध की लपटों में जब उनको भोले के तांडव रुपी क्रोध के भभके झलके थे तभी से जाट को भोले का अवतार कहा जाने लगा| हालाँकि भोला एक म्य्थोलॉजिकल चरित्र है, परन्तु आपको यह मिशाल ही बेहतरी से समझ आएगी|

खैर अब हमें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, भगवान ने इशारा दे दिया है कि अब वो खुद आपकी चालों पे नजर रखेगा| वैसे भी कहा गया है कि "शोर खाली भांडे ही किया करते हैं|" इसलिए भगवान ने भी अब आपको खाली भांडे साबित करने की ठान ली है|

हालाँकि अत्यंत दुखी कर देने वाला एपिसोड है, परन्तु जाट को इस एपिसोड से इतना समझ लेना चाहिए कि अब भगवान ने आपके सम्मान को संभल लिया है और आपके लिए उस दिन के लिए चुपचाप तैयारी करने का वक्त आ गया गया है जिस दिन फिर से इतिहास खुद को दोहराएगा| मिर्चपुर कांड की फाइल्स फिर से खोलने की घोषणा करना और उसके मात्र दो दिन बाद ही सनपेड़ दलित अग्निकांड हो जाने का संकेत भगवान ने साफ़ दे दिया है कि यह लोग जितना जाट का अपमान और दमन कर सकते थे कर चुके, अब हमारे मान-अपमान को उसने संभाल लिया है| अब हमें मात्र इनको इनकी ही चालों में थका-थका के ऐसा बना देना है कि यह फिर से हमसे ही फर्स्ट ऐड मांगे|

हमें ना हथियार उठाने ना बोलों के तीर चलाने, अब हमें एक सर छोटूराम की भांति, एक सरदार भगत सिंह की भांति, एक महाराजा सूरजमल की भांति, एक राजा नाहर सिंह की भांति, एक चौधरी चरण सिंह की भांति, एक बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की भांति, एक गॉड गोकुला की भांति, एक महाराजा हर्षवर्धन की भांति, एक महाराजा पोरस की भांति, एक ही नाम के दो महाराजाओं पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और लोहागढ़ में 1804 में विश्व में कभी ना डूबने वाले अंग्रेजों के राज के सूरज को डुबाने वाले महाराजा रणजीत सिंह, इनके हाथों से हेमामालिनी छीन लाने वाले हिमेन धर्मेन्द्र की भांति सिर्फ अपने स्वरूप में ढल के चलना होगा| भान रहे जाट को वरदान है कि जब वो अपने रंग में रम के धरती पर चलता है तो तमाम ताकतें पछाड़ खा के अपने आप गिरती हैं और यह ऊपर गिनवाई तमाम हस्तियां उसकी टेस्टिमनी हैं| इन्होनें कभी दुश्मन पर दाड़ नहीं पीसे, कभी उसको ललकारा नहीं, इनके आगे दुश्मन खुद चल के आये और धराशायी होते गए| नियति जाट का दुश्मन तय करती है, जाट खुद नहीं तय किया करता; जाट तो सिर्फ उस जाट का बुरा चाहने वाले को अंजाम तक पहुँचाने का जरिया मात्र बना करता है और यह ऊपर गिनवाई तमाम हस्तियां उसकी टेस्टिमनी हैं|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

हर की धरती हरयाणा में दलित दमन का दौर द्वार पर!

ये हैं वो दो हिन्दू दलित बच्चे (नीचे सलंगित चित्र में देखें) जो "हिन्दू एकता और बराबरी" के ढोल पीटने वाली हिंदूवादी सरकार की छत्रछाया तले हिन्दू सवर्णों ने आज तड़के फरीदाबाद के सनपेड़ गाँव में आग के हवाले कर दिए|

राजनीति तो सुनी थी गंदी होती है परन्तु जब उसके साथ धर्म भी मिलके उसमें एकता और बराबरी का नारा उठाये तो उस नारे को फलीभूत करवाने की जिम्मेदारी भी तो ले? धर्म वादा करके या नारा उठा के भूलने की चीज नहीं होती, आगे बढ़के उसके पालन और पालन की सुनिश्चितता करने का नाम होता है| जहां दावे से उठाई हुई बातें-वादे भुला दिए जाएँ वो राजनीति होती है धर्म नहीं|

जैसा कि इसका एक पहलु मीडिया और सरकार बता रही है कि यह सब आपसी रंजिश के चलते हुआ है| तो ऐसा भी क्या तरीका रंजिश निकालने का कि राजपूतों ने ना रात देखी, ना दिन, ना 10 महीने और अढ़ाई साल के बच्चे देखे| निसंदेह एक सच्चा राजपूत तो ऐसा कदापि नहीं कर सकता। यहां तो यह भी नहीं कह सकते कि दिन के वक्त किया इसलिए पता नहीं रहा होगा कि घर के अंदर कौन था और कौन नहीं| रात का वक्त था साफ़ पता था कि मियां-बीवी अपने बच्चों के साथ सो रहे होंगे|

इसपे भी अचरज की बात यह है कि सनपेड़ कांड पर क्यों नहीं एक भी हिन्दू-हिन्दू और इसमें एकता और बराबरी चिल्लाने वाले साक्षी महाराज से ले साध्वी प्राची, योगी आदित्यनाथ से ले मोहन भागवत एक शब्द भी नहीं बोले| ना कोई शंकराचार्य बोला, ना कोई महामंडलेश्वर, ना कोई पुजारी चुस्का और ना ही कोई संत| जिनकी जुबान गौ-गाय-मूत्र-गोबर पर जान लेने और देने के लिए बोलते-बोलते नहीं थकती, उन हिन्दू धर्म वालों के यहां और उन्हीं की सरकार के राज में एक हिन्दू दलित के छोटे-छोटे मासूम बच्चों की बस इतनी सी कीमत कि इन महानुभावों के मुख से अभी तक एक शब्द नहीं आया।

सभ्य-सुशील इंसान कोई भी कमेंट करे इस पोस्ट पर परन्तु, अपने यहां के गोबर से दूसरे के वहाँ के गोबर को ज्यादा गन्दा बताने वाले, इस पर तभी कमेंट करें, जब अपने गोबर को साफ़ करने का माद्दा रखते हों| ओह हाँ मैंने गोबर शब्द का जिक्र किया है तो भगतलोग अब इसको गाय वाले गोबर से जोड़ के मेरे कान मत खाने लग जाना, कि कहीं कहते चढ़े आओ मेरे सर पे कि तुमने गौमाता के गोबर को गन्दा कैसे कह दिया| मेरी ओर से तुम जिस चाहे उस जानवर के गोबर को खाओ या शरीर पे लबेड़े घूमो|

फूल मलिक

 

हरयाणा में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मुख्यमंत्री ही बैठा है या किसी व्यापार मंडल का अध्यक्ष!

आज हरयाणा के मुख्यमंत्री उनकी सरकार की एक साल की उपलब्धियां गिनाते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे हरयाणा व्यापार मंडल के अध्यक्ष बोल रहे हों। जनता का नुमाइंदा यानि मुख्यमंत्री वाली तो कोई फील ही नहीं आ रही थी, पूरी कांफ्रेंस के दौरान|

ना किसान का जिक्र, ना जमीन पे आ चुके फसलों के भावों का जिक्र, ना आसमान तक जा चुके दालों-सब्जियों के भावों का जिक्र, ना दलित उत्पीड़न का जिक्र, ना मुस्लिम उत्पीड़न का जिक्र। ना नौकरियों की नियुक्ति में देरी का जिक्र, ना कच्चे अध्यापकों को पक्के करने का जिक्र, ना बढ़ती रिश्वतखोरी और भाईभतीजावाद का जिक्र, ना समाज में पसर रही अशांति और असहनशीलता का जिक्र, ना सरकार के नेताओं के गैर-जिम्मेदाराना ब्यानों और रवैयों का जिक्र; खैर ब्यान तो खुद जनाब कौनसे सम्भल के देते हैं। एक ही झटके में ऐसा मुंह खोलते हैं कि हरयाणा तो हरयाणा बिहार तक में बीजेपी की चुनावी हालत खस्ता कर देते हैं।

कमाल की बात तो यह है कि किसान को तो लागत के पूरी होने तक के भी फसल-भाव नहीं मिल रहे और उसके बावजूद भी दाल-सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं| और सरकार भोंपू बजाये जा रही है कि हमने भ्रष्टाचार मिटा दिया? तो आखिर यह भ्रष्टाचार कौन देखेगा सरकार जी कि किसान से उसकी लागत भी पूरी ना हो उस भाव पे खरीदी जाने वाली दाल कंस्यूमर तक पहुंचते-पहुंचते इतनी महंगी कैसे हुए जा रही है?

किसान के खेत से दाल खरीद है 25-35 रूपये प्रति किलो के बीच,परन्तु शहर-गाँव के ग्राहक को मिल रही है 200 रूपये प्रति किलो। अच्छे दिन तो सिर्फ बिचौलियों, सटोरियों और व्यापारियों के आये हैं। और इसमें सरकार को कोई भ्रष्टाचार, जमाखोरी वगैरह भी नहीं दिखती।

भगत भी बेचारे सुन्न हैं, ना फड़फड़ाहट ना फड़फड़ाहट की गुंजाइस। मुझे तो अचरज इस बात का है कि 200 रूपये किलो की दाल खा के भी भगतों को सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के बजाये दंगे कैसे सूझ जाते हैं। हाँ तभी तो अंधभगत कहलाते हैं, खुले दिमाग के भगत होते तो दंगे करने से पहले अपने घरों की बिगड़ रही इकोनॉमी पे आवाज ना सही कम से कम चिंता तो उठाते।

फूल मलिक

यह तो जलाने-जलाने वाले पे निर्भर है कि मामले को आपसी रंजिश का नाम दिया जावे या कांड का!

हरयाणा के डीजीपी साहब सीखा रहे हैं कि जब झगड़ा जाट और दलित का हो तो उसको कैसे उत्पीड़न का बना के दिखाया जाए, और जब झगड़ा आज वाले सनपेड़ गाँव में स्वर्ण जाट के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर्ण का हो तो कैसे सिर्फ रंजिश बना के दिखाया जाए| मीडिया भी खूब साथ दे रहा है उनका, बिलकुल मुंह-में-मुंह डाल के रिपोर्टिंग हो रही है| क्या बात है क्या तालमेल है मीडिया और सरकार का|

डीजीपी साहब और मीडिया, यूँ तो गोहाना-कांड हो, मिर्चपुर-कांड हो, या आज फरीदाबाद में हुआ सनपेड़-कांड, मामले तो सारे ही आपसी रंजिश के थे, पर किसी एक के भी द्वारा यह "आपसी रंजिश" शब्द तब तो प्रयोग नहीं किया गया जब गोहाना कांड हुआ था या मिर्चपुर कांड हुआ था, वाकया तो एक ही प्रकार का था ना? दलितों के घर उस वक्त भी जलाये गए थे और आज भी? फर्क सिर्फ इतना ही तो था ना कि उस वक्त मसला जाट बनाम दलित था और आज राजपूत बनाम दलित?

ओह समझ गया, यह तो जलाने-जलाने वाले पे निर्भर है ना कि मामले को दो-चार परिवारों की आपसी रंजिश कह के हल्का बताना है या पूरी जाट कौम बनाम दलित कौम का बता के जाटों का दलितों पर आतंक और अत्याचार कह के बड़ा बताना है|

हुड्डा साहब, चौटाला साहब और तमाम तरह के अन्य जाट नेता, सीखें खट्टर साहब और उनके डीजीपी से कि कैसे दलितों के घर तक जलाने पर भी, उनके बच्चे जिन्दा फूंकने के बावजूद भी उस कांड को मात्र आपसी रंजिश का बना के दिखाया जा सकता है| शायद भविष्य में काम आएगा आप लोगों के|

वैसे यह वही खट्टर साहब हैं जिन्होनें रोहतक सिस्टर्स बस छेड़छाड़ मामले में मात्र एक जाटों के बालक होने की वजह भर से बिना जाँच रिपोर्ट का इंतज़ार किये तुरंत-फुरन्त आनन-फानन में इनाम भी घोषित कर दिए थे और आज वाले मामले को कैसे इनके कर्मचारियों और मीडिया द्वारा सिर्फ आपसी रंजिस मात्र का मामला बताया जा रहा है|

चलो हुड्डा हो या चौटाला, उनमें इतनी संवेदना तो थी कि वो दलितों पर हुए अत्याचार को अत्याचार की तरह ही लेते थे, उसको एक रंजिश मात्र कह के रफा-दफा नहीं करते थे| यहां तक कि खट्टर साहब के 10 लाख के मुवावजे की तुलना में 25 लाख मुवावजा देते थे| दलित मकानों को दोबारा से बनवाते थे| उनके बीच जा के उनकी सुनते थे, सुना है खट्टर साहब तो अभी तक चंडीगढ़ से ही नहीं निकले हैं| डीजीपी भी यही कह रहे हैं कि जरूरत हुई तो मिलने भी जाऊंगा|

और ना ही अभी तक उस बेचारे दलित के फूंके हुए घर को दोबारा से बनाने के बारे सरकार ने कोई घोषणा की, क्या सिर्फ 10 लाख में पल्ला झाड़ लिया जायेगा?

और हाँ, वो मिर्चपुर कांड के पीड़ित दलित भाईयों को आश्रय देने वाले तंवर साहब किधर हैं, कोई भेजे उनके पास संदेशा की जनाब आओ इधर सनपेड़ गाँव में भी कुछ आपकी ही जाति के राजपूत भाईयों ने दलितों के घर फूंके हैं, उन पीड़ित दलित भाईयों को भी आपके फार्महाउस में आश्रय दीजिये|

भाई कोई गोल बिंदी वाली रुदालियों को भी संदेशा भेजो, कि सनपेड़ में रूदन मचाने जाना है, या फिर वहाँ घर फूंकने वाले जाट नहीं कोई और थे इसलिए जाना कैंसिल?

फूल मलिक

झगड़ों में भी जातिय रियायत बरतने वाला हिंदुस्तानी मीडिया!

एक मीडिया वाले भाई ने कहा, "काश, आज सनपेड़, फरीदाबाद में जो राजपूतों द्वारा घरों समेत दलित जलाये गए हैं, उनमें दूसरी पार्टी राजपूत की जगह जाट होती तो हमें "दबंग" शब्द इस्तेमाल ना करना पड़ता और टीआरपी भी मीटर तोड़ देती|"

मैंने पूछा वो कैसे?

तो बोलता है कि क्योंकि मामला राजपूतों का है इसलिए सिर्फ "दबंग" बता के दिखाने के निर्देश हैं; लेकिन अगर होते राजपूतों की जगह जाट तो निर्देश यही होते कि इनको 'दबंग' शब्द में कवर नहीं करना, डायरेक्ट 'जाट' बता के खबर चलाना है|

मैंने कहा वाह रे मीडिया, तुम्हारी निष्पक्षता, निडरता और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने के दावे| तुमसे बड़ा खोतंत्र नहीं होगा पूरी दुनिया में कोई| सलाम है तुम्हारी सोच को, झगड़ों में भी जाति के नाम पर रियायत बरत के खबर चलाते हो|

अब इसको क्या कहूँ, "मीडिया की भी जो टीआरपी तोड़ दे जाट ऐसी सबसे बड़ी बड़ी ब्रांड है क्या?"

धन्यवाद घुन्नो, बदनाम ना हुए तो क्या नाम ना होगा? वजह जो भी हो मार्केटिंग तो करते ही हो जाटों की पॉजिटिव ना सही नेगेटिव ही सही| परन्तु याद रखना बड़े-से-बड़े मार्केटिंग प्रोफेशनल्स भी पॉजिटिव से ज्यादा नेगेटिव मार्केटिंग को ज्यादा इफेक्टिव बताते हैं, लगे रहो जाटों को मशहूर करने में|

अभी एक बार हरयाणा में पंचायती राज इलेक्शन हो जाने दो, दोबारा से जब जाट आरक्षण का जिन्न फिर से खड़ा होगा, तो कर लेना अपने यह अरमान भी पूरे| बस इतना ध्यान रखना कि कहीं जाट-जाट चिल्लाते-चिल्लाते तुम्हारी साँसे तुम्हारी ........... टों में ना उलझ जाएँ|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

डबल शर्म करो हिंदूवादी खट्टर साहब!

पहली शर्म इस बात के लिए कि यू.पी. में एक मुस्लिम अख़लाक़ को मारा जाता है तो सपा उसके परिवार को 45 लाख देती है और आपके यहां एक दलित वो भी हिन्दू दलित, खट्टर साहेब जरा फिर से कानों के पट खोल के सुनो, हिन्दू दलित कहा मैंने, "हिन्दू एकता और बराबरी" वाला हिन्दू दलित जनाब; हाँ एक हिन्दू दलित मरता है तो उसकी जान की कीमत सिर्फ मात्र 10 लाख रूपये? मैं मांग करता हूँ कि आज सुबह तीन बजे बल्लभगढ़ में राजपूतों द्वारा घरों समेत जलाये गए मृतकों के परिवारों को कम से कम 1-1 करोड़ का मुवावजा मिलना चाहिए, जायज भी है 45 लाख तो आपके अनुसार सेक्युलर और देशद्रोही लोग भी दे रहे हैं तो फिर आपकी कटटरता उनसे सस्ती कैसे, आपके ही अपने हिन्दू लोगों की जान उनसे सस्ती कैसे?

दूसरी शर्म इस बात के लिए कि "हिन्दू एकता और बराबरी" के ये मण-मण पक्के नारे-भर तो लगाते हो, उसी का चोला पहन और जाटों से निजात दिलाने के नाम पे वोट भी मांगते हो और जब दलितों ने वोट दे के सरकार बनवा दी तो उन्हीं दलितों को स्वर्ण हिन्दुओं से घरों समेत जलवाते हो?

इससे बड़ा तमांचा और नहीं हो सकता खट्टर साहब के मुंह पर कि एक तरफ जनाब प्रेस-कांफ्रेंस करके एक साल की कागजी उपलब्धियां गिना रहे हैं और दूसरी तरफ स्वर्ण हिन्दु इनके "हिन्दू एकता और बराबरी" के ढकोसले की उपलब्धियों की बख्खियां उद्देडने के स्टाइल में पोल खोल रहे हैं|

बनियानी के राजपूतों के बाद मात्र डेड महीने में अब फरीदाबाद के राजपूतों से तो सीधा घर ही जला दिए खट्टर साहेब!

अब देखेंगे कि जाट-दलित के छोटे से झगड़े को भी ये अंतराष्ट्रीय स्तर का बना-बना के परोसने वाले, उन पर नौ-नौ मण आंसू बहाने वाले मीडिया से ले केंद्रीय नेता, जनवादी संगठनों से ले मार्क्सवादी-कम्युनिष्ट इस जुल्म पे क्या रूख अख्तियार करेंगे|

साथ वो जाट भी बताएं अपना रूख इसपे जो कभी हिंदूवादी राष्ट्रवादी अंधभक्त बने टूलते रहते हैं तो कहीं जाति-पाति, उंच-नीचता, स्वर्ण-दलित के नाम पर दलितों से दुर्व्यवहार करते हैं| जबकि ऐसा करना ना तो शुद्ध जाट थ्योरी "खाप" में कहीं लिखा हुआ और ना ही जाट की कर्मधारा में लिखा हुआ| तो फिर क्यों ना ऐसी किताबों को आग लगा दी जाए जो समाज में इस जातीय, नस्लीय भेद की वकालत करती हैं? और जिनको पढ़ के आप व्यवहारिक, सामाजिक तौर पर दलित के नजदीक होते हुए भी वैचारिक स्तर पर उनसे दूर चले जाते हो और इस वैचारिक आतंकवाद का शिकार बनते हो?

इन सब समस्याओं का निवारण सिर्फ एक ही है, बाबा साहेब आंबेडकर और सर छोटूराम की नीतियों का समन्वय भरा समाज|

फूल मलिक

Monday, 19 October 2015

और ऐसे एक कंधे से ऊपर मजबूत बयानबहादुर ने बिहार में भाजपा की लुटिया डूबने के कगार तक पहुंचा दी!

कंधे से ऊपर या नीचे मजबूत और कमजोर की चर्चा, उसका अवरोध-गतिरोध अभी थमा भी नहीं था कि एक हरयाणा के नाम से जाने-जानी वाली खापलैंड के उद्भव व् वैभव वाली स्टेट के मुखिया ने अपनी कंधे से ऊपर की मजबूती का नायाब नमूना पेश करते हुए आज के भारत की राजधानी व् प्राचीन विशाल हरयाणा के जिगर दिल्ली के तले बैठे-बैठे ही हजार कोस दूर पाटलीपुत्र उर्फ़ पटना में बीजेपी की लुटिया लगभग डूबाने के कगार पर भेज दी है। अगर यूँ कहूँ कि आने वाली नौ नवंबर को उस डुबाई की आधिकारिक घोषणा हो जावे तो अचरज ना मानियेगा।

इतने भर से पाठक यह तो समझ ही गए होंगे कि यह करिश्मा किसी और ने नहीं अपितु हमारे अपने जाने-पहचाने चिर-परिचित कंधे से ऊपर मजबूत श्रीमान मनोहरलाल खट्टर ने करके दिखाया है।

मैं इतना बड़ा लेखक नहीं, हस्ती नहीं कि कोई मेरी इस विवेचना को गंभीरता से लेवे, परन्तु जिस हद तक मैंने भारत की राजनीति और उसमें भी जातिय जहर की जादूगरी देखी, समझी और परखी है उससे स्पष्ट तौर पर हमारे आदरणीय कंधे से ऊपर मजबूत बयानबहादुर जी ने वो कारनामा कर दिखाया है कि अगर इसके नतीजे वही आये जो आज के दिन बिहार के हालात बता रहे हैं तो यह जनाब बीजेपी और आरएसएस दोनों के उस डर को साकार करने वाले हैं जिसमें बीजेपी अपनी आगे की दिशा निर्धारण का एक पैमाना लिए बैठी है। और पैमाना यह है कि बीजेपी व् आमजन यह सोच रहे हैं कि अगर बीजेपी बिहार में हार गई तो इनका 2014 की जीत का हनीमून जो दिल्ली की हार से पहले ही फीका पड़ चुका था वो तो बिहार की हार से पूर्णत: खत्म हो ही जायेगा, साथ ही राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद नामी चुनावी जिन्न या तो देश में ऐसा फटेगा कि कहीं गृहयुद्ध ही ना हो जावे या फिर यह बीजेपी को त्यागना ही ना पड़ जावे। गृहयुद्ध इसलिए क्योंकि बीजेपी और आरएसएस के लोगों का जिस तरह का तारतम्य और हार को बर्दाश्त करने के प्रति सहिषुणता का जो स्तर अभी तक देखने को मिला है उसके चलते इस संभावित हार को बीजेपी के कार्यकर्त्ता और शायद आरएसएस भी संभाल ना पावे| मोदी साहब तो खैर अब लगभग मनमोहन मोड में इन्होनें भेज ही दिए हैं। धन्य हो खट्टर-बाणी, खुब्बाखाणी या कहूँ खसमांखाणी!

कुल मिलाकर कंधे से ऊपर मजबूती के इन ग्लोबल सिंबल उर्फ़ खट्टर साहब ने बीजेपी और आरएसएस को ऐसे बारूद के ढेर पर जा बैठाया है कि हारे तो या तो गृहयुद्ध या राष्ट्रवाद-हिन्दुवाद का त्याग। हाँ भूले से जीत भी गए तो सम्पूर्ण बहुमत तक तो शायद ही पहुँच पाएं।

मैं यह दावे निराधार ही नहीं कर रहा हूँ, इसके कुछ पहलु हैं जो यूँ भभक रहे हैं जैसे ईंट-भट्टे में लाल अग्नि के ललाट सी लाल ईंटें, कि कहीं भी गिरे भुनना जरूर है कम से कम जलना तो पक्का है।

हमारे (क्योंकि मैं हरयाणा का हूँ और यह हमारे मुखिया जी) कँधे से ऊपर की मजबूती के ब्रांड अम्बेसडर साहब शायद यह भूल गए थे कि वहाँ लालू यादव से चतुर-लम्पट बैठे हैं, जो आपके बयान को ना सिर्फ ऐसे लपकेंगे जैसे साँप पे नेवला वरन इसका ढंका पूरे बिहार में इस जोर से पिटवाएंगे कि अभी तक जिस मुसलमान को धार्मिक-भाई होने की वजह से ओवैसी में फायदा दिख रहा था वो भी लालू-नितीश के पाले में आन गिरेंगे। और स्थिति यहां तक भी पहुंच सकती है कि बाद में यह कंधे से ऊपर के स्वघोषित अक्लवान ऐसे महसूस करेंगे जैसे "चौबे जी चले छब्बे बनने और दुबे बनके लौटे।"

यह आरएसएस इनके कैडर को यह नहीं सिखाती क्या कि "अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारी जाया करती"? लगभग हर दूसरे अख़बार की कलम, बिहार के गलियारों से नदी-नारों तक इतना चर्चा तो बिहार में खुद नितीश-लालू और मोदी का नहीं, जितना ‘म्हारे आळे छोरे का हो रह्या सै’ यानि खटटर साहब के "बीफ वाले बयान पे मुस्लिमों को दी नसीहत" का हो रहा है।

पहले से ही बिहार के दो दौर के चुनावों में बीजेपी की बेचैनी इसी से साफ स्पष्ट झलक रही थी कि बीजेपी को वहाँ के पोस्टर्स पर राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीरों से ज्यादा स्थानीय नेताओं की तस्वीरें उतारनी पड़ी। ऊपर से नितीश का "बाहरी बनाम बिहारी" का नारा, उसपे लालू तो जो बीजेपी को ऐ-लम्बा लठ लिए हाँक रहे थे सो हाँक ही रहे थे। लालू तो बस ताक में ही बैठे थे कि बैठे-बिठाये ये जा लपकाया खट्टर साहब ने विभीषण की तरह राम को रावण की नाभि भेदने का राज। पहले से ही चिंता में पड़ी बीजेपी की हालत "कोढ़ में खाज" वाली करके रख दी।

मोदी साहब, खट्टर साहब को पहले की तरह अपनी रसोई पकाने के लिए वापिस ही बुला लो तो बेहतर होगा वर्ना बाकी जनता का भेजा फ्राई करें या ना करें परन्तु सबसे पहले वो ही लोग इनसे उक्ता जायेंगे, जिन्होनें आपको कम से कम इन कंधे से ऊपर की मजबूती वाली ब्रांड को झेलने के लिए तो वोट नहीं दिए होंगे। क्या है कि अति हर बात की घातक होती है और आपके ही वोटरों की जुबानी खट्टर साहब तो ऐसी अति साबित हो रहे हैं जो खट-खट खाटी ढकार दिल देने वाली खटारा की तरह खटकते-खटकते आपके ही वोट खड्का-खडका के खाती जा रही है।

"सूं दादा खेड़े की!" अगर इनको जाटों को परेशान करने मात्र के लिए ही सीएमशिप दी हुई हो तो उसकी चिंता आप ना करें, क्योकि इससे तो आप उल्टा जाटों का ही भला कर रहे हो। ऐसे ज्ञानी-ध्यानी को सीएम बना के नॉन-जाट को यह अहसास दिलाने का कार्य कर रहे हो कि क्या वाकई में जाट इतने बुरे हैं या थे, जितने बता के कि हमसे वोट लिए गए। हरयाणा में फसलों से ले इंसानों तक के भाव इन्होनें छोड़े नहीं| जाटों तक पे इन्होनें "लठैत" होने के तीर छोड़ लिए| खुद को कंधे से ऊपर अक्ल वाला बताते-बताते हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर तक यह बोल चुके (और यह बोलते हुए यह भी नहीं सोचा कि जिन्होनें बीजेपी को वोट दिए खासकर नॉन-जाटों ने, वो भी तो हरयाणवी ही हैं; नहीं शायद इनके लिए हरयाणवी का पर्यायवाची शायद सिर्फ जाट ही है। खैर जाटोफोबिया रोग ही ऐसा है, खट्टर साहब की गलती नहीं| वैसे धन्य हैं आपके वोटर भी जो आपको वोट भी देवें और आपके बयानबहादुरों से अपने ऊपर कंधे से ऊपर कमजोर होने का ठप्पा लगवा के भी खुश रहवें। वाकई में खुश हैं वो वोटर या सुगबुगाहटें पुरजोर है?), लड़कियों को छोटे कपड़े पहनने की बजाय नंगा ही घूम लेना चाहिए जैसे तीर भी यह छोड़ चुके और अब तो ऐसा तीर छोड़ा कि वो जा लपका राजनीति के ‘बाहरले-बिल्ले’ उर्फ़ लालू यादव ने और वो भी इतनी मजबूती से कि बीजेपी की लुटिया को शायद अब गौ-गंगा-गायत्री ही बचा पाएं या फिर कुछ करिश्मा कर पाई तो शायद मोदी-ब्रांड ही करे, बाकी कंधे से ऊपर मजबूत वाली ब्रांड तो फायर कर गई।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 18 October 2015

कित-कित तैं रो ल्यूं इन घुन्नों को!

पंचायतों और खाप पंचायतों से एलर्जी रखने वाले और शायद इनसे घृणा करने वाले मीडिया के कार्यक्रमों के नाम तो देखो "पांच की पंचायत", "चार की चौपाल", "पंचायत", "चुनाव की पंचायत" आदि-आदि|

म्हारे हरयाणे में जो इशारों-इशारों में किसी से कोई बात निकलवा ले उसको "जूत झाड़-झाड़ के बुलवाना" कहते हैं, परन्तु यह मीडिया वाले तो ऐसे घुन्ने हैं कि जूत झाड़निये की गरद उतर जाएगी परन्तु ये लोग यह नहीं बता पाएंगे कि यह दोगलापन क्यों?

गाँव-गुहांड-गौहर में पाई जाने वाली पंचायतों और खापों के शब्दों और इन वाले शब्द में ऐसे कौनसे फ्लेवर का फर्क है जो जब इसको गाँव वाले प्रयोग करें तो मीडिया के द्वारा ही तालिबानी-रूढ़ी ठहरा दिए जावें और वही शब्द इनके हाथ पड़ें तो ऐसे शुद्ध और मॉडर्न हो जावें कि जैसे मीडिया के हाथ ना पड़ गए हों अपितु गंगाजल में डुबो दिए हों?

खाएंगे यह भीरु लोग इस देश की संस्कृति को भी और आकृति को भी।

कित-कित तैं रो ल्यूं इन घुन्नों को!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


Thursday, 15 October 2015

यकीन नही आता कि बिहार में आज भी ऐसा हो रहा है!


बिहार के जहानाबाद जिले की घोसी विधान सभा क्षेत्र में भूमिहार जाति के दबंगों ने आज तक दलितों और पिछड़ों को वोट नहीं डालने दिया।। पूरी खबर देखिए और तय करिए कि कौन लोगों ने लोकतंत्र की हत्या करने का प्रयास किया है।।

ये है हिंदुत्व के ठेकेदारों की इंसानियत और असलियत, मुस्लिमों के डर से डरा के एक क्या इसलिए कर रहे हैं कि कल को लोगों को उनके लोकतान्त्रिक अधिकारों से ही वंचित कर दें।

सम्भल जाओ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की झूठी बातों से।

है कोई "हिन्दू एकता और बराबरी" के नारे लगाने वाला इस बात पे जवाब देने वाला, कि आखिर क्यों एक हिन्दू ही दूसरे हिन्दू को वोट नहीं डालने देता?

Phool Malik

Source: https://www.youtube.com/watch?v=VF6phOHDEBE

वीर जवाहर नमन तुझे!

वो जलजला सूरज का, जवाहर जाट कहलाता था,
मनुष्य क्या देवों से भी, खुली छाती भिड़ जाता था,

क्रोधी मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले-घन पर,
पितृहत्या का बदला लूंगा, अपने प्राणों से भी बढ़ कर,

अश्वारोही अपनी सेना को, पल में सम्मुख खड़ा किया,
हुंकार लगा के जवाहर ने, दशों दिशा को गुंजा दिया,

होके सवार अपने तुरंग पर, दिल्ली पे कूच किया,
अपनी गरजती ललकार से, जाट लहू उबाल दिया,

लाल किले की प्राचीरों से, उठने लगी चित्कार वहां,
नंगी तलवार लिए खड़े थे, जाटवीरों के कदम जहां,

अफगान सहमे, ह्रदय कांप उठे, छा गया अंधकार घोर,
जहां अफगान था खड़ा, तलवार मुड़ी जाट की उसी ओर,

छिन के बिजली कड़क उठी, जालिम की खड़ग गिर पड़ी,
क्षमा करदे जाट सूरमे, दुश्मन की आंखे छलक पड़ी,

गद्दार पेशवाओं ने तब, अपनी ही औकात दिखलायी,
समर्पण कर अफगानों से, जाटों की सेवा भुलाई,

पानीपत के तृतीय समर में, जब तुर्कों ने इन्हें भगाया था,
हिन्दू रक्षक सूरजमल ने तब, इनके घावों को सहलाया था,

सुसोभित अष्टधातु पट जहां, जाटों ने वो उखाड़ दिये,
तब लोहागढ़ को लोट चले, दिल्ली की पहचान लिये,

जबसे धरती पर मां जननी, जब से मां ने बेटे जने,
जाटवीरों के ऐसे वकत्व्य, ना देखे कभी ना कभी सुने,

वीर जवाहर नमन तुझे, जो जाटों का गौरव-मान बढाया,
तेरे अदम्य साहस ने ही तो, "बलवीर" को लिखना सिखाया,
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लेखक - बलवीर घिंटाला 'तेजाभक्त'

Wednesday, 14 October 2015

सीवन, जिला कैथल, "सीएम हरयाणा की जाति बाहुल्य गाँव" है!

कुरुक्षेत्र सांसद राजकुमार सैनी व् गुहला विधायक बाजीगर पर सीवन गाव में नारे व् पथराव!

सांसद ने कहा जाति विशेष का काम!

सांसद महोदय शायद आप अपने ही क्षेत्र के डेमोग्राफिक विस्तार से वाकिफ नहीं| जान लेना जरूरी होता है, वर्ना झूठ दिन-धोली पकड़ा जाता है|

सीवन गाँव में 12807 मतदाता हैं पर आपकी बताई जाति विशेष का इस हमले में और वो भी उसी गाँव के लोगों के अनुसार एक भी नही| हाँ, जाति विशेष के मात्र 1200 के करीब मतदाता जरूर हैं उस गाँव में।

जनता विरोध कर रही और कमाल इस बात का है सीवन जैसा गाँव जिसने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एकमुश्त होकर आपको ही अधिकतर वोट दिए, वहाँ आप पर हमला हुआ? बीजेपी के वोट-बैंक वाले गाँव में आप पे हमला हुआ जनाब?

चेत जाओ नही तो सारा देश सभी का यही हाल करेगा ये जाति विशेष का नहीं वरन जनता विशेष का आपकी नीतियों के प्रति विरोध है।

वैसे दुनिया इतनी बावलीबूच भी नहीं है एमपी साहब, सबको पता लग रहा है कि उस गाँव में कौन बहुलयता में है और किसने आपको पत्थर मारे होंगे| जबकि यहाँ तो खुद सीवन वाले कह रहे हैं कि एमपी साहब की बताई जाति विशेष वाला तो एक भी नहीं था आप पर पत्थर बरसाने में|

परन्तु आपके साथ तो वो "कुत्ते को मार गई थी बिजली, और मिराड को देखे और कुकावे-ही-कुकावे" वाली बात हो रखी! बावले हो आप, जाट हमला प्लान करे और सिर्फ पत्थर बरसवा के छोड़ दे, सर कुछ राह लगती तो बात किया करो|

गाँव सीएम हरयाणा की जाति बाहुल्य का और इल्जाम फिर भी जाति-विशेष यानी जाटों पर| शर्म कर लो जनाब कुछ, कुछ तो झांक लो अपने गिरेबान में| असलियत को पहचान लो जनाब, जिन्होनें आपको सबसे ज्यादा वोट दिए, उन्हीं के गांव में आप पे पत्थर बरसे| शायद इस कड़वी सच्चाई से वाकिफ नहीं होना चाहते होंगे आप, इसलिए मन में बहम रखने को "जाति विशेष" का काम बता के उछाल दिया| कोई ना, "क्यों खखावै नदी, आवे तो पुल के तले को ही गी!"

जय योद्धेय! - फूल मलिक

उतरी भारत और शेष भारत की मूल-संस्कृतियों में जो एक सबसे बड़ा फर्क है!

जहां पूरे भारत में मर्द तो कुरता-कमीज-लुंगी-पजामा या धोती ही पहनता है वहीं औरत के पहनावे के मामले में दोनों की भिन्न सोच है|

उत्तरी भारत को छोड़ शेष भारत में औरत पेटलेस और अधिकतर बैकलेस चोली-साड़ी पहनती हैं अथवा उनकी मूल-सांस्कृतिक ड्रेस यही है| मतलब मर्द और औरत की ड्रेस समान नहीं| मर्द ऊपर से नीचे तक ढंका वहीँ औरत पेट और पीठ पर नंगी|

वहीँ उत्तरी भारत में जम्मू-कश्मीर से ले के आगरा तक औरत की मूल-सांस्कृतिक ड्रेस या तो सलवार-सूट है पहनती है या फिर दामन-कुरता या फिर पश्चिमी उत्तरप्रदेश की तरह साड़ी पर पूरा पेट ढंका कुरता| कुल मिला के पुरुष और महिला के पहनावे में एक समानता कि दोनों ऊपर से नीचे तक ढंके हुए हैं|

कई कुतर्की इसमें तर्क अड़ाते हुए आएंगे कि उत्तर भारत में अत्यधिक सर्दियां पड़ती हैं इसलिए औरतें ऐसे कपड़े पहनती हैं तो ऐसे तर्क का जवाब यही है कि पूर्वोत्तर के पहाड़ों में भी इतनी ही ठंड पड़ती है जितनी उत्तर में तो वहाँ पर बैकलेस या पेटलेस चोली क्यों चलती है?

इसका कारण है कि उत्तरी भारत में जाटू (जाट) सभ्यता के अनुसार ड्रेस परम्परा रही है, जबकि बाकी भारत में पौराणिक परम्परा के अनुसार|

इसका क्या मतलब लिया जाए कि उत्तरी भारत का आदमी शेष भारत के आदमी से कम व्यभिचारी या चक्षु-सुखगामी होता है? तभी तो शायद यह लोग देशभक्ति, अन्नभक्ति और खेलभक्ति से ज्यादा भरे होते हैं|

मानो या ना मानो यह मसला जाटू सभ्यता बनाम पौराणिक सभ्यता है|

वैसे जींस-टी-शर्ट सभ्यता में भी मर्द हो या औरत दोनों ही ऊपर से नीचे तक ढंके होते हैं|

विशेष: मेरी बात काटने को बहुत से लोग यह तर्क उठाएंगे कि अब तो जाटणियां भी चोली पहनने लग गई हैं तो मैं उनको कहूँगा कि मैंने यहां विदेशज नहीं अपितु देशज पहनावे की बात की है|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

एक किसान का खुला पत्र!

Why the process of deciding the production cost and selling price of a product is not same throughout every business be it corporate business, FMCG business or Agri-business?

Why it is so that be it corporate or FMCG, they recommend and decide it for themselves whereas for farmers it is govt. and corporate lobby out of which one recommends and other decides behind the scene for farmer?

Certainly farmers have to raise up against this odd.

मा• श्री नरेन्द्र मोदी
(प्रधानमंत्री) भारत सरकार,
मा• श्री मनोहर लाल खट्टर
मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार,

एक किसान का खुला पत्र

श्रीमान जी मैं एक छोटा सा किसान हूं जब आप प्रचार कर रहे थे ,तब आपने किसान हित मे बहुत सारी घोषणाये की थी मैने और मेरे परिवार ने आपके अंदर एक किसान हितेषी राजनेता का चेहरा देखा था ओर मेने ही नही सभी किसान भाईयो ने मिलकर आपको प्रचंड बहुमत दिया है आज मे परेशानी मे हूॅ वर्षा कम होने से धान की पैदाबार कम हुई साथ ही मेरी धान को 1000 रु से 1500 रु प्रति किंव्• ही खरीदा जा रहा है।ग्वार भी 2500 से3000 रु प्रति किंव् लिया जा रहा है।मैं अत्यन्त्य घाटे मे पहुंच गया हूँ पर कर्म करना मेरा धर्म है ऐसा सोचकर मेने साहूकारो व्यापारियो ओर बैको से कर्ज लेकर कपास की फसल बो  दी थी फसल अच्छी थी ।लेकिन सफेद मच्छर और कम बारिश के कारण कपास की फसल में बहुत नुकसान हुआ।मैने पांच एकड़ मे कपास की खेती की थी जिसमे 5 किं•कपास हुई है।
मै आपको क्रम अनुसार मेरी लागत का विवरण देता हूं ।

कपास का ख़र्चा प्रति एकड़ बीज~(1000×3)=3000
डीएपी ~(1250×2)=2500
यूरिया~(300×2)=600
ज़िंक ~(300×1)=300
ग्रामोक्सोम् (450×1)=450
खरपतवार नाशक
ट्रेक्टर द्वारा खेत की जुताई 1000
ट्रेक्टर द्वारा बुवाई 400
 निराई गुड़ाई 1500
10 स्प्रे ट्रेक्टर द्वारा=5000,
पानी दिया 4 बार  =5000

एक आदमी जो खेत मे पानी देने स्प्रे करता है उसे चार महीने मे देता तो ज्यादा पड़ता है।पर आप के द्वारा जो भाव  निर्धारित है 4000 रु जिससे 5 एकड़ में मेरी फसल हुई 20000 रु की।
मेरी लागत हुई 20000×5=100000जिसमे मेरी व् मेरे परिवार की मेहनत छोड़ दी है ।
इसमे मुझ 80000 रु का घाटा है अब आप मेरे आंसुओ को देखते हुये बताईये की क्या कृषि कर्मण पुरुस्कार आपको किसकी मेहनत के कारण मिला था कृषि मे कई समस्याये है मेरे बच्चे परिवार का भरण पोषण इस विषम परिस्थिति मे कैसे होगा ।आप कृषि को लाभ का धन्धा बताने की घोषणाये करके क्या साबित करना चाहते हो इस पत्र मे जो बाते लिखी गई है बह बिलकुल तथ्यो के अनुसार लिखी गई है आप जब चाहे हम किसान सभी तथ्यो के साथ आपके समक्ष उपस्थित हो जायेगे। आप से हम यह दर्द बताकर भीख नही मांगना चाहते. हमे बस हमारी फसल का उचित लागत मूल्य चाहिये यह निवेदन ओर प्रार्थना है अन्त मे एक संदेश,

जब तक दुखी किसान रहेगा
धरती पर तूफान रहेगा ।।

      माननीय मोदीजी धान का भाव पिछले से पिछले साल 3500 रु था पिछले साल 3000 रु की थी ओर इस बार आपने 1500 रु कम कर दिए....
अगर कर्मचारियों की सैलेरी मे साल में सिर्फ 500 रु कम कर दिए तो......क्या होगा पता है.......देश मे हड़तालें हो जायेगी... ताल बंदी होगी ....आपके पुतले जलाये जायेंगे  ये लोग आपको निकम्मे कहेगे......

देश का किसान आपको कुछ नही कह रहा है....ये हमारी बेवकूफी नही है भोलापन है।....एक तो सारी फसल कम हुई है और ऊपर से आप भाव भी कम दे रहे हो कुछ तो शर्म करो।

जिस दिन हमारा सब्र का बाँध टूटेगा उस उस दिन आप व आपकी पार्टी का पता नही चलेगा......

किसान के बेटे है तो इतना शेयर करो कि किसान कितना महान है।।।

प्राथी समस्त किसान भाई🏼🏼

Courtesy: Jaswant Ohlan

दुर्गा-पूजा, नवरात्रे, दशहरा और साँझी!

(देशज त्यौहार बनाम विदेशज त्यौहार)

विशेष: इस लेख का उद्देश्य हरयाणवी मूल के नागरिकों को उनके अपने देशज त्यौहार बारे बताना है। मुझे किसी त्यौहार और किसी की श्रद्धा से कोई हर्ज नहीं और उम्मीद करूँगा कि ऐसे ही मेरी बातों और श्रद्धा से किसी पाठक को कोई हर्ज नहीं होगा। अब लेख पे आगे बढ़ता हूँ।

चारों पर्वों में समानता:
1) दुर्गा पूजा और नवरात्रे नौ-नौ दिन मनाये जाते हैं।
2) दशहरा और सांझी दस दिन मनाये जाते हैं।
3) चारों को मनाने का महीना-वक्त-शुरुवाती दिन एक समान हैं।

चारों पर्वों में भिन्नता:
1) हर्याणवियों के पक्ष से सिर्फ सांझी ही हमारा देशज त्यौहार है, बाकी के तीनों विदेशज त्यौहार हैं। देशज और विदेशज शब्द का यहां ठीक वही प्रयोग है जो हिंदी व्याकरण और भाषा में शब्दों के प्रकार बताते हुए बताया जाता है। यानी अपनी भाषा के शब्दों को देशज और दूसरी भाषाओँ से हिंदी भाषा में आये शब्दों को विदेशज बोलते हैं।
2) चारों त्योहारों में सिर्फ साँझी अकेला वास्तविकता पर आधारित त्यौहार है बाकी तीनों माइथोलॉजी यानी काल्पनिक इतिहास पर आधारित हैं।
3) साँझी में ना व्रत रखने, ना भूखा मरना और ना ही आडम्बर पूजने। शुद्ध वास्तविक एवं व्यवहारिक मान्यताओं में हमारी श्रद्धा व् आदर बना रहे उसके लिए मनाया जाता है।

चारों की अलग-अलग ख़ास और विचित्र बातें:

दुर्गा-पूजा: मुख्यत: बंगाल का त्यौहार है। जबसे बंगाली शरणार्थी दिल्ली-एनसीआर-हरयाणा में आ के बसे हैं तब से यहां जाना जाने लगा है क्योंकि यह हरयाणवियों के जैसे नहीं हैं कि गाँव से मात्र बीस-तीस किलोमीटर शहर में भी क्या आन बसे कि अपने त्योहारों तक को तिलांजलि दे देते हैं। और दो पैसे का जुगाड़ हो के आर्थिक आधार पर थोड़े एडवांस क्या हुए कि लगते हैं त्यौहारों में भी एडवांसपना दिखाने। अंत में हालत वही होती है कि धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का। और यही ढेढस्यानपने वाला एडवांसपना होता है जिसकी वजह से सीएम खट्टर जैसे भी हरयाणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर बोल जाते हैं।

नवरात्रे: गुजरात के गुजरती और पाकिस्तान से आये हिन्दू अरोड़ा-खत्रियों का मुख्य त्यौहार है। हरयाणा-दिल्ली-पश्चिमी यूपी में इसको पाकिस्तान से आये हिन्दू अरोड़ा-खत्रियों ने ही यहां आ के मनाना शुरू किया। और आज आलम यह है कि आर्थिक एडवांसमेंट के मारे हरयाणवी तक अपनी "सांझी" को छोड़ इसको मना रहे हैं वो भी बावजूद यह जानने के कि इन्हीं के समाज का सबसे बड़ा नुमाइंदा सीएम हरयाणा हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर बोल जाता है। बात सही भी है जिनको अपने परम्परागत त्यौहारों तक को संजो के रखने की सुध नहीं तो उनको फिर कोई कुछ भी कह ले।

दशहरा: अवध-अयोध्या का त्यौहार है। देश की आज़ादी के बाद स्थानीय हरयाणवी त्योहारों व् सभ्यता को खत्म करवाने हेतु यहां रामलीलाओं के जरिये इसको फैलाया गया। हरयाणा-दिल्ली-पश्चिमी यूपी में रामलीलाओं का चलन बस इतना ही पुराना है जितना कि देश की आज़ादी। इससे पहले हमारे यहां मुख्यत: शिव, हनुमान व् कान्हा के ही तीज-त्यौहार मनाये जाते थे।

सांझी: सांझी सम्पूर्णत: वास्तविकता पर आधारित त्यौहार है। प्राचीनकाल से ही हरयाणा में दुल्हन जब पहली बार ससुराल जाती थी तो वो पहले आठ दिन ससुराल में रहती थी और नौवें दिन उसका भाई उसको लिवाने जाता था जो कि चलन में तो आज भी है। सांझी के बारे इससे आगे विस्तार से हरयाणवी भाषा में लिखूंगा जो कि ऐसे है:

सांझी सै हरयाणे के आस्सुज माह का सबतैं बड्डा दस द्य्नां ताहीं मनाण जाण आळआ त्युहार, जो अक ठीक न्यूं-ए मनाया जा सै ज्युकर बंगाल म्ह दुर्गा पूज्जा अर अवध म्ह दशहरा दस द्यना तान्हीं मनाया जांदा रह्या सै|

पराणे जमान्ने तें ब्याह के आठ द्य्न पाछै भाई बेबे नैं लेण जाया करदा अर दो द्य्न बेबे कै रुक-कें फेर बेबे नैं ले घर आ ज्याया करदा। इस ढाळ यू दसमें द्य्न बेबे सुसराड़ तैं पीहर आ ज्याया करदी। इसे सोण नैं मनावण ताहीं आस्सुज की मोस तैं ले अर दशमी ताहीं यू उल्लास-उत्साह-स्नेह का त्युहार मनाया जाया करदा।

आस्सुज की मोस तें-ए क्यूँ शरू हो सै सांझी का त्युहार: वो न्यूं अक इस द्य्न तैं एक तो श्राद (कनागत) खत्म हो ज्यां सें अर दूसरा ब्याह-वाण्या के बेड़े खुल ज्यां सें अर ब्याह-वाण्या मौसम फेर तैं शरू हो ज्या सै। इस ब्याह-वाण्या के मौसम के स्वागत ताहीं यू सांझी का दस द्य्न त्युहार मनाया जाया करदा/जा सै।

के हो सै सांझी का त्युहार: जै हिंदी के शब्दां म्ह कहूँ तो इसनें भींत पै बनाण जाण आळी न्य्रोळी रंगोली भी बोल सकें सैं| आस्सुज की मोस आंदे, कुंवारी भाण-बेटी सांझी घाल्या करदी। जिस खात्तर ख़ास किस्म के सामान अर तैयारी घणे द्य्न पहल्यां शरू हो ज्याया करदी।

सांझी नैं बनाण का सामान: आल्ली चिकणी माट्टी/ग्यारा, रंग, छोटी चुदंडी, नकली गहने, नकली बाल (जो अक्सर घोड़े की पूंछ या गर्दन के होते थे), हरा गोबर, छोटी-बड़ी हांड़ी-बरोल्ले। चिकनी माट्टी तैं सितारे, सांझी का मुंह, पाँव, अर हाथ बणाए जाया करदे अर ज्युकर-ए वें सूख ज्यांदे तो तैयार हो ज्याया करदा सांझी बनाण का सारा सामान|

सांझी बनाण का मुहूर्त: जिह्सा अक ऊपर बताया आस्सुज के मिन्हें की मोस के द्य्न तैं ऊपर बताये सामान गेल सांझी की नीम धरी जा सै। आजकाल तो चिपकाणे आला गूंद भी प्रयोग होण लाग-गया पर पह्ल्ड़े जमाने म्ह ताजा हरया गोबर (हरया गोबर इस कारण लिया जाया करदा अक इसमें मुह्कार नहीं आया करदी) भींत पै ला कें चिकणी माट्टी के बणाए होड़ सुतारे, मुंह, पाँ अर हाथ इस्पै ला कें, सूखण ताहीं छोड़ दिए जा सैं, क्यूँ अक गोबर भीत नैं भी सुथरे ढाळआँ पकड़ ले अर सुतारयां नैं भी। फेर सूखें पाछै सांझी नैं सजावण-सिंगारण खात्तर रंग-टूम-चुंदड़ी वगैरह लगा पूरी सिंगार दी जा सै।

सांझी के भाई के आवण का द्यन: आठ द्यन पाछै हो सै, सांझी के भाई के आण का द्य्न। सांझी कै बराबर म्ह सांझी के छोटे भाई की भी सांझी की ढाल ही छोटी सांझी घाली जा सै, जो इस बात का प्रतीक मान्या जा सै अक भाई सांझी नैं लेण अर बेबे की सुस्राड़ म्ह बेबे के आदर-मान की के जंघाह बणी सै उसका जायजा लेण बाबत दो द्य्न रूकैगा|

दशमी के द्य्न भाई गेल सांझी की ब्य्दाई: इस द्यन सांझी अर उनके भाई नैं भीतां तैं तार कें हांड़ी-बरोल्ले अर माँटा म्ह भर कें धर दिया जा सै अर सांझ के बख्त जुणसी हांडी म्ह सांझी का स्यर हो सै उस हांडी म्ह दिवा बाळ कें आस-पड़ोस की भाण-बेटी कट्ठी हो सांझी की ब्य्दाई के गीत गंदी होई जोहडां म्ह तैयराण खातर जोहडां क्यान चाल्या करदी।

उडै जोहडां पै छोरे जोहड़ काठे खड़े पाया करते, हाथ म्ह लाठी लियें अक क्यूँ सांझी की हंडियां नैं फोडन की होड़ म्ह। कह्या जा सै अक हांडी नैं जोहड़ के पार नहीं उतरण दिया करदे अर बीच म्ह ए फोड़ी जाया करदी|

भ्रान्ति: सांझी के त्युहार का बख्त दुर्गा-अष्टमी अर दशहरे गेल बैठण के कारण कई बै लोग सांझी के त्युहार नैं इन गेल्याँ जोड़ कें देखदे पाए जा सें। तो आप सब इस बात पै न्यरोळए हो कें समझ सकें सैं अक यें तीनूं न्यारे-न्यारे त्युहार सै। बस म्हारी खात्तर बड्डी बात या सै अक सांझी न्यग्र हरयाणवी त्युहार सै अर दुर्गा-अष्टमी बंगाल तैं तो दशहरा अयोध्या तैं आया त्युहार सै। दुर्गा-अष्टमी अर दशहरा तो इबे हाल के बीस-तीस साल्लां तैं-ए हरयाणे म्ह मनाये जाण लगे सें, इसतें पहल्यां उरानै ये त्युहार निह मनाये जाया करदे। दशहरे को हरयाणे म्ह पुन्ह्चाणे का सबतें बड्डा योगदान राम-लीलाओं नैं निभाया सै|

जय योद्धेय! - जय हरयाणा!

फूल मलिक

Tuesday, 13 October 2015

यह हरयाणवी ही एक अनोखे ऐसे क्यों हैं?

गुजराती अमेरिका हो या इंग्लैंड, जहां भी हों वहीँ डांडिया मना लेते हैं| बिहार से दिल्ली-एनसीआर में आने वाले बिहारी भी अपनी "छट पूजा" यहां धूम-धाम से मना लेते हैं| बंगाली भी अपनी दुर्गापूजा दिल्ली-एनसीआर में धूमधाम से मना लेते हैं| पंजाबी हो, मलयाली हो, मराठी हो वो अपने प्रदेश में हो, गाँव में हो या शहर में या विदेश, हर जगह अपने त्यौहार साथ रखते हैं|

तो फिर यह हरयाणवी ही एक अनोखे ऐसे क्यों हैं कि गाँव से मात्र तीस-पचास (30-50) किलोमीटर शहर (वो भी अपने ही राज्य के जिले में) तक आते-आते अपने तीज-त्यौहार सब भूल के कोई नवरात्रों में मशगूल है तो कोई दुर्गापूजा में, खुद की "सांझी" विरले-विरले को ही याद दिखती है| 

सांझी की पूछो तो या तो पता ही नहीं होता या जिसको पता होता है वो कहते हैं कि वो भी मनाते हैं परन्तु गाँव में| अरे भाई जब तुम गाँव से शहर आ गए तो उसको साथ शहर में क्यों नहीं मना रहे? आखिर बाकी ये इतने जो ऊपर गिनाये हैं, यह भी तो साथ लिए चलते हैं अपने तीज-त्योहारों को, देश में भी प्रदेश में भी, गाँव में भी शहर में भी, तो एक आप हरयाणवी ही ऐसे क्या अनोखे हो गए कि गाँव से अपने ही राज्य में रहते हुए अपने जिले के शहर तक अपने त्यौहार-रिवाज नहीं निकाल के ला रहे?

ताज्जुब की बात नहीं अगर ऐसे में सीएम खट्टर जैसे यह कहते हुए कि "हरयाणवी कन्धों से ऊपर कमजोर होते हैं" तान्ना मार जाते हैं तो| और वास्तव में पूरे भारत में सिर्फ हरयाणवी ही ऐसे हैं जो गाँव से निकलते वक्त अपने तीज-त्यौहार भी गाँव में ही छोड़ देते हैं|

हरयाणवियो, यह खुद की आइडेंटिटी को खुद के ही हाथों मारने की रीत ठीक नहीं| अगर आप अपने तीज-त्यौहार को ही अपना नहीं कह सकते, उसको साथ ले के नहीं चल सकते, उसको प्रमोट नहीं कर सकते, तो फिर तो दूसरे आप पर तान्ने भी कसें तो कोई ताज्जुब नहीं| 

अपनी संस्कृति को पहचानिये, इसके जमाई नहीं खसम बनिए! इसको साथ ले के चलिए|

जय योद्धेय! - फूल मलिक 

कैप्टन अभिमन्यु ही असली सीएम हैं, खट्टर तो नाममात्र हैं - पत्रकार सतीश त्यागी

सतीश त्यागी जी हो सकता है कि आपकी ऑब्जरवेशन आपके अनुसार सही हो परन्तु यह भी हो सकता है कि आप जैसे पत्रकार के जरिये आरएसएस और बीजेपी के लिए श्रीमान खट्टर ने जो हर्याणवियों को कंधों से ऊपर कमजोर कहा उस ब्यान से श्रीमान खट्टर और उनके समाज के प्रति हरयाणवी समाज में बना "नेगेटिव वर्ड ऑफ़ माउथ" (negative word of mouth) का डैमेज कंट्रोल (damage control) करने का एक जरिया बन जाए|
माफ़ करना परन्तु आपका बयान आया ही ऐसे वक्त में जब आपकी बात के इसके अलावा इसकी टक्कर के और कोई मायने निकलते ही नहीं।

वैसे भी आपकी बात लॉजिक्स के आधार पर भी ख़ारिज है। क्योंकि अभियमन्यु असली सीएम होते तो जाट तो जाट जो अन्य जातियों के किसान भाई शायद किसी बहमवश जाट से दूर चले गए थे (शायद अभी भी पास आने में वक्त लगे, परन्तु मुझे भरोसा है अगर बीजेपी साल-दर-साल इसी तरह फसलों के भावों को तली-तोड़ गोते खिलवाती रही तो अहम में पास ना भी आवें परन्तु इतना जरूर समझ आ जायेगा कि फसल के भाव तो जाट सीएम ही दिया करें थे), उनकी धान मंडियों में कम से कम इतनी बुरी दुर्गति से तो नहीं पिट रही होती कि कहाँ तो विगत सरकार INR 4000-4200 प्रति किवंटल देती थी और कहाँ श्रीमान खटटर सरकार INR 1200-1400 में पीट रही है।

क्या यही इनाम होता है नॉन-जाट किसान को जाट से छींटक के बीजेपी और आरएसएस के लिए वोट करने का? चलो एक पल को जाट को ना दो तो ना दो, कम से कम इन हमारे नॉन-जाट किसान भाइयों को तो इनकी वफ़ादारी का भुगतान करते खट्टर साहब? मतलब सारे हिन्दू भी तो हैं, क्या यह हिन्दूपना भी एक किसान को उसकी फसल का जायज भाव दिलवाने में कारगर नहीं? चोखा, अगर नॉन-जाट किसान इस सच्चाई को समझ जावें कि तुम्हारी फसलों के दाम हिन्दू कहलवाने से नहीं बढ़ते, वो सिर्फ किसान कहलवाने से ही बढ़ते हैं।
और अगर आपकी बात सच होती और वास्तव में अभिमन्यु ही सरकार चला रहे होते तो वो भी कम से कम ना ही तो इतने कम भाव देते और शायद अन्य नॉन-जाट किसानों के साथ जाट किसान को भी उचित भाव मिल रहे होते।

सो कृपया ऐसे सगूफों पे आधारित सिलसिले मत छोड़िये मार्किट में, सरकार तो श्रीमान खट्टर ही चला रहे हैं। अब हर कोने पे पिट रही सरकार की असफलता का ठीकरा कम से कम एक जाट पर तो मत फोडिये।

खैर इस जाट (यानि मैंने) ने इतना तो सीख ही लिया है कि जाट चाहे जिस भी पार्टी के पाले का हो, उसपे अगर तोहमत की राजनीती होगी तो मैं जरूर बोलूंगा।

तो त्यागी साहब! वो नेवा मत करो कि, "मेरे जामे सारे भुंडे और थारे जामे काणे भी सुथरे।"

जय योद्धेय! - फूल मलिक

अनिल विज चले माता को पशु घोषित करवाने, भगतो! त्राहि-माम, त्राहि-माम!

भगतो अब हमें दोष ना देना अगर हम गाय को पशु कह देवें तो, क्योंकि अब तो आरएसएस के सबसे बड़े चेलों में से एक श्रीमान अनिल विज, मिनिस्टर हरयाणा सरकार तक ने आपकी माता को राष्ट्रीय पशु घोषित करवाने का बीड़ा उठाया है|

वैसे भगतो ये तमाशा क्या है? कभी संगीत सोम राजपूत जो गाय के लिए मरने-मारने को लोगों को प्रेरित करता है वो खुद एक गौहत्थे का डायरेक्टर निकलता है| अब यह विज महाराज गौ-माता को पशु ही घोषित करवाने पे तुल गए हैं|

भगतो रोको इनको! समझाओ कुछ अक्ल दो कि आप भगत लोग सुतिये हो क्या जो इतनी मेहनत से एक पशु को माता बनाने में दिन-रात एक कर देते हो और फिर यह आपके ही बुद्धिजीवी लोग उसको वापिस पशु घोषित करवाने पे तुल जाते हैं|

लगता है भगत और इनके गुरु लोग दिग्भर्मित हो पथभ्रष्ट हो गए हैं| लगता है जैसे काल्पनिक कथा महाभारत में यादव कुल आपस में कट-कट नष्टप्राय हो गया था अब आधुनिक काल में भगतों में जल्द ही यह दौर आने वाला है|

दया करो ईश्वर, बख्स तो नादान अनिल विज जी को जो अपने ही भगतों की भावना नहीं समझते|

ओन सीरियस नोट: यार भगतो अब तो समझ जाओ, कि जिनके इशारों पे तुम उपरांतळी-अळसु-पळसु हुए रहते हो, वो तुम्हें कितना फद्दु समझते हैं, इसका इससे भी बड़ा जीता-जागता उदाहरण और कोई हो नहीं सकता|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 11 October 2015

यही है बीजेपी और आरएसएस के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की परिभाषा!

मुझे पूरा विश्वास है कि हरयाणा में जाटों से खिंचे-खिंचे रहने वाले यादव भाईयों को बिहार चुनाव में बीजेपी और आरएसएस उसी फील की दस्तक दे रही होगी जो हरयाणा में जाटों के साथ पहले से ही चल रही है!

इतना तो पक्का है कि बिहार का यादव सकपकाया हुआ है कि अगर बीजेपी आई तो उनके साथ कहीं यह वही ना करे जो हरयाणा में जाटों के साथ की हुई है|

यही है बीजेपी और आरएसएस के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की परिभाषा!

उम्मीद है कि इस बिहार इलेक्शन से हरयाणा का यादव भी सबक लेवेगा और अपने सबसे करीबी और समकक्ष समाज जाट से वापिस आन जुड़ेगा!

वैसे भी आम यादव और आम जाट को केंद्र में केंद्रीय मंत्री या राज्य में सीएम से ज्यादा फसलों के भाव चाहियें! जो कि बीजेपी जबसे आई है तब से तली में बिठा दिए गए हैं| कोई ना अभी तो चार साल और बाकी हैं, तब तक सिर्फ भाव ही नहीं, हर जाति के किसान की जेब भी टाँकियों वाली ना हो जावे तो देखना| चाहे फिर वो राजकुमार सैनी का सैनी किसान समाज भी क्यों ना हो| धान की एकड़ का बाद्धा लागत 30000 तो आमदनी 17000, बचत की तो फिर पूछो ही मत|

वैसे हरयाणा में जाटों के साथ यह राष्ट्रवाद-राष्ट्रवाद खेलने से पहले, गुजरात में पटेलों और महाराष्ट्र में मराठों के साथ बीजेपी, आरएसएस यही खेल चुकी है|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

यू लाग्या हरयाणा के नॉन-जाट किसानों के भी ताड़ा सा!

अब भाई इस टाइटल को समझने के लिए शर्त है कि आपको हरयाणवी आनी चाहिए| खैर मैं टाइटल से आगे की बात पे बढ़ता हूँ|

राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की चासनी में वैसे तो एक-आधा जाट भी उतरा हुआ है परन्तु हरयाणे में जाट से ज्यादा नॉन-जाट किसान तो लगभग सारा ही उतरा हुआ है|

अब जब भी नॉन-जाट किसान या नॉन-जाट किसानी-परिवेश के मित्रों से बात करता हूँ तो सारे कहते हैं कि मार दिए इस खटटर ने तो बिन आई| बाधे पे किल्ला लिया 30000 का, उसमें जीरी हुई 17000 की, इसमें क्या तो नंगा नहा ले और क्या निचोड़ ले|

एक दूसरा नॉन-जाट मित्र बोला कि भाई चाचा जी खेती करते हैं, हमारे यहां की जमीन भी तगड़ी है और पानी भी खूब लगे है फिर भी 44000 का किल्ला उतरा, जबकि हुड्डा (जाटों से नफरत करने वाले ध्यान देवें) के राज में 130000 का किल्ला उतरा करता| और अबकी बार तो लागत भी पूरी ना हुई|

मैं भी पटाक दे सी बोल्या की ना मखा और ले ल्यो राष्ट्रवाद और हिन्दुवाद के सुवाद, और चले जाओ जाटों से दूर और कर लो नफरत अभी बाकी रह री हो तो|

मखा चिंता ना करो, अभी तो एक ही साल हुआ है, चार साल और पड़े हैं| अगर 2019 आते-आते थारे घरों में इन तथाकथित राष्ट्रवादियों ने मुस्सों (चूहों) की कलाबादी ना करवा दी तो कहना| शरीर से धोले-चमकीले बाणे उतरवा के टांकी लगे लित्तर-लतेड़ ना पहरा दी तो कहना मुझे कि भाई के कहवे था|

दोनों भाई यूँ बोले यार क्यों हंसी उड़ा रहा| कोई हल बता|

मैंने भी कह दी मखा हल तो इब या तो श्री राजकुमार सैनी बतावैं या फिर खुद खट्टर| मखा एक काम कर लो आरएसएस के दफ्तरों में जा के ट्राई मार लो, हो सके है कि हिन्दू के नाम पे उनका हृयदा पिघल जा और जाट सीएम वाली सरकार से ज्यादा ना सही तो उसके बराबर भाव दिलवा दे|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 10 October 2015

जयकारा सींगों-वाली का!


जयकारा सींगों-वाली का, बोल सेक्युलर दूध दरबार की जय!
काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!

हो बोलो जय मरदो की, जय हो!
बोलो जय लागढ़ की, जय हो!
बोलो जय बाखड़ी की, जय हो!
बोलो जय हरर्या की, जय हो!
बोलो जय कटवाळ की, जय हो!
बोलो जय झोटी की, जय हो!
दूध जो तेरा पी जाए, जय हो!

वो प्रो-बॉक्सर बन जाए, जय हो!
सबमें बल है भरती, जय हो!
सबके दुःख ये हरती, जय हो!
हो मैया झोटों वाली, जय हो!
भर दो बालट्ट खाली, जय हो!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
मेरी माँ आआआ सींगों वालिये!

पूउउउरे करे अरमान जो सारे, पूउउउरे करे अरमान जो सारे!
देअअती है वरदान जो सारे, देअअती है वरदान जो सारे!

भूअअरी रे एएएएए, काली रे एएएए, झोट्टां-वालिये!
देअअती है वरदान जो सारे, देअअती है वरदान जो सारे!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
झोट्टां-वालिये, मेरिये राणिये!

साअअरे जग को दूध पिलाये, साअअरे जग को दूध पिलाये!
पहलवानों को जो खूब जिताये, पहलवानों को जो खूब जिताये!

एथलीटों की रफ़्तार बढाए, एथलीटों की रफ़्तार बढाए!
पैअअकेट में सबके घर जाए, पैअअकेट में सबके घर जाए!

व्यापारी-अफसर गट-गट पी जाए, व्यापारी-अफसर गट-गट पी जाए!
पंडा-मौलवी सबको भाये, पंडा-मौलवी सबको भाये!

मुर्रे एएएएएएएएए मेरिये, राणिये!

काली है मेरी माँ, मुर्राह है मेरी माँ, रूंडी है मेरी माँ, खुंडी है मेरी माँ!
झोट्टों वालिये एएएएएएएए, सींगां वालिये एएएएएएएएए

मौत के सौदागर की सवारिये, सींगां वालिये एएएएएएएएए
सेक्युलर गुणों वालिये एएएएएए, ओ माता कालिये एएएएएएएएए

बोल साचे दरबार की जय! बोल सेक्युलर दूध-दरबार की जय!
बोल झोट्टां वाली की जय, बोल सींगां वाली की जय!

जय हो! जय हो! जय हो!

सेकुलरिज्म की प्रतीक भैंस माता!

सेकुलरिज्म से नफरत करने वाले कम्युनल कीड़े, सेक्युलर भैंस माता का दूध पीना छोड़ दें अन्यथा कटटरता और अंधभक्ति के थोथे थूक बिलोने छोड़ दें!

क्योंकि भैंस पे ना मुस्लिम झगड़ा करता है, ना हिन्दू, ना सिख। भैंस सब धर्मों को भाती है, सबकी नाती है।
इसलिए तमाम अंधभक्तों से अनुरोध है कि वो भैंस का दूध ना पीवें अन्यथा सेक्युलर हो जावेंगे!! वो हर उस चीज से नफरत करें, दूर रहें जो सेकुलरिज्म की प्रतीक है!

बोल सेक्युलर दूध दरबार की जय!

मोहन भागवत, जाति अभी जिन्दा है!

दनकौर (नोएडा) में हिन्दू दलित परिवार को हिन्दुओं द्वारा नग्न किये जाने की (कई लोग कह रहे हैं कि वो खुद नग्न हुए थे, फिर भी कोई यूँ-ही बैठे-बिठाये तो नग्न नहीं हो जायेगा, कुछ तो उंच-नीच का पेंच उलझा ही  होगा)  तालिबानी उत्पीड़न की क्षुब्धता विश्व के कौनों-कौनों तक गूंजी है| यूरोप वाले इसको "हिन्दू तालिबान" व् "हिन्दू सऊदी" तक कहने लग गए हैं|

पिछले महीने ही आरएसएस और मोहन भागवत वक्तव्य देते हैं कि नौकरियों में जातीय आधार के आरक्षण की पुनर्विवेचना होनी चाहिए| क्योंकि आपको जातीय आरक्षण देश पर कलंक लगता है और दावा करते हैं कि इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि नहीं बन पा रही है| जबकि कहानी उल्टी है, आपकी काल्पनिकता से बिलकुल उल्टी|

दादरी (गाजियाबाद) और दनकौर (नोएडा) की घटनाएं चीख रही हैं कि धर्म और जातीय कटटरता और फूहड़ता अभी जिन्दा हैं| 'हिन्दू एकता और बराबरी' एवं 'हिन्दू बटेगा, देश घटेगा' जैसे स्लोगन्स ढकोसला हैं| और दनकौर की घटना साक्षी है इस बात की| एक पशु के नाम पर उदंडता फ़ैलाने वाले हिन्दुओं के समक्ष ही एक हिन्दू दलित परिवार को सरेआम नग्न किया जा रहा था या वह खुद हो रहा था और किसी हिन्दू का उस परिवार को या उसको नग्न करने वालों के खिलाफ खून नहीं खोला|

दूसरी तरफ एक तथाकथित हिन्दू-हृदय सम्राट संगीत सोम खुद जब एक बूचड़खाने जिसमें की गाय भी कटती हैं के डायरेक्टर निकलते हैं तो यही तथाकथित हिन्दू व् इनके धर्माधिकारी तक भी चूं तक नहीं करते। कम से कम यह आर्टिकल लिखे जाने तक ऐसी कोई खबर नहीं की किसी गाय के भगत ने चूं तक भी किया हो इस खुलासे पे।

यह कैसा धर्म है और कैसी इसकी शिक्षा कि इंसानी अपमान पे जिसके खून में कोई हलचल नहीं होती वो जानवरों के गोबर-मूत पे किन्हीं तालिबानियों की भांति झींगा-लाला-हु-हु झिँगाने लगते हैं|

मैं किसी को आईना नहीं दिखाना चाहता, मुझे तो इनके ड्रामों की रग-रग का पता है| परन्तु मानवता कहीं रोती है या रूलती है तो अंतर्मन क्रंदन करने लगता है|

आखिर लोग कब समझेंगे कि "हिन्दू" नाम का कोई धर्म नहीं (सुप्रीम कोर्ट तक कह चुका है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं) , "हिन्दू" नाम की कोई स्थाई सोच नहीं| "हिन्दू" शब्द कोरी एक राजनीति है, इसका धर्म-इंसानियत-सभ्यता-जिम्मेदारी से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं| "हिन्दू" नाम के पार्सल में आज भी आपको ना सिर्फ धर्म अपितु जातिवाद का जहर ही पिलाया जा रहा है| तभी तो एक पशु के खाने की अफवाह मात्र पर किसी संगीत की धुन की भांति सहायता का सोमरस पिलाने वालों से ले रण के सुरेश बनने वाले "हिन्दू-हृदय सम्राटों" के लावलश्कर तो क्या उनके संदेश तक 'दनकौर' नहीं पहुंचे| यहां तक दलित-पिछड़ों के मॉडर्न-ब्रांड मसीहा महाशय श्री राजकुमार सैनी तक ने एक शब्द अभी तक इसके खंडन पर नहीं बोला|

'पापी के मन में डूम का ढांढा' वाली बात है यह तो श्रीमान भागवत| स्पष्ट है कि 'दनकौर' जैसी घटना अपने आपमें इस बात की पुनर्विवेचना है कि आज भी इस देश में आरक्षण और वो भी आर्थिक या शैक्षणिक नहीं अपितु सामाजिक आरक्षण क्यों जरूरी है|

दलित और किसान 'जातिवाद' को समझें और इस जातीय जहर को इसको लिखने-घड़ने वालों की किताबों तक में ही समेट दो या फिर उनके ही ऊपर उड़ेल दो| क्योंकि मोहन भागवत की तो बाट जोहना मत कि जैसे उन्होंने "नौकरी आरक्षण" की पुनर्विवेचना की कह दी वो कभी सपनों में भी "जातिवाद" की पुनर्विवेचना या इसको समाज से हटाने की कहेंगे या इसमें बसी जातीय-वर्णीय बंटवारे की डंकनी सोच से इसको मुक्त कर पाएंगे अथवा करने की कहेंगे| उनके तो खुद के संगठन में आजतक स्वर्ण से तले कोई प्रधान नहीं बन पाया।

किसान वर्ग की जातियों को यह खेल समझना होगा कि जब आप अपनी वास्तविक "अन्नदेवता" वाली उच्चता (जिसके आगे धर्म भी नतमस्तक है) को छोड़ इनके हिन्दुवाद की अव्यवहारिक व् असामाजिक छद्म उच्चता ओढ़ते हो तो कैसे खुद को दलित के खिलाफ खड़ा कर लेते हो|

इस वायरल का असर यहीं तक थम जावे तो काम चल भी जावे, परन्तु असली खेल तो इससे आगे होवे है| उंच-नीच के नाम पर बंटे आप दलित-किसान को फिर यही जातिवादी आपको वोटों के दो धड़ों के रूप में बड़ी सहजता से प्रयोग करते हैं|

जातिवाद को अपने समाज, दिलों और मस्तिष्कों से निकाल के बाहर करो क्योंकि यह सिवाय "यूज एंड थ्रो" की न्यूनतम दर्जे की अमानवीय-हिंसक राजनीति के कुछ नहीं|

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Mr. CM Haryana, please rethink over your 'Education Norm Condition' in forthcoming Panchayati Raj Elections in state!

Look at this report from attachment, there are men and women farmers in hundreds, out of which most of are below 10th or even not having 5th grade official degree but are beating more than 70% scientists, professors and researcher all over the nation with their profound and stunning knowledge of crops insects, their biological life-cycles, their impacts on crops.

One side where in Punjab and ajdacent Haryana layers, farmers have lost most of their cotton crops due to severe mass attack of "White Fly", on the other side farmers in Jind district have successfully shielded their cotton crop with their distinctive know-how of various insects life-cycle.

So please remember Mr. C.M. they also have and even attained a wisdom and wisdom is something which one needs to run or govern the public. So when they can beat yours government's more than 70% of agri-scientists and professors (who not only just have this job rather your system would have spent on them in crores) then how can they not be eligible for electing "Panchayati Raj Elections"?

I feel special compassion and legitimacy to these farmers as the epicenter of this agri-movement has been my native village i.e. Nidana Nagri of my beloved Jind country (we oftenly loved to call it country in student age, a KUK famous compliment) in a state of Yoddheyas i.e. mighty Haryana.

Oh I think, as you don't even consider yourself a Haryanvi (of course otherwise won't have termed Haryavies weak above and strong below shoulders), so all these 'Nagri', 'Country' and 'Yoddheyas' would appear new to you. Don't worry ask your assistances, they would help you out.

Jai Yoddhey! - Phool Malik


 

भगतों का सुतिया कट गया रे!

रै रळदू, न्यूं क्यूकर भाई, (आगे हिंदी में) यह "हिन्दू-ह्रदय सम्राट श्रीमान संगीत सोम" तो खुद ही "अल-दुआ" बीफ प्रोसेसिंग कंपनी जो कि बीफ से ले हर तरह के मांस का व्यापार करती है, उसके डायरेक्टर निकले|

और वो भी भगतों के गुरुओं द्वारा भगतों के लिए भगतों के दुश्मन नंबर वन कौम बताये गए मुस्लिम (जिनके साथ भाईचारा रखने पे भगतगण मेरे जैसे सेक्युलर को गलियाते रहते हैं) के साथ खोल रखी है, भगतो डूब के मरने को जी कर रहा हो तो आसपास कोई नहर, नहर नहीं तो जोहड़-कुँए तो जरूर मिल जायेंगे|

भगतो घर में ही गाय का भक्षक जयचंद पाले बैठे हो और वह तुम्हारा कितना अच्छे से सुतिया भी बनाता है| दादरी में हरसम्भव मदद का दावा करने भागा-भागा आता है और दूसरी तरफ "अल-दुआ" बूचड़खाना भी चलाता है| अंधभक्ति इंसान को मूढ़-हिंसक-अपराधी बना देती है पता था परन्तु सुतिया भी बनाती है यह अब पता चला|

अब उठाना ऊँगली तुम मेरे ऊपर मुस्लिमों को भाई कहने पर, तुम्हारे इन हिन्दू-हृदय सम्राट का नाम आगे अड़ाया करूँगा|

तमाम कृषि-समुदायों से यही कहना है कि शुद्ध कृषक बने रहो, ज्यादा हिन्दू बनने के चक्कर में उलझोगे तो श्री संगीत सिंह सोम राजपूत जैसे छद्म लोग आपका दिन-धोली सुतिया बनाते रहेंगे।

'हिन्दू' शब्द के नाम पर एक छद्मभेषी तबका कैसे अपने स्वार्थ साध इनके बहकावे में आने वालों का कैसे सिर्फ फद्दु ही नहीं अपितु सुतिया भी काटता रहा है उसकी जीती-जागती मिशाल हैं श्री संगीत सोम जी।

मतलब किसी आम आदमी का बूचड़खाना होता तो समझ भी आता, यह तो उस आदमी का निकला जो 2013 में मुज़फ्फरनगर से हिन्दू-हृदय सम्राट बना चल रहा था। और इसपे इनके अति-आत्मविश्वास की इंतहा तो देखो, एक तरफ जनाब खुद एक गाय काटने वाले बूचड़खाने के डायरेक्टर और दूसरी तरफ दादरी में गौ-मांस पर हुए दंगे में जा के गौ-भगतों को मदद आश्वस्त करके आते हैं।

शुक्र है कि मैं तो शुरू दिन से तभी से इनसे तटस्थ रहा और अब तो इनको कतई ना हेजूँ। ऐसी सुतिया बनाने वाली अंधभक्ति तुमको ही मुबारक भगतो और अंधभग्तो। हम तो भक्ति के बिना ही सिर्फ "अन्नदेवता" या "अन्नदेवता की औलाद" कहला के जी लेंगे।

जय योद्धेय! - फूल मलिक