पंक्ति 1) - किसी भी वर्ग को आरक्षण मांग कर नहीं बल्कि काम करके आगे बढ़ना चाहिए!
पोस्टमॉर्टेम: हरयाणा में EWSR (Economic Weaker Section Reservation) के
तहत जो 10% आरक्षण है उसमें आपका वर्ग आरक्षण का लाभ ले रहा है, महाशय? और
यह आरक्षण आप लोगों ने मांग के ही लिया था, यह भी भूल गए हो तो जब यह
आरक्षण मिला था, उस वक्त आपके वर्ग ने इसके लिए कितनी सभाएं कर-कर
विज्ञप्ति पत्र दिए थे, उनकी मीडिया रिपोर्ट्स निकाल लो नजरों के आगे से|
मतलब दुनिया को अँधा ही समझ बैठे हो क्या?
पंक्ति 2) पंजाबियों ने पाक से आकर मेहनत के बूते पर समाज में जगह बनाई!
पोस्टमॉर्टेम: जनाब खुद कह रहे हैं कि यह पाकिस्तान मूल के हैं; तो भाई
यही बात कमांडेंट हवा सिंह सांगवान जी ने कह दी थी, तो बड़ी मिर्ची लग गई
थी? पूरे हरयाणा में सांगवान साहब के पुतले फुंकवा दिए थे, कि क्यों-क्यों
हमें "पाकिस्तानी मूल का" कहा ही क्यों?
अमां यार, बाकी तो छोड़ो; यह
बताओ भारतीय बैंकों का जो 20 करोड़ से ज्यादा रुपया और पंजाब केसरी अखबार
की दिल्ली ऑफिस के लिए जो सैंकड़ों करोड़ों की जमीन जब्त किये बैठे हो; यह
सारा पैसा कब लौटा रहे हो बैंको और सरकार को? बता, लूट-खसोट के खाने वाला,
मेहनत के दम भी भरता है| मत भरो ऐसे दम वर्ना लोग लूट-खसोट को ही मेहनत समझ
बैठेंगे|
पंक्ति 3) पंजाबी समाज ने कभी आरक्षण की मांग नहीं की|
पोस्टमॉर्टेम: जवाब बिंदु एक में दिया जा चुका|
पंक्ति 4) सीएम को करनाल से जिताकर, पहली बार प्रदेश में पंजाबियों का राज आया है?
पोस्टमॉर्टेम: जनाब पंजाबियों का राज गया कब था हरयाणा से, जो पहली बार
आया है बता रहे हो? 1966 से पहले हरयाणा पंजाब का पार्ट था, इस नाते हर
हरयाणवी आधा पंजाबी तो बाई-डिफ़ॉल्ट है, पंजाब का छोटा भाई कहलाता है?
मैंने तो सुना था कि "हरयाणा एक, हरयाणवी एक" वालों का राज आया है? महाशय ,
पहले बयानों में तो एकता कर लो, समाज की एकता की शेखी तो बाद में बघारना|
सीएम खट्टर "हरयाणा एक, हरयाणवी एक" का नारा देते हैं और महाशय इसको पंजाबी
राज बताते हैं? कहीं नीचे-ही-नीचे अपने ही बिरादरी भाई की कुर्सी छीनने की
लालसा तो हिलोरे नी मार रही, महाशय?
वैसे पंजाबी शब्द से आपको बड़ा
लगाव लगता है? मेरे जैसा तो इस शब्द पे अभिमान करे 100 बार करे, आप किस
मुंह से इस पर अभिमान की बात करते हो? पंजाब ने आपके पिता जगतनारायण को
गोलियों से भून दिया था, आपको अपने इसी पंजाबी प्रेम के चलते पंजाब छोड़
हरयाणा में शरण लेनी पड़ी थी, जब पंजाब में होते थे तो वहाँ हिंदी आंदोलन
चलाते थे; तो महाशय प्रैक्टिकल ग्राउंड तो कहीं नहीं दीखता आपमें पंजाबियत
और पंजाबी होने का?
पंक्ति 5) मैं सप्ताह में एक दिन पंजाबी समाज को जागरूक जरूर करूँगा?
पोस्टमॉर्टेम: महाशय, मेरी परिभाषा वाले बाई-डिफ़ॉल्ट पंजाबी समाज को या
अपने बिरादरी वाले समाज को? अगर मेरी परिभाषा वाले को जागरूक करना चाहते तो
आपका हार्दिक स्वागत है; वर्ना इतना याद रखें कि आपमें समाज को जागरूक
करने का नहीं अपितु तोड़ने-फोड़ने का डीएनए है, ठीक अपने पिता की भांति| जिस
थाली में खाते हो, उसी में छेद करने का डीएनए है, आपके पिता की भांति (यह
पंक्ति सिर्फ चोपड़ा परिवार के लिए है, पूरा अरोड़ा/खत्री समाज इसको अपने ऊपर
न लेवें)
पंक्ति 6) हरयाणा में जाट 30 तो पंजाबी 28 फीसद हैं|
पोस्टमॉर्टेम: महाशय, सितम्बर 2012 की श्री के. सी. गुप्ता आयोग की
आधिकारिक रिपोर्ट कहती है कि हरयाणा में जाट 32.03 फीसद और पंजाबी
(अरोड़ा/खत्री) सिर्फ 6.40% है| आपके इस पंजाबी शब्द के गेम की सच्चाई भी
उतनी ही खोखली है जितनी कि आपके 35 बनाम 1 बिरादरी वाले नारे की| अच्छे से
समझता हूँ कि आप इस शब्द में हरयाणा की सिख कम्युनिटी को भी साथ रखना चाहते
हो; परन्तु एक बात अच्छे से जान लो, सिख कम्युनिटी यूँ पंजाबी-पंजाबी कह
देने मात्र से आपके साथ आती तो पंजाब के सिख आपको पंजाब से इतनी तबियत से
नहीं खदेड़ते कि आपको हरयाणा में शरण लेनी पड़ती|
पंक्ति 7) मांग कर नहीं, काम करके बनाएं पहचान!
पोस्टमॉर्टेम: महाशय, क्या आजतक ब्राह्मणों से खुद को किसी भी किताब के
छोटे-मोटे कोने पे भी "अरोड़ा जी", "खत्री जी" या "पंजाबी जी" लिखवा पाए हो;
हम जाट लिखवा पाए हैं| सन 1875 में तब की बम्बई और आज की मुम्बई में 96
उच्च-कोटि ब्राह्मणों की सभा हुई थी, जिसमें जाट समाज की स्तुति का कार्य
ऋषि दयानंद को दिया गया था (इसके पीछे की वजहें मेरे पीछे के लेखों में कई
बार जिक्र में आ चुकी हैं)| तो पढ़ लो उठा के सत्यार्थ प्रकाश, उसमें
ब्राह्मणों ने जाट को "जाट जी" भी लिखा है और "जाट देवता" भी| तो ऐसा है
जिस दिन यह लिखवाने की औकात बना लो अपनी, उस दिन बात करना पहचान की|
अब एक सन्देश अंधभक्त बने हरियाणवियों के नाम; सन्देश के टाइटल दो हैं:
1) अधिनायकवाद के साइड इफेक्ट्स|
2) मोटा-पेट बकाल, मुस्से बरगी खाल|
मतलब, मोदी की हवा के चलते एमएलए/एमपी और यहां तक कि मुख्यमंत्री बने
लोगों को बहम नहीं पालने चाहियें; यह बात मनोहर लाल खट्टर, अश्वनी चोपड़ा व्
राजकुमार सैनी पर बराबरी से लागू होती है| अलग-अलग तो दूर आप तीनों इकठ्ठे
होकर भी हरयाणा में अपने में से एक को सीएम कैंडिडेट डिक्लेअर करके चुनाव
लड़ के देख लो, दहाई का आंकड़ा पार करने जितनी सीट लाने के लाले पड़ जायेंगे|
यही तो अधिनायकवाद की अंध्भक्ति में बावले हुए लोगों को समझना चाहिए कि
अंधभक्ति में आपको ऐसे अलोकतांत्रिक, कटुता और विखण्डन की जहरी मति के लोग
झेलने पड़ जाते हैं, जिनकी निजी लोकतांत्रिकता शून्य होती है|
महाशय
अश्वनी चोपड़ा का डीएनए तो पिछली पीढ़ियों से ही खराब है; महाशय के पिता श्री
के सर पर ही तो पंजाब को आतंकवाद में झोंकने का ताज है| सो इनको सीरियसली
लेने की जरूरत नहीं| बस अपने आपको सर छोटूराम बनाने की ओर अग्रसर रखो,
ऐसे-ऐसे हजारों-लाखों पर एक छोटूराम भारी रहा है और रहेगा| इनको आज भी सर
छोटूराम के सपने आते हैं तो ऐसे तड़प के उठते हैं जैसे कोई भूत देख लिया हो|
दूसरी, बात क्योंकि इन महाशय के परिवार का पंजाब में आतंकवाद
परोसने का इतिहास रहा है, इसलिए भूल के भी कोई हरयाणवी इनकी बातों से भड़के
नहीं, बल्कि याद रखे, "मोटा-पेट बकाल, मुस्से बरगी खाल" यानि जैसे चूहे को
खरोंच मात्र लगने से वो प्राण त्याग देता है, इतना भर जाथर है इनका| इसलिए
इनको जवाब देने के लिए आपके शब्द ही काफी हैं|
आपकी कलम काफी है|
यह लोग तलवार से नहीं, कलम से मार खाते हैं; इसलिए अपनी लेखनी में धार लाओ
और सोशल मीडिया के जरिये छा जाओ; परन्तु ध्यान रहे लेखनी में सविंधान की
मर्यादा निभाई जाए| बस शब्दों के बदले शब्दों की बौछार कुंध मत होने देना,
यह तो ऐसे गायब होंगे; जैसे गधे के सर से सींग|
Note: I won't mind if anyone of you could forward it to the person in context here.
जय यौद्धेय! - फूल मलिक